प्रेमचंद का जन्म बनारस के निकट लमही गांव में हुआ था। बचपन से ही प्रेमचंद को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आठ साल की आयु में ही उनकी मां की मृत्यु हो गई। प्रेमचंद को इस बात का अनुभव हो चुका था कि मां का स्थान कोई पुरानी ही कर सकता। स्त्री की ममता का अभाव उन्हें निरंतर महसूस होता रहा। इसलिए स्त्री की ममता में छवि प्रेमचंद के नारी चित्रण का प्रमुख पक्ष है,किंतु उनके स्त्री पात्र इस छवि से कई बार बाहर भी निकल जाते हैं। इसे हम दुनिया और मालती के प्रसंग में देख सकते हैं। जहां सामाजिक नैतिकता ओं से लड़ते हुए यह पात्र नए क्षेत्रों में जोखिम भरा प्रयास भी करते हैं।
“गोदान” प्रेमचंद का अंतिम कृति है और उनकी यह कृति सबसे ज्यादा प्रौढ़ और परिपक्व मानी जाती है। गोदान पर रामविलास शर्मा, पी.सी जोशी जैसे हर छोटे-बड़े प्रगतिशील आलोचकों ने लिखा है। इस कृति की प्रमुख समस्या कृषि ऋण की समस्या, कृषक जीवन का महाकाव्य, ग्रामीण और शहरी कथा के बीच का अलगाव आदि तो है ही इसके अलावा हम गोदान में स्त्री समस्या की प्रमुखता भी देख सकते हैं। पितृसत्तात्मक, अलगाव, स्त्री समस्या की केंद्रीय ता और उसके उलझनों को स्पष्ट देखा जा सकता है। वैसे भी यह माना जाता है कि प्रेमचंद के स्त्री पात्र अधिक जीवंत और कर्मनिष्ठ है।”गोदान “में धनिया से लेकर मालती तक मुख्य पात्रों की एक लंबी सूची है। इसके अतिरिक्त झुनिया, सिलिया, से लेकर मीनाक्षी और सरोज तक गौण पात्रों की भी एक लंबी श्रृंखला है।इन पात्रों को ग्रामीण और शहरी पात्रों के रूप में विभाजित करके हम एक ही समस्या के प्रति इनके अलग-अलग समस्या को समझ सकते हैं। प्रेमचंद के कथा साहित्य में इस समस्या के प्रति उनका दृष्टिकोण से व्यक्त हुआ है। प्रेमचंद के पत्नी शिवरानी देवी ने भी विस्तार से “प्रेमचंद:अपने घर में”में प्रेमचंद के नारी दृष्टिकोण को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। गोदान में अभिव्यक्त स्त्री समस्या एवं उलझनों को नैतिकता: सामाजिक और व्यैक्तिक, पितृसत्ता और परिवार, प्रेम और सेक्स, विवाह की समस्याएं, नारी उत्पीड़न, प्रतिरोध के क्षेत्र में, आदि निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझा जा सकता है।
नैतिक स्तर पर जितना अधिकार पुरुषों को प्राप्त है, उतनी स्वाधीनता नारी को भी प्राप्त होनी चाहिए।किंतु भारतीय समाज धार्मिक प्रवृत्ति से प्रभावित रहा है यही कारण है कि स्त्री के नैतिक जागरण के प्रति पुरुष मानसिकता जड़ एवं समान अधिकार के पक्षधर नहीं है। नारी की नैतिकता के प्रति पुरुष समाज में व्याप्त संकीर्ण दृष्टिकोण को प्रेमचंद ने गोदान में गंभीरता से उभारा है। विधवा झुनीया का गोबर के यहां रहने पर दातादीन धनिया से बोले “तुम्हें इस दुष्ट को घर में ना रखना चाहिए था।दूध में मक्खी पड़ जाती है तो आदमी उसे निकाल फेंक देता हैै और दूध पी जाता है। सोचो कितनी बदनामी और जग हंसाई हो रही है । वह कुलटा घर में ना रहती तो कुछ ना होता लड़कों से इस तरह की भूल चूक होती रहती है”।1 झूनिय मक्खी है।भूल हुई तो समाज से निकाल देना चाहिए।मगर लड़का भूल चूक करें तो भी समाज उसे स्वीकारता है।”मातादीन एक चमारिन से फंसा हुआ था।इसे सारा गांव जानता था पर वह तिलक लगता था…उसकी प्रतिष्ठा में जरा भी कमी ना थी”। 2 निम्न मध्यवर्गीय समाज में स्त्री की नैतिकता एक ऐसा प्रश्न चिन्ह है जिसका समाधान आज भी प्रस्तुत नहीं हुआ। नारी विषयक दृष्टिकोण में नैतिक स्तर पर व्यापकता का अभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होता है।स्त्री यदि मर्यादा लांगती है अथवा कोई भी दोष कार्य करती है तो पुरुष समाज उसे चरित्रहीन घोषित कर उसके अवहेलना ही करता है। हिंदी साहित्य में ऐसी नारियों को अनेक साहित्यकारों ने समृद्ध रूप से चित्रित किया है। नि:संदेह यह पितृसत्तात्मक समाज में पुरुष मानसिकता का खुला विवरण प्रमाणित हुआ है। यह रूढ़ि ग्रस्त मानसिकता विवाह पूर्व स्त्री के किसी पर पुरुष से संबंध हो या किसी घटना की शिकार पीड़ित हो समाज के नीति नियमों के अनुसार वह त्याग दी जाती है। अथवा कलंकित कहलाती है। स्त्री चरित्र से जुड़ी इसी दकियानूसी विचारधारा पर प्रेमचंद मेहता और राय साहब के बीच बातचीत के माध्यम से स्पष्ट करती है।राय साहब अपने बेटे का सरोज से शादी करने की विचार सुनकर मेहता से कहता कि कुछ ऐसा करें कि सरोज शादी करने से इंकार कर दें। इसी बातचीत के दौरान राय साहब आपत्ति भाव से कहता है”बहन तो मालती की ही है “3 मेहता कहता है “मालती की बहन होना क्या अपमान की बात है?”4 सरोज समाज की नीति नियमों की शिकार ऐसी पीड़ित है जिसे बिना कसूर के पुरुष के दकियानूसी विचारधारा से मानसिक आघात झेलना पड़ता है।मालती आजाद ख्यालों की है।पुरुषों के हाथ आसानी से आने वाली नारी नहीं ।और चंचल है।खुले विचारों वाली है अतः लोगों की यह धारणा है कि मालती का चरित्र ठीक नहीं और सरोज उसकी बहन है इसलिए सरोज का चरित्र भी वैसा ही है। नारी के लिए निर्धारित नैतिक नियमों का उल्लंघन किसी भी समाज में पुरुष के लिए स्वीकारना असंभव था। गोदान में मालती बिना किसी दोष के मानसिक रूप से आहात सहती है।इस पुरुष प्रधान समाज में स्त्री के नैतिकता पर कितने ही प्रश्न उठाए गए हैं जिसमें मालती सरोज जैसे स्त्री को सामना करना पड़ता है। एक स्त्री के अनैतिक आचरण के प्रति पुरुष सदैव संदेहास्पद वृत्ति रखता है इस उपन्यास में भोला की दूसरी पत्नी के प्रति नैतिक आचरण के प्रति सचेत रहता है। उसके सेठ के यहां रहना समाज में संदेह का कारण बनती है। उसे हैय दृष्टि से देखती है। खन्ना, दिग्विजय सिंह,राय साहब,दातादीन जैसे पुरुष स्वयं समाज के लिए कलंक है।प्रेमचंद ने राय साहब,मातादीन जैसे पुरुष पात्र के माध्यम से समाज के यथा चित्र को परिलक्षित कर ऐसा चित्र प्रस्तुत किया है जो नैतिकता के नाम पर नारी को अपने वश में रखना चाहता है किंतु स्वयं उल्लंघन करता है। यदि परिस्थिति वश किसी स्त्री को नैतिक मूल्यों का उल्लंघन करना पड़े तो दोष उन परिस्थिति का हो स्त्री का कदापि नहीं। स्त्री को देहिक दृष्टि से नैतिकता की कसौटी पर कसने के अलावा उसे भावनात्मक तथा विचारात्मक पवित्रता पर कसना शाश्वत होगा। स्त्री की संवेदनाओं को युगों-युगों से रौंदा गया है।
स्त्री कितनी भी शिक्षित एवं आधुनिक क्यों ना हो किंतु समाज में उससे नैतिक मूल्यों के प्रति निष्ठा रखते हुए आचरण करना उसके लिए अनिवार्य माना जाता है। गोदान में मालती और सरोज ऐसी आधुनिक पात्र है जो शहर में अपनी इच्छा अनुसार जीती है। इस पुरुष सत्तात्मक समाज में सर्वोच्च नारी की श्रेणी में उस स्त्री को रखा जाता है जो नैतिकता, मर्यादा, मातृत्व आदि सभी प्रतिमाओं में खरी होकर अपना जीवन जीती है। स्त्री की नैतिकता और पवित्रता बनाने के लिए दैहिक से गहन संबंध है। स्त्री के नैतिकता पर आज भी भारतीय समाज में प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है। भोला की पत्नी, झुनिया की तरह कितनी ही नारियां नैतिकता के नाम पर कुर्बान होते आई है। इस तथ्य को प्रेमचंद ने उठाने का साहस किया है।पुरुष सत्तात्मक समाज में राय साहब,पटेश्चरी जैसे पुरुष जो किसी भी कीमत पर स्त्री के पर पुरुष से बात करना भी सह नहीं पाता तथा अपना वर्चस्व कायम रखना चाहते हैं ऐसे पुरुषों की यथार्थवादी मानसिकता को उपन्यासों में चित्रित कर लेखक ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है।” पटेश्वरी स्वयं विधवा कहारिन को रखे हुए है”5 मगर जब झूनिया गोबर के यहां रहने लगती है तब कहता है”अब सोचो,इसनिती का गांव में क्या फल होगा?झुनिय को देख कर दूसरी विधवाओं का मन बढ़ेगा कि नहीं?”6 मीनाक्षी पति की आचरण से हताश हो कर जनाना क्लब में आने जाने लगती है इस पर पति “दिग्विजय सिंग ने उस पर उल्टा बदचलनी की आक्षेप लगाया”।7 नैतिक मूल्यों पर कब तक नारियों को ही रखा जाएगा इस प्रश्न पर लेखक ने यथा तथ्य उजागर करने का प्रयास किया है।
हमारे भारत में पितृसत्तात्मक होने के कारण परिवार का मुख्य एवं सर्वे सर्वा पुरुष होता है परिवार का कमांड पुरुष के ही हाथों में होता है गोदान में होरी और धनिया का संबंध त्याग बलिदान एवं निस्वार्थ प्रेम का रूप अभिव्यक्त हुआ है।दोनों कंधे से कंधा मिलाकर जीवन संघर्ष में आगे बढ़ते हैं ।होरी उसे पीटता भी है परंतु दोनों के संबंध में कोई अंतर नहीं आता। धनिया जीवन संग्राम में अति साहस धैर्य और कुशल ग्रहणी,कर्मठ की परिचय देती है। कई बार तो अपनी बुद्धिमता और कुशलता होरी की प्रेरणा शक्ति का भी काम किया है। परंतु जब अंतिम फैसला लेने या अंतिम निर्णय लेने का वक्त आता है तब पुरुष ही निर्णय लेते हैं। धनिया का नारीत्व, सेवा, उदारता, पवित्रता, भक्ति, सहिष्णुता, त्यागमय भावना के उच्चतम आदर्शों से युक्त पुरुष से कहीं अधिक श्रेष्ठ गुणवती है। पुरुष प्रधान समाज में यथा परिवार में पुरुष ही सर्वे सर्वा होने की वजह से नारी कभी किसी समस्या में अंतिम निर्णय लेने का हक हासिल नहीं कर पाती है। धनिया भी कहीं-कहीं होरी से अधिक सूझबूझ रखते हुए भी कभी अंतिम निर्णय लेने का हक हासिल नहीं कर पाती है।चाहे वह गोबर के झुनिय को शहर ले जाने की बात हो चाहे रूपा की अधेड़ उम्र से विवाह कराने की बात हो। दातादीन का यह कथन इस तथ्य को प्रमाणित करता है”अगर होरी हां कर ले तो वह रो धो कर मान ही जाएगी”।8 हर स्थिति में होरी ही अंतिम निर्णय लेने का हक प्राप्त किया है। रूपा की ब्याह के निर्णय लेने से पहले भले ही होरी ने धनिया से पूछा है लेकिन अंतिम निर्णय होरी ही लेता है।
धनिया अपने संकल्पित आचरण द्वारा होरी की सहायता करती है उसे डगमगाने से बचाती है, ढाढस देती है, आने वाले विपत्ति के प्रति चेताती है। संयुक्त परिवार के दौरान धनिया ने भाभी का नहीं बल्कि एक मां का दायित्व को निभाया है। परिवार की मुखिया के हिसाब से हीरा और शोभा को पाल पोस कर बड़ा किया है फिर भी बंटवारे के दौरान जब कहासुनी की नौबत आए तब हीराशोभा और होरी को समाज से उतनी सुनने को नहीं मिली जितनी धनिया को समाज के कड़वे शब्दों को झेलना पड़ा।होरी के घर बंटवारे के दौरान झगड़े के वक्त दुलारी सहुआइं धनिया के संबंध में कहती है”वाकई बड़ी गाल दराज औरत है भाई।मर्द के मुंह लगती है।होरी ही ऐसा मर्द है की इसका नीबाह होता है। दूसरा मरद होता तो एक दिन न पटती।”9 ने संयुक्त परिवार के बिखर जाने एवं टूटने का कारण धनिया को ठहराया। दातादिन बोले”धनिया भाइयों का हिस्सा दबाकर हाथ में चार पैसे हो गाए तो अब कुपंथ के सिवा और क्या सूझेगी,नीच जात लतियाए अच्छा”10 धनिया को भाइयों का हक मारने का इल्ज़ाम भी समाज द्वारा लगाया जाता है। इस प्रकार पित्रसत्तात्मक और परिवार में भी स्त्री को ही समाज एवं परिवार द्वारा लांछन लगाए जाने की समस्या झेलनी पड़ती है। यहां तक की होरी जो धनिया के कुर्बानियों को भली भांति जानता है वह भी कभी-कभी गुस्से के दौरान धनिया को ही जिम्मेदार ठहराया है।
भारतीय समाज में लंबे समय से यौन शोषण की परंपरा चलती आ रही है इसका कारण स्वयं नारी में आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की कमी अपने स्वाभिमान के प्रतीक निराशाजनक दृष्टिकोण,पुरुष वर्चस्व समाज,ऊंची जाति का छोटी जाति की स्त्रियों के साथ गलत यौन संबंध रखने में अपना अधिकार भावना और दम ,छोटी जाति में अपनी इज्जत बनाए रखने के लिए आवश्यक दृढ़ता का अभाव,गरीबी के मजबूरियां आदि कई कारण है। गोदान उपन्यास में प्रेम और सेक्स की समस्याओं से जूझते नारी की समस्या को प्रेमचंद ने मीनाक्षी के कथन के माध्यम से स्पष्ट किया है। जब वेश्या उसके पैरों पर गिर पड़ी और अपने को निरपराध कहने लगी तब मीनाक्षी ने कहा”हम स्त्रियां भोग विलास की चीजें हैं ही, तेरा कोई दोष नहीं।”11 झुनीय,सिलिया के माध्यम से नारी के यौन शोषण एवं प्रेम और सेक्स की समस्या को अभिव्यक्त किया है।प्रेमचंद ने गोदान में झूनिया के साथ यौन शोषण होने के दो अवसर दिखाए हैं वह बहुत सरल है इसीलिए पहले ही मुलाकात में प्रेमी गोबर को बताती है कि घर में घरवाली की अनुपस्थिति में तिलक मुद्रा लगाने वाले एक पंडित ने किवाड़ बंद करके उसकी इज्जत लूटने की कोशिश की थी पंडित कहता”एक प्रेमी का में रख दोगे तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा झुना रानी:कभी कभी गरीबों पर दया किया करो,… मैं विप्र हूं रूपए पैसे का दाम तो रोज ही पाता हूं। आज रूप का दान दे दो।”12झूनिया उसको गालियां देकर बीच में दो लाते जमा कर भाग आई थी। एक दिन मातादीन होली के दिन घर पर आकर एकांत का फायदा उठाकर झूनिया से चिकनी चुपड़ी बातें करता है झूनिया असहाय बोध करके रोने लगती है मातादीन धीरे से उसका हाथ पकड़ लेता है पर झटके से हाथ न छुड़ाकरऔर दो चांटे ना लगाकर वह आहिस्ता से हाथ छुड़ाती है इस समय सोना के पहुंच जाने से मातादीन पगलिया मांग रहे थे कहकर झुनिया स्थिति को संभाल लेती है।
