प्रसिद्ध समाजशास्त्री एवं राजनीतिज्ञ प्रो. आनंद कुमार द्धारा पिछले 25 वर्षो में लिखे गए लेखों तथा दिए गए भाषणों को एकत्रित कर डॉ. प्रदीप कुमार सिंह और डॉ. रामप्रकाश द्धिवेदी ने 1. शिक्षा स्वराज 2. आजादी,लोकतंत्र और पडोसी मुल्क 3. जनांदोलन और स्वराज की अर्थनीति 4. समाजवाद की विरासत और राजनीति के सवाल जैसी चार पुस्तकों को संपादित किया है। 1967 से लेकर आजतक प्रो. आनंद कुमार का शिक्षा जगत से सीधा सरोकार रहा है। बी.एच.यू. और जे.एन.यू. से लेकर अमेरिका, आस्ट्रिया, अर्जेंटिना, ब्रिटेन, जर्मनी, और फ्रांस के शिक्षा केंद्रों में अध्ययन अध्यापन करते हुए उन्होंने लगातार अपने समय में होने वाले सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों में हिस्सेदारी ली है। यह चारों पुस्तकें उसी का परिणाम हैं।
आज शिक्षा स्वयं सरकार और व्यापार के दबावों के बीच फंसी हुई है। भाषा माध्यम,वर्ग स्थिति, जातिदशा, लिंगभेद, गांव-नगर-महानगर के फासले जैसे कारकों ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को बुरी तरह से आक्रांत कर रखा है। 1990 के दशक से तो खुलेआम शिक्षा के नाम पर पश्चिमीकरण और व्यावसायिकरण को बढावा मिला है,जिसके कारण आज शिक्षा आम लोगों के पहुँच से दूर होती जा रही है। शिक्षा स्वराज पुस्तक में शिक्षा से जुडे विभिन्न पहलुओं को सामने रखा गया है। जिससे यह बात साफ है कि जब तक शिक्षा के क्षेत्र को नेताओं, बाबुओं और देशी-विदेशी बनियों से मुक्त नहीं किया जाता तब तक हिन्दुस्तान में शिक्षा स्वराज का सपना संभव नहीं है।
दूसरी ओर हिन्दुस्तान में बदलाव की राजनीति के बनते-बिगड़ते संबंधों के बीच आजादी और लोकतंत्र दोनों की जडें गहरी हुई हैं। सूचना के बिस्फोट से हिन्दुस्तानी समाज में विचार और सपनों का विस्तार हुआ है। आम जनता के हौसले बढ़े हैं लेकिन चिंता इस बात की है जनता में निराशा भी बढी है। समाज में बढते हुए राजनीतिक हस्तक्षेप ने हमारे पडोसी मुल्कों को भी प्रभावित किया है। आजादी और लोकतंत्र के सपनों के कारण उनके जनसाधारण और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच संबंधों में भी बदलाव हुए हैं। जिसके कारण भारत और पडोसी मुल्कों के रिश्तों की दुनिया में बदलाव आता गया है। जिसकी चिंता और छानबीन दूसरी पुस्तक में की गयी है।
इस श्रृंखला की तीसरी पुस्तक में मूलतः आज भूमंडलीकरण से हो रहे किसानों और मध्यवर्ग के मोहभंग से उपजे जनांदोलनों के लेख शामिल हैं। इस अवधि में अन्ना हजारे के नेतृत्व और इंडिया अगेंस्ट करप्शन नामक लोकमंच की पहल पर दिल्ली के जंतर-मंतर से लोकशक्ति की जो लहर उठी उसमें लगभग पूरा देश शामिल हो गया। यह एक स्तर पर जनता के असंतोष और आत्मविश्वास से संभव हुआ। इस पूरे आंदोलन में गांधी की पद्धति,लोहिया की शैली और जयप्रकाश नारायण की रणनीति की झलक देखी गयी,जिससे आनंद जी का सीधा संबंध जुडा हुआ है। जिसे उन्होंने अपने समय और समाज के बीच वैकल्पिक राजनीति का नाम देते हैं। इस पुस्तक में वही लेख हैं जिसे आनंद जी ने एक तरीके से जीया है।
चौथी और अंतिम पुस्तक समाजवादी राजनीति और विरासत के सवाल पर केंद्रित है। अंग्रेजी राज से आजादी, मुल्क का बंटवारा और गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस से बाहर निकलकर समाजवादी राजनीति को दाम नीति, भाषा नीति, जाति नीति, और सीमा-रक्षा नीति के चतुर्भुज से पारिभाषित किया गया। जिसमें उपनिषदों से लेकर भारतीय संविधान तक और मार्क्स से लेकर गांधी तक के मूल्यों–सपनों का संगम है। इस पुस्तक में गांधी,लोहिया,जयप्रकाश की परंपरा से जुडे व्यक्तियों,संगठनों और आंदोलनों से सक्रिय लोगों और राजनीतिक अनुभव के लेख हैं। साथ ही मार्क्स,अंबेडकर और सावरकर से प्रेरित लोगों से जारी संवादों की प्रतिध्वनि भी है, जिससे मौजूदा भारतीय समाजवादी आंदोलन और राजनीति के बनते बिगडते संबंधों के विविध आयामों की छानबीन की जा सकती है।
इस तरह यह चारों पुस्तकें अपने समय और समाज के बीच से उपजे अनुभव के दस्तावेज हैं ,जिन्हें सामाजिक और राजनीतिक समझ के लिए जरूर पढ़ा जाना चाहिए।
(असिस्टेंट प्रोफेसर)
हिन्दी विभाग,अदिति महाविद्यालय
दिल्ली विश्वविद्यालय