अरूण कमल समकालीन हिंदी कविता के एक सशक्त हस्ताक्षर है | हिंदी कविता में जिन रचनाकारों ने समकालीन रचनाशीलता को एक कोटि के तौर पर स्थापित किया, अरूण कमल उनमें अग्रणी है | उनके काव्यसंग्रह- ‘अपनी केवल धार’ (1980), ‘सबूत’ (1989), ‘नये इलाके में’ (1996), ‘पुतली में संसार’ (2004), तथा ‘मैं वो शंख महाशंख’ (2012) आदि प्रकाशित हैं | अरूण कमल उन थोडे कवियों में से हैं जिनकी काव्ययात्रा अनेक वैशिष्ट्ये से ओतप्रोत हैं | उनका काव्य निरंतर विकसित एवं परिपक्व होता दिखाई देता है |
एकांत श्रीवास्तव ने उनकी काव्य-यात्रा को स्पष्ट करते हुए कहा है- “एक कवि प्राय: क्रमिक विकास ही करता है | धान के पौधे पहले गहरे हरे, काई जैसे रंग के होते हैं | फिर धानी | फिर पीले | उनके दानों में दूध भरता है | धूप, पानी में वे ठोस होते हैं जीवन में हो या रचना में परिपक्वता क्रमश: आती है | सहसा नहीं | अरूण कमल की कविता ने एक दीर्घ काव्य-यात्रा के दौरान स्वयं को विकसित किया है और अब यहाँ तक आते-आते ऐसा लगता है कि अरूण कमल की कविता अपनी अधिकांश पंखुडियाँ खोल चुकी हैं |”1
अरूण कमल उन समकालीन कवियों में हैं, जिनमें वैचारिक निष्ठा, संवेदनात्मक प्रखरता और सामाजिक जिम्मेदारी के चौकाने के एहसास के साथ एक ऐसी दुनिया रचने की कोशिश करते हैं जो बिना चीख-पुकार के शान्त लेकिन विकल ढंग से हमारी है | इनकी कविताओं में प्रतिबद्धता, जुझारूपन, लोक संपृक्ति, यथार्थ बोध तथा एक कलात्मक संधान के लिए जरूरी काव्य-विवेक की झलक दिखाई देती है | भूमंडलीकरण की विकास प्रक्रिया में जो होना चाहिए था, वही नहीं हुआ | दुनिया केवल छोटी होती जा रही है | छोटी सिर्फ दुनिया नहीं हुई बल्कि संवेदनशीलता और मनुष्यता भी हुई है | इसी प्रवृत्ति पर प्रहार करते हुए अरूण कमल ‘छोटी दुनिया’ शीर्षक कविता में लिखते हैं-
इतनी छोटी हो गयी है दुनिया एक नक्शे – भर –
जब आप आराम से खाना खा रहे हैं
तो बिल्कुल पास में कोई भूख से दम तोड रहा है-
चैन नहीं है कभी, सुख नहीं है अकेले-अकेले
सबके साथ ही सुख है, सबके दुख में दुख |2
सिकुडती जा रही मनुष्य की दुनिया में कवि को कविता के लिए अनेक विषय मिले हैं, जो उनके काव्य-संसार में बिखरे पडे हैं | सृष्टि के विकास में मजदूरों और कामगारों की भूमिका को सक्रियता से उभारने वाले समकालीन कवियों में अरूण कमल उल्लेखनीय और महत्त्वपूर्ण कवि हैं | मजदूर तेज करते हैं दुनिया की रफ्तार, पर जब वे जाते हैं दुनिया को छोडकर तो बेआवाज चले जाते हैं | या उनकी आवाज दुनिया के शोर में डूब जाती है | इसीलिए कवि ने ‘स्नान-पर्व’ शीर्षक कविता में मजदूर के अभाव और विवशता को प्रकट करते हुए लिखा-
कोई नहा रहा है
वह नदी की काली मिट्टी से
पीठ की मैल को फोडता है
वह अपने बढे नाखूनों से
खोद-खोदकर
नदी के अंग से
मिठ्ठी उठाता है मुठ्ठी में
और मल-मल कर
नहाता है
छपछपाकर पानी में
डूब डूबकर |3
