श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते है –“सिया राम मय सब जग जानी। करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी।।“1 अपने पूरे जीवनवृत्त एवं रचना संसार को श्रीराम के श्रद्धा चरण एवं चरित्र पर कृतज्ञ समर्पित करने वाले तुलसी, जनमानस के रक्त एवं ह्रदय में बसे लोक कवि है।

राम का चरित्र मनुष्यता और और नैतिकता का विस्तार है। राम की चरित्र का विस्तार इतना व्यापक है कि वह किसी एक की दृष्टि में समा ही नहीं सकती है । हर व्यक्ति के मन में श्री राम का अलग-अलग चरित्र हैं। जहॉं एक ओर राम सबल लोगों की सार्मथ्य का आधार हैं तो वहीं दूसरी ओर वे निर्बल लोगों की आस्था में बल बनकर विराजते हैं। राम मानवता के सबसे सुन्दर प्रतिमान है। राम का चरित्र दुखी और असहाय जनता को अधिक सहानुभूति देता है। संघर्षमयता और मर्यादा रामकथा की विशिष्टता है। रामकथा पर आधारित काव्यों को सार्थक लोकप्रियता प्राप्त हुई है। वाल्मीकि, भवभूति, तुलसीदास से लेकर निराला तक रामकथा के अमर गायक माने जाते हैं। इनके काव्योत्कर्ष में रामकथा की संघर्ष-संकुलता, विवेक और मर्यादा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वाल्मीकि से लेकर निराला तक रामकथा का जो चित्रण मिलता है उसमें एक बात समान है, वह है राम के जीवन  की अविरल संघर्ष-परंपरा। इस अविरल संघर्ष-परंपरा में भी विवेक, लोक-मंगल और मर्यादा को बनाए रखने का जो आदर्श राम के चरित्र में मिलता है, उसे तुलसी नें अपने काव्य में बहुत ही अद्भुत संजोया है।आचार्य रामचंद्र शुक्ल के शब्दों में कहें तो उनका साहित्य उत्तर भारत की सारी जनता के गले का हार हो चुका है।

गोस्वामी तुलसीदास एक लोकप्रिय जन कवि हैं उन्होंने अवधी और ब्रजभाषा में राम का चरित्र चित्रण किया है। तुलसीदास की लोकप्रियता का प्रमाण इस तथ्य से प्रतिपुष्ट होता है, कि उनकी रचनाओं के प्रभाव से लोक के हृदय में राम को बहुत ही सुलभ रूप में देखा जा सकता है। राम बड़ी सहजता के साथ जनता की हृदय पर  राज करते हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी लिखते हैं- “हिंदी काव्य की सभी प्रकार की रचना शैली के ऊपर गोस्वामी जी ने अपना ऊंचा आसन प्रतिष्ठित किया है। यह उच्चता और किसी को प्राप्त नहीं है।“.2

भगवान राम तुलसीदास जी के आराध्य देव है। तुलसी जी राम के परम भक्त थे तथा एक भक्त होने के नाते उन्होंने सबसे पहले राम को जाना, पहचाना और उनके गुणों का बखान किया। तुलसीदास जी के राम विष्णु के अवतार हैं तथा अयोध्या के राजा दशरथ के जयेष्ठ पुत्र हैं। इनके राम मर्यादा पुरुषोत्तम राम है। तुलसीदास जी ने राम नाम का प्रचार-प्रसार उस समय में किया जिस समय भारत में लोगों की धर्म में आस्था न के बराबर थी और वे पूरी तरह से हताश हो चुके थे और अंधविश्वासी हो गए थे। ऐसे समय में तुलसीदास जी के राम नाम ने समस्त देश को (कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी) एकता के सूत्र में बांध लिया था। इसके साथ-साथ गरीबों , दीन-दुखियों, असुरक्षित तथा भय से व्याकुल लोगों को आश्वस्त किया था। तुलसीदास जी ने राम को लोक कल्याणकारी दिखाया है तथा उन्होंने बताया है कि उनके राम सभी के संरक्षक हैं। जिन्होंने, मुगल राजाओं के अत्याचारों से दुखी भारतीय हिंदू जनता को सुख प्रदान किया तथा उन्हें एक सहारा दिया। इनके राम की ही यह महिमा है कि जिनसे भारत का प्रत्येक जनमानस समर्पण-भाव से जुड़ गया है तथा राम की शरण में आ गया है। जब  पृथ्वी पर हाहाकार मची हुई थी तब देवता और ऋषि मुनि भगवान विष्णु के पास गए तब भगवान विष्णु ने कहा था- “आप लोग चिंता न करें पृथ्वी को भय-मुक्त करने के लिए मैं राजा दशरथ के यहां जन्म ले रहा हूं” ‘अयोध्याकाण्ड’ में तुलसीदास जी लिखते हैं-

’जगु पेखन तुम्ह देखनिहारे। बिधि हरि शंभु नचावनिहारे।।

सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जनत तुम्हहि  तुम्हइ  होई जाई।।

तुम्हरिहिं कृपा तुम्हहि रघुनंदन। जानहिं भगत भगत उर चंदन।।

चिदानंदमय देह तुम्हारी। बिगत बिकार जान अधिकारी।।

नर तनु धरेहु संत सुर काजा। कहहु  करहु जस प्राकृत राजा।“ 3

राम कथा के आदि जनक तुलसी के पूर्व वाल्मीकि जी है।ऐसी लोक प्रचलित कथा है कि वाल्मीकि जी पहले एक दस्यु थे। फिर उन्हें कुछ संतों से आत्मज्ञान हुआ और राम नाम के जपने से ही उनके ज्ञान चक्षु खुल गये और वे महर्षि वाल्मीकि होकर रामायण के रचयिता हुए । आदि कवि नाम से विख्यात

हुए।

 ‘“जान आदि कवि नाम प्रतापू ।

 भयउ सुद्ध करि उलटा जापू”।। 4

 

तुलसीदास जी ने प्रभु राम के नाम की वन्दना की है,उसका महत्व और अर्थ बताया है-

बंदउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भातु हिमकर को ।

बिधि हरि हरमय वेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो ॥“5

उन्होंने राम के नाम की वन्दना की  है जो कृशानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) का हेतु अर्थात् ‘र’’आ’ और ‘म’ रूप के बीज है वह राम नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप है।वह वेदों के प्राण है, निर्गुण उपया रहित समाया है। राम का एक नाम सहस्त्र नामों के समान है। विद्वान, ऋषि-मुनि, भक्त कवि अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार राम और उनके नाम का अपने विचार से सर्वश्रेष्ठ वर्णन करने का प्रयास करते हैं। प्रभु प्रेम सहित सुन कर सुख मानते हैं। यह राम का भक्तों के प्रति भाव है-

निरुपम न उपमा आन राम समान रामु निगम कहै ।

जिमि कोटि सत खद्योत सम रबि कहत अति लघुता लहै॥

एहि भाँति निज निज मति बिलास मुनीस हरिहि बखानहीं।

प्रभु भाव गाहक अति कृपाल सप्रेम सुनि सुख मानहीं ॥6

क्योंकि उनकी महिमा, नाम, रूप और गुणों की गाथा अपार एवं अनंत है फिर भी अपनी-अपनी मति अनुसार उनके गुण गाये जाते हैं-

महिमा नाम रूप गुन गाथा । सकल अमित अनंत रघुनाथा।

निज निज मति मुनि हरि गुन गावहिं । निगम सेष सिव पार न पावहिं॥ 7

 

तुलसीदास जी ने राम के नाम को कल्पतरु और मुक्ति का घर बताया है। राम के नाम सुमिरन से ही तुलसी तुलसीदास बने ‘“जो सुमिरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास”। भगवान राम इतने कृपालु हैं कि कोई किसी भी भाव से उनके नाम का स्मरण करे सभी का परिणाम केवल कल्याण ही कल्याण होगा। “ भाँय कुभाय, अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ”। प्रेम से करें, वैर से करें, क्रोध से करें या आलस्य से करें। राम के नाम का कैसे भी स्मरण करें बस दशों दिशाओं में कल्याण ही कल्याण है।

राम के नाम को तुलसीदास जी ने सबसे बड़ा क्यों माना इसके लिये वे कहते हैं-

अगुन सगुन दुइ बृहम सरूपा। अकथ अगध अनादि अनूपा ।

मोरे मत बड़ नाम दुहू तें । किए जेहिं जुग निज बस निज बूतें॥8

निर्गुण और सगुण दोनों ब्रह्म के दो रूप हैं। ये दोनों अकथनीय, अथाह एवं अनादि हैं। इनकी उपमा संभव नहीं किन्तु नाम प्रत्यक्ष एवं सरल तथा उपलब्ध है। इसका स्मरण संभव है, अपने वश में है और इसी के बल पर राम के नाम ने निर्गुण एवं सगुण दोनों ब्रह्म रूपों को अपने वश में कर रखा है। इसीलिए राम का नाम राम से बड़ा है।

तुलसीदास जी के ‘रामचरितमानस’ में राम मन इंद्रियों तथा बुद्धि-वचन से परे अविनाशी तत्व हैं। तुलसीदास जी से पहले भी भक्ति काल के ही एक कवि कबीरदास जी ने भी राम नाम का जिक्र अपने काव्य में किया है। लेकिन उनके राम दशरथ के पुत्र राम नहीं है क्योंकि वे मूर्ति पूजा और अवतारवाद का खंडन करते हैं उनका कहना है-

“दशरथ सुत तिहु लोक बखाना,

राम नाम का मरम है आना।।“9

इस प्रकार कबीर दास जी के राम पूर्णब्रह्मा है और पूरा विश्व उनमें में रम गया है। वे अगोचर है, अलख निरंजन है तथा वर्णन से परे हैं। परंतु तुलसीदास जी का मानना है कि प्रभु राम के अनेक नाम है लेकिन उन्हें राम नाम ही पसंद है। राम नाम सत्, चित् और आनंद का भंडार है सब कुछ उसी में निहित है। तुलसीदास जी लिखते हैं-

