आज के दौर में जनसंचार के कई आयाम प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक मुख्य माध्यम रेडियो का है।
जनसंचार माध्यमों में समाचार पत्रों, पत्रिकाओं के अतिरिक्त आज रेडियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका पायी जाती है। प्रारम्भ में मनोरंजन एवं सूचना प्राप्ति के लिये केवल व्यक्तिगत अथवा समूह संचार के साधन थे, तब रेडियो के द्वारा ही क्रान्ति उत्पन्न की गई थी। उस समय रेडियो एक चलती फिरती मनोरंजनदायक उपकरण था। संचार के क्षेत्र में आज भी रेडियों का महत्वपूर्ण स्थान है। इसके माध्यम से किसी भी सूचना को व्यापक जनसमुदाय तक पहुँचाया जा सकता है। रेडियो प्रसारण से ही भारतीय समाज में एक क्रान्तिकारी प्रक्रिया का प्रादुर्भाव हुआ।
भारत में रेडियो का आरम्भ एक निजी उद्यम के रूप में प्रारम्भ हुआ था। सर्वप्रथम 1927 ई0 में कलकत्ता, बम्बई, मद्रास तथा लाहौर आदि चार स्थानों पर रेडियो क्लब खोले गये और इसके साथ-साथ इण्डियन ब्राडकास्टिंग कम्पनी बनाई गयी।1
भारत में रेडियो काफी देर में आया। इसकी शुरूआत एवं उत्पत्ति अमेरिका में हुई थी। इसकी खोज के विषय में प्रो0 सूर्यप्रसाद दीक्षित ने अपनी पुस्तक ‘जनसंचार प्राकृति और परम्परा’ में लिखा है कि रेडियो का आविष्कार 1901 में हुआ था और इससे पहले मैक्सवेल ने सन् 1864 में और हर्टज ने 1888 में, तथा मार्कोनी ने 1901 में बेतार प्रसारण प्रविधि का विस्तार करते हुए, रेडियो की खोज की। रेडियो की उत्पत्ति के बाद इसका प्रथम स्टेशन 12.9.1912 को स्थापित हुआ। 1920 में पूर्ण केन्द्र का संचालन अमेरिका में किया गया और 14.11.1922 को बी0बी0सी0 की स्थापना की गई। इसी तरह 1947 में ट्रांजिस्टर का भी आविष्कार हो गया और इसके फलस्वरूप ही रेडियो सभी के घर-घर में प्रवास करने लगा।2
भारत देश की बागडोर ब्रिटिश शासन के हाथों में होते हुये भी, रेडियो की सेवा लगातार चलती रही। रेडियो ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी भूमिका निभाई। रेडियो सेवा के कारण, क्रांतिकारी हमेशा सतर्क रहते थे। क्योंकि रेडियो माध्यम से अंग्रेजी हुकूमत की सभी नीतियां, समाचार प्रसारित होते रहते थे। रेडियो के लगातर नवीनीकरण के 1930 में ब्रिटिश शासन ने ‘इंडियन स्टेट ब्राडकास्टिंग सेवा शुरू की3 और बाद में इसका नाम बदलकर ‘आल इंडिया रेडियो’ रख दिया। इसके पश्चात् द्वितीय विश्वयुद्ध में इसका ‘विदेश सेवा विभाग’ भी खुल गया। इसके पश्चात् रेडियो का प्रचलन अधिक तीव्र गति से हुआ।
रेडियो के प्रसारण के रूप में भारत में पहला प्रसारण केन्द्र 18, अलीपुर रोड, दिल्ली में। जनवरी 1936 में खुला। विदेशी प्रसारण सेवा के अनुरूप, भारत की सीमा अफगानिस्तान से लगी होने के कारण युद्ध की प्रतिक्रिया जानने हेतु 1939 में पश्तों भाषा में यह विदेशी सेवा शुरू हुई और यह प्रसारण विस्तार के रूप में 1941 में जापान तथा पूर्वी एशिया के देशों में भी हो गयी। उस समय रेडियो का दायरा तथा उद्देश्य सीमित था। फिर भी स्वतंत्रता पश्चात् रेडियो की सेवा में असाधारण प्रगति हुई और इसी प्रसारण क्रम में 1939 में ग्रामीण मंच पर प्रसारण आरम्भ कर दिया गया।
भारत-पाकिस्तान के बँटवारे के समय समस्त नौ केन्द्रों में से भारत में केवल 6 प्रसारण केन्द्र ही शेष बचे और इसके अतिरिक्त 18 ट्रांसमीटर्स और लगभग ढ़ाई लाख रेडियो सेट ही भारत के हिस्से में आये थे लेकिन अब लगातार विकास के कारण 300 ट्रांसमीटर, 20 चैनल और 165 एफ.एम. केन्द्र खोले जा चुके हैं।4 …। 1957 मे रेडियो के लिये ‘आकाशवाणी’ शब्द प्रयोग में लाया जाने लगा और 1957 से विविध भारती सेवा की भी शुरूआत हो गयी। जिसका उद्देश्य था व्यावसायिक प्रसारण।
आकाशवाणी सेवा का लाभ अब पूरे वर्ष के लगभग 90 प्रतिशत लोगों तक पहुँच रहा है। रेडियो की संचार व्यवस्थाएं विद्युत तरंगों के माध्यम से कार्य करती हैं और इसका मापन ‘हर्टज’ में किया जाता है। रेडियो प्रसारण के लिए 150 हर्टज से 30 हजार मेगा हर्टज की आवश्यकता होती है। इन तरंगों के अंतराल को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है।
- मीडियम वेव (इसकी आवृत्ति न्यूनतम होती है और यह धरती की सताह के साथ यात्रा करती है।)
- शार्ट वेब
- अल्ट्राशार्ट वेव्स5
इसके अतिरिक्त रेडियो तरंगों पर संदेश भेजने के लिए दो तरकीबें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं-
- एम्पलीट्यूड मॉडुलेशन (ए.एम.)
- फ्रीकवेन्सी मॉडुलेशन (एफ.एम)
इन दोनों में मुख्य रूप से फ्रीक्वेंसी माडुलेशन अधिक उपयुक्त है जो कि प्रसारण की उच्च तकनीक, स्पष्ट एवं मधुर आवाज, नियंत्रित लय आदि विशेषताओं से पूर्ण है।6
‘इंटरनेट के आगमन से अब ट्रांजिस्टर की आवश्यकता नहीं रह गयी, रेडियो की समस्त सूचनायें एवं सेवायें इंटरनेट के माध्यम से मिल जाती है। इस तरह कम्प्यूटर के माध्यम से आकाशवाणी से प्रसारित होने वाली समस्त जानकारी श्रोताओं तक पहुँच जाती है। आकाशवाणी ने श्रोताओं को ध्यान में रखकर अपने तीन प्रमुख लक्ष्यों को निर्धारित किया हैः
जानकारी देना (To Inform): आकाशवाणी के माध्यम से श्रोताओं को हर घण्टे के पश्चात् समाचार प्रसारित किये जाते हैं जिसमें प्रातः काल और सांयकाल का समाचार बुलेटिन 15 मिनट की अवधि का प्रसारित होता है, यह समाचार बुलेटिन हिन्दी भाषा में ही प्रसारित किया जाता है यह समाचार बुलेटिन भी इस तरह से तैयार किया जाता है कि श्रोता को किसी से शब्द का अर्थ न पूछना पडे़ और इसके साथ-साथ उसे समझने के लिए उसे किसी भी शब्दकोश का सहारा भी न लेना पडे़।
शिक्षा देना (To Education): आकाशवाणी का दूसरा प्रमुख लक्ष्य श्रोताओं के विभिन्न समस्याओं को लेकर वार्ताएं प्रस्तुत करना, अनुसंधानों के परिणामों, अभिभाषणो की कार्यवाही को लिपिबद्ध करके प्रस्तुत करना होता है इसके अन्तर्गत कृषि, विज्ञान संबंधी शिक्षा देना आदि आते हैं। इसके माध्यम से स्कूल तथा कालेज की कक्षाओं के लिए रेडियो द्वारा पाठ्य विषयों पर भाषण भी प्रसारित किये जाते हैं।
मनोरंजन करना (To entertain) : इन सभी लक्ष्यों के साथ-साथ आकाशवाणी समस्त भाषयी प्रदेशों की जनता के लिए संगीत, नाटक, गोष्ठियाँ, वार्ताएं, रूपकों, संस्मरणों आदि मनोरंजन कार्यक्रमों का प्रसारण भी करता है। इसके अतिरिक्त विविध भारती के माध्यम से फिल्मी संगीत का रंगारंग कार्यक्रम भी श्रोताओं के मनोरंजन के लिए प्रस्तुत करता है। इस तरह से समस्त कार्यक्रमों का लगभग 46 प्रतिशत समय श्रोताओं और व्यक्तियों के लिये मनोरंजन पर व्यय किया जाता है।7
