दरवाजे पर आहट हुई मैंने एक अधखुले दरवाजे को खोलते हुए देखा दरवाजे पर केसरी रंग की साड़ी में लिपटी एक युवती जिसके ललाट पर सिंदुर था कुछ युवकों और युवतियों संग हाथ जोड़े खड़ी थी। मौसम बेहद गर्म और उमस भरा था कुछ काग़जों को दिखाते हुए और पसीना पोंछते हुए दूसरे ही पल वो मेरे पैरों में थी और कहने लगी अंकल आप आशीर्वाद दें इस बार भी मैं ही विजयी रहूं आपका और आपके परिवार का बोट झंडा पार्टी को ही मिलना चाहिए।इसके बाद वो लोग कमलादेवी जिन्दाबाद और कमला देवी की जय के नारे लगाते हुए औझल हो गये। ये वही युवती थी जो कुछ वर्षो पहले भी इसी तरह आई थी पर बीते वर्षो कभी भी मैंने अपने मौहल्ले या इस इलाके में नहीं देखा।पर आज सूबह के अखबारों के बीच से एक काग़ज गिरा था जिस पर इसी महिला की फोटो थी।
चुनाव के आसपास इस तरह के दृश्य नित्य देखे जा सकते है।प्रभु ने इन लोगों को किसी अलग ही मिट्टी का बनाया होता है तभी इन दिनों न जाने कहां से देशभक्ति और समाजसेवा की भावना सर चढ़ कर बोलती है।अब इन्ही कमला देवी को ही ले लीजिए कुछ वर्षो पहले ये एक छोटे से प्राइवेट स्कुल में जुनियर टीचर थी और एक छोटे से तबके में किराए की खोली में रहती थी पर झूठ सच का सहारा लेकर और प्रतिद्वंदी के कच्चे चिट्ठे खोलकर सत्ता में आ गयी थी । इस शहर या सोसाइटी के तो कभी अच्छे दिन नहीं आए पर इनकी बाछें ज़रूर खिल गयी। अच्छे दिन अच्छे कामकाज और सबके विकास के नाम पर ये बेईमान लोग हर बार झूठ बोलकर ठग जाते हैं पर इसका क्या इलाज हो सकता है किसी को नहीं मालूम ।हम नया और कुछ अलग समझ हर वार ऐसे लोगों को जीता देते हैं।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है पर राजनीति में परिवर्तन असंभव है। यहां आकर सब एक हो जाते हैं | नेता, मंत्री सब एक से बढकर एक हैं।आज हर वर्ग के लोग अपना मत किसी भी नेता को देने से कतराने लगे हैं। इन नेत्रहीन ,कपटी लोगों ने हर जगह ऐसा माहोल कर रखा है कि प्रकृति अब परिवर्तन होगी इससे विश्वास उठ रहा है।आज हर गली कूचों में इन लोगों के सरंक्षण से कमर्शियल एक्टिविटीज चल रही हैं। इनके रहते हम लोग मुर्दों का सा जीवन जीते है।हां नामपट्टी पर इनके नाम खूब सजते हैं।
आज पार्किंग समस्या को लेकर सभी परेशान है विधायिका जी को मौखिक एवम् लिखित रूप में कई मर्तवा बताया पर कार्रबाही की जा रही है का आश्वाशन हमेशा की तरह मिलता है पर कभी कुछ होगा इसमे संदेह ही है।
खंजडी बजाते कुछ लोग घर के सामने से निकल रहे हैं। खद्दर पहने वही पुराने प्रतिद्वंदी नेता जगपाल यादव गले में माला का हार पहने मुझे बाहर की ओर आने का आग्रह कर रहे है। कुछ ही देरी में वो जमीन छू रहे थे। मंद-मंद मुस्कान से मुझे फिर ठगा जा रहा है।अभी ये दल कुछ दूर भी नहीं गया कि लाऊडस्पीकर पर थिरकता एक अन्य दल हमारी गली की शोभा बढ़ा रहा था। मैं रोती आंखों और विक्षिप्त ह्रदय से इन्हें देखे जा रहा था।
