दर्द  कुछ  इस  तरह किसी भी जीवन में घर कर जाता है।
आँखो के आँशुओ को आँखो के घर से बेघर कर जाता है।।
अँधेरे भी जीवन मे कुछ ऐसे खुद को बसा जाते है।
रौशनी को उजाले देने के कोई राह नजर नही आती है।।
जीवन का अकेलापन भी शिकायत बहुत करता है।
महफ़िल में रहने वालो को उससे क्या फर्क पड़ता है।।
सिक्को की खनखनाहट से जमीर डगमगा गए लोगो के,
उन्हें आजकल किसी के अकेलेपन पर बहुत मजा आता है।
शकुनि की चालो का मजा ले रहे आजकल दुर्योधन बहुत,
अब  उन्हें  भीष्म  का  अकेलापन  बहुत  भाता  है।
अभिमन्यु हर युग मे चक्रव्यूह में लड़ता रहा अकेला,
उसे बचाने किसी भी युग मे कृष्ण कोई भी ना आता है।
मंथरा हर घर मे पहले की तरह चाल चल रही है आज भी,
पिता दशरथ तो आज भी राम से जुदा हो ही जाता हैं।
विभीषण भगवान राम की भक्ति में घर का भेदी बन गया,
मगर गलत होने पर भी रावण जैसे भाई का साथ देने
अब कुम्भकरण जैसा भाई किसी युग मे ना आता है कोई।
पकड़कर हाथ अब साथ चले,ऐसा कोई अब है ही नही,
गिरेगा ठोकर खाकर,हँसने वालो की भीड़ उमड़ आएगी।
नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *