उनकी मूछें घनी एवं मोटी, आँखें गहरी काली, रंग बिल्कुल गोरा, ललाट उन्नत, कद पांच फुट दस इंच, वजन पच्चासी किलोग्राम और उम्र करीब चौबालिस साल थी | चूंकि, वह उत्तर प्रदेश सरकार में एक लोक सेवक के रूप में ब्लाक डेवलपमेंट ऑफिसर के पद पर पदास्थापित थे, परिणामस्वरूप ‘साहब’ शब्द का उपसर्ग उनके साथ स्वाभाविक रूप से लगा था |लोग उन्हें पूरे नाम के साथ शिवेंद्र सिंह श्रीनेत्र साहब कह सकते थे, परंतु लम्बा होने के कारण वे अपने अर्धांगिनी के प्यार से रखे गए, उपनाम ‘एस फोर’ से जाने जाते थे |केवल मित्र, सगे संबंधी, साथी अफसर एवं कुछ उच्च अधिकारीगण ही इस उपनाम का प्रयोग कर सकते थे | मातहत उन्हें साहब या अधिक से अधिक बीडीओ साहब कहा करते |
वे शराब बिल्कुल ही नहीं पीते, पर साथी अफसरों एवं मित्रों की महफिल में चखना पूरा खाते | आमंत्रित की गई शाम की महफिलों में आधा किलो फिश फ्राई एवं करीब डेढ़ किलो भुने गोस्त की व्यवस्था उनके लिए अलग से करनी पड़ती थी | किसी ने गलती से या अनौपचारिकता टोका-टाकी की तो, उसकी शामत आनी तय होती | नमकीन भुजिया और सलाद वे छूते तक नहीं और कहते कि ये मुँह का जायका बिगाड़ देते हैं | वे खाना भूलकर भी कभी अकेले नहीं खाते, अनिश्चित अवसरों के साथ-साथ गोस्त खाने के लिए शुक्रवार का दिन तय था, जिसे वह स्वंय ही पकाते, जो उनके लिए पूजा करने के समान थी | अपनी पाक कला पुराने जमीदारों एवं रजवाड़ों की तरह वे किसी से भी साझा नहीं करते | इस विधि में वे सबसे पहले अपने चपरासी को निर्देशित करते ‘बकरा बढ़िया होना चाहिए, जिसका वजन सात से दस किलो के बीच हो, टुकड़ों में चाप, दस्त, पुट्ठ, गर्दन, पहलू, करेली के साथ गुर्दा और चुस्ता जरूर ले लेना |” दो किलो गोस्त केवल एक बार धोकर पानी निकलने के लिए छोड़ने के उपरांत साफ मलमल के कपड़े में छानी हुई दही, प्रचुर घी, तरह तरह के मसाले, प्याज, लहसुन, अदरक की पूर्व निर्धारित मात्रा के साथ फेंटकर करीब एक घंटे के लिए छोड़ देते, इसे वे ‘मेरिनेशन की प्रक्रिया’ कहते | उसके उपरांत धीमी आंच पर घंटे, डेढ़ घंटे तक बिना एक बूँद पानी डाले उसे पकाया जाता |
दस्तरखान पर परोसने की मात्रा भी पूर्व निर्धारित होती, जिसमें पाव-पाव भर साथ भोजन करने वाले एवं चपरासी के लिए और शेष वह खुद देख जाते | चुस्ता सबसे प्रिय टुकड़ा होने के कारण वे किसी से साझा नहीं किया करते |रोटी, चावल, डाल और सलाद जैसे फालतू खाद्य पदार्थ उन्हें छोड़कर अन्य लोग ही खाते |गोस्त खाने के बाद पांच से सात रसगुल्ले वह पाचक के रूप में निश्चित रूप से ग्रहण करते समय अच्छा नहीं खाने पहनने वाले साथी अफसरों को वो ‘चिरकुट’ कहा करते |
वह परिधान समय, दिवस तथा मौसम के अनुसार ही धारण करते, पोलाराइड के धूप चश्में एवं फ़्रांसीसी इत्र लगाना, इटालियन चमड़े के जूते, बेल्ट, वालेट तथा लिनेन की कमीज के साथ फाईन उल के पतलून पहनना, औकात से ऊपर शेडान की सवारी करना एवं वेवल्ले स्काट कंपनी की पिस्टल पास रखने के साथ-साथ अपने मित्रों से शुद्ध क्वीन्स इंग्लिस में बात करना उन्हें पसंद था |
वे सामान्य जनता से कभी घूस नहीं लेते और ठेकेदारों को कभी छोड़ते नहीं थे, परिणामस्वरूप वह जनता की नज़र में ईमानदार और ठेकेदारों के लिए कसाई थे | चूंकि, अन्य अधिकारियों की तुलना में पैसे कमाने की ललक उनमें कम और विभागीय कार्यों के प्रति उनकी लगन, ज्ञान तथा दक्षता उच्च कोटि की थी, परिणामस्वरूप उच्च अधिकारीगण उनसे प्रभावित होकर उनके अन्य साथी अधिकारियों को उनका अनुसरण करने की राय देते |
प्रशासनिक अनुभव के दो दर्शन वह गाहे-बगाहे जरूर बयां करते, पहला ‘पैसा पाकेट के लिए ठीक और दिमाग के लिए खराब होता है, अगर दिमाग में घुस गया तो समझो पतन हो जायेगा, खाते-पीते, सोते-जागते केवल ‘उसी के संबंध में सोचोगे और फिर जीवन का असल स्वाद कभी नहीं ले पाओगे” इसे वे ‘टिप्स ऑफ गुड लाइफ’ बताते |
दूसरा ‘फाइल वही अधिकारी रोकता है, जिसे विभागीय कार्यों का सही ज्ञान नहीं होता या फिर वो बेईमान होता है | दोनों ही एक शासकीय अधिकारी के दुर्गुण हैं |’ इसे वे ‘एसेंस ऑफ सर्विस’ कहते |
चूंकि उनके पिता एक उच्चस्तरीय अधिकारी रह चुके थे, फलस्वरूप सरकारी सेवक के रूप में अपनी छाप छोड़ने में उन्हें किसी अतिरिक्त कौशल के प्रयोग की आवश्यकता नहीं हुई | अधीनस्थ कर्मचारी तो केवल उनके नाम से कापते | शाकाहारी गालियाँ वे प्रेमपूर्वक देते जैसे कमीना, हरामखोर, कामचोर, नालायक, जाहिल, काहिल और बेवकूफ पर गुस्से में बड़ी गालियों के प्रयोग से भी उन्हें कोई परहेज नहीं था | कुल मिलाकर जीवन शैली, ज्ञान, लगन एवं दक्षता के कारण उनकी एक अलग प्रतिष्ठा थी परंतु, कुछ स्वभावतः आलसी, बेईमान और कर्तव्यहीन साथी अधिकारीगण उन्हें ‘बनतू’ कहा करते और वे उन सबों को ‘लीचर और चिरकुट’ |
