कहानी मावन सभ्यता का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा रही है। यह मानवीय जीवन के चरित्रों को चित्रित करने का माध्यम है साथ ही यह जीवन की वास्तविकता का प्रस्तुतीकरण भी है। कहानी एक कथा का वर्णनात्मक रचना है जिसमें घटनाओं, पात्रों और परिदृश्यों का संयोजन होता है। यह एक संरचित रूप में होती है, जिसमें एक आरंभ, मध्य और अंत होता है। “कहानी में सीमित और आंशिक उपन्यास की अपेक्षा अत्यन्त छोटे पैमाने पर जीवन का एक सुसंगठित, अपने में परिपूर्ण चित्र उपस्थित किया जाता है।[1]” कहानी का उद्देश्य पाठक या श्रोता को एक विशेष अनुभव, विचार या भावनात्मक प्रभाव प्रदान करना होता है।
कहानी मानव समाज के आदिकाल से चली आयी है और सामाजिक जीवन में उसका महत्तवपूर्ण स्थान रहा है- केवल मनोरंजन या कौतुक के लिए नहीं वरन् समाज के मानसिक संगठन के सूचक आशा, आकांक्षाओं के माध्यम और संवेदन, सम्प्रेषण के संवाहक के रूप में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। कहानी इतिहास नहीं है लेकिन इसके कथानक के माध्.म से तत्कालीन समाज के विकास, इतिहास और मानव भावनाओं को समझने में महत्त्वपूरण भूमिका निभाती है।
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हिन्दी साहित्य के इतिहास में ऐसे रचनाकार है जिन्होंने अपनी सभी जातीय कठिनाइयों को नजरअंदाज कर हिन्दी साहित्य की धारा को अपनी लेखनी के माध्यम से आजीवन सींचा है। साहित्यिक योगदान और उनकी प्रतिभा के कारण ही उन्हें छायावाद का महत्तवपूर्ण कवि के रूप में जाना जाता है। हिन्दी साहित्य में साहित्य के काव्य-विधा के साथ-साथ कथा-विधा में भी उनका योगदान महत्त्वपूर्ण है। निराला ने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में अपनी लेखनी चलाई है। निराला अपनी कहानियों के माध्यम से अपने समाज के समसमायिक घटना एवं सामाजिक विसंगतियों और समस्याओं को चित्रित करने का प्रयास किया है।
निराला द्वारा लिखित ‘प्रेमपूर्ण तरंग’ और ‘प्रेमिका-परिचय’ दोनों सामाजिक कहानी की श्रेणी में आती है और दोनों ही कहानी पत्रात्मक शैली में लिखी गई है। दोनों कहानी में नारी के संदर्भ में नायक की दुर्बलताओं और उच्छृंखलताओं को चित्रित किया गया है । ‘प्रेमपूर्ण तरंग’ का नायक ‘प्रेमपूर्ण’ और ‘प्रेमिका-परिचय’ का ‘प्रेमकुमार’ एक मध्यवर्गीय परिवार का लड़का है जो तत्कालीन समय के आधुनिक और विकसित शहर क्रमश: कलकत्ता और लखनऊ में कॉलेज का छात्र है।
निराला जी के इस कहानी के नायक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे दोनों आशावादी है। कहानी की छद्म नायिका द्वारा बार-बार पत्र लिखकर किसी विशेष स्थान पर बुलाना और स्वयं नायिका का नहीं आना, यह दर्शाता है कि नायक किसी भी परिस्थिति में नायिका के बुलावा पर निर्धारित स्थान पर पहुँच जाता है। नायक इतना निश्छल है कि वह नायिका के प्रत्येक पत्र-व्यवहार को सच मान लेता है और पत्र पर दिए गए निर्धारित जगह पर समय से पहले पहुँच जाता है। फिर वहाँ वह नायिका के खोज में भटकता है और परेशान रहता है। प्रत्येक असफल मिलन के बाद नायक का मित्र मजाक बनाता है लेकिन नायक इससे इतर अपनी छद्म और अनदेखी प्रेमिका से मिलन को अगली मुलाकात में देखता है। तभी वह असफल होने के बाद भी प्रेमकुमार छात्रावास के अपने कमरे में गुनगुनाता है-
“अगर किस्मत से लैला के गले का हार हो जाता,
जमाने भर की नजरों में खटकता, खार हो जाता।”[2]
नायक इतना ज्यादा आशावादी है कि नायक प्रेमकुमार अपने मित्र शंकर द्वारा असफल मिलन का मजाक बनाने पर भी चिन्तित नहीं होता है बल्कि उसे जवाब देता है- “जो महा इन्तजार में पाया, वह वस्ल में न पाया।”[3]
प्रेमपूर्ण तरंग का नायक भी प्रेमिका-परिचय के नायक की तरह आशावादी है। प्रेमपूरण जब निर्धारित स्थान पर प्रेमिका से नहीं मिल पाता है तो वह निराश नहीं होता बल्कि हर आने-जाने वाली स्त्री को आशावादी नजरों से देखता है। निराला जी उक्त कहानी में नायक की स्थिति का वर्णन करते हुए लिखते हैं- “बेचारे ने तमाम मेला छान डाला पर कहीं कोई नहीं किसी की मोटर निकलती,- बग्घी आती, तो प्रेम-पिपासु नेत्र स्वागत के लिए बढ़ जाते। किसी महिला की मोटर किले के मैदान की ओर जाती तो आपकी मुरझायी हुई आशा की कली पर वासन्ती मलय का एक मधुर झोंका-सा लग जाता। ह्रदय में ध्वनि गूँज उठती- वह आयी!”।”[4]
निराला के कथा साहित्य में नायक की वही बेचैनी नजर आती है जो उनके काव्य में नायक की बेचैनी नजर आती है। निराला के कथा साहित्य को पढ़ते हुए जान पड़ता है कि उनकी कविता का ही नायक यहाँ आकर बेचैन है और अपनी प्रेमिका के तलाश में है। कहानी का नायक भी प्रत्येक पत्र के बाद वैसे ही मिलने के लिए बेचैन हो जाता है जैसे कविता के नायक में बेचैनी है। एक कविता में इस बेचैनी को ऐसे ही समझा जा सकता है-
“मुसिबत में कटे हैं दिन,
मुसीबत में कटी है रातें।
लगी है चाँद सूरज से
निरन्तर राहु की बातें।”[5]
निराला जी ने अपने इन दोनों कहानियों में समाज के उस तथ्य को भी रेखांकित किया है जो आज भी सत्य है वह है- सौंदर्य की महत्ता। दोनों कहानी का नायक स्त्री के मन में अपने प्रति लगाव को अपनी सौन्दर्य को मानता है। यह हमारे समाज का कठोर सत्य है कि हमारे समाज में उसी व्यक्ति को ज्यादा तवज्जो मिलती है या लोग पसंद करते हैं जो देखने में सुन्दर हो और आकर्षक हो। आज भी हमारे समाज में कुरूप व्यक्तियों को उनके विसंगतियों से आमतौर पर पुकारा जाता है और इससे उस व्यक्ति के मन में हीन भावना जागृत होती है। इस कहानी में भी नायक अपने मित्र के सामने स्त्री के बीच अपनी लोकप्रियता को अपनी सुदरता को ही मानता है और अपने मित्र को भी सीख देता है कि तुम भी आकर्षक और सुन्दर बनो स्त्री अपने आप तुम्हारी तरफ खींची चली आएगी। प्रेमपूर्ण तरंग कहानी में नायक प्रेमकुमार अपने मित्र से कहता है – “क्या सिखावें! तुम्हारे चेहरे पर कहीं लावण्य का नाम भी तो हो? तुम्हें तो देखते ही ‘शुष्कं काष्ठं तिष्ठत्यग्रे’ की याद आ जाती है। अगर मेरी तरह इस संसार में स्वच्छन्द विहार करना चाहो तो भरते जाओ रोमेंस के भाव, जब सिद्ध हो जाओगे तब तुम्हारा ह्रदय ही प्रेम का केन्द्र बन जायेगा। फिर तो चुम्बक पत्थर लोहे को-वह कहीं भी हो- आप खींच लेगा।”[6]
निराला के कहानी की खूबसूरती यह है कि उनकी रचना (कथा साहित्य में) उनका कवि रूप भी झलकता है। छायावाद के प्राय: सभी कवियों ने हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है। अन्य कवि का कवि रूप उनके गद्य साहित्य में नहीं झलकता है लेकिन निराला जी इन सबसे अलग हैं। निराला जी के कहानियों में कल्पना, अभिव्यक्ति, भाषा या भाव में उनका कवि रूप वृहद रूप में उभरकर आया है। साथ ही निराला जी अपनी कहानियों में जिस शहर को दिखाया है उसमें उन्होंने उस शहर की विशेषताओं और गुणों को पात्र के माध्यम से बताने की बहुत खूबसूरत कोशिश की है इस प्रयास में वे सफल भी हुए हैं। ‘प्रेमिका परिचय’ में निराला जी ने लखनऊ का चित्रण किया है। उन्होंने इस कहानी में अपने पात्रों के माध्यम से लखनऊ की विशेषताओं को चित्रित किया है। जब छद्म नायिका वादा करके निर्धारित स्थान पर नियत समय पर नहीं आती है तो नायक प्रेमकुमार अपने मित्र से कहता है- “मेरी आदत है, मैं अपनी तरह दूसरे को भी तहजीब-पसंद भला आदमी मान लेता हूँ। और लखनऊ में, खासकर पढ़ी-लिखी लड़कियों में ऐसी बेदूदा भी रह सकती हैं, मैं क़यास में नहीं ला सकता।”[7]
निराला जी भी प्रेमचंद की तरह सामाजिक कथाकार हैं। इनकी कहानियों में प्रेमचंद की तरह सामाजिक यथार्थ विभिन्न रूपों में चित्रित हुआ है। जब ग्रामीण परिवेश के लोग शहर में जाते हैं तो वे भी आधुनिक रंग में रंगने की कोशिश करते हैं और आधुनिक दिखना चाहते हैं। इस क्रम में उनको सामाजिक परंपराओं से भी लड़ना पड़ता है. यही कारण है कि ‘प्रेमिका परिचय’ का एक पात्र (शंकर) जब नायक प्रेमकुमार से बात करता है तो नायक उसे चूड़ा नहीं रखने की सलाह देता है। इसके माध्यम से निराला जी ने समाज के दो तथ्यों को उजागर करने की कोशिश की है। एक सिर में चूड़ा को होना जो भारतीय समाज में हिन्दू में भी तथाकथित उच्च जाति ब्राह्मण का प्रतीक है। नायक प्रेमकुमार शंकर से कहता है- “तुम्हें कहीं से न्योता मिल भी नहीं सकता। तुम जरा यह ब्राह्मणों की पोंगापंथी छोड़ो, तो कुछ दिनों में तुम्हें आदमियों से मिलने लायक बना दूँ।”[8]
निराला जी ने अपनी कहानियों का मुख्य विषय जातीयता, प्रेम सौन्दर्य, शिक्षा, परंपरा, रूढ़ि को माना है जो आज भी भारतीय समाज की वास्तविकता और सामाजिक समस्या है। साथ ही निराला नारी के जीवन और उनकी समस्याओं के प्रति अधिक सजग और संवेदनशील रहे हैं। उनका मानना भी है कि “रूढ़ियाँ कभी धर्म नहीं होती, वे पहले की श्रृंखलाएं हैं जिसमें समाज में सुथरापन ता, मर्यादा था- अब जंजीरे हो गयी हैं। अब उनकी बिल्कुल आवश्यकता नहीं। अब उन्हें तोड़कर फेंक देना चाहिए। जिन लोगों ने ऐसा किया वही लोग देश में पूजनीय हो रहे हैं।”[9] निराला के पात्र समाज के आम नागरिक हैं जो वास्विक है। “निराला के पात्रों की विलक्षणता इस बात में है कि उनमें बहुत पात्र समगति होकर भी प्रतिनिधि नहीं, बल्कि वैयक्तिक ही है।”[10]
निराला जी के इन दोनों कहानियों में भाषा किसी सीमा से परिबद्ध नहीं हैं। उन्होंने इन कहानियों में अपनी भावों को प्रभावोत्पादक बनाने और उसे सामाजिक वास्तविकता के जमीन पर रखने के लिए संस्कृत, उर्दू के शब्दों का बेधड़क प्रयोग किया है। इन्होंने इन कहानियों में जहां-तहाँ तत्सम युक्त संज्ञा और वाक्यों का प्रयोग किया है। इन दोनों कहानियों का केन्द्र बिन्दु या कहे कि सबसे आकर्षक भाव अज्ञात प्रेमिका का रहस्योद्घाटन है। एक पाठक के तौर पर कहानी के आरंभ से ही नायक की अज्ञात प्रेमिका को जानने की जिज्ञासा कहानी के बढ़ने के साथ प्रबल होती जाती है जो कहानी के अंत में खुलता है। प्रेमपूर्ण तरंग में जहाँ नायक का मित्र (सहपाठी) छद्म नायिका है वहीं प्रेमिका परिचय में नायक की साली है। इस कहानी में निराला जी ने पत्र शैली का प्रयोग अद्भूत एवं अप्रतिम रूप में किया है। कहानी की भाषा भी सरल, सहज और व्यावहारिक है।
संदर्भ ग्रंथ सूची
- हिन्दी साहित्य कोश, डॉ धीरेन्द्र वर्मा (संपादक)
- संपूर्ण कहानियाँ: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, छबिल कुमार मेहेर (संपादक)
- राग विराग, डॉ रामविलास शर्मा (संपादक)
- निराला रचनावली, नन्द किशोर नवल (संपादक)
- सिद्धांत, अध्ययन और समस्याएँ, डॉ सियाराम तिवारी
[1] हिन्दी साहित्य कोश, भाग-1, पृष्ठ-233
[2] संपूर्ण कहानियाँ: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, पृष्ठ-96
[3] वही
[4] वही, पृष्ठ-24
[5] राग विराग, पृष्ठ-132
[6] संपूर्ण कहानियाँ: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, पृष्ठ-23
[7] संपूर्ण कहानियाँ: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, पृष्ठ-92
[8] वही, पृष्ठ-91
[9] निराला रचनावली, भाग-4
[10] सिद्धांत, अध्ययन और समस्याएँ, पृष्ठ-62