भीष्म जी के अन्दर अभिनय के प्रति अभिव्यक्ति की भावना स्कूल के दिनों में जागृत हुई थी, जब भीष्म चैथी कक्षा में थे, तब उन्होंने स्कूल में खेले गये नाटक ‘श्रवण कुमार‘ में पहली अदाकारी दिखायी थी, जिसमें उन्होंने श्रवण कुमार की भूमिका अदा की थी। अभिनय करते समय बार-बार वाक्य भूल जाते थे, जिससे दर्शक हंसने लगते थे। उनके कक्षाध्यापक उनके बड़े भाई से कहते हैं, ‘‘यह तेरा भाई क्या कर रहा है ?‘‘ मेरी ‘मृत्यु‘ के बाद अभी और संवाद बोले जाने थे, बूढ़े माँ-बाप के साथ राजा दशरथ के संवाद, अन्धे माँ-बाप को अभी श्राप देना था, पर नाटक का शेष भाग मुझे भूल गया और मैं झट से उठ बैठा। इससे हाल में हॅसी के फौबारे फूट उठे। किसी ने आवाज कसी ‘‘लेटा रह ! लेटा रह !‘‘ पर मैं इतना बेसुध हो गया था कि मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ। मुझे और तो कुछ नहीं सूझा, मैं फिर लेट गया जिस पर ऐसी तालियाँ बजने लगी कि थमने में नहीं आती थी। सीटियाँ, तालियाँ, ठहाके तरह-तरह की आवाजें देर तक चलती रही यह मेरी पहली अदाकारी थी‘‘1
भीष्म जी ने के कालेज दिनों में बहुत से नाटको में अभिनय किया जिसमें ARNOLAD RIDLAY का “THE GHOST TRAIN” नाटक में उन्होंने बहुत अच्छा अभिनय किया जिससे उन्हें काफी प्रसिद्वी प्राप्त हुई तथा अच्छे अभिनय के लिये पुरस्कार भी मिले थे। भीष्म जी ने कई नाटकों तथा फिल्मों में भी अभिनय किया, जिसमें गोविन्द निहलानी द्वारा निर्देशित ‘तमससीरियल तथा सईद मिर्जा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘मोहन जोशी हाजिर हो’ प्रसिद्व सिरियल तथा फिल्म में अच्छा अभिनय किया।
अभिनेता के रूप में भीष्म की पहली फिल्म ‘मोहन जोशी हाजिर हो‘ 1984 में आई इस फिल्म में भीष्म जी ने मोहन जोशी का अभिनय किया था। फिल्म का अचानक हमारे देश की कानून व्यवस्था पर एक तीखा व्यंग्य था, यह भीष्म जी के कैरियर की सर्वश्रेष्ठ फिल्म थी। इस फिल्म को ‘राष्ट्रीय पुरस्कार‘ भी प्राप्त हुआ। फिल्म में यह दर्शाया गया है कि ‘‘हमारे यहाँ मुकदमें इतने लंबे खींच जाते हैं कि इंसान पैसे के साथ इस व्यवस्था पर से भरोसा तक भी खो देता है। व्यवस्था की इस चरमराहट का दोष वकीलों द्वारा बुने गए जाल को दिया गया है। मोहन जोशी (भीष्म साहनी) और उनकी पत्नी (दीना पाठक) एक जीर्णशीर्ण हो रही बहुमंजिला इमारत के एक छोटे से फ्लैट में रहते है। मकान मालिक बहुत लालची और घाघ है, वह मकान की मरम्मत नहीं करना चाहता। मोहन जोशी उसके खिलाफ मुकद्दमा दायर कर देता है। उसका मकद्दमा दो घाघ वकील (नसीरूद्दीन शाह और सतीश शाह) लड़ते हैं, अमजद की वकील रोहिणी हन्तंगड़ी रहती है मुकद्दमा सालों साल चलता है। इधर वकीलों की तिजोरी भरती जाती है, उधर मुवक्किल की जेब फटती जाती है। अंत में जज स्वयं वह बिल्डिंग देखने के लिए जाते है, लेकिन मकान मालिक दंद-फंद अपनाकर दिखाने के लिए बिल्डिंग को ठीक-ठाक कर देता है। जज उसके चुंगल में आने ही वाले होते है कि मोहन जोशी पूरी ताकत लगाकर उस जर्जर मकान को हिला देता है। मकान का मलबा मोहन जोशी पर ही गिर जाता है और वह जीतकर भी हार जाता है।‘‘2