उत्तर प्रदेश के एक सुदूरतम जनपद के जिस सुदुर ब्लाक में वह पदस्थापित थे, उसका नाम था नेबुआ नौरगिया, दरअसल पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार के सटे इलाकों में स्थानों के नाम वनस्पति के ऊपर रखे जाते हैं, जैसे पिपरा, अमवां, पकड़ी, तरकुलवां, सेमरा, बेलवनबा, बरगदवां, सहजनवां, सिसवां, महुअवां, खजुरिया, बेतियां, फुलवारियां, पचगछियां, आदि-आदि उसी प्रकार से नेबुआ और नौरंगियां यानी नौ प्रकार (रंग) के | बार-बार स्थानान्तरण की स्थिति के कारण उन्होंने अपने परिवार को गोरखपुर के एक नियोजित एवं इच्छा हो जाने पर कभी भी प्रयास किया करते |
सहभोज के साथ गपशप, दूरस्थ पदस्थापित सरकारी सेवकों के मनोरंजन का एक साधन होता है | उनके ब्लाक से सटे स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थापित डॉ. जयपाल सिंह पिछले छः महीनों से उनके हमनिवाला एवं हमसुखन थे | गपशप करने के क्रम में उन्होंने अपने स्वास्थ्य संबंधी समस्या से डॉ. साहब को एक दिन अवगत कराया “सिर में भारीपन, आँखों में जलन, तलवे में दर्द और चिडचिडाहट का अनुभाव कुछ दिनों से हो रहा है |”
आला और ब्लड प्रेशर मापने वाली मशीन लगाकर जांच करने के उपरांत डॉक्टर ने बताया “बीडीओ साहब आपको हाई ब्लड प्रेशर है, नमक कम और नानवेज खाना बंद कर दीजिये, सुबह टहलिए, अच्छा होगा गोरखपुर ही शिफ्ट कर जाइए, यहाँ तो सुबह-सुबह सड़क पर सांस लेना भी मुश्किल है |” (शायद उनका इशारा शौच करके पर्यावरण दूषित करने वालों की ओर था ) |
भीतर ही भीतर कुछ भयभीत होने के बाद भी चेहरे पर बिना कोई भाव लाए, उन्होंने निर्णय सुनाया “आज कोई संयम नहीं, समझिए यह मेरी अंतिम दावत है |”
डॉक्टर ने चेताया “हल्के में मत लीजिए सबसे पहले वजन घटाइए, खाने-पीने पर कंट्रोल कीजिए, थौरों चेकअप कराइए और कल जाकर डॉक्टर कंसल से मिल लीजिए, बेहतरीन आदमी है, किंगजार्ज मेडिकल कॉलेज के जमाने से मेरे दोस्त और बैचमेट रहे हैं, पी.जी.आई. में पैथोलोजिस्ट रह चुके हैं | अरे हाँ ! आप ही की कॉलोनी में तो रहते हैं | वैसे मैं सुबह खुद बात कर लूँगा इस समय क्लब में ड्रिंक्स ले रहा होगा अभी बात करना ठीक नहीं | फिर उन्होंने एक पीली गोली की पत्ती श्रीनेत्र साहब को देते हुए हिदायत दी की ब्रेकफास्ट के बाद हर रोज इसे खाना है |
अगली सुबह ही श्रीनेत्र सामान समेट कर अपने शेडान से गोरखपुर के लिए रवाना हो गए | उनके ब्लाक वाले आवास के टूटने (छोड़ने) से अगर सबसे अधिक कोई खुश हुआ, तो वह था उनका वह चपरासी जो वहीँ रहता था | पिछले कई महीनों से बात बे बात गालियां खाते-खाते उसने अपने आपको भद्दी गालियों का एक पर्याय मान लिया था | उनके जाने के कारण का रहस्योद्घाटन अपने साथी कर्मचारियों से उसने कुछ यूँ किया “पूरे गाँव देहात के बकरे भाईसाब, इनके गड़िया दूरे से देख कै भागन लगत रहै, गर कोई ससुर बधिया खंसू भवा तो, जहां पात रहा, वहैं छप जात रहा, ऐसा खौफ था इनका | बाप रे बाप, भई साब, इत्ता भी मीट खात है कोई, माना कि मीट मुफ्त में पा जाएं पर पेट तो अपना है |बच गईन जौ डॉक साब बेमरिया पकड़ लिहिन, नाई तौ चल जाते उपर |रहे-सहे में बनेंगे अंग्रेज, पन् खाय-पीये के टाइम ठाकुर, भगवान ना करै, गर स्वर्गीय हो जाते, तौ का कहत हैं लोग इनको, एस.फोर.? हाँ भईया तौ बन जाते एस.फोर से एस.फाईफ|”
गोरखपुर शहर की उस व्यवस्थित एवं नियोजित आवासीय कॉलोनी का पूर्णकालिक निवासी बनने के कुछ दिनों उपरांत उन्होंने अपनी पत्नी श्रीमती अनीता सिंह श्रीनेत्र, जो एक अप्रवासी माता-पिता की संतान होने के साथ विचारों एवं जीवन शैली के परिपेक्ष में आधुनिक थीं, को अपनी बिमारी के विषय में कटौती करते हुए बताया कि रक्तचाप थोड़ा बढ़ गया है, सुबह टहलने तथा इस पीली गोली को खाने से सब ठीक हो जाएगा | परंतु जीवन साथी के बौद्धिक स्तर जा अधोप्राक्क्लण कभी-कभी विपरीत परिणाम देता है | श्रीमती अनीता सिंह श्रीनेत्र ने उनके कथन की विश्वसनियता को लगभग संदेह के साथ आंकते हुए और स्पष्ट शब्दों में खारिज करते हुए कहा “जब तक थौरो चेक-अप की रिपोर्ट नहीं आ जाती, जो हेल्दी फ़ूड दिया जाए, वही खाओ |”
श्रीनेत्र साहब विफरे “तुमने डॉक्टरी कब से शुरू कर दी, अपना काम देखो, फालतू में मेरा लाइफ कंट्रोल करने की कोशिश मत करो |” पर, श्रीमती श्रीनेत्र ने उनकी एक न मानी और आगे के भोजन में नामक की मात्रा को न्यूनतम स्तर पर लाकर मांसाहार को पूर्ण रूप से वर्जित कर दिया | सुबह के अल्पाहार में अंकुरित दलहन, तेलहन और अनाजों को बिना नमक के ही ग्रहण करने को दिया जाने लगा | अब वह सुबह आठ की जगह पांच बजे उठाए जाने लगे | टहलने के उद्देश्य से उन्होंने अपने क्लस्टर के छोटे पार्क का ही चयन किया, परंतु पंद्रह बीस दिनों के उपरांत उन्हें प्रतीत होने लगा मानो वह कोल्हू के बैल हो गए हों |
इसी बीच इस कष्टदायी दिनचर्या से निकलने के लिए उन्होंने बड़ी चालाकी से एक नवनियुक्त, अविवाहित एवं नौसिखुआ बी.डी.ओ. को अपने प्रभाव में लेते हुए, उसके आवास पर महफिल जमाने के लिए पटा लिया | उसका ब्लॉक नेबुआ नौरगियां और गोरखपुर के करीब-करीब मध्य में स्थित था | जनपद के तमाम बी.डी.ओ. और ए.डी.ओ. रात्रि भोज पर प्रायः वहीं जमा होने लगे | ग्राम सभाओं में नियुक्त गैर मेहतर जाति के सफाई कर्मियों में से कुछ की ड्यूटी वहीँ लगा दी गई, जो रसोइए और शाकी का कार्य करने लगे | अन्य मातहत कर्मचारियों और विशेष रूप से ग्राम पंचायत सचिवों को देशी मुर्गे, अंडे, ताज़ी मछलियों और मांस उपलब्ध कराने की हिदायत दे दी गई, बेहतरीन मिठाइयाँ गोरखपुर के गणेश तथा ऋद्धि-सिद्धि जैसे दुकानों से मंगवाई जाने लगी | फलस्वरूप, अनौपचारिक रूप से विभागीय समीक्षा बैठक दावत का आनंद भी उठाया जाने लगा |
