भारत सरकार ने 25 फ़रवरी 2021 को सूचना प्रौद्योगिकी को लेकर नए नियम को अधिसूचित किया है। इसका नाम ‘द इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी रूल 2021’ है। डिजिटल मीडिया से जुड़ी पारदर्शिता के अभाव, जवाबदेही और उपयोगकर्ताओं के अधिकारों को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच आम जनता और हितधारकों के साथ विस्तृत सलाह-मशविरा के बाद सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 87(2) के तहत मिले अधिकारों का उपयोग करते हुए और पूर्व सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिए दिशा-निर्देश) नियम 2011 के स्थान पर सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 तैयार किए गए हैं। इन नियमों को अंतिम रूप देते समय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और सूचना व प्रसारण मंत्रालय दोनों ने आपस में विस्तृत विचार-विमर्श किया, ताकि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ-साथ डिजिटल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म, इत्यादि के संबंध में एक सामंजस्यपूर्ण एवं अनुकूल निगरानी व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके।
इन नियमों को लेकर आशंका जतायी जा रही है कि इंटरनेट पर चलने वाले मीडिया संस्थानों व स्वतंत्र पत्रकारों को भी इस नियम में शामिल किया जाएगा। जिससे डिजिटल जगत में सोशल मीडिया की आज़ादी पहले से कम हो जाएगी। सरकार ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए नियामक संस्थाएं हैं। फ़िल्मों के लिए सेंसर बोर्ड व उसी तरह इंटरनेट पर मौजूद ओवर द टॉप (ओटीटी) को भी नियमों का पालन करना होगा। सूचना व प्रसारण मंत्री ने कहा कि ‘जिस तरह प्रिंट मीडिया को उनको प्रेस काउंसिल का कोड फ़ॉलो करना पड़ता है। जो टी वी के पत्रकार है उनको ‘केबल नेटवर्क एक्ट’ में जो प्रोग्राम कोड है उसको फ़ॉलो करना पड़ता है। लेकिन ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लैट्फ़ॉर्म के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है I इसलिए सरकार ऐसा समझती है कि लेवल प्लेइंग फ़ील्ड होना चाहिय। ऑल मीडिया प्लेटफ़ार्म इज द सेम जस्टिस सिस्टम और इसीलिए डिजिटल हो, प्रिंट हो , टी वी हो या ओवर द टॉप (ओटीटी) हो कुछ नियमों का पालन करना पड़ेगा कुछ प्रोसेस सेट करना पड़ेगा।’
ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफ़ॉर्म पर कार्यक्रमों के विविधता और व्यापकता इसलिए भी अधिक है कि वहाँ किसी तरह का सेंसर नहीं है। नए नियमों के अनुसार अब कंटेंट का कई तरह से वर्गीकरण किया गया है। विवादों से निपटने के लिए तीन चरणों की व्यवस्था बनायी गई है। पहले स्तर पर प्लेटफॉर्म को सेल्फ रेग्युलेट करना होगा। दूसरे स्तर पर प्लेटफॉर्म की सेल्फ रेग्युलेटरी बॉडी कंटेंट का नियमन करेगी। तीसरे स्तर पर ओवर साइट मैकेनिज़्म होगा।
पहले स्तर पर ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल मीडिया के लिए रजिस्ट्रेशन ज़रूरी नहीं है, लेकिन अपनी अपनी सारी जानकारी सार्वजनिक करनी होंगी।
दूसरे स्तर पर ग्रीवांस एड्रेसल सिस्टम- ओटीटी और डिजिटल पोर्टल्स को शिकायतों को सुनने और उनके तत्काल निस्तारण की व्यवस्था करनी होगी। सेल्फ रेग्यूलराज़ेशन करना होगा। शिकायतों के लिए एक बॉडी बनानी होगी, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के रिटायर जज करेंगे। इन प्लेटफॉर्म्स को टीवी की तरह एक प्रक्रिया बनानी होगी, जिससे टीवी की तरह माफ़ी मांगने की व्यवस्था हो। वैसा ही ओटीटी पर होना चाहिए।
तीसरे स्तर पर कंटेंट का सेल्फ़ क्लासिफिकेशन- कंटेंट का उम्र के हिसाब से पांच केटेगरी में सेल्फ़ क्लासिफिकेशन करना होगा- U (यूनिवर्सल), U/A 7+, U/A 13+, U/A 16+ और A (वयस्क)। वर्गीकृत कंटेंट के लिए प्लेटफॉर्म्स को पैरेंटल लॉक की व्यवस्था करनी होगी। एडल्ट केटेगरी के लिए उम्र के सत्यापन की व्यवस्था भी करनी होगी। जो एथिक्स कोड सेंसर बोर्ड का है, वो यहां भी पालन करना होगा। ओटीटी कंटेंट और प्लेटफॉर्म्स पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय नज़र रखेगा।