आज आकाशवाणी की सेवा में लगातार विकास हो रहा है। इस सेवा के माध्यम से दुनिया में किसी जगह से फोन लाइन द्वारा नम्बर डायल करके हिन्दी भाषा तथा अंगेजी में प्रमुख सुर्खियाँ भी सुन सकते हैं। यद्यपि यह सुविधा कुछ विशेष शहरों में ही है जिसमें दिल्ली, पटना, हैदराबाद, लखनऊ, अहमदाबाद, बैंगलोर तथा तिरुवंतपुरम् हैं। इसे अन्य केन्द्रों पर भी शुरू करने की योजना प्रस्तावित है।
फोन समाचार सेवा के अतिरिक्त इसके विभिन्न यूनिटों में सूचना के आदान-प्रदान और कामकाज की क्षमता सुधार के लिये बहुत से साफ्टवेयर भी विकसित किये गये हैं। वेब आधारित ई-मेल सेवा मुख्यालय में शुरू की गयी है और सभी केन्द्रों और निदेशालयों में ई-मेल लेखाकार्पोरेट पहचान के साथ प्रदान की गई है। इस तरह अभी तक आकाशवाणी के 38 केन्द्रों का कम्प्यूटरीकृत किया जा चुका है और अन्य केन्द्रों को कम्प्यूटरीकृत किया जा रहा है।
भारत में एफ.एम. (फ्रीक्वेंसी मोड्युलेटेड) : रेडियो की शुरूआत 1993 में हुई। प्रारम्भ में ये प्रसारण आकाशवाणी के एक चैनल पर आधा दर्जन महानगरों में आरंभ हुए। एफ.एम. रेडियो के प्रसारण की क्षमता 30 या 40 किमी. तक दायरे में ही सीमित रहती है। यह मौसम की स्थितियों से प्रभावित होती है। इसकी गुणवत्ता को देखते हुए कई निजी कम्पनियों एवं शैक्षिक संस्थानों ने एफ.एम. सेवायें शुरू की। जैसे टाइम्स एफ.एम. एण्ड रेडियो सेवाएं।8
यद्यपि इसे प्रारम्भ में ज्यादा सफलता नहीं मिली। फिर भी बदलते सामाजिक परिवेश में बहुत कुछ बदल गया। रिश्तों के मूल्य बदले, तो जरूरतें खुद ब खुद बदल गयीं। तेज रफ्तार से भागती इस आपाधापी वाली जिंदगी में रूकने का समय किसके पास है। उसमें तो जैसे वक्त ऐसे आगे निकलने की होड़ मची हुई है। इस भागमभाग में अपने लिये समय भी नहीं बच पाता। इसी भागमभाग भरी जिंदगी में एफ.एम. ही एक मात्र मनोरंजन का साधन है। इसमें न तो किसी वीडियो कैसेट की आवश्यकता पड़ती है और न ही आडियो कैसेट की। बस एफ.एम. के कारण आज ऑडियो, वीडियो कैसेट लाइब्रेरियाँ भी नहीं दिखाई पड़ती हैं। रेडियो जिसको हम लोगों ने आउटडेटेड मान लिया था, आज एक बार पुनः हम सभी की पहली पसंद बन चुक है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकत्ता, चेन्नई, बैंगलोर, पणजी, लखनऊ कटक तथा जालंधर में एफ.एम. चैनल संचालित हो रहे हैं।10
इन एफ.एम चैनल की प्रत्येक जगह पर अलग-अलग फ्रीक्वंसी रखी गयी है। जैसे- लखनऊ में वर्तमान में 5 एफ.एम. रेडियो चैनल कार्यरत है।
रेडियो सिटी 91.10 MHZ
रेडियो मिर्ची 98.30 MHZ
एस.एफ.एम. 93.5 MHZ
ए.आई.आर. रैम्बो 100.7 MHZ
ज्ञानवाणी 105.6 MHZ
एफ.एम. रेडियो मनोरंजन के साथ-साथ दैनिक प्रयोग की जानकारी भी देते हैं। जैसे-यातायात संबंधी जानकारी, समस्याओं का सुझाव, रेलगाड़ियों के आवागमन की सम्पूर्ण जानकारी के साथ खेलकूद संबंधी जानकारी शास्त्रीय संगीत, संसद से संबंधित सूचनाएं, मौसम विभाग की जानकारी आदि सेवाएं भी श्रोताओं को दी जाने लगी तथा टेलीफोन के माध्यम से प्रमुख समाचार आदि की सेवाएं भी दी जा रही हैं।
6 जुलाई 1999 को केन्द्रसरकार ने पूरे देश में निजी क्षेत्र में एफ.एम. रेडियो स्टेशन चलाने की अनुमति प्रदान कर दी। जिससे बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ एफ.एम. लाइसेंस प्रापत करने के लिये कोशिश करने लगीं।11