कुल मिलाकर अब तक वह एक रोगी के रूप में चिन्हित होने से बचने के लिए अपनी बिमारी को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे | लेकिन एक दिन एक अनजान नंबर से आए कॉल ने उन्हें अनुभव कराया कि अब बचना मुश्किल है | बात यह हुई कि कॉल करने वाले ने अपना नाम डॉ. संजीत कंसल बताते हुए डॉ. जयपाल सिंह का हवाला देते हुए कल सुबह खाली पेट आकर मिलने का आदेशात्मक आग्रह किया एवं दो महीनों के बाद भी संपर्क नहीं करने पर रोष भी जताया | दुःखी मन से सुबह टहलते-टहलते वे डॉक्टर कंसल के आवास पर पहुँचे, बिना दूध-चीनी के आर्गेनिक चाय पीने के कठिन कार्य को निपटाने के बाद उनका वजन लिया गया | डॉक्टर कंसल ने नाराजगी व्यक्त की “आपका वेट अवही तेरानवे किलो है, जयपाल ने बताया था दो महीने पहले पच्चासी था | सर जी, क्या कर रहे हैं ? क्लिनिक आ जाइएगा और याद रखिए, बिना कुछ खाए-पीए, थौरो चेक – अप होगा |”
इसके बाद श्रीनेत्र साहब ने डॉक्टर जयपाल से कटना शुरू कर दिया साथ ही अपना सिमकार्ड बदलकर उसे सीमित लोगों से ही साझा किया, बात आई-गई हो गई | पर, इसी बीच उनके साली की शादी दिल्ली में होने तय हुई | उनकी साली एवं वर का सम्पूर्ण परिवार डॉक्टर था | वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न होने के उपरांत श्रीमती श्रीनेत्र ने उनकी बिमारी के संबंध में वर के पिता से विचार-विमर्श किया | सप्ताह भर श्रीनेत्र साहब की जांच विधिवत रूप से कराई गई | जांच रिपोर्ट के अनुसार वह हाई ब्लड प्रेशर एवं मधुमेह के रोगी के रूप में चिन्हित हुए | उनके गुर्दे से एक ऐसे रसायन का उत्सर्जन होते हुए पाया गया, जो उसकी खराब अवस्था का सूचक थी | उनका लीवर बढ़ा हुआ और ह्रदय कमजोर होने के क्रम में था, ऐसा भी उद्घाटित हुआ | कुल मिलाकर, करीब नब्बे किलो, पांच फुट दस इंच का उत्तर प्रदेश सरकार का वह दबंग ठाकुर अफसर, जिसे उसके जानने वाले ‘भूत का बाप राजपूत’ कहा करते थे, अंदरूनी रूप से खोखले हो रहे एक जहाज की तरह था, जो कभी भी डूब सकता था | अब उन्हें मानसिक, आर्थिक, बौद्धिक, शारीरिक एवं सामाजिक रूप से मजबूत होने के स्थान पर लाचार एवं मजबूर होने की अनुमति होने लगी | वे सोचते ‘यह तो दिल्ली आने का संयोग बना और तथ्य उद्घाटित हुए अन्यथा ऐसे ही चलता तो कुछ महीनों के बाद रामनाम सत्य होना तय था |’
श्रीमती अनीता सिंह श्रीनेत्र का मुँह काला पड़ गया | वह बार-बार रुआंसा होकर अपनी दोनों संतानों को सहलाते हुए श्रीनेत्र साहब को उनके चटोरेपन पर कोसती ‘पूरी शादी में बस हांड़ी जैसे पेट की पूजा करते रहे | ठूंसे जाओ, ठूंसे | पता नहीं इन ठाकुरों को भगवान ने कितने हाथ की जीभ दी है | जितने दिनों से यहाँ हो, बस नॉनवेज पर नॉनवेज चल रहा है | शादी में इतने आइटम थे, पर नॉनवेज छोड़कर किसी को छुआ तक नहीं तुमने, यहाँ की छोड़ो, ड्राइवर तो बता रहा था कि तुमने तमाम अड्डे बना रखे हैं, भकोसने के लिए | किस हालत में पहुँचा दिया अपने आप को, अब अकेले नहीं हो तुम, तीन और लोग भी हैं, तुम्हारे आसरे | भगवान न करे कुछ हो गया तो कैसे कटेंगे दिन हमारे |’
उन्होंने समझाते हुए पत्नी से कहा ‘मैडम हाई ब्लडप्रेशर है मुझे, चाहती हो कि अभी सिधर जाऊं तो जारी रहो | अब प्लीज खून मत जलाइए, रहम कीजिए |
श्रीमती श्रीनेत्र मुँह फेर कर सो गई पर रात भर बीच-बीच में उनकी चूड़ियों की खनखनाहट और नाम के पानी जब्त करने की कोशिश के सुर…..सुर….की आवाज उनके गुप्त क्रंदन के अवस्था की सूचना देती रहीं |
वापस गोरखपुर लौटने के बाद उन्होंने मजबूती के साथ परिस्थितियों का सामना करने का मन बनाया| उनके शिक्षा-दीक्षा के स्तर पर लगातार संघर्ष करने की क्षमता ने उन्हें मानसिक रूप से सबल बनाया था | उन्होंने अपने जीवन शैली में आमूल-चूल परिवर्तन कर डाले, जैसे मांसाहारी भोजन एवं चीनी तथा शरीर में चीनी उत्पन्न करने वाले भोज्य पदार्थ पूर्ण रूप से वर्जित करना, अंग्रेजी दवाओं के साथ आयुर्वेदिक एवं देशी नुस्खे भी अपनाना, तमाम प्रकार के योग सीखना, सुबह तेज चाल से करीब पांच से सात किलोमीटर टहलने के लिए कॉलोनी की बड़ी पार्क में जाना शामिल था | जान-पहचान के वे सभी लोग जो उच्च रक्तचाप एवं मधुमेह से पीड़ित थे, स्वतः ही उनके मित्र बन गए | उन्होंने शनैः शनैः अपने आलस्य, क्रोध, तनाव एवं क्षोभ पर भी नियंत्रण पाने में सफलता प्राप्त कर ली | जब कभी कोई उनसे मधुमेह रोगी होने के कारण, मर्दानगी की कमी की आशंका भी व्यक्त करता तब भी वह क्रोधित नहीं होते| कुल मिलाकर अब वह एक और दुनिया के सदस्य बन गए | वह अनुभव करने लगे कि विवाह के पूर्व छात्र जीवन, विवाह एवं पिता बनने के उपरांत तथा राज्य सरकार के सेवकों की दुनिया के अलावा भी तमाम और भी दुनिया है | इन्हीं में से एक दुनिया थी, उस कॉलोनी के बड़े पार्क में सुबह टहलने वालों की दुनिया, जिसके वे सदस्य बन गए |
