सुबह-सुबह आंख खुली तो पहली नजर मोबाइल खोजती नजर आई। बगल में ही रखे मोबाइल की स्क्रीन लाइट ने नींद का नशा कुछ कम किया और रही बची कसर फेसबुक पोस्ट ने पूरी कर दी। रात करीब पौने दो बजे एक फोटो फेसबुक पर अपलोड किया और जब सुबह जागी तो पाया कि उस फोटो पर 320 लाइक और करीब 60 कमेंट। देखकर खुशी से ज्यादा हैरानी हुई कि रात के छह से आठ घंटे भी न्यू मीडिया के इस माध्यम से जुड़े लोगों को आराम नहीं है। यह किस्सा इसलिए जरूरी है कि हम समझ सके कि आज के दौर में न्यू मीडिया के माध्यम किस तरह से हमारी दिनचर्या में घुसपैठ किए हुए है। जनसंचार माध्यमों के विस्तार और विकास ने इस रफ्तार को गुणात्मक तेजी प्रदान की है और सबसे ज्यादा इसका प्रभाव युवा पीढ़ी पर देखने को मिल रहा है। आज के दौर में किशोरावस्था से ही बच्चों में न्यू मीडिया के प्रति चार्म चरम पर देखने को मिलता है और इसके बाद हर वर्ग इसका जैसे पालतू बन बैठा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार सामान्यतः फेसबुक, ट्विटर और वाट्सएप का इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति हर पांच से दस मिनट के भीतर अपना मोबाइल फोन देखता है और इसमें भी करीब 60 फीसद लोग ऐसे होते हैं, जो मोबाइल देखने के बाद उस पर जारी गतिविधियों पर अपनी प्रतिक्रिया लाइक, कमेंट वगैरह के माध्यम से दर्ज भी कराते हैं।
आम और खास आदमी की जिंदगी में न्यू मीडिया के बढ़े इस प्रभाव ने मॉर्शल मैक्लुहान के उस वक्तव्य को सत्य साबित कर दिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि संपूर्ण दुनिया एक गांव में तब्दील हो जाएगी। मनुष्य के बोलने का अंदाज बदल जाएगा और क्रियाकलाप भी उसी दिशा में आगे बढ़ेंगे। आज अगर देखे तो संचार क्रांति और उसमें भी न्यू मीडिया के बढ़ते प्रभाव का असर है कि आज की युवा पीढ़ी रेडियो सुन रही है, टेलीविजन देख रही है, मोबाइल से बात कर रही है और उंगलियों से कंम्प्यूटर चला रही है। सीधे शब्दों में कहे तो एक साथ कई तकनीकों के माध्यम से संचार हाई स्पीड पर जारी है। हैरान करने वाली बात यह है कि आज के दौर में अगर कोई युवा फेसबुक, ट्विटर वगैरह से दूरी बनाए रखने की बात कहता तो उसे आश्चर्य की नजर देखा जाता है और उससे सवाल किया जाता है कि आप कैसे इन माध्यम से दूरी बनाए हुए है। खैर, जहां तक बात जनसंचार माध्यमों के युवा वर्ग पर पड़ने वाले प्रभाव की बात है, तो इसे सिक्के के दो पहलुओं को देखते हुए समझा जा सकता है। यानी सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष।
बात जब सकरात्मक और नकारात्मक पक्ष की आती है, तो सीधा सवाल उठता है कि युवा पीढ़ी पर कौन-सा पक्ष हावी है। सकारात्मक पहलू या नकारात्मक पहलू ? अब स्थिति का सही आंकलन करने के लिए आंकड़ें अहम हो जाते हैं। मीडिया के प्रभाव से संबंधित मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक देश की तकरीबन 65 फीसदी आबादी युवाओं की है। ये वह वर्ग है, जो सबसे ज्यादा सपने देखता है और उन सपनों को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करने का पक्षधर है, प्रयासरत है। न्यू मीडिया और मीडिया युवाओं को इन सपनों को पूरा कर दिखाने से लेकर इन्हें निखारने तक में अहम भूमिका निभाने का काम करता है। परंपरागत मीडिया माध्यम जैसे-अखबार, पत्र-पत्रिकाएं जहां युवाओं को जानकारी मुहैया कराने के अपने दायित्व निर्वाहन कर रही हैं, वहीं टेलीविजन, रेडियो, सिनेमा उन्हें मनोरंजन के साथ आधुनिक जीवन जीने का हुनर सिखा रहे हैं। इसके बावजूद आज के दौर में युवाओं पर सबसे ज्यादा प्रभाव न्यू मीडिया का देखने को मिल रहा है। जी हां, इंटरनेट से लेकर 4जी मोबाइल तक का असर यूं देखने को मिल रहा है कि देश-दुनिया की सरहदों का मतलब इन युवाओं के लिए खत्म हो चला है। सपनों की उड़ान को तकनीकी क्रांति ने मानों पंख लगा दिए हैं। आज के दौर में ब्लॉगिंग के जरिए, जहां ये युवा अपनी समझ, अर्जित ज्ञान, जिज्ञासा, कौतूहल और भड़ास निकालने का काम भी कर रहे हैं। वहीं सोशल मीडिया साइट्स के जरिए फिर वो चाहे फेसबुक हो, ट्विटर हो या फिर इंस्टाग्राम, दुनिया भर में अपने समान मानसिकता वालों लोगों को जोड़ कर सामाजिक सरोकार को पूरी तन्मयता से पूरा कर रहे हैं। अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन हो या लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का प्रचार अभियान, न्यू मीडिया ने साबित कर दिया कि उसका रूझान ही देश का मूड तय करता है और उसके बिना युवाओं को अपने पक्ष में नहीं किया जा सकता है। न्यू मीडिया के माध्यम से जन्म लेने और फिर पनपने वाले आंदोलनों के जरिए युवाओं ने सामाजिक बदलाव में अपनी भूमिका का लोहा मनवाया है और दुनिया ने न्यू मीडिया का प्रभाव देखा है। जनसंचार के क्षेत्र में कार्यरत विशेषज्ञों की माने तो युवाओं पर इसका अधिक प्रभाव इसलिए देखने को मिलता है, क्योंकि वे उपभोक्तावादी प्रवृति के होते हैं। वे बिना किसी हिचकिचाहट के किसी भी नई तकनीक का उपभोग करना शुरू कर देते हैं और उनकी इसी सोच का नतीजा है कि न्यू मीडिया तेजी से युवाओं के बीच पॉपुलर हुआ।
न्यू मीडिया के बढ़ते प्रभाव और इसके फायदों को देखने के बावजूद यह कहना भी कई मायने में गलत नहीं होगा कि युवा पीढ़ी जनसंचार की चमक के मायाजाल में फंसती जा रही है। आज युवाओं में तेजी से पनप रहे मनोविकारों, दिशाहीनता को न्यू मीडिया से जोड़कर देखा जा सकता है। यह इसका नकारात्मक पहलू है कि पश्चिम का अंधा अनुसरण करने की चाहत ही युवाओं को आधुनिकता का पर्याय लगने लगी है। इनसे युवाओं की पूरी जीवन-शैली प्रभावित नजर आ रही है। फिर वो चाहे रहन-सहन की बात हो या फिर खान-पान, वेशभूषा और बोलचाल की। शराब और धूम्रपान उन्हें एक फैशन और खुद को मॉर्डन दिखाने का माध्यम लगने लगा है। नैतिक मूल्यों के हनन में ये कारण मुख्य रूप से उत्तरदायी हैं। आपसी रिश्ते-नातों में बढ़ती दूरियां और परिवारों में बिखराव की स्थिति इसके दुखदायी परिणाम हैं। अगर एक बार फिर आंकड़ों की बानगी देखे तो 30 जून, 2012 तक भारत में फेसबुक और सोशल मीडिया साइटों का उपयोग करने वालों की संख्या लगभग 5.9 करोड़ रही है, जोकि 2010 की तुलना में 84 प्रतिशत अधिक है। इन 5.9 करोड़ लोगों में लगभग 4.7 करोड़ लोग युवा वर्ग से ही सरोकार रखते हैं। आंकड़े बताते है कि भारत दुनिया का चौथा सबसे अधिक फेसबुक का इस्तेमाल करने वाला देश बन चुका है। इसमें दो राय नहीं कि डिजिटल क्रांति ने युवाओं की निजता को प्रभावित किया है और युवा अपनी सोच से अपने समाज को प्रभावित कर रहे हैं। इसी तरह इंडिया बिजनेस न्यूज एंड रिसर्च सर्विसेज द्वारा 1200 लोगों पर किए गए सर्वेक्षण, जिनमें 18-35 साल की उम्र के लोगों को शामिल किया गया था, में करीब 76 फीसदी युवाओं ने माना कि सोशल मीडिया उनको दुनिया में परिवर्तन लाने के लिए समर्थ बना रही है। उनका मानना है कि महिलाओं के हित और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में ये सूचना का एक महत्वपूर्ण स्रोत साबित हुई है। करीब 24 फीसदी युवाओं ने अपनी सूचना का स्रोत सोशल मीडिया को बताया। करीब 70 फीसद युवाओं ने ये भी माना कि किसी समूह विशेष से जुड़ जाने भर से जमीनी हकीकत नहीं बदल जाएगी, बल्कि इसके लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।
आखिर में इतना ही कहूंगी कि न्यू मीडिया ने ग्लोबल विलेज की अवधारणा को जन्म दिया है। इसके अंतर्गत आने वाले माध्यमों ने युवा वर्ग पर अपना व्यापक प्रभाव छोड़ा है और यह प्रभाव इतना शक्तिशाली है की आज के युवा इन माध्यमों के बिना अपने दिन की शुरुआत तक नहीं कर सकते। मोबाइल एक ऐसा माध्यम है, जिससे दूर बैठे व्यक्ति से साथ बात की जा सकती है और अपने हसीन पलों को चलचित्रों के रूप में कैद किया जा सकता है। यह तो इसका सदुपयोग है, लेकिन आज युवा इस माध्यम का गलत प्रयोग कर एमएमएस बनाते हैं। इसी तरह इंटरनेट जनसंचार माध्यमों में सबसे प्रभावशाली है, जिसने दूरियों को कम कर दिया है। इसका अधिकतर उपभोग युवा वर्ग द्वारा किया जाता है, जहां इसके द्वारा युवाओं को सभी जानकारियां उपलब्ध होती हैं। स्पष्ट है कि न्यू मीडिया जहां ज्ञानवर्धन में सहायक है, वहीं वर्तमान समय में युवा द्वारा इसका दुरुपयोग भी खूब हो रहा है। इसलिए न्यू मीडिया के स्वच्छंद वातावरण में आपके लिए कुछ बेहतर है तो कुछ ऐसा भी है जो व्यक्ति, समाज, देश और विश्व समुदाय के लिए हानिकारक है।
संदर्भ ग्रंथ: –
1.पत्रकारिता का बदलता स्वरूप् और न्यू मीडिया, डॉ. हरीश अरोड़ा, पृष्ठ संख्या:15,16,17,18
2.हिंदी ब्लॉगिंग स्वरूप व्याप्ति और संभावनाएं, डॉ. मनीष कुमार मिश्रा, पृष्ठ संख्या: 80 से 83