एक शाम मैं अपने एक मित्र से एक खास मुद्दे पर मशविरा करने को अपने घर से निकला। जिससे मिलने को मैं काफी दिनों से सोच रहा था। लेकिन व्यस्तता के चलते मुलाकात नहीं हो पा रही थी। कुछ मुद्दों पर चर्चा करना अत्यंत आवश्यक हो गया था। यही सब सोच विचार कर, आज मैं अपने ऑफिस का काम भी जल्दी निपटाकर घर आ गया था। मैं अपनी फटफटिया लेकर अपने उसी अंदाज में चल पड़ा। मैंने थोड़ा जल्दी पहुँचने के चक्कर में आज एक शोर्ट कट लिया। वैसे भी आये दिन लगने वाले ट्रैफिक जामों मे मुझे आज तो नहीं फसना था। इसी के चलते मैं मैन रोड को छोड़, शहर की उन गलियों से गुजरा, जहाँ से मेरी दूरी कम हो जाती। और जिसका नक्शा मैं घर से निकलने के पहले ही अपने दिमाग मे बना चुका था। उसी नक्शे पर चलने के दौरान, मै अपने शहर के एक मौहल्ले से होकर गुजरा। मै अपनी फटफटिया पर, अपने मे ही मस्त, अपनी कुछ परेशानीयों से निपटने के गुनताड़े में मशरूफ था। मुझे उस समय सिर्फ जल्दी पहुँचना था। मैं रास्ते में बिना किसी पर ध्यान दिये बड़ी तेजी मे आगे बड़ा चला जा रहा था। समय अपनी चाल से चल रहा था। और मै समय की चाल से आगे निकलने का मन बनाये हुये था। आज मै अपनी फटफटिया का एक्सीलेटर कुछ ज्यादा ही खीच रहा था। मेरी रफ्तार इन गलियो को देखते हुये आज कुछ ज्यादा ही थी। और मै इस सबसे बेखबर चला जा रहा था। अचानक किसी आवाज ने मेरे दिमागी घोड़ों की चहलकदमीयों मे खलल डाली। दूर से ही मेरे कानों में एक मस्जिद से आने वाली अज़ान की आवाज आ रही थी। मग्रिव की नमाज़ का बक्त हो चला था। जैसे-जैसे मै आगे वढता जा रहा था, गली संकरी होती चली जा रही थी। यह देख अव मैने अपनी रफ्तार कम कर ली। मेरे कानों मे अज़ान की आवाज और जोर से गूँजती जा रही थी। रास्ते मे दिन के आम समय की अपेक्षा चहल पहल कम ही नजर आ रही थी। वहाँ रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग जो रास्ते मे मिले वे या तो अपने अपने कामों में मसरूफ थे या नमाज़ के लिए मस्जिद की ओर चले जा रहे थे।
अब मै उन तंग गलियों से बड़ा संभल कर आगे बढ़ रहा था। क्यों कि वे तंग गलियां थोड़ी-थोड़ी दूरी पर तीखे मोड़ो से भरी पड़ी थी। अचानक वही हुआ, जिसकी आशंका मेरे मन मे कही ना कही उठ रही थी। एक मोड़ पर तेजी से दौड़ते हुए कुछ बच्चे मेरे सामने आ गये। उन बच्चों का इतनी तेजी से मेरे सामने आना, मेरी सांसे थामने के लिये काफी था। इससे पहले कि मैं कुछ सोच पाता, एकाएक मै अपनी मोटरसाईकिल के ब्रेक पर चड़ गया। मेरी मोटरसाईकल का पहिया जोर से चींखा। मेरे पहिये की चींख, रोड पर रगड़ने से उत्पन्न हुई थी। मेरी मोटरसाईकिल गली के मोड़ से पहले लगे बिजली के खम्बे से पहले बड़ी मुस्किल से रूकी। अब कही जाकर मेरी जान मे जान आयी। वे बच्चे दुनिया दारी को भूल उन टेढी-मेढी गलियों मे अपने छुपे हुए साथियों को खोजते हुये अपनी एक अलग ही धुन में भाग रहे थे। अपने साथी को पकड़ने के बाद जब वो खिलखिलाकर हँसे तो उन बच्चो की खिलखिलाहट देख, मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी। वे अपने कोमल मन से उत्पन्न चंचल खुशियों को एक दूसरे पर उड़ेलते हुये, उस माहौल को अपनी खिलखिलाहटो से सराबोर करते हुये मेरे वगल से गुजर गये। बच्चों के गुजरने के साथ-साथ मै भी अपने बचपन की स्मृतियो को छू कर वर्तमान मे लौट आया। बच्चों की खुशी को महसूस कर, मेरी उलझने तो जैसे हवा हो गयी थी।