उस पार्क की परिधि करीब चार सौ मीटर थी, जिसमें करीब डेढ़ दर्जन लोग नियमित एवं उतने ही अनियमित रूप से टहला करते थे | नियमित रूप से टहलने वालों में करीब दस से बारह लोगों का एक समूह था | जिसमें उनके दो पूर्व परिचित भी थे, उनमें एक उन्हीं के क्लस्टर में रहने वाले एक अधिकारी एवं दूसरे थे डॉ. संजीत कंसल, दोनों ने उनका परिचय उस समूह के अन्य सदस्यों से करवाया | उसमें चिकित्सा के विभिन्न विधाओं के विशेषज्ञों की संख्या करीब सात, तीन व्यवसायी एवं बाकी सरकारी सेवक थे | चिकित्सकों में सबसे ज्येष्ठ थे, डॉ. युगुल किशोर नारायणपति दूबे, संक्षिप्त में लोग उन्हें वाई.के.एन.पी. बुलाते थे | दूसरे थे, डॉ. सुनील सक्सेना जो अपनी पत्नी डॉ. श्रीमती विपुला सक्सेना के साथ टहलने आते थे | अन्य थे डॉ. कंसल (जिनसे आप पूर्व परिचित हैं), डॉ. सेठ, एक ह्रदय रोग विशेषज्ञ, जो केवल नाम भर के लिए टहलते थे, डॉ. जॉन, एक नेत्र रोग विशेषज्ञ हिने के साथ साहित्य एवं पर्यावरण में रखने वाले एवं डॉ. गुप्ता जो एनस्थेसिस्ट के रूप में कार्यरत थे | अधिकारियों में कृषि विभाग, व्यापारकर तथा बाढ़ खंड में अपना योगदान देने वालों का प्रतिनिधित्व था | कारोबारियों में सभी करीब-करीब जमीन-जायदाद के कार्यों से जुड़े थे, पर सरकारी नियंत्रण में उत्तरोत्तर वृद्धि के कारण ठेकेदारी की ओर उन्मुख होने की प्रवृत्ति की अभिव्यक्ति करते नज़र आ रहे थे | सभी सदस्य आपस में बात करते हुए पांच से सात किलोमीटर की दूरी सहजता से संपन्न कर लेते |
शनैःशनैः श्रीनेत्र साहब उस समूह के वांछित सदस्य बन गए, जिसका कारण था उनका समान्यज्ञ होना | विशेषज्ञों जैसे अभियंता, चिकित्सक, व्यापारी तथा वैज्ञानिकों के ज्ञान के क्षेत्र की सीमा उनके विधा तक ही सीमित होती है | वहीं एक योग्य लोक सेवक की सूचनाएँ और ज्ञान का क्षेत्र व्यापक होता है, जिनमें कुछ उनकी लोक सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए सामान्य ज्ञान के रूप में अर्जित की जाती है और कुछ क्षेत्र में कार्य करने के क्रम में अनुभवों की विविधता से प्राप्त होती है | चूंकि वार्तालाप का क्षेत्र इतिहास, भूगोल, विज्ञान, राजनीति, कला, साहित्य से लेकर स्त्री पुरुष संबंधों तक होतीं, परिणामस्वरूप इसमें उन्होंने अपना योगदान बड़े मनोयोग से देना प्रारंभ कर दिया और समूह के अन्य सदस्यों को वह सूचनाओं के प्रेषण एवं हास्य-विनोद की दृष्टि से उपयोगी एवं पूरक प्रतीत होने लगे | उनका कभी-कभी अनुपस्थित रहना समूह के सदस्यों को रिक्तता की अनुभूति देता | बदले में उन्हें चिकित्सा के क्षेत्र के विशेषज्ञों की सलाह निःशुल्क प्राप्त होने लगीं | कभी-कभी समूह के सदस्यों के मध्य बाल सुलभ चुहुलबजियों से उत्पन्न क्षोभ का नियंत्रण ज्येष्ठ सदस्यगण अपने कौशल से कर देते |
समूह के सदस्यों में डॉ. सुनील सक्सेना उनके सबसे निकट आने लगे, जिसका कारण था, उनका एक निहायत ही सौम्य, सभ्य तथा संस्कृति प्रवृत्ति का होना | वह एक अच्छे श्रोता और ज्ञान अर्जन करने की विधा में धीरज धरने वाले व्यक्ति थे और श्रीनेत्र साहब एक वक्ता होने के नाते नैसर्गिक रूप से उनके मित्र बन गए | डॉ. साहब चूंकि एक मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि से आते थे और उच्चवर्ग में स्थापित होने के क्रम में उन्होंने एक संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत किया था | जिसमें उनकी अर्धांगिनी श्रीमती विपुला सक्सेना ने एक साए की तरह उनका साथ दिया था | दोनों ही एक दूसरे के लिए सही अर्थों में पूरक थे | पैतालीस -पचास के मध्य पहुँचते-पहुँचते अब उनका ध्यान अपनी नई पौध को स्थापित करने, अपने व्यवसाय को सुचारू रूप से चलाने तथा सफ़ेद-काले धन को व्यवस्थित तथा नियोजित करने तक ही सीमित था | सीमाओं का अतिक्रमण कर यौन-सुख भोगने में उनकी रूचि बिल्कुल ही नहीं थी | डॉ. वाई.के.एन.पी. कभी-कभी उन्हें मजाक में ‘सेक्सी-ना साहब’ कह कर छेड़ते | श्रीनेत्र साहब अपनी क्रमिक जांच रिपोर्ट डॉ. कंसल से निःशुल्क प्राप्त कर उन्हें दिखाने लगे और डॉ. सक्सेना ने दिल्ली के एक डॉक्टर द्वारा लिखी गई मुट्ठी भर दवाइयों के साथ एक और दवाई बढ़ा दी, वह अपनी निःशुल्क राय एवं औषधियां उन्हें बेहतरीन आर्गेनिक चाय, सुगर फ्री बिस्कुट तथा विदेशी डाइट फ्रूट्स खिला-खिला कर देने लगे | कभी-कभी किसी खास के मध्य संबंधों की प्रगाढ़ता अन्य के लिए स्वाभाविक रूप से ईर्ष्या का कारण बन जाती है | पर, कटाक्षों की ओर दोनों ही कोई विशेष ध्यान नहीं देते | कहा जाता है कि पानी सदैव अपना तल ढूढ़ लेता है, यह विज्ञानं का एक प्रमाणिक सिद्धांत है और वैसे ही स्वभाव तथा विचारों की समानता नए संबंधों के प्रस्फुटन, पल्लवन एवं पुष्पण का कारक होती है, यह भी साहित्य एवं सार्वजनिक जीवन का एक सर्वमान्य दर्शन बन सकता है |