आज रेडियो स्टेशनों की बाढ़ से आ गयी है। भारत के प्रत्येक राज्य, महानगर, जिलों तथा कस्बों तक में यह पहुंच गया है। साथ ही साथ मीडिया के कारण अब प्रत्येक व्यक्ति इससे संबंधित कार्यक्रमों का इंटरनेट के माध्यम से, विश्व में कहीं भी बैठकर मजा ले सकता है।
ए.आई.आर.एफ.एम.2 स्टेशन 1 सितम्बर 2001 से शुरू किया गया था। इस चैनल पर प्रत्येक दिन 18 घण्टे का प्रसारण किया जाता था।12 ‘‘यह ए.आई.आर.एफ.एम.2 क्लासिकल चैनल है जिसमें स्वर्णिम पुराने गीत, गजलें और हल्के शास्त्रीय संगीत का प्रसारण किया जाता रहा है।’’
इस प्रकार से वर्तमान में एफ.एम. रेडियो भारतीय जनसमुदाय में छा गया है, क्योंकि इसके माध्यम से प्रत्येक समुदाय को भिन्न-भिन्न जानकारी प्रसारित की जा रही है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त वि.वि. ने भी अपना एक एफ.एम. रेडियो स्टेशन स्थापित किया है जो मूल रूप से शिक्षा के लिए समर्पित है इसके शैक्षिक चैनल का नाम ज्ञानवाणी रखा गया है। यह शैक्षिक चैनल नवम्बर 2001 में लांच किया गा था। इसमें अभी तक 26 एफ.एम. स्टेशन है जो मुख्य रूप से निम्न शहरों में कार्य कर रहे हैं। इलाहाबाद, औरंगाबाद, बैंगलौर, कोयम्बटूर, विशाखापट्टनम्, मुम्बई, लखनऊ, भोपाल, कोलकत्ता, चैन्नई, दिल्ली, वाराणसी, इन्दौर, पटना, शिलांग, जबलपुर, राजकोट, गुवाहाटी, हैदराबाद, अहमदाबाद, जयपुर, पणजी, इन्दौर, पटना, नागपुर, और कानपुर स्टेशन हैं। इसके अतिरिक्त 40 प्रमुख ज्ञानवाणी एफ.एम. स्टेशन प्रस्ताविम हैं :
जालन्धर 106.2 MHZ लुधियाना 107.7 MHZ
आगरा 107.1 MHZ कोचीन 106.0 MHZ
त्रिचनापल्ली 104.4 MHZ तिरुनेल्वली 107.0 MHZ
श्रीनगर 107.8 MHZ चण्डीगढ़ 105.4 MHZ
मदुरई 107.6 MHZ तिरुवन्तपुरम् 104.4 MHZ
कटक 91.9 MHZ बुलन्दशहर 106.0 MHZ
इन शैक्षिक एफ.एम. रेडियो चैनल की http://www.ignou.ac.in एक वेबसाइट है जिससे इंटरनेट पर भी इस वेबसाइट से ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।13
एफ.एम. रेडियो प्रसारण सेवा का विस्तार लगातार हो रहा है। भारत सरकार ने भारतीय कंपनियों से 91 शहरों में 337 एफ.एम. रेडियो चैनल की निविदायें आमंत्रित की जिसमें 280 बोलियां सफल हुई हैं।14 दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने मुख्य रूप से निजी एफ.एम. चैनलों पर खबरों के प्रसारण की अनुमति देने की सिफारिश की है। निजी एफ.एम. चैनल वैसे भी काफी लंबे समय से प्रमुख खबरों के प्रसारण के लिये अनुमति दिये जाने की माँग कर रहे हैं।
ट्राई ने यह सिफारिश भी की है कि एफ.एम. रेडियो के क्षेत्र में 49 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति सरकार प्रदान करे। इस प्रकार से ट्राई मुख्य रूप से एफ.एम. की उन्नति के लिए कार्य करने मे विशेष भूमिका निभा रही है।
इंटरनेट के माध्यम से एफ.एम. को कम्प्यूटर के द्वारा सुना जा सकता है और इसी एफ.एम. को इंटरनेट के माध्यम से संगीत का आनन्द लेने के लिए एक अलग विधा भी बनायी गई है। इस विधा को लोकप्रिय बनाने का श्रेय अमेरिका मीडिया व्यवसायी च एम.टीवी. के भूतपूर्व रेडियो जॉकी एडमकरी को दिया जाता है। बायनर ने तो 2.0 नामक एक विशेष प्रोग्राम बनाया है जो पॉडकास्ट के बारे में सूचनायें उपलब्ध कराने के लिए यह प्रोग्राम प्रयोग में लाया जाता है। सम्प्रति निजी रेडियो के रूप में रेडियो पर पॉडकास्टिंग की जा रही है। पोडकास्टिंग से सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि इससे किसी भी श्रोता का अपनी पसंद की सामग्री इंटरनेट पर सुनने को मिल जाती है। इंटरनेट पर उपलब्ध असीमित सामग्री में से जो चाहे, चुनकर अपने आईपोड या एमपी 3 प्लेयर पर डाउनलोड कर सकते हैं।
