1
लिबर्टी का प्रतीक पत्थर है
संगमरमर प्रेम का
सदियों से स्थापित ये प्रतीक
लगते हैं कितने बेमानी
होती हूँ जब रूबरू
इर्द गिर्द चलते-फिरते
हौसले के जीवित प्रतीकों से।
2
चूड़ी, बिछिया, बिंदिया
पायल कंगना
ये आभूषण
माने गए
सुहाग के प्रतीक
पीढ़ी दर पीढ़ी,
सोचती हूँ
होना चाहिए था
दाम्पत्य का प्रतीक
खिला हुआ चेहरा,
तृप्त मन और स्वस्थ देह।
3
खनखना जाती है
बालकनी में लटकी
घण्टियाँ बस,
अब पूर्वा
मन को नहीं छूती।
4
जी उचाट हो गया है
सुबह पांच से नौ की दौड़ से
वह,
अब आदमी की तरह
दफ्तर जाना चाहती है।
भावना सक्सेना