टहलने के क्रम में प्रायः चिकित्सकगण अपनी विदेश यात्रा-वृतांतों को साझा करते | वे इस क्षेत्र में सबसे उच्च स्तर पर, कारोबारी सदस्यगण विदेश के नाम पर नेपाल एवं थाईलैंड की यात्राओं तक सीमित होने के कारण मध्यम तथा सरकारी सेवकगण एक वंचित वर्ग के रूप में सबसे निम्न स्तर पर केवल श्रोता के रूप में विद्यमान होता | दरअसल विदेश यात्राएँ मध्यम स्तर के शासकीय अधिकारियों की अपूर्ण इच्छाओं में एक होती हैं | इन यात्रा-वृतांतों से श्रीनेत्र साहब को दो पहलुओं की सूचना प्राप्त हुई | पहली, चिकित्सकों द्वारा की गई यात्राएँ विभिन्न औषधि कम्पनियां, जो बाजार के माध्यम से रोगियों से कई सौ गुणा लाभ ले रही हैं, द्वारा प्रायोजित होती है, जिनका उद्देश्य मूल रूप से मनोरंजन कराना होता है | दूसरा, अगर वह प्रायोजित नहीं हुई, तो किसी न किसी क्लब के सदस्य होने के कारण वार्षिक लाभ लेने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए करनी पडती है, जिसकी आजीवन या पच्चीस वर्षीय सदस्यता भी उन्हें इन्हीं कंपनियों द्वारा दिलाई गई होती है |
पर चिकित्सकों के मध्य भी भेद था | यह सुविधाएँ केवल मेडिसिन तथा सर्जरी के क्षेत्र के सफल लोगों को ही मिलती हैं | अपने सामाजिक स्तर को बनाये रखने के लिए डॉ. कंसल इन यात्राओं को अपने खर्च से किया करते थे | उन्हें इसका मलाल होने के साथ-साथ यह क्षोभ भी था, कि तमाम बेगारियां कराने के साथ सर्जरी एवं मेडिसिन वाले कमीशन के रूप में उनकी कमाई का मोटा हिस्सा खींच रहे थे | जो कमीशन नहीं लेते उन्हें मरीजों का प्रवाह बनाए रखने के लिए अन्य सुविधाएँ उपलब्ध करानी होती, परिणामस्वरूप वह शनैःशनैः चिकित्सा की दुनिया में फैले हुए गोरखधंधे की विस्तृत सूचनाएँ श्रीनेत्र साहब से साझा करने लगे | कहीं न कहीं मन का उद्गार निकालने के लिए सही स्थान या व्यक्ति का होना आवश्यक है | आपने देखा होगा तमाम मजबूर, कमजोर, लाचार और गरीब लोगों को किसी न किसी मंदिर, मजार, देवस्थान पर सर पटक-पटक कर रोते और फरियाद करते हुए | ये सताए गए, शोषित तथा त्रासदीग्रस्त लोगों के अभिव्यक्ति का स्थान ही तो होता है | अपितु डॉ. कंसल एक साधन-संपन्न व्यक्ति थे, पर शोषित अवश्य थे | वे बताते एक-एक रोगी से ये डॉक्टर लोग फीस लेने के बाद भी, कैसे और कितना शोषण करते हैं, जैसे, जांचघर सी.टी. स्कैन, अल्ट्रासाउंड, आई.सी.यू. सेंटर या हॉस्पिटल तथा अपने क्लिनिक से लगी दवा-दुकानों से ये कितना कमीशन पाते हैं और औषधि कंपनियां इन्हें कितने पैसे और सुविधाएँ मुहैया कराकर कितना गुणा बाजार से वसूलती हैं | वह हिसाब समझाते “ये न समझिएगा कि किसी डॉक्टर की फीस अगर पांच सौ है और प्रतिदिन वह करीब डेढ़ सौ रोगी देखता है, तो मात्र पचहत्तर हजार प्रतिदिन कमाता है| इनकी कमाई के विस्तार की सीमा की कल्पना भी आप नहीं कर सकते, कुछ सर्जन तो किडनी तक निकाल कर बेच देते हैं, अरे जिंदा इंसानों को छोडिए, लाशों तक को बेचा तक जाता है |”
श्रीनेत्र साहब समर्थन करते हुए कहते “हाँ डॉक्टर साहब यह देश के कुपोषण, गरीबी, गंदगी और जहालत से पैदा हुई बिमारी के नाम के अभिशाप का व्यापार है, आप भी डॉक्टर हैं, पर उन जैसे नहीं |”
डॉक्टर कंसल शहर एवं इलाके के करीब ढाई-तीन सौ डॉक्टरों से जुड़े थे | सब अपना-अपना मरीज जांच के लिए उनके जांचघर में भेजते, जिसका कमीशन पूर्व निर्धारित होता था | जांचघर के साथ अल्ट्रासाउंड एवं सी.टी. स्कैन की व्यवस्था अद्यावधिक रूप से उच्चस्तरीय एवं सूचना तकनीकि के उच्चकोटि के माध्यमों से लैस थी |वह एक सफल पैथालोजिस्ट होने के साथ व्यावसायिक कौशल में भी माहिर थे |इतनी कम आयु में प्राप्त कर ली गई सफलता एवं व्यावसायिक प्रगति के कारण उनसे ज्येष्ठ कुछ चिकित्सकगण द्वेषवश उनका भी भेद खोलते हुए बताते कि यह ‘मास्टर की’ है |स्थानीय पुलिस-प्रशासन , आयकर विभाग, कागज की करेंसी को मूल्यवान पीले तथा सफ़ेद धातु में परिवर्तित करने वाले थोक स्वर्ण व्यवसायी, भू-माफिया, गुंडे और यहाँ तक की टूअर-ओपेरटर तथा तमाम तरह के दैहिक मनोरंजन कराने वालों के साथ इसके संपर्क है |
मित्र की निंदा से आहात होकर श्रीनेत्र साहब उनके चारित्रिक पतन को रोकने के उद्देश्य से इन सूचनाओं को कटौती करते हुए बिना किसी का नाम उद्घाटित करते हुए उन्हें प्रेषित करने लगे |पर डॉक्टर कंसल किसी मंझे हुए व्यवसायी की तरह भीतर-भीतर क्रोधित होते हुए भी मंद-मंद मुस्कुराकर कहते “सर जी, इसी शहर में बाप-बेटे दोनों डॉक्टर हैं और दोनों ही एक ही रात में एक आइटम बजाते हैं, इससे ज्यादा क्या बोलवाईएगा, ये गाईनी वाली सब सात-सात औरतों का पेट एक कमरे में एक साथ खोलती हैं और कभी-कभी तो अटेंडेंट क्लिनिक तक फूंकने पर आमादा हो जाते हैं | फिर पुलिस-प्रशासन, गुंडे-बदमाश सब मैनेज करो, मैं इन्हें बचाता हूँ तो घटिया, ये पाप करके पैसा कमाए तो पुण्यात्मा | जाने दो सर जी, इन पापियों के चक्कर में मत पड़ो, बस चुपचाप सुनते रहो |”