दुनिया को दूध लेकर बाजार जाते समय भिन्न-भिन्न लोगों से मुलाकात होती थी कोई उसकी छाती पर हाथ रखकर तरसने की विनती करता था तो कोई रुपए गहने दिखाकर फांसना चाहता था। गांव में उत्पीड़न वर्ग निम्न जाति का यौन शोषण करते हैं और उसे अपना अधिकार मानते हैं इस अपराध के लिए वे समाज में दंडित नहीं होते पतेश्वरी अपनी विधवा कहारिन को रखा हुआ है।नोखेराम भोला की असहाय का फायदा उठाकर उससे काम दे देता है और उसकी नई पत्नी नोहरी को अपने घर रख लेता है। झिंगुरी सिंह,पतेश्चरी और नोखेराम के बेटे जब दशहरे की छुट्टी पर गांव आते हैं तब छेले बनकर घूमते हैं।होरी की बेटी सोना को देखने के लिए होरी के द्वार को ताकते हुए निकलते हैं।परंपरागत मानसिकता के कारण स्त्री समाज की अस्मिता और अस्तित्व के प्रति सचेतनता खतरे में पड़ जाती है। भाग्यवाद और कर्म फल विद्रोह का गला घोट देते हैं। गोदान में मानव चरित्र का जो विशाल पथ है उस में नारी की स्थिति प्रेम तथा स्त्री पुरुष के संबंध के विविध रूप चित्र किए गए हैं धनिया होरी के रूप में स्त्री पुरुष का संबंध त्याग बलिदान एवं निस्वार्थ प्रेम का रूप प्रस्तुत करता है गोबर-झुनिया,मातादीन-सीलिया और मालती-मेहता के प्रेम में स्त्री-पुरुष के संबंध का जो रूप मिलता है वह धनिया और होरी के संबंध से सर्वथा भिन्न है गोबर-धनिया के प्रेम में वासना की गंध नहीं वह सात्विक भाव से प्रेरित है। मालती-मेहता में बौद्धिक आकर्षण से उत्पन्न प्रेम है।सात्विक भावनाओं से प्रेरित है।मातादीन और सीलिया का प्रेम आरंभ में अवश्य वासना तनाव रहता है परंतु अंत में पूर्णत: सात्विक प्रेम का रूप धारण कर लेता है। गोदान में प्रेम के अन्य रूप भी मिलते हैं नौखेराम और नोहरि का गुप्त प्रेम वासना आत्मक है जो यौन संबंध पर आधारित है।भोला और नौहरी का प्रेम सामाजिक स्वीकृति पाकर भी सात्विक रूप ग्रहण नहीं करता। खन्ना और गोविंदी के संबंध में नारी की विवशतापूर्ण घुटन का चित्र सामने आता है। दिग्विजय सिंह के बंगले में “शोहदे जमा थे और वेश्या का नाच हो रहा था”।”13 गांव के नीच जाति की बहू-बेटियों पर डोरे डालना करता था सोहबत भी नीचों की थी।”14 मथुरा लंपट नहीं था, सोना से उससे प्रेम भी था,इस वक्त अंधेरा एकांत और सीलिया का यौवन देखकर उसका मन चंचल हो उठा था।”15इसलिए”मथुरा उसे अंदर ले गया। बरोठे में अंधेरा उसने सीलिया का हाथ पकड़ कर अपनी और खींचा।”16”भोला औरत के बगैर उनका जीवन निरस था ,.. संयोग से एक जवान विधवा मिल गई, जिसके पति का देहांत हुए केवल तीन महीने हुए भोला की लार टपक पड़ी। झटपट शिकार मार लाए।”17 इस उपन्यास में पूंजीवादी समाज में नारी के प्रति दृष्टिकोण को स्पष्ट किया गया है। इस प्रकार गोदान में प्रेमचंद ने स्त्री पुरुष के अनेक संबंध को दिखाकर समस्याओं को उभारा है।
प्रेमचंद के गोदान उपन्यास में अनमेल विवाह और विवाह के समस्या भी देखने को मिलती है होरी की बड़ी बेटी सोना सीलिया से कहती है”मैं ऐसा नहीं करना चाहती,जिसमें मां-बाप को कर्जा लेना पड़े। कहां से देंगे बेचारे,बता? पहले ही कर्जे के बोझ से दबे हुए हैं।”18इसपर सीलिया कहती है”बिना दान दहेज के बड़े आदमियों का कहीं ब्याह होता है पगली? बिना दहेज के तो कोई बूढ़ा ठेला ही मिलेगा।”19स्पष्ट है कि समाज में युवतियों की शादी बिना दहेज के नहीं होती अगर होती भी है तो अपने से बड़े उम्र से। किस प्रकार प्रेमचंद ने सोना और सिलिया के कथन के माध्यम से समाज में दहेज प्रथा की समस्या को अभिव्यक्त किया है। होरी की दूसरी छोटी बेटी रूपा 14 वर्षीय और सुशील लड़की है रूपा का विवाह एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से कर दिया जाता है जिसके पूर्व पत्नी की मृत्यु केवल एक महीना ही हुई होती है। होरी का चरित्र सरल और मेहनती किसान का चरित्र है। उसकी मेहनत परिश्रम काम नहीं आती।