These are feelings of Soldiers जो लौट के घर न आए…..
तिरंगे में लिपट कर ,जाते-जाते बहुत सारी अनकही बातें कह गए….
(1) सैनिक की चाहत
“चाहत तो बहुत है मेरी कि…
माँ के आँचल में सर रख कर सो जाऊँ मैं
चाहत तो बहुत है मेरी कि
अपने साथी के साथ हर लम्हे में जशन मनाऊँ मैं
खत्म कर दूँ उन आंखों का इंतिज़ार ,जो हर लम्हा मेरे आने का इंतिज़ार करती हैं।
चाहत तो बहुत है मेरी कि
उन नन्हे हाथों को थामूँ, ज़िन्दगी की हर खुशी वारूँ उस पर
पर…
मेरा फ़र्ज़ मुझे बुलाता है,अरमानों का सेलाब बस एक चाहत बन कर रह जाता है।
जब ये फ़र्ज़ निभाने की कसम खाई थी
तब एक चाहत थी मेरे दिल में,कि देश पर मर मिट जाऊँ मैं
बस इस एक कसम के लिए,मुझे अपनी चाहतों को दबाना है
मुझे अपना फ़र्ज़ निभाना है।
मैं जा रहा हूँ उस राह पर
जिस से लौट के आना शायद मुमकिन नहीं
मेरे जाने से अगर उजाला होता है
तो मुझे अंधरे मंज़ूर हैं
तिरंगे में लिपटा आऊंगा मैं
मेरी शहादत का तू गम ना करना
मैं कल ना रहूँ तो कोई बात नहीं
पर याद मुझे तो ऐसे करना,जैसे मैं हर पल,हर लम्हा तेरे साथ हूँ
मेरे खून की खुश्बू इन फ़िज़ाओं को हमेशा महकाती रहेगी।
(2) तुझे प्यार करना चाहता हूँ
तुझे प्यार करना चाहता हूँ
अपनी सांसों में तेरी खुशबु महसूस करना चाहता हूँ
तेरी सुबह का प्यार,शाम का इंतजार बनना चाहता हूँ
तेरी होली में रंग,तेरी दिवाली में रोशनी भरना चाहता हूँ
तेरे संग बारिश में भीगना चाहता हूँ
तुझे अपनी बांहों के आगोश में समेटना चाहता हूँ
तुझे टूट कर प्यार करना,तेरे संग हर पल,हर लम्हा जीना चाहता हूँ
तेरे संग जिंदगी के हर रंग में रंगना चाहता हूँ
मैं भी चाहता हूँ सातों वचन निभाना
एक फौजी हूँ,अपना वचन निभाऊँगा
सलामत लौट आया तो हर वचन निभाऊँगा
वरना शहादत में तुझे गरव दे जाऊँगा।
(3) इज़ाजत
तुम्हारी जिंदगी में न आ सकी,
कम से कम तुम्हारे ख्यालों में ही आने कि इजा़जत दे दो
जिंदगी भर तुम्हारे साथ न चल सकूँ,
कम से कम कुछ कदम साथ चलने कि इजा़जत दे दो
तुम्हारा प्यार न मिल सका,
कम से कम अपनी यादों में आने कि इजा़जत दे दो
तुम्हें भुला न सकूंगी ,
बस एक बार खुद को तुम में खो जानें कि इजा़जत दे दो
फिर तुम्हारे काँधे पर सर रख कर रो न सकूँगी,
बस एक बार अपनी बाँहों का सहारा दे दो
पता नहीं फिर मुलाकात कब हो,
बस एक बार आँखों में भरने कि इजा़जत दे दो
फिर खुद को तुम्हारी बाँहों में छुपा न सकूं,
एक बार ,बस एक बार अपनी बाँहों में टूट कर बिखरने कि इज़ाजत दे दो।
(4) कैसे कहूँ
कैसे कह दूँ की तुम चले गए
तेरे बदन की खुशबू आज भी तेरी वर्दी में हैं
तेरी आँखों की चमक आज भी तेरी वर्दी के सितारों में है
तेरे हाथों की हरारत आज भी मेरी हतेलियों में जिन्दा है