कठोर शारीरिक परिश्रम एवं संयम के साथ आरोग्य प्राप्ति की लालसा ने श्रीनेत्र साहब के जीवन को उबाऊ बना दिया था | एक शाम डॉक्टर कंसल ने उन्हें गोरखपुर क्लब बुलाकर ड्रिंक्स ऑफर करते हुए साथ से सौ मिली लीटर तक उच्च कोटि के स्कॉच तथा वाइन के गुण बताते हुए कहा कि यह ह्रदय को सुचारू, यकृत को मजबूत करने के साथ एकाकीपन तथा अवसाद को दूर करने का बेहतरीन साधन है| परंतु उन्होंने दृढ़ निश्चय का परिचय देते हुए शराब पीने से साफ़ मन कर दिया | फिर डॉक्टर ने उनका मन बहलाने के उद्देश्य से अपने द्वारा बनाए गए एक व्हाट्स एप ग्रुप ‘वीर भोग्या बसुन्धरा’ में ग्रुप एडमिन की हैसियत से उन्हें भी सदस्य के रूप में शामिल कर लिया | उस ग्रुप में बहुसंख्यक चिकित्सकों के साथ कुछ टुअर आपरेटर, स्वर्ण आभूषण के व्यवसायी एवं जमीन जायदाद के कारोबारी भी सदस्य थे | श्रीनेत्र साहब इसके पहले सरकारी सेवक के रूप में सदस्य बनने का सौभाग्य प्राप्त कर पाए थे |
एकाकीपन दूर करने के उद्देश्य से उनकी रुचि ग्रुप में स्वाभाविक रूप से बढ़ी | इसमें आने वाले संदेशों में देश भक्ति से ओत-प्रेत विचार, शाकाहारी-मांसाहारी चुटकुले, नग्न-अर्द्धनग्न युवतियों की तस्वीरों के साथ पोर्न फिल्मों के दृश्यों का आदान-प्रदान होना तक तो इन्हें एक सामान्य बात लगी, पर एक प्रकार का असामान्य संदेश जो उनके लिए कल्पनातीत थी, वह थी विदेशी युवतियों की तस्वीरों के साथ उनका मोबाइल नंबर और समयावधि के अनुसार उनका दर |साथी सदस्यों को उत्साहित करने वाले मैसेज कि आप भी आकर पर्यटन करें और इस मनोरंजन का भरपूर आनंद उठाएं | यह सूचनाएं प्रायः मध्य एवं पूर्वी एशिया, पूर्वी यूरोप के उन देशों से जो कभी साम्यवादी थी, रूस, ब्राजील तथा साउथ-अफ्रीका के तमाम शहरों जैसे मास्को, सेंट पीटर्सबर्ग, बुडापेस्ट, वुखारेस्ट, प्राग, ताशकंद, मनीला, रिओ, केप टाउन तथा कोपेनहेगन तक से आने लगे | सूचनाएँ साझा करने वालों में एकाध टुअर आपरेटरों को छोड़कर अधिकांश चिकित्सकगण थे | कुछ दिनों तक यह सब श्रीनेत्र साहब की लिए भी मनोरंजक रहा, परंतु ठीक से शिक्षित व्यक्ति का आदर्श कभी-कभी इन स्थितियों में उसे असहज कर देता है | वे सोचते कि इन सफल और सबल लोगों ने अपनी यौन-उश्रृंखलताओं प्राप्ति का क्षेत्र विस्तार कहाँ-कहाँ तक कर रखा है | फिर इसे उनका निजी जीवन मानते हुए मन को समझाते |
एक दिन हिंदी फिल्मों के एक खान उपनामधारी अभिनेता ने संभवतः अपने आपको समाचारों में बनाए रखने के उद्देश्य से एक वक्तव्य दिया कि वह विश्व इतिहास के एक कुख्यात योद्धा चंगेज खान का वंशज है | ग्रुप में प्रतिक्रियाएं आनी प्रारंभ हो गईं | कड़े शब्दों में भत्सना के साथ गालियां भी दी जाने लगीं, लगे हाथ उसकी आने वाली फिल्म के बहिष्कार की घोषणा सभी राष्ट्रभक्त सदस्यों ने कर डाली | संभवतः चंगेज के खान उपनाम से उसके विधर्मी एवं आक्रांता होने का अनुमान सदस्यों ने लगा लिया था |
अगले दिन टहलने के क्रम में डॉ. कंसल ने श्रीनेत्र साहब से जानना चाहा “बी.डी.ओ. साहब यह चंगेज खान कौन था ?”
सूचना प्रेषण का अवसर पाते ही उन्होंने विस्तारपूर्वक बताना प्रारंभ किया “बारहवीं शताब्दी में मंगोलिया के स्टेपी नामक घास के मैदानों के एक मंगोल कबीले के सरदार की दूसरी संतान के रूप में चंगेज का जन्म हुआ | बचपन में ही उसकी शादी बोरते नामक लड़की से हुई, तदोपरांत उसके पिता को जहर देकर एक दूसरे सरदार ने मारकर उसके बड़े भाई का अपहरण कर लिया | उसकी पत्नी का भी अपहरण हुआ, जिसे कुछ महीनों के उपरांत अपने मित्र जमूखा, जो बाद में उसका प्रतिद्वंदी भी बना की मदद से मुक्त करवाया | कुछ के अनुसार वह तिब्बती बौद्ध धर्म तथा कुछ अन्य के अनुसार हिंदु धर्म से मिलते-जुलते तंगारिन धर्म को मानता था जिसे मानने वाले नीले आकाश की पूजा करते थे |
अभावग्रस्त बचपन गुजारने के साथ उसने अपने कबीले के सरदार बनने की असफल चेष्टा की, धीरे-धीरे अन्य कबीलों को मिलाकर एक बड़ी फौज जमा करने के साथ उसने आसपास के राज्यों पर आक्रमण कर उन पर कब्जा कर लिया | उसने अपने समय की सबसे बड़ी एवं उच्च तकनीक की डाक सेवा “याम” के व्यापक सूचना-तंत्र की सहायता से करीब चार करोड़ लोगों को मारकर विश्व के 22 प्रतिशत भू-भाग, जो कैस्पियन से चीन सागर तक लगातार फैला था, का स्वामी बन गया | वह कहता था कि वह भगवान कोड़ा है और पापियों का नाश करने आया है | भारत की सीमा में वह सिंधु नदी तक पहुँच कर लौट गया था |
वह जहाँ भी आक्रमण करता, निर्बल, मजबूर तथा बीमारों तक को या तो अपना गुलाम बना लेता या फिर मार डालता, दया शब्द उसके शब्दकोश में नहीं था | वह संपत्ति के साथ-साथ स्त्रियों को लूटकर उनका नग्न परेड करवाता एवं पसंद आई स्त्रियों का स्वयं एवं अग्रहितों को छावनी में वस्तु की भांति उपयोग करने हेतु अपनी फौज के पास भेज देता | कुछ लोगों के अनुसार उसकी मृत्यु भी अपने कुकुर्मी स्वभाव के कारण तब हुई, जब चीन की राजकुमारी ने बलात्कार करने की चेष्टा के समय उसके गुप्तांग भंग कर दिए, उस समय उसकी आयु लगभग चौबालिस वर्ष थी | आज भी वह बर्बरता, दमन और उत्पीड़न का पर्याय माना जाता है |
पर डॉक्टर साहब बॉलीवुड का वह तो ‘हिंदकोवान’ मूल का पेशावरी है | ये लोग पहले हिन्दू थे, मध्यकाल में तुर्कों से लड़ाई हारने के बाद या सूफियों के प्रभाव में इन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया, कुछ हिंदकोवान आज भी हिन्दू हैं | पता नहीं, आजकल कैसे हर खान टाइटल वाले अपने आप को चंगेज का रक्त बताने में लगे हैं | चंगेज तो मंगोल नस्ल का था और ये पठान और हिंदकोवान तो आर्य हैं, हमारे-आपके नस्ल के | किसी ने कहा था मजहब बदलना आपके हाथ में है पर नस्ल नहीं, शायद सरहदी गांधी गफ्फार खान साहब ने, पर आज की दौड़ में इन बातों को कौन याद करता है |
