जन्म लिया जिस दिन उसने
सबने कहा धन पराया उसे
आ गई बोझ पिता पर
कहकर दुनिया ने दुत्तकारा
सीखो अदब,
जाना है तुम्हें दुसरे घर
बचपन में ही सिखलाया उसे!
तुम देवी हो, माता हो, कहकर
किया नमन जिस जग ने,
किन्तु, केवल नवरात्रों में
धीरे-धीरे यह एहसास दिलाया उसे |
हर छोटी- बड़ी बात ने
गहरा आघात पहुँचाया उसे
घर में होते भेदभाव ने
आज औरत बनाया उसे |
जिस दिन निकली घर से बाहर
हर भेडिये ने चाहा नोंच डालूँ इसे,
घबराई सी जाती कहाँ?
आकर माँ से लिपट गई,
माँ भी आखिर थी इक औरत,
कुछ कहे बिना सब समझ गई |
माँ ने भी खूब ढंग से बिटिया को समझाया,
जो उसकी(माँ) माँ ने था उसे बताया,
देख लाडली, यह समाज नहीं है तेरा,
यहाँ तो हर कदम खडा़ इक नपुंसक भेडिया|
माँ की यह मजबूरी थी, कहने लगी
अब तू बस हो जा तैयार,
कर देगें हम तेरा दान (कन्यादान),
हो जाएंगे हम मुक्त,
जाना फिर तू पिया के घर
अब वही तेरा एकमात्र सहारा होगा,
करेगा जो तेरी रखवाली |
उठा ले झाड़ू, बेलन, करछी ||
अब बस,
इन्हीं से तेरा निब-हारा होगा |
देख तुझे समझाती हूँ,
जाकर ससुराल अपने,
न करना तू मनमानी,
रहना सदा परदे में,
क्योंकि मेरी बिटियारानी,
राक्षस तो वहाँ भी कम नहीं
राक्षस तो वहाँ भी कम नहीं
राक्षस तो वहाँ भी कम नहीं ||
प्रीति बिडलान