रास्ते में अब नमाज़ी लोगों की संख्या ज्यादा ही दिख रही थी। शायद, मै लगभग मस्जिद के पास ही पहुँच गया था। मुझे अब ये लग रहा था की, मैने ये रास्ता चुन कर बड़ी भूल कर दी है। इससे अच्छा तो मै मैन रोड से ही निकल जाता, तो ठीक रहता। मै सामान्य स्पीड से भी नहीं चल पा रहा था। कहाँ मै जल्दी पहुँचने के विचार में था, यहाँ मुझे और देर हो रही थी। की तभी मेरे कानों मे हल्की सी एक और आवाज भी आने लगी थी। ये आवाज कुछ टन टन टन टन की तरह थी। इन आवाज ने मेरी उत्सुक्ता को बड़ा दिया। मस्जिद के सामने पहुंचने पर टन टन की आवाज अज़ान के साथ मिलकर और अधिक तीव्रता से मेरे कानों तक आ रही थी। इन आवाजो से मैं भावबिभोर हो रहा था। मै ये जानने के लिये बड़ा बेचैन हो रहा था कि ये आवाजे आखिर आ कहाँ से रही है। क्यो कि मुस्लिम बाहुल्य इलाके मे ऐसी आवाज का होना अप्रत्याशित था। जो कि सामान्य बात नही है। मै मस्जिद से अभी दो कदम ही आगे निकल पाया था। एकाएक ही तस्बीर साफ हो गयी। ये टन टन की आवाज मस्जिद से लगभग 10 कदम की दूरी पर स्थित एक मन्दिर से आ रही थी। मेरी नजरो के सामने एक मन्दिर था। मंदिर मे आरती हो रही थी। और मै मंदिर मे हो रही मनमोहक आरती से अपने आप को आनंदित महसूस कर रहा था। अज़ान और मदिंर में हो रही आरती की आवाज, मेरे कानों में एक साथ आ रही थी। वहाँ पहुँच कर ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानों किसी नदी के दोनों छोर जैसे मिल रहे हो। वही कुछ बच्चियां आरती के लिये थाली सजाये दौड़ी चली जा रही थी। वे मन्दिर के बाहर अपनी चप्पल उतार अन्दर दौड़ गयी। और एक ओर कुछ लोग नमाज़ी टोपी लगाये, मेहरावी दरवाजे से होकर मस्जिद के अन्दर दाखिल हो रहे थे। मै मस्जिद से दो कदम आगे रूक कर सब देख रहा था। मै कभी मस्जिद को देखता और कभी मन्दिर को देखता। दोनो के प्रवेश द्वार मेरे नजरो के सामने थे। मै ये सब देख कर हक्का वक्का सा रह गया। मेरे मन में तमाम तरह के विचार कुलबुलाने लगे। अक्सर लोगों से सुन रखा था की फलानी जगह हिन्दू मुस्लिम भाई-चारे के साथ शांतिपूर्ण माहौल मे रह कर अपना जीवन व्यतीत कर रहे है। यहाँ ऐसा हो रहा है, वहाँ वैसा है…. । आज मैने ये सब अपनी आँखों से देख भी लिया। ये सब देखकर मेरी नजरों से कई परदे हट गए। एक तरह अल्ला की इबादत और एक तरफ भगवान की आरती दोनों साथ साथ।
इस तरह का मनोहर दृश्य देखकर मेरा मन एक हिन्दुस्तानी होने पर बड़ा गर्वित महसूस कर रहा था। जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ रहते है। अक्सर देखा गया है कि कही भी सम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाले सनकियों की कोई कमी नहीं होती है। लेकिन यहाँ पर सम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ना नही बल्कि दोनो समुदायों द्वारा बनाने की एक नयी मिसाल पेश की जा रही है। ना मन्दिर के घंटो से किसी नमाज़ी को कोई तकलीफ होती है और ना किसी पुजारी को अज़ान से। यहाँ हिन्दू मुस्लिम एक साथ अपनी-अपनी ताबिज के साथ रह रहे है। अव उस चिड़िया का क्या दोष जो मन्दिर से दाना चुन मस्जिद की मीनार पर जा बैठी है। उसे देख मेरे जेहन ने मुझे सोचने पर मजबूर किया कि वो चिड़िया किस सम्प्रदाय, किस धर्म से वास्ता रखती है। कहीं वो आरती के बाद नमाज़ के लिये तो नही आयी है। और नजरे उसकी, जैसे वो खुद इस नीले गगन को नापने की मंशा से तैयार हो, कभी वो नन्हीं सी चिड़िया सारी बंदिशो से बेखबर ऊपर गगन की ओर ताकती, और कभी अलग वगल। जैसे वो अपनी उड़ान से पहले पूरे गगन का जायजा ले रही हो। और अगले ही पल पता नही उसे क्या सूजा, वो मीनार से गोता लगा गयी। शायद उस छोटी सी चिड़िया को अपनी भूख मिटाने का कुछ सामान मस्जिद के आंगन मे भी दिख गया होगा।
आज बहुत कुछ समझा, बहुत कुछ देखा। लोग क्या चाहते है, धार्मिक परम्पराये किसी की भी आहत ना हो। लेकिन बार बार हमे बही दिखाया जाता है, सुनाया जाता है, समझाया जाता है। जिससे सम्प्रदायिकता भड़के, कुछ धर्म के ठेकेदार बड़ी बड़ी बाते मारने से तनिक भी नही डिगते। हकीकत कुछ और ही है। जनाब, जरा अपनी परिवर्तित मानसिकता की गुलामी से बाहर तो निकलो। इनको रह लेने दो ऐसे ही, वरना ना तो अल्ला तुम्हे बख्शेगा, और ना ही राम का नाम के साथ खेलने पर राम भी ना छोड़ेंगे। कुछ देर और, मै वही से सभी का जायजा लेता रहा। फिर उन अमन पसंद लोगो का मन ही मन शुक्रिया अदा कर अपने सफर पर आगे बड़ गया।
दीपक धर्मा