इतने लंबे-चौडे आख्यान में से डॉक्टर कंसल को कुछ बातें काम की लगीं, जैसे चंगेज का मुसलमान नहीं होना आश्चर्यजनक, उस समय भी सूचना तंत्र का प्रयोग उससे भी अधिक आश्चर्यजनक तथा विश्व इतिहास का सबसे बड़ा हत्यारा शासक, अकूत संपत्ति का स्वामी एवं महिलाओं का शौक़ीन होना उसके अधिनायकवादी तथा अत्यंत ही उग्र पुरुष सत्तावादी व्यक्तित्व को उद्घाटित करने वाला |
एक दिन श्रीनेत्र साहब का सेवक नरायण बीमार हो गया | उन्होंने उसे डॉक्टर सक्सेना के पास भेजा और उन्होंने जांच कराने के लिए डॉक्टर कंसल के पास | डॉक्टर कंसल ने शहर के एक नामी चिकित्सक डॉ. राजेश मणि को, वह रोगी भूलवश संदर्भित कर दिया | बात की कड़ी बीच में कहीं न कहीं टूट गई परिणामस्वरूप नरायण नाम के रोगी का ईलाज एक सामान्य, निर्बल, लाचार एवं स्वभाविक रूप से बीमार रोगियों की भांति हुआ | फलस्वरूप, कुल साढ़े छः हजार रूपए के बिल का भुगतान करना पड़ा |
अगली सुबह श्रीनेत्र साहब ने डॉक्टर सक्सेना से शिकायती लहजे में बताया “डॉक्टर साहब बुखार था और नरायण का बिल साढ़े छः हजार पहुँच गया |” गरीब रोगियों का विशेष ध्यान रखने की प्रवृत्ति का होने के कारण डॉक्टर सक्सेना को ग्लानि का अनुभव हुआ, उन्होंने डॉक्टर कंसल से दूरभाष पर तहकीकात की | डॉक्टर कंसल ने कार्य की अधिकता का हवाला देते हुए गलती मानी और लिए गए अतिरिक्त धन को अपने कारोबारी हिसाब में समायोजित कर शेष धन वापस करने का आश्वासन दिया |
अगला दिन अवकाश का होने के कारण डॉक्टर कंसल ने उन्हें डॉ. राजेश मणि के निर्माणाधीन फॉर्म हाउस पर, जो शहर के करीब पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित था, बुलाया | श्रीनेत्र साहब को याद आया कि शहर तथा इलाके के इसी प्रतिष्ठित चिकित्सक द्वारा व्हाट्सएप ग्रुप ‘वीर भोग्या वसुंधरा’ में विदेशी लड़कियों की तस्वीरें तथा मोबाइल नंबर अपने विदेश भ्रमण के क्रम में सबसे अधिक साझा किया जाता है | डॉक्टर कंसल उस फॉर्म हाउस का अवलोकन भविष्य में अपनी कोठी भी उसी तरीके से कराने की प्रेरणा लेने के उद्देश्य से करने गए थे और श्रीनेत्र भी उस ख्वाबगाह को देखने का लोभ संवरन नहीं कर पाए | फफार्म हाउस की फर्श पर इटालियन मार्बल की घिसाई तथा सैनिटरी फिटिंग का कार्य अपने अंतिम चरण में थी | बात-बात में डॉक्टर कंसल ने बताना शुरू किया “केवल इटालियन मार्बल की घिसाई पर ही बीस लाख के ऊपर खर्च आया है, एक-एक जकोजी की कीमत फिटिंग सहित साढ़े छः लाख और एक-एक नलके सत्तर-सत्तर हजार के और सारा सामान जर्मनी से आया है | फर्स्ट फ्लोर पर बेडरूम के साथ लॉन में मेक्सीकन ग्रास लगेगा | सेकेंड फ्लोर पर बार, जिम और सामने वाटर टेम्परेचर कंट्रोल्ड स्वीमिंग पुल होगा | बार में रॉयल सैलूट और ब्लू-लेवल से नीचे कोई भी ब्रांड नहीं रहेगा | पूरी बिल्डिंग सेंट्रली एयर कंडीशन्ड होगी, इन सब पर केवल मकान की ही लागत दस करोड़ से ऊपर जा रही है | पांच एकड़ जमीन, डेकोरेशन, फर्नीचर, चांदी के कटलरी, लाईटिंग और पेंटिंग्स आदि की लागत पूछिए मत |”
कुछ देर उपरांत उन्होंने श्रीनेत्र साहब को साढ़े पांच हजार रुपए वापस करते हुए सूचित किया “पांच सौ रूपए डॉक्टर साहब की फीस और पांच सौ के ही करीब जांच का सही खर्च आया है, बाकी वापस कर रहा हूँ, सक्सेना बॉस को बता दीजिएगा नहीं तो मेरी क्लास लग जाएगी |”
घर वापस लौटन के क्रम में श्रीनेत्र साहब को विचार आया कि ‘इतने कम दिनों में उन्हें विभिन्न प्रकार की नयी दुनिया का अनुभव प्राप्त हो सका, अगर बीमार न पड़ते, तो कुछ पता नहीं चलता | खैर, हर बात में कोई न कोई अच्छा उद्देश्य छिपा होता है, इस कथन का भी सही अर्थ अब ज्ञात हुआ, पर ये तमाम अनुभव उन्हें रह-रह कर आंदोलित करने लगे |
घर आने पर वह आँखें बंद करके विचारने लगे ‘हर काल खंड में, हर स्तर पर तथा हर क्षेत्र में सुनिया के सबल लोगों ने तमाम असहाय, निर्बल, लाचार, बीमार तथा त्रासदीग्रस्त लोगों का शोषण कर अपने लिए यथासंभव संसार भर से उच्चकोटि के भौतिक सुखों की पूर्ति करने के संसाधनों को हासिल किया है | अब इसी काल में, ये लोग, अपने भोज्य पदार्थ भी आयातित कर रहे हैं | जो स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर कार्बनिक उर्वरकों का प्रयोग करते हुए वैज्ञानिक ढंग से उपजाएँ गए होते हैं, जिन्हें एंजलो कैपेलीनी तथा रूगिआना कंपनी द्वारा बनाए गए नक्कासीदार फर्नीचरों के ऊपर रखकर डेनमार्क में बने स्टर्लिंग चांदी के पात्रों में डालकर ग्रहण किया जाता है | कैलिफोर्निया से मंगवाए गए पिस्ते एवं अफगानी चिल्गोजों तथा मुन्नकों के नीचे ये कुछ छूते तक नहीं | फ्रांस के बुरगुंडी तथा बोर्डो एवं स्कॉटलैंड के ग्लेनफिडिच, ग्लेनलिविट, एवरलर एवं बलवेनी जैसे प्रसिद्ध स्थलों के आसवनियों (भठ्ठियों) में विधिवत रूप से परिष्कृत तथा परिपक्व किए गए बेहतरीन मदिरा को चेकोस्लोवाकिया के बोहेमिया तथा बेल्जियम के सेरिंग नामक शहरों के दक्ष शिल्पकारों द्वारा कलाकृतियों की भांति बनाए गए क्रिस्टल के पात्रों में डालकर ये अपना गला तर करते हैं और कभी-कभी मात्रा अधिक हो जाने पर ईरान के तबरीज तथा बेल्जियम के बूसेल्स से मंगवाए गए गलीचों पर लुढ़क जाते हैं |