उसे बेटे गोबर और भाई हीरा के लिए पंचायत और धर्म एवं समाज के ठेकेदारों के हाथों दंडित होना पड़ता है। होरी की फसल और बैल तक बिक जाती है। वह दाने-दाने को मोहताज हो जाता है।उससे विपरीत परिस्थितियां और भी दरिद्र बना देता है। इस प्रकार होरी विपरीत परिस्थितियों से जूझती हुई रूपा की शादी अधेड़ उम्र के हाथों बेचने पर मजबूर हो जाता है। गोदान उपन्यास में प्रेमचंद ने विवाह की समस्या को भी अभिव्यक्त किया है। गोबर जब सिलिया को अपने घर रख लेता है तब पट्टेश्वरी धनिया से बोलता है “अभी तुम्हारी दो दो लड़कियां ब्याहने को बैठी हुई है सोचो कैसे बेड़ा पार होगा।”20युवतियों की ब्याह में केवल दहेज ही समस्या नहीं बल्कि कोई ऊंच-नीच भूल चूक होने पर भी स्त्री को ही समस्याओं का सामना करना पड़ता है। धनिया स्वयं चिंतित होती है जब उन्हें पता लगता है की गोबर झूनिया से प्रेम कर बैठा है।तब धनिया होरी से कहती है”तो यह दोनों लड़कियां किसके गले बांदोगे? फिर बिरादरी में तुम्हें कौन पूछेगा, कोई द्वार पर खड़ा तक तो होगा नहीं?”21रूपा के माध्यम से भारत के ग्रामीण निम्न वर्गीय युवतीयों की दयनीय हालत का चित्रण हुआ है।
गरीब और निम्न परिवार में नारी को पीटकर पुरुष अपना गुस्सा उतारता है और अपने पौरुष की विजय मानता है। नारी इसका विरोध नहीं कर पाती उसे कुछ गुस्सा आता है सभी के सामने यह घटना घटने से अपमान बोध भी करता है। कुछ दिनों तक बातचीत बंद हो जाती है, पर कुछ समय या दिन के पश्चात सारी बातें स्वभाविक हो जाती है।बांस का सौदा करने के दौरान पुनिया का बंसोर से झगड़ा हो जाता है जिससे हीरा पुनिया पर तिलमिला उठा “वह दांत पिस्ता हुआ पुनिया पर झपटा और झोंटे पकड़ कर फिर उसका सिर जमीन पर रगड़ता हुआ हाथ-पांव काट कर गिर जाएंगे तो मैं तुझे लेकर चलूंगा? तू ही मेरे बाल बच्चों को पालेगी ?तू ही इतनी बड़ी गिरस्ती चलाईगी? तू तो दूसरा भतरी कर के किनारे खड़ी हो जाएगी।”22 इससे भी हीरा का गुस्सा काम न हुआ।”हीरा पुनीया का हाथ पकड़ लिया और घसीटा हुआ अलग ले जाकर लगा लाते जमाने हरामजादी तो हमारी नाक कटाने पर लगी हुई है तो छोटे छोटे आदमियों से लड़ती फिरती है किस की पगड़ी नीचे होती है बता?”23प्रेमचंद निम्न वर्गीय समाज में स्त्री पर उत्पीड़न को इस प्रकार व्यक्त करती है”हीरा कभी-कभी उससे पीटता था अभी हाल में इतना मारा था कि वह कई दिन तक खाट से ना उठ सकी।”24गांव में सिर्फ पुनिया पर ही उत्पीड़न नहीं होती थी बल्कि समस्त परिवारों में लगभग नारी उत्पीड़न की समस्या देखी जा सकती है। गोबर हड़तालों में सबसे आगे था दुनिया ने उससे कहा कि तुम्हारा इस तरह आग में कूदना अच्छा नहीं इस पर गोबर बिगड़ उठा”तू कौन होती है मेरे बीच में बोलने वाली? मैं तुमसे सलाह नहीं पूछूंगा”25इतने में बात बढ़ गई और “गोबर ने झूनिया को खूब पीटा।”26″गोबर घर आता तो नशे में चूर और पहर रात गए और आकर कोई न कोई बहाना खोज कर झूनिया को गालियां देता, कभी – कभी पीट भी देता।”