भीष्म साहनी की कृति ‘तमस‘ पर आधारित गोविन्द निहलानी द्वारा निर्देशित दूरदर्शन पर दर्शाया गया 6 एपिसोड का धारावाहिक ‘तमस‘ (1986) में संवेदनशील विषय के कारण इस धारावाहिक को विभिन्न धार्मिक संगठनों के विरोध का सामना करना पड़ा था, फलतः इस पर रोक लगा दी गई तथा निर्देशक को पुलिस थाने में आठ सप्ताह तक शरण लेनी पड़ी थी। बाद में इस धारावाहिक को 1988 में फिल्म के रूप में प्रदर्शित किया गया। इस फिल्म में ओमपुरी ने नाथू का अभिनय किया तथा भीष्म साहनी ने हरनाम सिह के रूप में अच्छा अभिनय किया। भीष्म साहनी के संदर्भ में गोविंद निहालानी के विचार ‘‘जहाँ तक भीष्म जी द्वारा ‘तमस‘ में अभिनय करने की बात है, तो जब मैंने उपन्यास पढ़ा और सरदार हरनाम सिंह का चरित्र पढ़ा तो मुझे लगा कि भीष्म जी इस किरदार को बखूबी निभा पाएंगे। क्योंकि उस चरित्र में ये सारी बाते मुझे दिखाई दी। उनकी आँखोंमें, आवाज में, मुझे ईमानदारी दिखी। इसलिए मैंने उन्हें चुना। जब हम शूटिंग कर रहे थे, तो मेरा अंदाजा सही निकला। बेहद स्वाभाविक अभिनय किया उन्होंने। उनकी ‘परफार्मेस‘ ऐसी थी कि पूरी यूनिट को ‘रच‘ करते थे।‘‘3 इस फिल्म की बहुत प्रशंसा हुई।
कुमार साहनी की फिल्म ‘कस्बा‘ (1991) में भीष्म जी एक छोटी सी भूमिका में नजर आए थे। जो महान रूसी लेखक एंटन लेखक की चर्चित कृति ‘इन द रेबाइन‘ पर आधारित है, इस फिल्म में एक कस्बे के छोटे से उद्यमी मणिराम की कहानी है, जो लोगों को सड़े-गले फल बेचकर अच्छी कमाई करता है। मणिराम का मानसिक रूप से विक्षिप्त एक बेटा है जिसकी तेज-तर्रार पत्नी तेजो ही इस धंधे को संभालती है। मणिराम का बडा बेटा लम्बे समय से बाहर रहता है तथा शादी करने के लिए कस्बे में आता है। शादी के कुछ समय बाद वह दिल्ली में पुलिस के हत्थे चढ़ता है तथा पुलिस उसके अपराधो की जड़ खोजने के लिए कस्बे तक पहुँचती है लेकिन जिसके कारण मणिराम का भेद भी सबके सामने खुल जाता, इस फिल्म को ‘फिल्म फेयर‘ का बेस्ट क्रिटिकली एक्लैम्ड फिल्म का अवार्ड मिला।
1993 में ‘‘लिटिल बुद्धा‘‘ फिल्म में भीष्म जी एक सामान्य भूमिका के रूप में नजर आये, जिसके निर्देशक वरनार्डो बार्टोलूसी थे, यह फिल्म एक इतालवी-फ्रैंच थी। इस फिल्म में तिब्बती बौद्ध मठवासी लामा नोर्बु के नेतृत्व में ऐसे बच्चे की तलाश करते हैं जो महान बौद्ध गुरू लामा दोर्ज का पुनर्जन्म है। जेसी कोनार्द जो एक अमेरिकी बच्चा है उसे वो लामा दोर्ज का अवतार मान लेते है, उसका अच्छी तरह से स्वागत-सत्कार करते है। नोर्बु उस बच्चे को भूटान ले जा रहे होते हैं रास्ते में नेपाल में उन्हें दो बच्चे राजू और गीता मिलते हैं जिनको बौद्ध गुरूओं का अवतार माना जाता है। ‘‘तीनो बच्चे गौतम बुद्ध की कहानी सुनते हैं और बौद्धमय हो जाते हैं। अंत में यह पाया जाता है कि तीनों बच्चे लामा दोर्ज का सम्मिलित पुनर्जन्म है। राजू शरीर है, गीता वाणी है और जेसी दिमाग। इसी के कारण लामा दोर्ज का अवसान हो जाता है और तीनों बच्चे उसकी अस्थियां प्रवाहित कर देते हैं।‘‘4
