डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर एक क्रन्तिकारी चेतना के युग पुरुष थे| उनकी दूर दृष्टि ने बहुत पहले ही स्त्री शक्ति को पहचान लिया था| उनको इस बात का ज्ञान था कि बिना स्त्रियों को साथ लिए भारतीय समाज कभी भी पूर्ण विकास नहीं कर सकता है| स्त्री शिक्षा और स्त्री सशक्तिकरण ही वो हथियार हैं जिनके माध्यम से भारतीय परिवार, समाज और देश विकास की नवीन गाथा रच सकता है|
इसी मान्यता और निष्कर्ष के आधार पर डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर भारतीय संविधान में महिलाओं को वे सभी अधिकार प्रदान किए जो मनुस्मृतिकार ने नकार दिए थे | भारतीय समाज में महिलाओं की पूजा तो की जाती है लेकिन उन्हें किसी प्रकार का अधिकार नहीं दिया जाता| उनकी दुर्गा के रूप में शक्ति की देवी मानकर पूजा की जाती है लेकिन जबान चलाने वाली स्त्री को निर्लज्ज और कुलटा घोषित कर पत्थरों से जिन्दा मार दिया जाता है|
हिन्दू धर्मशास्त्र महिला विरोधी है| इन धर्म शास्त्रों में महिलाओं को न कोई अधिकार दिए गए हैं और न ही सम्मानित स्थान ही प्रदान किया गया है| धार्मिक मान्यता है कि स्त्री धन, विद्या और साहस की देवी है| ‘मनु सहिंता’ में कहा गया है कि “जहाँ नारी की पूजा होती है वहां देवताओं का निवास होता है|” वहीं मनुस्मृति में ही अन्यत्र कहा गया है कि “स्त्री का न तो अलग यज्ञ होता है, न उपवास| ऋग्वेद में पुत्री जन्म को शोक का प्रतीक बताया गया है वहीं पुत्र प्राप्ति को सभी सुखों का मूल और अनंत आकाश का ज्योति माना गया है, ऋग्वेद में ही नारी को भोग्य के रूप में चित्रित किया गया है तथा नियोग प्रथा को एक पवित्र अनुष्ठान के रूप में वर्णित किया गया है| अथर्ववेद में सम्पूर्ण विश्व की महिलाओं को शुद्र की कोटि में गिना गया है| हिन्दू धर्मशास्त्रों में स्त्री को लेकर अनेकों विरोधाभास है|” कमोबेश यही स्थिति इस्लाम धर्म में भी है जो स्वयं को स्त्रियों के प्रति आधुनिक और खुले विचारों के होने का दम भरता है किन्तु वास्तविकता ठीक इसके विपरीत है| इस्लाम पुरुषों को माहिलाओं से अधिक श्रेष्ठ मानता है| सम्पत्ति पर अधिकार के सम्बन्ध में कहा गया है कि “एक मर्द के हिस्से के बराबर दो औरतों का हिस्सा|”
भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति अत्यधिक दयनीय है| हमारे धर्मशास्त्र तथा मनुस्मृति दोनों ही महिलाओं को किसी भी प्रकार के अधिकार के देने के पक्ष में नहीं है, जबकि इन ग्रन्थों का अनुकरण केवल हमारा देश ही नहीं बल्कि विश्व भी करता है| इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर ने महिला सशक्तिकरण के लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाएं|
संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर ने महिलओं को और अधिक अधिकार देने तथा उन्हें सशक्त बनाने के लिए सं. १९५१ में ‘हिन्दू कोड बिल’ संसद में पेश किया| डॉ.आंबेडकर की यह मान्यता थी कि वास्तविक प्रजातंत्र तब ही आयेगा जब महिला तथा पुरुष दोनों को समान अधिकार प्राप्त होंगे|महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा और उन्हें पुरुषों के समान अधिकार दिए जाएंगे| डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर का यह दृढ़ विश्वास था कि महिलाओं की वास्तविक उन्नति तभी संभव है जब उन्हें घर परिवार तथा समाज में सामाजिक बराबरी का स्थान प्राप्त हो| शिक्षा और आर्थिक उन्नति उन्हें सामाजिक बराबरी दिलाने में सहायक सिद्ध होगें| ‘हिन्दू कोड बिल’ को पास कराने के पीछे आंबेडकर जी की यही मान्यता थी कि देश का चहुमुखी विकास हो किन्तु बनाए गए नियम और कड़े कानून भी व्यक्ति के विचारों को परिवर्तित नहीं कर सकते|