पॉडकास्टिंग इंटरनेट पर कार्य करती है तो मोबकास्टिंग मोबाइल फोन के लिये होने वाला प्रसारण है। प्रसारण की यह नई विधा बहुत तेजी से लोकप्रियता अर्जित कर रही है।15
http://www/podmasti.com
http://www.indiavibez.com
http://www.podbazaar.com
http://www.podbharti.com
मोबकास्टिंग के महत्व : अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इन दिनों जितने भी मोबाइल बाजार में आ रहे हैं, उन सभी में एफ.एम. रेडियो होता है जो बातचीत करने के साथ-साथ यात्रा आदि करने में मनोरंजन में भी सहायक है और एफ.एम. के छोटे-छोटे उपकरण भी बाजार में उपलब्ध हैं जिसे निम्न वर्ग से लेकर उच्चवर्ग तक का व्यक्ति प्रयोग कर रहा है। एफ.एम. में मनोरंजन के लिए गाने बालीवुड गपशप तथा साहित्यकारों के नाटकों, उपन्यासों पर बनी फिल्में भी प्रस्तुत की जाती हैं। भारत से बाहर मिनी हिन्दुस्तान कहलाने वाले देश मॉरीशस का एक मात्र ‘रेडियो-ताल एफ.एम.’ भी इंटरनेट से जुड़ गया है जिसका ऑनलाइन आनन्द लिया जा सकता है।
http://www.hindigatha.blogspot.com16
कुल मिलाकर हम कह सकते हैं आज भारत की लगभग 90 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या रेडियो का प्रयोग कर रही है। एक सर्वेक्षण के अनुसार 2008 में लगभग 600 रेडियो स्टेशन हो चुके हैं तथा 2011 तक आल इण्डिया रेडियो के 250 और प्राइवेट एफ.एम. के 350 से अधिक रेडियो स्टेशन होंगे। 17 इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत में लगातार आकाशवाणी के श्रोता बढ़ रहे हैं और स्टेशन भी। जोकि हमारे समाज, राज्य एवं राष्ट्र के विकास में सहायक हैं।
सन्दर्भः
- जनसंचार एवं पत्रकारिता, खण्ड-2 : प्रो. रमेश जैन, पृ. 198
- जनसंचार प्रकृति एवं परम्परा : प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित, पृ. 174
- जनसंचार एवं पत्रकारिता खण्ड-2 : रमेश जैन, 40-198
- जनसंचार प्रकृति परम्परा : प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित, पृ. 175
- मीडिया लेखनकलाः प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित, डॉ. पवन अग्रवाल, पृ. 33
- वही, पृ. 33
- रेडियो दूरदर्शन एवं जनसंपर्कः डॉ. बलदेव राजगुप्त, पृ. 110-111
- जनसंचार एवं पत्रकारिता, खण्ड-2 : प्रो. रमेश जैन, पृ. 202
- निजी रेछियो से बढ़ता खतरा : पुष्पेन्द्र पाल सिंह – flag & Communication today-light house of media profssional-Oct-Dec.02
- नागरी (गृह पत्रिका), पृ. -48
- निजी रेडियो से बढ़ता खतरा : पुष्पेन्द्र पाल सिंह – flag & Communication today-light house of media profssional-Oct-Dec.02
- नागरी (गृह पत्रिका) पृ. 48
- Education FM Radio Channel] Gyan Darshan] IGNOU Nov. 07, P.-28
- वार्षिक संदर्भ-ग्रन्थ ; भारत- 2007, पृ. -658
- मीडिया मीमांसा : वर्ष 1, अंक 4, अप्रैल-जून 08, पृ. -41
- http://www.hindigatha.blogspot.com
- दैनिक जागरण, नई राहें : दिनांक 29.01.08 पृ. -1
डॉ0 बलजीत कुमार श्रीवास्तव