वज़्न- 212 212 212 212
अरकान- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
ज़िंदगी इक सफ़र है नहीं और कुछ।
मौत के डर से डर है नहीं और कुछ।।
तेरी दौलत महल तेरा धोका है सब।
क़ब्र ही असली घर है नहीं और कुछ।।
प्यार से प्यार है प्यार ही बंदगी।
प्यार से बढ़के ज़र है नहीं और कुछ।।
नफ़रतों से हुआ कुछ न हासिल कभी।
ग़म इधर जो उधर है नहीं और कुछ।।
झूठ सच तो नहीं फिर भी लगता है सच।
झूठ भी इक हुनर है नहीं और कुछ।।
घटना घटती यहाँ जो वो छपती कहाँ।
सिर्फ झूठी ख़बर है नहीं और कुछ।।
बोलते सच जो थे क्यों वो ख़ामोश हैं।
ख़ौफ़ का ये असर है नहीं और कुछ।।
जो भी जाहिल को फ़ाज़िल कहेगा यहाँ।
अब उसी की बसर है नहीं और कुछ।।
फ़ाइलुन फ़ाइलुन रुक़्न क्या है ‘निज़ाम’।
इस ग़ज़ल की बहर है नहीं और कुछ।।