सरकार का ये कहना है कि ये पहल उसने इसलिए किया कि लोगों ने पत्र लिख है। संसद के सदनों में 50 से भी अधिक प्रश्न पूछे गए है।
यह नियम केवल ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफ़ार्म यानी नेटफ्लिक्स, अमेज़न, जी पर ही नहीं लागू होंगे बल्कि न्यूज़ वेबसाइट पर भी लागू होंगे। उन्हें यह बताना पड़ेगा कि कोई सामग्री कहाँ से प्रकाशित हुई; किसने प्रकाशित की। इन सभी को शिकायत के निपटारे के लिए नियामक संस्था बनानी पड़ेगी।
ओटीटी प्लेटफॉर्म पर 18 साल से ज्यादा उम्र के लोग ही एडल्ट कैटेगरी का कंटेंट देख सकेंगे।
कंटेंट को 6 कैटेगरी में बांट दिया गया है. जिसमें U (यूनिवर्सल), U/A, U/A 7+, U/A 13+, U/A 16+ और ए कैटेगरी होगी।
U कैटेगरी के कंटेंट को सभी लोग देख सकेंगे. वहीं U/A कैटेगरी उस कंटेंट को दी जाएगी, जिसके कुछ सीन्स बच्चों के लिए सही नहीं होंगे।
बच्चों के लिए U/A7+ और U/A13+ कैटेगरी तय की गई हैं। 7+ कैटेगरी में हिंसा के सीन सिर्फ फैंटेसी या कॉमेडी के रूप में ही दिखाए जा सकते हैं।साथ ही इस कैटेगरी के कंटेंट में किसी तरह की नग्नता या शारीरिक शोषण से संबंधित सीन्स नहीं दिखाए जाएंगे।
13+ कैटेगरी में हिंसा को ज्यादा रियलस्टिक तरीके से दिखाया जा सकता है लेकिन उसे ज्यादा लंबा या वीभत्स तरीके से नहीं दिखा सकते हैं। यहां भी नग्नता और शारीरिक शोषण से संबंधित ग्राफिक्स नहीं दिखाए जा सकते हैं।
16+ कैटेगरी में हिंसक ग्राफिक्स और शारीरिक शोषण के सीन दिखाए जा सकते हैं लेकिन इन्हें ज्यादा लंबा ना खींचा जाए और वीभत्स तरीके से ना दिखाया जाए। ड्रग के इस्तेमाल को भी दिखा सकते हैं लेकिन उसका महिमामंडन ना किया गया हो।
एडल्ट कैटेगरी में सख्त भाषा, नग्नता, हिंसक ग्राफिक्स का इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि इसमें क्रिमिनल लॉ का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया जाए। यह कमेटी ओटीटी प्लेटफॉर्म्स से संबंधित शिकायतों की सुनवाई करे। ओटीटी और डिजिटल मीडिया को डिस्कलोजर में इस बात की जानकारी देनी होगी कि वह इंफोर्मेशन उन्हें कहां से मिली है।
कई ऑनलाइन मीडिया प्लेटफ़ार्म इस नए नियम पर यह आरोप लगा रहे हैं कि यह नियम बनाते समय उनसे कुछ भी बातचीत नहीं की गई है। सरकार इस नियम के आड़ में उनका चैनल बंद कर सकती है या उनके प्रकाशित ख़बरों में परिवर्तन या उसे डिलीट कर सकती है इसी के मद्देनज़र राइटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने बयान जारी करके कहा है कि- ‘सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट के तहत जो नियम बनाए गए हैं। इससे इंटरनेट पर काम करने वाले प्रकाशकों के काम में बुनियादी बदलाव आ जाएगा। इससे भारत में मीडिया की स्वतंत्रता का करारा धक्का लगेगा। इन नियमों से केंद्र सरकार को शक्ति मिलती है कि वे देश भर में कहीं भी प्रकाशित किसी समाचार को ब्लाक कर दें, डिलीट कर दें या उसमें बदलाव कर दें। बिना किसी न्यायिक हस्तक्षेप के इन नियमों के कई प्रावधान डिजिटल मीडिया और व्यापक रूप से मीडिया पर अवांछित अंकुश लगा देते हैं। राइटर्स गिल्ड को इस बात की चिंता है कि सरकार नए नियमों को अधिसूचना जारी करने से पहले किसी भी इस स्टेकहोल्डर से राय मशवरा नहीं किया है।
गिल्ड माँग करता है कि नियमों रोक लगा दी जाए और सभी पक्षों के साथ मानीखेज बातचीत हो । सरकार इस बात को नोट करें कि सोशल मीडिया पर लगाम लगाने के नाम पर वो स्वतंत्र मीडिया को मिली संवैधानिक सुरक्षा को ख़त्म नहीं कर सकती जो हमारे लोकतंत्र का आधारस्तंभ है।‘
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार यह नियम बदलती है या जो नियमन जारी हुआ है उसे ही लागू रखती है। क्योंकि कुछ ऑनलाइन मीडिया संस्थानों ने कोर्ट का रुख़ भी अख़्तियार किया था। जिसकी सुनवाई अगले महीने होने वाली है।
आशीष कुमार पाण्डेय
शोधार्थी (हिंदी सोशल मीडिया)
हिंदी विभाग
दिल्ली विश्वविद्यालय