माननीय प्रधानमंत्री जी,
भारत सरकार,
आप देश को विकास के पथ पर ले जाने का संकल्प दोहनराते हैं, सबका साथ, सबका विश्वास एवं सबका विकास।
श्रीमान प्रधानमंत्री जी, जिस प्रकार से आप की सरकार के कार्यकाल में डीजल/पेट्रोल की कीमतें निर्धारित हो रही हैं उस दशा में जब प्रजा ही नहीं रहेगी, तो आपका विकास, विश्वाश एवं सबका साथ श्मसान में ही मिलेगा।
माननीय प्रधानमंत्री जी, आपने कभी विचार किया जो किसान खेत जी जुताई ट्रैक्टर से करेगा उसे डीजल चाहिये, धान की पौध तैयार करने में भी डीजल चाहिये, पौध को विस्तार से लगाने में ट्रैक्टर एवं पम्पसेट दोनों को डीजल चाहिये।
इन सबके अलावा रासायनिक खाद, किसान की खुद की मेहनत एवं अन्य खर्च।
फिर जब धान/गेंहू तैयार होगा तो बाजार की कीमत लागत के आधे से भी कम।
अब आप ही बताइये, आपका दिया हुआ स्लोगन, सबका साथ, सबका विकास एवं सबका विश्वाश कहाँ दिखेगा।
माननीय प्रधानमंत्री जी ऐसा झूठा नारा देना बन्द कर दीजिए। यहाँ मुझे दादा जी द्वारा सुनाई गई एक कहानी चरितार्थ होती दिख रही है:-
एक राजा था, उसके राज में एक नाई (बार्बर) रहता था। एक दिन राजा ने नाई से पूछ लिया की कहो राज्य में जनता का क्या हाल है? नाई तो था ही राजा की हाँ में हाँ मिलाने वाला, सो तुरन्त बोला हुजूर पूछिये नहीं, जनता बहुत खुशहाल है,सभी दूध-भात खाते हैं। फिर राजा ने अपने सलाहकार से पुछा कि आप तो कहते हैं कि प्रजा भूखों मर रही है।
जब सलाहकार ने वास्तविक जानकारी दी तो राजा के पैरों तले जमीन खिसक गई। हुआ यह की नाई के घर गाय थी, जिससे उसे दूध मिल रहा था और राज दरबार से भात(चावल) मिल जा रहा था जिस की वजह से नाई की नजर में समस्त प्रजा दूध-भात खाती दिख रही थी।
माननीय प्रधानमंत्री जी ठीक वही कहानी आपके राज में चरितार्थ होती दिख रही है।
निर्णय आपको करना है कि नाई की बात सही है अथवा सलाहकार की।
माननीय प्रधानमंत्री जी, जब आपने मई 2012 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाई थी तो भारत क्या संसार में यह महसूस होने लगा था कि जैसे सच में राम राज्य का उदय हो गया है, परन्तु जैसे जैसे समय बीतता गया वही कांग्रेस तथा अन्य पार्टियों वाली हालात बनते गये।
प्रधानमंत्री जी, आज वाकई हालात ऐसे हैं जैसे देश के चारो स्तम्भ धराशायी हो गये हों। जनता न्याय के लिये दर दर की ठोकरें खा रही है। न्याय के लिये सालों साल इंतजार करना पड़ रहा है। मंहगाई अपने चरम पर है। आम आदमी का जीवन अस्त व्यस्त हुआ पड़ा है।
आपका लोकप्रिय नारा सबका साथ सबका विकास एवं सबका विश्वाश धरातल पर आप अथवा आपकी मंत्री परिषद के साथिओं के अलावा कहीं किर्यान्वित होता नहीं दिख रहा है।
माननीय प्रधानमंत्री जी पूर्व के वर्षों में न्यायप्रिय शासक भेष बदल कर वास्तविकता जानने का प्रयास कर समाज की बुराईयों को दूर कर अपनी बुद्धिमता का परिचय देते थे।
माननीय प्रधानमंत्री जी एक बार पुनः इस देश का एक साधरण नागरिक जो बहुत लम्बे अंतराल से आपकी पार्टी की सरकार बनने का इन्तजार कर रहा था कि भाजपा का शासन आएगा तो जन मानस सुखी एवं खुशहाल होगा।
उम्मीद है कि इस देश के एक साधारण से नागरिक की भावनाओं पर सहानुभूति पूर्वक विचार करेंगे।
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