वस्तुत: अरूण कमल अपनी कविताओं में मजदूरों एवं सर्वहारा के प्रति हमदर्दी प्रकट करते हैं | उन्होंने मजदूरों की स्थितियों पर पर्याप्त विचार-विमर्श किया है | साथ ही वे लोकतंत्र के नाम पर हो रहे नेताओं के अत्याचार की और उनकी राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों को अपनी रचना में प्रत्यक्ष ढंग से उद्घाटित करते हैं | मसलन-
और मैं मारा गया
इसलिए कि मेरी नाभि में कस्तूरी थी
और रोंओं से झर रही थी सुगन्ध लगातार
जानता था एक दिन नष्ट ही करेगी पवित्रता
इसी जीवन के कारण मरूँगा तै था
मैंने हरदम अच्छा बर्ताव किया
न किसी का बुरा ताका न कभी कुछ चाहा
और अब अचानक मैं मारा जाऊँगा
सिर्फ इसलिए कि मेरी जाति वो नहीं जो हत्यारों की
मेरा धर्म वो नहीं |4
अरूण कमल राजनीतिक चेतना को जीवन का एक परिदृश्य मानते हुए सत्ता का निषेध करते हैं और उनके प्रतिपक्ष में खडे होते हैं | अत: उनकी कविता से मनुष्य में जीवन को प्रभावित करने की क्षमता आती है | इसीलिए उन्होंने लिखा- “कविता मनुष्य की आत्मा का सर्वाधिक प्रतिरोधी, सर्वाधिक सशक्त टीका है- मृत्यु के विरूद्ध कविता एक टीका है |”5 अर्थात यह टीका मनुष्य के भीतर-बाहर उसकी मनुष्यता को बीमार नहीं होने देता, मरने नहीं देता |
अरूण कमल की कविताओं में स्त्री की उपस्थिति भी दर्ज होती है | स्त्री-विमर्श जैसी अवधारणा के बहुत पहले उन्होंने स्त्री जीवन के तमाम पक्षों के भीतर झाँक कर देखा है | उन्होंने स्त्री जीवन के विविध रूप देखें, जीए और रचे है | जैसा कि अरूण कमल ने ‘धरती और भार’ शीर्षक कविता में गर्भवती स्त्री को नल पर पानी भरने जाने से मना करते हुए कहते हैं-
भौजी, डोल हाथ में टाँगे
मत जाओ नल पर पानी भरने
तुम्हारा डोलता है पेट
झूलता है अंदर बँधा हुआ बच्चा
गली बहुत रूखडी है
गडे हैं कंकड-पत्थर
दोनों हाथों से लटके हुए डोल
अब और तुम्हें खींचेंगे धरती पर
झोर देंगे देह की नसें
उकस जाएँगी हड्डियाँ
ऊपर-नीचे दोलेगा पेट
और थक जाएगा बउआ |6
वस्तुत: अरूण कमल की अनेक कविताएँ स्त्री जीवन के प्रश्नों से टकराती हैं | ‘धरती और भार’ कविता इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है | अर्थात इस प्रकार की कविताओं के माध्यम से कवि ने स्त्री जीवन की बेबसी और बेचैनी को ही वाणी दी है |
अरूण कमल स्त्री मुक्ति के बारे में तथा कविता में स्त्री की उपस्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं- “प्राचीन काल से सारे लोकगीत मुख्यत: स्त्रियों ने ही रचे जो दुनिया की सर्वाधिक मर्मस्पर्शी कविताएँ हैं | थेरी गाथाएँ जो बौद्ध भिक्षुणियों ने रची, स्त्री मन की उन्मुक्त अभिव्यक्ति तो हैं ही, साथ ही प्रतिरोध का भी जीवन्त दस्तावेज है | बाद में मध्यकाल में भक्ति आंदोलन के साथ अक्का महादेवी, ललमद और मीराँबाई जैसी महान कवयित्रियों ने मुक्ति की अदम्य आकांक्षा को वाणी दी | न केवल शब्दों से बल्कि स्वयं अपने आचार-व्यवहार से अपने जीवन से सिद्ध किया कि एक वैकल्पिक जीवन पद्धति संभव है |”7