अपर्णा सेन द्वारा निर्देशित ‘मिस्टर एंड मिसेस अय्यर‘ (2002) फिल्म में भीष्म जी ने एक अच्छी भूमिका अदा की है, यह फिल्म सांप्रदायिकता पर चोट करने के साथ-साथ धार्मिक उन्माद, कट्टरपन और रूढ़िवादिता पर भी अच्छा प्रहार करती है। इस फिल्म में एक ऐसी स्त्री को दिखाया गया है जो अपने छोटे से बच्चे के साथ बस स्टेण्ड पर खड़ी है जिसका नाम मीनाक्षी अय्यर (कोंकणा सेन शर्मा) है। बस अड्डे पर ही उसका परिचय राजा चौधरी (राहुल बोस) से होता है जो एक वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर है। मीनाक्षी के माता-पिता उससे अनुरोध करतेहैं कि बस में उसकी बेटी और नाती का ख्याल रखें। बस चल देती है फिर बस का दृश्य दर्शाया गया है, जिसमें एक वरिष्ठ मुस्लिम दंपत्ति इक़बाल अहमद (भीष्म साहनी) और उनकी बीबी नजमा (सुरेखा सीकरी) है, एक युवा जोड़ा है, और कुछ लोग ताश के पत्ते खेल रहे हैं लेकिन आगे चलकर बस रास्ते में अचानक रूक जाती है क्योंकि आस पास के इलाकों में हिन्दु-मुस्लिम दंगे भड़क उठेहैं जिसके कारण रास्ता जाम है। राजा मीनाक्षी को बताता है कि वो मुस्लिम है तो मीनाक्षी यह सुनकर दंग रह जाती है और चिल्लाने लगती है-‘‘मुझे हाथ मत लगाना‘‘। राजा बस से उतरने लगता है कि पुलिस उसे बस में यह कहकर वापस धकेल देती है कि यहाँ कर्फ्यू लगा है। पुलिस के जाने के बाद हिन्दू दंगाई बस में घुसते हैं और हरेक मुसाफिर से उसके धर्म के बारे में तफ्तीश करते हैं। मीनाक्षी राजा का हाथ थामकर दोनों का परिचय ‘मिस्टर एंड मिसेस अय्यर‘ के नाम से कराती है। वे तो बच जाते हैं लेकिन मुस्लिम दंपति को अपनी जान गंवानी पड़ती है सहमे हुए मुसाफिर सारी रात बस में बिताते हैं।‘‘5
रात गुजर जाने के बाद मुसाफिर पास के गांव में अपनी जान बचाने के लिए ठिकाना तलाश करते है राजा और मीनाक्षी को कोई भी ठिकाना नहीं मिलता, तभी एक पुलिस अधिकारी उनके रहने की व्यवस्था एक पुराने बंगले में करता है। बंगले में आधी रात को अचानक भीड़ चली आती है, जो मारपीट करती है। मीनाक्षी यह दृश्य देखकर बुरी तरह सहम जाती है। अगली सुबह वे सेना की मदद से रेलवे स्टेशन पहुँचते हैंवहां मीनाक्षी राजा को असली मिस्टर अय्यर से मिलवाते हुए कहती है- ‘‘ये है एक मुस्लिम शख्स मिस्टर जहांगीर चौधरी, जिन्होने दंगोंमें आपकी हिन्दू बीबी को बचाया। ‘‘राजा स़फर के यादगार लम्हों की रील मीनाक्षी के हवाले करते हुए विदा लेता है।
अपर्णा सेन द्वारा निर्देशित ‘‘यह फिल्म अपने संवेदनशील कथानक भीष्म साहनी समेत तमाम कलाकारों के सघन अभिनय और तबले के बाज़ीगर उस्ताद ज़ाकिर हुसैन के अद्भुत पाश्र्व संगीत के लिए आज भी याद की जाती है। भीष्म साहनी का साहित्य में जो अवदान है, वह परिमाणात्मक नज़रिए से फिल्मों में किए गए योगदान के मुकाबले काफी कम है, लेकिन जिस तरह ‘उसने कहा था‘ के रूप में एक कहानी लिखकर गुलेरी जी हिन्दी साहित्य में अमर हो गए, उसी तरह एक ‘तमस‘ लिख़कर भीष्म साहनी का नाम भी फिल्म इतिहास के शिला लेखों में हमेशा के लिए अंकित हो गया है।‘‘6
सन्दर्भ ग्रंथ –
- आज के अतीत, भीष्म साहनी, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण 2003, पृष्ट-45
- आजकल पत्रिका, सम्पादकः फरहत परवीन, अगस्त 2015, पृष्ट-30
- भीष्म साहनीः उपन्यास साहित्य, डॉ. विवेक द्विवेदी, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ट-24
- आजकल पत्रिका, पृष्ट-31
- आजकल पत्रिका, पृष्ट-31
- आजकल पत्रिका, पृष्ट-31
मो. वासिक
शोधार्थी हिन्दी विभाग
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय