पिंजरे में कैद एक चिड़िया,
संसार के यथार्थ से अनजान,
दूसरों के अरमानों के पीछे,
अपने सपनों को कुचलती एक चिड़िया,
पिंजरे में कैद एक चिड़िया।
चारदीवारी में पंख फड़फड़ाती चिड़िया,
समाज और रीति-रिवाज़ों की बेड़ियों से जकड़ी
एक चिड़िया,
चंद स्याहियों में न हो सके बयां
दास्तन-ए-चिड़िया,
पिंजरे में कैद एक चिड़िया।
वह भरेगी अपनी उड़ान, पंख फैलाए,
लंबी उड़ान को तैयार चिड़िया,
खोल पिंजरा, तोड़ समाज की बेड़ियां,
आज़ादी की हवा में सांस भरने को तैयार चिड़िया,
पिंजरे में कैद एक चिड़िया।
शिक्षा बनेगी उसके पंख,
उसके हौसले हैं बुलंद,
वह खुद ढूंढेगी अपने हिस्से का आसमान,
वह खुद बसाएगी अपने सपनों का ज़हान,
पिंजरे में कैद एक चिड़िया।
है तू इतनी सक्षम,
एक बार खुद पर भरोसा करके तो देख,
है तुझमें दुनिया और समाज को बदलने की ताक़त,
अपने हौसलों को एक बार आज़मा कर तो देख,
रोक न पाए तेरे पंखों को कोई डोर,
आगे रख अपनी नज़र,
पीछे की चिंता छोड़,
पिंजरे में कैद एक चिड़िया।
फिर आएगा नया सवेरा,
एक बार अंधेरे में दीपक
जलाकर तो देख,
बस तेरा है पूरा आसमान,
एक बार चारदीवारी से क़दम
निकलकर तो देख,
सब कुछ संभव है इस ज़हान में,
बस खुद को एक बार
आज़मा कर तो देख।
बता समाज को तुझे नहीं है
मंजूर अब ये बेड़ियां,
नहीं बनना अब तुझे
किसी पिंजरे की चिड़िया,
पिंजरे में कैद एक चिड़िया।
स्वाति कुमार