27हीरा द्वारा गाय को जहर देकर मार देने पर धनिया जेल भिजवाने की बात करती है इसी दौरान होरी अपने भाई की रक्षा के लिए ऐसा करने से मना करता है मगर धनिया नहीं मानती इस पर होरी आग बबूला होकर धनिया को पीटने लगता है बीच-बचाव में दाता दिन आकर कहता है”यह क्या है होरी ,तुम बावले हो गए हो क्या ?कोई इस तरह घर की लक्ष्मी पर हाथ छोड़ता है? तुम्हें तो यह रोग न था। क्या हीरा की छूट तुम्हें भी लग गई।”28धनिया के न मानने पर होरी पटक कर बोला “धनिया गुस्सा मत दिला, नहीं बुरा होगा।”29इस पर धनिया चिल्लाई”मार तो रहा है और मार ले…. पापी ने मारते मारते मेरा भूरकस निकाल दिया फिर भी इसका जी नहीं भरा।मुझे मार कर समझता है मैं बड़ा वीर हूं।”30ऐसी स्थिति में जमीदार के परिवार में तलाक तक पति-पत्नी उतर आते हैं जैसे राय साहब की पुत्री और दामाद के बीच हुआ। खन्ना और गोविंदी के बीच मालती को लेकर झगड़ा होती है झगड़ा इतनी बढ़ जाती है की कहासुनी तक सीमित नहीं रहती”खन्ना आवेश में उठे और दोनों कान पकड़ कर जोर से ऐंठे और तीन तमाचे लगा दिए।”31 गरीब परिवार में पारिवारिक विघटन की स्थिति नहीं आती।गोबर ने शहर जाते समय दंपति को आपस में झगड़ते हुए देख कर पति पत्नी के बीच बचाव करने पर कोदई बोला”मेरी औरत है, मैं उसे मारूंगा- काटूंगा,तुम कौन होते हो बोलने वाले?”32 कोदई की औरत भी यही कहती है” हमारा आपस का झगड़ा है कभी वह मुझे मारता है कभी मैं उसे डांटते हूं तुमसे मतलब?”33 गांव में पुरुषों का आवेश में आकर औरतों को पीटने की घटनाएं आम सी है। स्त्री को बड़ा दुख होता है कि सभी के सामने उसे पीटा गया।बातचीत बंद हो जाती है पर दूर दिन में, रोग में यह झगड़ा याद नहीं रहता नारी पति सेवा में लीन हो जाती है।मरद का झगड़ा के दौरान मारपीट कर घर से निकाल देना आपस में समझौता करलेना गांव में स्वाभाविक प्रक्रिया है।ग्रामीण महिलाएं अवहेलना, अपमान और उत्पीड़न को चुपचाप सह जाती है। वह पुरुष के अधीन रहती है यह उनकी नियति है।मुक्ति नहीं आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से बंधी है।
महिलाओं को चाहे वह गांव की हो,चाहे शहर की हो प्रतिरोध करने पर तिरस्कार ही मिलती है। अपमान ही झेलना पड़ता है महिलाओं का घर के किसी भी चीज में अधिकार नहीं। दुलारी सिलिया से अपना लहना वसूल करने आती है” मातादीन चुपके से सरक गया। सिलिया का तन और मन दोनों लेकर भी बदले में कुछ ना देना चाहता था सिलिया अब उसकी निगाह में केवल काम करने की मशीन थी”34उक्त कथन के माध्यम से प्रेमचंद महिलाओं के किसी भी चीज में अधिकार ना होने के बात को स्पष्ट करता है। जब सीलिया सहुआइन को पैसे के बदले अनाज ले जाने को कहती है तब मातादीन कहता है “तूने अनाज क्यों दे दिया किस से पूछ कर दिया, तू कौन होती है मेरा अनाज देने वाली।”35 और जब सिलिया ने पूछा”तुम्हारी चीज में मेरा कुछ अख्तियार नहीं है? मातादीन आंखें निकाल कर बोला-नहीं तुझे कोई अख्तियार नहीं है काम करती है खाती है जो तू चाहे खा भी लुटा भी तो यह यहां न होगा। अगर तुझे ना परता पड़ता हो, कहीं और जाकर काम कर। मजदूरों की कमी नहीं। सेंत में नहीं लेते, खाना कपड़ा देते हैं।”36महिलाओं का किसी भी चीज में अधिकार नहीं ।