देश का भगवान ?
मैं और मेरा किसान
देश का भगवान ?
जी हाँ !
सुनकर – मुझे भी ,
लगा ऐसे !
आपको अब,
लगा है जैसे ।
सोचिए तो –
वो कितना गरीब है
क्या हमारा है भगवान ऐसा
भिखारी के बराबर भी ना
जिसके पास है पैसा ।
क्या कहा ?
उसके पास तो –जमीन है !
हैं और सरकारी योजना !
फिर भी दिखता है — ककड़ी- सा
चारपाई की तरह चरमराती हैं–
उसकी हड्डियाँ ।
जी हाँ !
मेहनती है विश्राम नहीं…
क्या कहा ?
छह महीने मे होती एक फसल
ऐसा भी है आराम कहीं ।
सोचिए तो…
हवाई यात्रा करता वो नेता बोले–
सब ठल्ले घर छोड़ो
देश हमारा कृषि प्रधान
कृषि-तकनीक छू रही आसमान
बीवी संग खेतों मे सो रहे सारे
जनता कहती मेहनती हैं
विश्राम नहीं करते
बिजली–पानी–पैसा
किसी को मिले न ऐसा
देती है सरकार ,
फिर भी इल्लजाम लगता
नेताओ पर बार-बार
जबकि ठलुआ काम नहीं करते ।
सुनिए तो…
उन नेताओं का
जो हड्डी डाल किसी को भी कुकुर बनाता है
एक तो गरीबी उस पर कर्ज
आत्महत्या करवाता है
तिस पतर बाढ़..सूखा.. चारा देकर
प्रकृति को भी नहीं शर्म है आती
गरीबी का संग नहीं सुख के सब बराती ।
कटोरा लिए उसके पीछे घूमते
नौकरशाही, नेता रूप मे हाथी ।
सुनिए तो…
पापी के लिए सूरज की रोशनी,
न कम होती चंदा की चाँदनी ।
किसान भी करें न अंतर उनमें,
कालिया नाग से फन हैं जिनमें ।।
सुनिए तो…
कहते जो अपने को युवा कहाँ हुए
ईश को गाली देते किशोर जवाँ कहाँ हुए
जींस की पैंट, लाली.. लिपिस्टिक
हमें जिसकी याद दिलाती
चलचित्र मे नट-नटियोंं की वो हवा है
सिगरेट फूकता फेफड़ों से निकलता दमा है
उसकी नसों मे रक्त की जगह पानी जमा है
सोचिए तो ?
दिखता जो..फकीर है
पीड़ा से जिसकी कुछ असर नहीं है हम पर
ऐसा हमारा जमीर है ।
हम से तो यह किसान ही अमीर है ।
सुनिए तो…
जिसकी याद दिला रहा हूँ मैं
वही है किसान !
देश का भगवान !
देश का भगवान !