“जद्यपि प्रभु के नाम अनेका। श्रुति कह अधिक एक तें एक।।

राम सकल नामन्ह ते अधिका।होई नाथ अघ खग गन बधिका।।“10

तुलसीदास जी कहते हैं जब तक मनुष्य मन, वचन और कर्म से पूरे विश्वास के साथ राम  नाम का सिमरन नहीं करता तब तक उसका कल्याण संभव नहीं । वे आगे कहते हैं कि राम नाम के सिमरन के बिना हम लाख चौरासी योनियों में ऐसे ही भटकते फिरेंगे अर्थात्  हमें मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी। हम इसी प्रकार से सांसारिक आवागमन के चक्कर में फंस कर रह जाएंगे। तुलसीदास जी कहते हैं-

“बिबसहूं जासु नाम नर कहहीं। जनम अनेक रचित अघ दहहीं।।“11

राम तुलसीदास जी के इष्टदेव है। तुलसी जी ने श्री राम की दास्य भाव की भक्ति की है। इन्होंने ‘रामचरितमानस’ में श्री राम के प्रति वैसी भक्ति दिखाई है जैसी चातक की भक्ति बादल के प्रति होती है। तुलसीदास जी लिखते हैं-

“सेवक सेव्य भाव बिनु, भव न तरिय उरगारि।“12

 तुलसीदास जी का मानना है कि राम सृष्टि के सर्वेसर्वा है। इनके भगवान राम निर्गुण रूप में अवतारी हैं तो सगुण रूप में अवतार है, कहने का अभिप्राय यह है कि इनके राम निर्गुण भी है और सगुण भी हैं।

गोस्वामी तुलसीदास के बारे में ग्रियर्सन की स्पष्ट मान्यता है कि ‘’भारत के इतिहास में तुलसीदास का महत्व जितना भी अधिक आँका जाता है वह अत्यधिक नहीं है। इनके ग्रंथ के साहित्यिक महत्व को यदि ध्यान में न रखा जाए, तो भी भागलपुर से पंजाब और हिमालय से नर्मदा तक के विस्तृत क्षेत्र में, इस ग्रंथ का सभी वर्ग के लोगों में समान रूप से समादर पाना निश्चय ही ध्यान देने के योग्य है।“13 गोस्वामी तुलसी के राम के चरित्र में शील, शक्ति और सौंदर्य का संग्रह है। गोस्वामी तुलसीदास का संपूर्ण राम साहित्य लोकमंगल के उच्च उद्देश्यों एवं उच्च मानवीय मूल्यों की स्थापना की निमित्त है। उनके साहित्य को पढ़कर निश्चित रूप से पाठक वह नहीं रह जाता जो उसके पढ़ने से पूर्व था। तुलसी लोक एवं जनमानस के कवि हैं। हिंदी साहित्य के इतने वर्षों के समृद्ध विशाल इतिहास में तुलसी ही एकमात्र ऐसे कई हुए है,जो भारतीय लोक के रक्त में प्रवाहित होते हैं।

 

 

संदर्भ ग्रंथ सूची:-

  1. बालकाण्ड,श्रीरामचरितमानस, गोस्वामी तुलसीदास, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण 2014
  2. डॉ विश्वनाथ त्रिपाठी हिंदी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास एनसीईआरटी प्रथम संस्करण 1986 नई दिल्ली
  3. अयोध्याकांड, श्रीरामचरितमानस, गोस्वामी तुलसीदास, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण 2014
  4. बालकाण्ड,श्रीरामचरितमानस, गोस्वामी तुलसीदास, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण 2014
  5. वही
  6. उत्तरकाण्ड, श्रीरामचरितमानस, गोस्वामी तुलसीदास, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण 2014
  7. वही
  8. बालकाण्ड,श्रीरामचरितमानस, गोस्वामी तुलसीदास, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण 2014
  9. कबीर ग्रन्थावली :परिमार्जित पाठ, संपादक श्यामसुंदर दास, राजकमल प्रकाशन, संस्करण 2023
  10. अरण्यकाण्ड ,श्रीरामचरितमानस, गोस्वामी तुलसीदास, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण 2014
  11. बालकाण्ड,श्रीरामचरितमानस, गोस्वामी तुलसीदास, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण 2014
  12. उत्तरकाण्ड, श्रीरामचरितमानस, गोस्वामी तुलसीदास, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण 2014
  13. Notes on Tulsi Das, Grierson, उद्धृत, तुलसीदास: रचना एवं सन्दर्भ, सं. भगवती प्रसाद सिंह, राजकमल प्रकाशन, 1975, पृ.1

 

 

हर्षित राज श्रीवास्तव
शोधार्थी
हिंदी विभाग
दिल्ली विश्वविद्यालय