अधिकार मांगने की कोशिश करने पर अपमानित ही होना पड़ता है। गोविंदी पत्नी होने की हैसियत से खन्ना को मालती के प्रति आकर्षण पर प्रतिरोध करना चाहा तो खन्ना ने यह कह कर अपमानित किया”तुम मालती के चाहे जितनी बुराई करो, तुम उसकी पांव की धूल भी नहीं हो।”37″खन्ना ने गोविंदी को चाहे दूसरे कठोर से कठोर बात कही होती, उसे इतनी बुरी नहीं लगती, पर मालती से उसकी यह गणित तुलना उसकी सहिष्णुता के लिए भी असहनीय थी” 38खन्ना ने गोविंदी पर हमेशा जुल्म किया,अपमान किया, हमेशा बेवफाई की, सदेव जीवन भर का भार समझा, मृत्यु की सदैव कामना करके अपमानित करते रहे। शहर में आने के उपरांत गोबर बिगड़ गया था। नशे में चूर रहने लगा था। हड़तालों में शामिल होने लगा था। झुनीय ने जब रोकना चाहा तो”तू कौन होती है मेरे बीच में बोलने वाली? मैं तुमसे सलाह नहीं पूछता”39कहकर गोबर ने अपमानित कर दिया। इस तरह से पुरुष विभिन्न परिस्थितियों में महिलाओं द्वारा पूछे गए सवालों को महिला का अधिकार ना समझ कर सिर्फ और सिर्फ अपमानित करते रहे। अपनी पथ का रुकावट और बाधा ही समझकर तिरस्कार करते आए हैं।
अतः स्पष्ट है कि शहरी और ग्रामीण समाज में, स्त्री को शिक्षित हो चाहे अशिक्षित, सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर नारी उत्पीड़न, यौन शोषण, विवाह आदि समस्याओं को निरंतर झेलते आ रहे हैं। प्रेमचंद पुरुषों के अमानवीय होती जा रही है सामाजिक परिस्थितियों के खिलाफ आवाज उठाते हैं। रिश्तो में टूटन बिखराव को संभालने की छटपटाहट स्पष्ट होता है। हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि जिस दौर के हम हिस्से हैं, जिसमें पुरुष महिलाओं के साथ अत्याचार, शोषण तिरस्कार, शारीरिक प्रताड़ना देखकर अपना पुरुष होने का दम भरते हैं, अपना हक समझता है वास्तव में वह अपनी इंसानियत ताक पर रख दिया है और एक और मानवी दुनिया अपने चारों और निर्मित कर दिया है। यहां उपन्यास हमें इस बात की और सजग करती है की हम रिश्तो की पवित्रता को ना भूलें। स्त्री की निस्वार्थ प्रेम को ना भूलें, उनके के प्रति अपनी जिम्मेदारी को ना भूलें। उन्हें समझें, विभिन्न विपरीत परिस्थितियों में साथ दिया जाना चाहिए। जो अधिकार वास्तव में पुरुष अपना समझ कर कुंडली मार बैठे है,उस पर स्त्री का हक है। जीवन के संग्राम में स्त्री पुरुष दोनों को ही मिलकर आगे बढ़ना है।नारी को तिरस्कृत करके पुरुष भी कभी प्रसिद्धि ना पा सका है ,यह इतिहास गवाह है।
संदर्भ सूची:-
1)गोदान, प्रेमचंद, राजा पॉकेट बुक्स, दिल्ली,2000, पृष्ठ-101
2) वही, पृष्ठ-102
3) वही,पृष्ठ-254
4) वही,पृष्ठ-254
5) वही,पृष्ठ-211
6) वही,पृष्ठ-103
7) वही,पृष्ठ-258
8) वही,पृष्ठ-277
9)वहीं,पृष्ठ-39
10) वही,पृष्ठ-103
11) वही,पृष्ठ-258
12) वही,पृष्ठ-43
13) वही,पृष्ठ-258
14) वही,पृष्ठ-257
15) वही,पृष्ठ-239
16) वही,पृष्ठ-239
17) वही,पृष्ठ-210
18) वही,पृष्ठ206
19) वही,पृष्ठ-206
20) वही,पृष्ठ-103
21) वही,पृष्ठ-87
22) वही,पृष्ठ-29
23) वही,पृष्ठ-29
24) वही,पृष्ठ-28
25) वही,पृष्ठ-224
26) वही,पृष्ठ-224
27) वही,पृष्ठ-220
28) वही,पृष्ठ-89
29) वही,पृष्ठ-90
30) वही,पृष्ठ-90
31) वही,पृष्ठ-154
32) वही,पृष्ठ-111
33) वही,पृष्ठ-112
34) वही,पृष्ठ-198
35) वही,पृष्ठ-198
36) वही,पृष्ठ-298-299
37) वही,पृष्ठ-154
38) वही,पृष्ठ-154
39) वही,पृष्ठ-224