दरअसल, हिन्दू कोड बिल पास कराने के पीछे डॉ. आंबेडकर की मूल भावना यह थी कि कुछ ऐसे बुनियादी सिद्धांत स्थापित किये जाए जिनका उलंघन कठोर दंडनीय अपराध हो| अर्थात स्त्रियों के लिए विवाह विच्छेद का अधिकार, हिन्दू कानून के अनुसार विवाहित व्यक्ति के लिए एक से अधिक पत्नी रखने पर कठोर दंड| विधवाओं तथा अविवाहित कन्याओं को बिना किसी शर्त के पिता अथवा पति की सम्पत्ति का उत्तराधिकारी बनने का अधिकार| उनका आग्रह था कि हिन्दू कानून में अंतर्जातीय विवाह को भी मान्यता दी जाए|
डॉ. आंबेडकर इस बिल को पास कराने पर इतना जोर इसलिए दे रहे थे कि उन्हें यह ज्ञात था कि जाति व्यवस्था को बनाए रखने में स्त्रियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है| महिलाओं को अंधकार में रख अपनी रुढ़िवादी तथा विषमतावादी मान्यताओं का पोषण हिन्दू समाज के ठेकेदार कर रहे थे| ‘हिन्दू कोड बिल’ महिलाओं को पारम्परिक बन्धनों से मुक्ति दिलाने की ओर उठाया गया एक ऐसा कदम था जो अंत में हिन्दू समाज को जाति और लिंग से पैदा हुई असमानता से मुक्त करा सकता था|
हिन्दू कोड बिल के द्वारा डॉ. आंबेडकर अस्पृश्यता की जड़ को समूल नष्ट के देना चाहते थें| जो सामाजिक विषमता का एक महत्त्वपूर्ण कारण है| सवर्णों की संस्कृति में परिवार की पवित्रता को अत्यधिक महत्व दिया जाता था क्योंकि ये पितृसत्तात्मक परिवार की रीढ़ थी इसी के द्वारा महिलाओं को पहले परिवार में फिर समाज में दोयम दर्जा दिया गया| अम्बेडकर के हिन्दू कोड बिल को परिवार जैसी संस्था को नष्ट करने वाला बताया गया| जबकि वे इस बिल के माध्यम से पितृसत्तात्मक परिवार के कुचक्र को तोड़ना चाहते थे|
स्त्रियों को विवाह-विच्छेद के अधिकार के माध्यम से वे विवाह की अविच्छेद्यता को चुनौती देना चाहते थे और पुरुष के हर अन्याय को चुपचाप सहने की बाध्यता से महिलाओं को सदा के लिए मुक्त करना चाहते थे| यह बिल पुरुष के एक विवाहित पत्नी के रहते दूसरा विवाह करने की छूट पर प्रतिबन्ध लगाकर उसकी मनमानी पर अंकुश लगाता है और पत्नी की स्वाधीनता और आत्मसम्मान की रक्षा करता है| सम्पत्ति के अधिकार के माध्यम से स्त्री की आर्थिक परनिर्भरता का नाश करता है|
डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर जी ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों, और कॉलेजों की नौकरियों में आरक्षण प्रणाली शुरू करने के लिए समर्थन भी हासिल किया|
२६ जनवरी १९४९ को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया किन्तु १९५१ को संविधान सभा में प्रस्तुत ‘हिन्दू कोड बिल’ को पूरी तरह नकार दिया गया| संसद के अन्दर और बाहर दोनों तरफ कोहराम मच गया और यह बिल पास न हो सका|
कुसुम संतोष विश्वकर्मा
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर
एम. डी. शाह महिला महाविद्यालय
मालाड (प), मुम्बई