हम अपनी ही ग़लतियों को अनदेखा कर वही ग़लती दोहरा देते हैं। समस्याएं ज्यों की त्यों रहती है पर हम लोग इन फरेवी चेहरों पर विश्वास कर दोवारा इन्हें ही जीता देते हैं। अभी नयी सरकार से बहुत उम्मीदें थी पर मूरत ही बदली है केवल सूरत तो पहले सी है,हालात नहीं बदले। कुछ दिन के शोर शरावे के पश्चात वही पुरानी टीस लिए बतिआते है।इ स मकडजाल को भेदने का दम यहां किसी में नहीं। इन चेहरों को न देखने की चाह शिक्षित वर्ग में घर करने लगी है इसी से नोटा ऑप्शन आया था किंतु पूर्णतया कारगर सिद्ध नहीं रहा।
मैंने घर से बाहर निकलकर देखा चारों तरफ चुनाव संबंधी ही बाते हो रही थी । पास ही काली माता मंदिर के पास खडे ठेले पर लोगों का जमावड़ा था।सभी निवर्तमान विधायिका कमला देवी से नाराज दीख रहे थे और बदलाव की बाते कर रहे थे।पर चेहरा चाहे जो भी हो उससे क्या फर्क पडता है। गर्मी और उमस से मौसम बेहद अलसाया और थकान भरा होता जा रहा था अधिकतर लोग घरों में दुबकने की फिराक में थे पर छुट्टभइया नेता और कार्यकर्ताओं का जोश देखे बनता था। अलग अलग पार्टी के लोग बीच बीच में गाली गलौज भी कर रहे थे पर यह तो आजकल की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है।कुछ लोग और एक संस्था चुनाव वहिष्कार की बात भी कर रहे थे।
अभी कुछ दिन पूर्व ही एक पत्रिका में लेख पडा था कि चुनाव आयोग चुनाव प्रकिया में बड़ा बदलाव के मूड में है और सक्रिय भी है पर ये लेख जल्द ही किसी ठंडे बस्ते में चला जाएगा। मैं भी जल्दी ही घर आकर टी वी सैट ऑन करके चैनलस बदलता रहा पर यहां भी सभी जगह चुनाव चुनाव बस चुनाव ही थे। कहां से और कौन सामने आए जो विश्वासपात्र हो । ये मेरे लिए और नये वर्ग के लिए जिज्ञासा के विषय हमेशा रहेगा।सोसाईटी में सड़कें टूटी हो या बिजली पानी की समस्या हो विधायिका जी तो मानती हैं आप भला तो जग भला। न जाने हम लोग कब अच्छी जिन्दगी जीयेंगे यह तो अब सपना सा ही बन कर रह गया है।
चुनाव के आसपास इस तरह के दृश्य नित्य देखे जा सकते है।प्रभु ने इन लोगों को किसी अलग ही मिट्टी का बनाया होता है तभी इन दिनों न जाने कहां से देशभक्ति और समाजसेवा की भावना सर चढ़ कर बोलती है।अब इन्ही कमला देवी को ही ले लीजिए कुछ वर्षो पहले ये एक छोटे से प्राइवेट स्कुल में जुनियर टीचर थी और एक छोटे से तबके में किराए की खोली में रहती थी पर झूठ सच का सहारा लेकर और प्रतिद्वंदी के कच्चे चिट्ठे खोलकर सत्ता में आ गयी थी । इस शहर या सोसाइटी के तो कभी अच्छे दिन नहीं आए पर इनकी बाछें ज़रूर खिल गयी। अच्छे दिन अच्छे कामकाज और सबके विकास के नाम पर ये बेईमान लोग हर बार झूठ बोलकर ठग जाते हैं पर इसका क्या इलाज हो सकता है किसी को नहीं मालूम ।हम नया और कुछ अलग समझ हर वार ऐसे लोगों को जीता देते हैं।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है पर राजनीति में परिवर्तन असंभव है। यहां आकर सब एक हो जाते हैं | नेता, मंत्री सब एक से बढकर एक हैं।आज हर वर्ग के लोग अपना मत किसी भी नेता को देने से कतराने लगे हैं। इन नेत्रहीन ,कपटी लोगों ने हर जगह ऐसा माहोल कर रखा है कि प्रकृति अब परिवर्तन होगी इससे विश्वास उठ रहा है।आज हर गली कूचों में इन लोगों के सरंक्षण से कमर्शियल एक्टिविटीज चल रही हैं। इनके रहते हम लोग मुर्दों का सा जीवन जीते है।हां नामपट्टी पर इनके नाम खूब सजते हैं।