इटली के पलेरमों, वेनिस एवं मिलान तथा फ्रांस के पेरिस और लिओन के नामी फैशन डिजायनर वैलन्टीनो एवं डोनालेटा बरसाचे जैसों द्वारा डिजायन किए गए परिधान, फ्रांस में ही बने जॉरजियो अरमानी, बरसाचे, जिन पाउल गॉटियर, केल्वीन क्लेन, ह्यूगो बॉस, क्रिसचन डॉयर तथा बिलीटन जैसे नामी कंपनियों द्वारा निकाले गए एवं बेल्जियम के एंटवर्क में करीने से तराशे गए सोलीटायर इनके गले, कान, उंगलियों एवं कलाई में चमक बिखरते हैं |
इनकी कोठियों एवं ऐंशगाहों के सोपान से लेकर छत तक ईटली के कैरारा के खादानों से निकाले तथा तराशे गए बेहतरीन संगमरमर से ढके, दरवाजे नक्कासीदार वर्मी टीक के बने, खिडकियां आयातीत शीशों से सुसज्जित होने के साथ समय और मौसम के अनुरूप रंग तथा मात्रा में बदलाव करने की क्षमता से युक्त प्रकाश व्यवस्था, जर्मनी के हंसा एवं गोहे कंपनियों के सैनिटरी फिटिंग, गुडमैन कंपनी के सेंट्रल एयर कंडीशनिंग सिस्टम, वाटर टेम्परेचर कंट्रोल्ड स्वीमिंग पूल, भांति-भांति के जकोजी एवं वाटर प्रेशर उपकरणों से सजे तथा लैश होते हैं | इजिप्ट तथा सी आइलैंड कॉटन तथा मिलान में बने रेशमी बिछावनों पर शयन करने के उपरांत ही इन्हें नींद आती है | इनके बाग और बगीचों में भी ब्राजील और आस्ट्रेलिया के पेड़-पौधे एवं घास लगाए तथा बिछाए गए होते हैं |
इनकी कोठियों के परिसर की सुरक्षा सी.सी.टी.वी. कैमरे एवं संतरियों के साथ डालमेशियन, बुलडॉग, जर्मन शेफर्ड, मालाम्यूट, वुल मास्टिफ, डाबरमैन तथा रॉट वेल्लर नस्ल के कुत्ते करते हैं, जिनके खाने से नहाने तक के सामान आयातीत होते हैं | कुछ तो बिल्ली, खरगोश, टर्की, तोते जैसे पालतू जानवर और पक्षी भी विदेशी ही रखते हैं | सवारी करना उनका शौक हो या नहीं पर ये स्पेन से ऐडूलेशियन एवं रूस तथा मध्य एशियाई देशों से काराबेर नस्ल के अश्व खरीद एवं पाल रहे हैं | यह जिन पर असल में सवारी कर रहे हैं वे मित्सिबुशी, बी.एम.डब्लू., मर्सीडीज तथा ऑडी कंपनियों द्वारा निर्मित हाई-एंड लक्जरी गाड़ियाँ हैं, जिनके मॉडल ये स्वेक्छानुसार बदलते रहते हैं |
यहाँ तक तो केवल इनके खान-पान, मकान तथा परिधान सहित कुछ छोटे-छोटे शौकों के संबंध में एक मध्य वर्गीय कल्पना की सीमा भर है | पर ये लोग तो पर्यटन के लिए पश्चिम में न्यू फाउंडलैंड से पूरब में न्यूजीलैंड तक जाते हैं, स्वीटजरलैंड और इंग्लैंड जैसे देश अब इनके लिए उबाऊ एवं नीरस हो चुके हैं | अपनी यौन-उश्रृंखलाओं की प्राप्ति के लिए पश्चिम में रियो-ड़ेजेनेरियो से पूरब में मनीला तथा उत्तर में ओस्लों से लेकर दक्षिण में केप-टाउन तक के तमाम अड्डों को इन्होंने ढूंढ निकाला है | अब ये एक अभिनव पर्यटन जिसे ‘सेक्स-पर्यटन’ कहा जाता है, करने के लिए प्रायः निकल पड़ते हैं | दुनिया भर में दलालों एकम भरूओं की लंबी चौडी फौज पैदा हो गई है, जो इन्हें हर उम्र, नस्ल एवं शारीरिक संरचना की युवतियां या तरुणियां उपलब्ध कराने का माद्दा रखते हैं |
ये लोग आज की दुनिया में परिवहन के साधनों की चपलता एवं सूचना तंत्रों के विकास का उपयोग कर विश्व के किसी भी अक्षांस-देशांतर पर न्यूनतम समय में पहुँच जा रहे हैं | यह सब तो विश्व-इतिहास के तमाम दुर्दांत लुटेरों, अतीला, चंगेज, कासिम, तैमूर, नादिर, अब्दाली के समय भी किसी क्षेत्र विशेष में सीमित रूप से होता था | पर आज इनके बिना रक्तपात किए लूटने के गुप्त तरीकों एवं मारक क्षमता का दायरा विश्वव्यापी हो चुका है | बिचौलिए और बाजार इनकी पिपासा त्वरित रूप से लगातार बढ़ाए जा रहे हैं | पहले की तरह अभाव नहीं, हवस के कारण लूट हो रही है |
एक दिन शाम को उन्होंने अपना अद्यतन मेडिकल रिपोर्ट दिखाने के लिए डॉक्टर सक्सेना से समय लिया | उनके आवास पर उन्होंने अपनी रिपोर्ट दिखाने के साथ बात ही बात में अपनी सोच से भी अवगत कराना प्रारंभ किया, डॉक्टर साहब बस हूँ…..हाँ….करते रहे और रिपोर्ट देखने के बाद बताया “अब सब कुछ नार्मल चल रहा है | संयम रखिए और दवाईयां लेते रहिए |” साथ-साथ यह भी जोड़ा कि इन सब चक्कर में पड़कर तनाव नहीं बढ़ाईए, मधुमेह का सबसे बड़ा कारण तनाव होता है, प्रसन्न रहते हुए व्यायाम करते रहिए |
इन परिस्थितियों में प्रतिकार नहीं कर पाने की असमर्थता ने श्रीनेत्र साहब को असहज बना दिया था | अगली सुबह टहलने के क्रम में उन्होंने डॉक्टर कंसल से डॉ. राजेश मणि जैसों के विषय में सूचनाएं प्राप्त करते हुए निवेदन किया “डॉक्टर साहब आप मुझे भी अपने ग्रुप ‘वीर भोग्या वसुंधरा’ का ग्रुप एडमिन बना लीजिए ताकि मैं भी अपने लाईक माइंडेड मित्रों को इससे जोड़ सकूं |”
डॉक्टर कंसल कुछ देर सोचने के बाद मान गए | देर रात कार्यालय लौटते ही उन्होंने नए ग्रुप एडमिन की हैसियत से उस ग्रुप का नाम बदलकर ‘चंगेज के बेटे’ रखते हुए स्वयं को उस ग्रुप से बाहर कर लिया |