तेरी आवाज़ आज भी मेरे कानों में गूंजती है,जैसे कहीं जोर से पुकारा हो तुमने
तेरे सपने आज भी मुझे सोने नहीं देते
पहले हँसते थे,आज रुला जाते हैं
तेरी चिठियां पड़ के रात गुज़रती है मेरी
चिठियों में तेरा एहसास आज भी जिन्दा है
लोग कहते हैं तुम कहीं दूर चले गए ,पर में कैसे कह दूं की तुम मुझ में आज भी जिन्दा हो।
पर हाँ, एक बात तुम से कहूँ,जो कभी दुनिया से न कह पाई
“तुम थे तो लौटने की उम्मीद पर जिन्दा थी,तुम वो उम्मीद भी साथ ले गए
तुम से दूर होकर भी कभी तनहा नहीं थी में
आज सब साथ हैं,फिर भी अकेली हूँ में
तुम बिन न होली में रंग हैं,न दीयों में रौशनी
आज में जिन्दा तो हूँ पर जिंदगी नहीं है”
(5) हम भारत के सैनिक हैं
अजीत हैं, अभीत हैं
हम भारत के सैनिक हैं
हिमालय का शीश न झुका है कभी, न झुकनें दूँगा कभी
इस के आगे सारा गगन झुका दूँगा
हमें मिटानें वाले मिट गए
अपनी कब्रों में आराम से सोते होंगे
नापाक इरादे वालों को हम ,यूहीं मौत की नींद सुलाएंगे
देश की रक्षा की खातिर हम ,अपना वचन निभाएंगे
इस की खातिर कसम है हम को अपनी जान गवाँ देंगे
खुद मिट जाएँगें, सारा लहू बहा देंगे
मेरी जान,आन ,शान, अभिमान ,
हर दिल का अरमान तिरंगा है
ये धरती , ये अंबर जब तक
तिरंगा लहराएगा तब तक
ये पंछी न अपनी उडान रोकेंगे
ये नदियाँ न अपना बहना रोकेंगी
ये सैनिक न अपनी सरहद छोडेगा
ये हवा, ये फिजाएँ, ये गुलिसता हमेशा महकता रहेगा।
(6) तेरा जिगर और मैं
तेरा जिगर मेरी शायरियों में आम बात थी
मेरी शायारी का आगाज तुम से हुआ
तुम नहीं होते, तो शायद जान ही ना पाती
कितना नायाब हीरा हूँ मैं
तेरी खुशी के लिए खुद को सताया हमनें
कई बार अकेले में खुद को तड़पाया हमनें
तेरी एक हँसी के लिए ,कई बार खुद को रुलाया हमनें
तुम नें कई बार झुकाया,हर बार सजदा किया हमनें
खुद से खुद कि नजरें न मिला पाए हम
सब कुछ गवाँ दिया तेरे लिए
खुद को इस कदर खो दिया
कि आज तक फिर से पा ना सके हम
तुम जिंदगी में बहार बन कर आए
और एक सबक बन कर चले गए
खुद को कैसे संभाला था मैंने
ये मैं या मेरा दिल जानता है
या वो राते ,जो कई बार गुज़री ही नहीं
अब किसी का भी पास आना रास नहीं आता
अब वो दिन गुजर गए,जब तेरे सजदे में सर झुकाया था हमनें
अब तुम खुदा भी बन जाओ,तब भी तेरा सजदा ना करूँ
तुम से फासला बहुत था,मगर खयालों में हमेशा नजदीकियाँ रहीं
अपनें अनमोल शब्दों में पिरोया था तुम्हें
तेरे खयालों में खुद को बाँध रखा था हमनें
लो आज वो बँधन भी तोड दिया हमनें
कर दिया आजाद खुद को ,तेरे खयालों से
खतम कर दिया तेरे नाम से लिखना
कयोंकि अब मेरी शायरी को रास नहीं आते तुम
अब मेरे लिए तेरा कोई वजूद नहीं
जितनी शिदत से चाहा था तुम्हें
उतनी ही शिदत से आज………।..
किरन त्रिपाठी