प्राय: अरूण कमल के काव्य-संसार का अध्ययन करने से प्रतित होता है कि कवि मनुष्यता की खोज में निरंतर करूणा और संवेदना के नये इलाके ढूँढ रहा है | अरूण कमल की काव्य संवेदना समझने के लिए वैयक्तिक अनुभूति की प्रामाणिकता के बल पर लिखी गईं उनकी भावात्मक कविताएँ सहायक सिद्ध होगी | जैसा कि वे ‘उर्वर प्रदेश’ शीर्षक कविता में लिखते हैं –
खोलता हूँ खिडकी
और चारों ओर से दौडती है हवा
मानो इसी इंतजार में खडी थी पल्लों से सट के
पूरे घर को जल भरी तसली-सा हिलाती
मुझसे बाहर मुझसे अनजान
जारी है जीवन की यात्रा अनवरत
बदल रहा है संसार |8
निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि अरूण कमल की काव्य संवेदना मनुष्य की भौतिक उन्नति, शहरीकरण की मानसिकता, परिवर्तन की तेज गति के परिप्रेक्ष्य में मनुष्य की आत्मिक संवेदना के ऱ्हास को निर्दिष्ट करने वाली कविता है | गरीबी, भुखमरी, अकाल एवं आम आदमी की त्रासद स्थितियों के अनेक मार्मिक चित्र अरूण कमल की कविता में अंकित हैं| उनकी कविताओं में समकालीन मनुष्य के अर्न्तद्वद्वों, संघर्षां, दु:खों की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है | अत: उनकी अनुभूति एवं संवेदना का धरातल अत्यंत व्यापक एवं बहुआयामी है | साथ ही उन्होंने अपने अनुभवों को काव्यानुभव बनाने के लिए लोक संगीत, छन्दात्मकता, लय और उनसे ऊपर लोकभाषा की ताकत भी है | अरूण कमल की काव्य-संवेदना के मूल में बिहार के भोजपुरी इलाके की आम जुबान का बडा हाथ है | अत: उनकी काव्य भाषा की सबसे बडी खूबी इस ठेठ-स्थानीयता का बोध है | कुल मिलाकर अरूण कमल समकालीन कविता में सार्थक प्रतिनिधी एवं लोकचेतना के कवि हैं | नि:संदेह हम कह सकते हैं कि संवेदना एवं शिल्प की दृष्टि से अरूण कमल की कविता समकालीन हिंदी कविता की एक विशिष्ट साहित्यिक उपलब्धि है |
संदर्भ ग्रंथ सूची :
- वागर्थ – सितंबर 2006, सं-विजयबहादुर सिंह, पृ.सं.15
- सबूत – अरूण कमल, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, नवीनतम सं.- 2004, पृ.सं.80
- कवि ने कहा – अरूण कमल, किताबघर प्रकाशन, नयी दिल्ली, प्र.सं.- 2012, पृ.सं.26
- नये इलाके में – अरूण कमल, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, तृतीय सं.- 2007, पृ.सं.70-71
- आलोचना – जनवरी-मार्च- 2003, पृ.सं.23
- कवि ने कहा – अरूण कमल, किताबघर प्रकाशन, नयी दिल्ली, प्रथम सं.- 2012, पृ.सं.20
- अनामिका का काव्य: आधुनिक स्त्री – विमर्श लेखक – मंजु रूस्तगी, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, प्र.सं.- 2005, पृ.सं.76
- कवि ने कहा – अरूण कमल, किताबघर प्रकाशन, नयी दिल्ली, प्र.सं.- 2012, पृ.सं.29
डॉ. साईनाथ उमाटे
विभागाध्यक्ष, हिन्दी विभाग,
दयानंद वाणिज्य महाविद्यालय, लातूर
(महाराष्ट्र)