आज पार्किंग समस्या को लेकर सभी परेशान है विधायिका जी को मौखिक एवम् लिखित रूप में कई मर्तवा बताया पर कार्रबाही की जा रही है का आश्वाशन हमेशा की तरह मिलता है पर कभी कुछ होगा इसमे संदेह ही है।
खंजडी बजाते कुछ लोग घर के सामने से निकल रहे हैं। खद्दर पहने वही पुराने प्रतिद्वंदी नेता जगपाल यादव गले में माला का हार पहने मुझे बाहर की ओर आने का आग्रह कर रहे है। कुछ ही देरी में वो जमीन छू रहे थे। मंद-मंद मुस्कान से मुझे फिर ठगा जा रहा है।अभी ये दल कुछ दूर भी नहीं गया कि लाऊडस्पीकर पर थिरकता एक अन्य दल हमारी गली की शोभा बढ़ा रहा था। मैं रोती आंखों और विक्षिप्त ह्रदय से इन्हें देखे जा रहा था।
हम अपनी ही ग़लतियों को अनदेखा कर वही ग़लती दोहरा देते हैं। समस्याएं ज्यों की त्यों रहती है पर हम लोग इन फरेवी चेहरों पर विश्वास कर दोवारा इन्हें ही जीता देते हैं। अभी नयी सरकार से बहुत उम्मीदें थी पर मूरत ही बदली है केवल सूरत तो पहले सी है,हालात नहीं बदले। कुछ दिन के शोर शरावे के पश्चात वही पुरानी टीस लिए बतिआते है।इ स मकडजाल को भेदने का दम यहां किसी में नहीं। इन चेहरों को न देखने की चाह शिक्षित वर्ग में घर करने लगी है इसी से नोटा ऑप्शन आया था किंतु पूर्णतया कारगर सिद्ध नहीं रहा।
मैंने घर से बाहर निकलकर देखा चारों तरफ चुनाव संबंधी ही बाते हो रही थी । पास ही काली माता मंदिर के पास खडे ठेले पर लोगों का जमावड़ा था।सभी निवर्तमान विधायिका कमला देवी से नाराज दीख रहे थे और बदलाव की बाते कर रहे थे।पर चेहरा चाहे जो भी हो उससे क्या फर्क पडता है। गर्मी और उमस से मौसम बेहद अलसाया और थकान भरा होता जा रहा था अधिकतर लोग घरों में दुबकने की फिराक में थे पर छुट्टभइया नेता और कार्यकर्ताओं का जोश देखे बनता था। अलग अलग पार्टी के लोग बीच बीच में गाली गलौज भी कर रहे थे पर यह तो आजकल की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है।कुछ लोग और एक संस्था चुनाव वहिष्कार की बात भी कर रहे थे।
अभी कुछ दिन पूर्व ही एक पत्रिका में लेख पडा था कि चुनाव आयोग चुनाव प्रकिया में बड़ा बदलाव के मूड में है और सक्रिय भी है पर ये लेख जल्द ही किसी ठंडे बस्ते में चला जाएगा। मैं भी जल्दी ही घर आकर टी वी सैट ऑन करके चैनलस बदलता रहा पर यहां भी सभी जगह चुनाव चुनाव बस चुनाव ही थे। कहां से और कौन सामने आए जो विश्वासपात्र हो । ये मेरे लिए और नये वर्ग के लिए जिज्ञासा के विषय हमेशा रहेगा।सोसाईटी में सड़कें टूटी हो या बिजली पानी की समस्या हो विधायिका जी तो मानती हैं आप भला तो जग भला। न जाने हम लोग कब अच्छी जिन्दगी जीयेंगे यह तो अब सपना सा ही बन कर रह गया है।
मनोज शर्मा
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