सारांश:
यह शोध राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना पर दो प्रमुख हिंदी समाचार पत्रों, दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स, के संपादकीय दृष्टिकोण का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इसका उद्देश्य यह समझना है कि कैसे मीडिया अपनी फ्रेमिंग तकनीकों का उपयोग करके जनमत को प्रभावित करता है। गुणात्मक तुलनात्मक विश्लेषण (QCA) की पद्धति का उपयोग करते हुए, इस शोध में दोनों समाचार पत्रों के संपादकीय पृष्ठों का गहराई से अध्ययन किया गया है।
दैनिक जागरण ने इस घटना को एक नैतिक और सांस्कृतिक विफलता के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें भारतीय लोकतंत्र और राष्ट्रीय मूल्यों के ह्रास पर जोर दिया गया है। दूसरी ओर, नवभारत टाइम्स ने इसे प्रशासनिक और शासन की विफलता के रूप में देखा, जिसमें सरकारी अधिकारियों की उदासीनता और असमर्थता पर प्रकाश डाला गया। शोध से यह निष्कर्ष निकलता है कि मीडिया फ्रेमिंग जनमत और सामाजिक दृष्टिकोण पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है, और विशेष रूप से सामाजिक और राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दों के मामले में मीडिया का दृष्टिकोण जनता की धारणा को गहराई से प्रभावित कर सकता है।
मुख्य शब्द: मीडिया फ्रेमिंग, राम जन्मभूमि आंदोलन, दैनिक जागरण, नवभारत टाइम्स, संपादकीय विश्लेषण, मीडिया साक्षरता।
प्रस्तावना
राम जन्मभूमि आंदोलन भारतीय इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण और विवादास्पद घटनाओं में से एक है, जिसने न केवल धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्रों में गहरे प्रभाव छोड़े हैं, बल्कि भारत के सामाजिक ताने-बाने को भी झकझोर कर रख दिया है। यह आंदोलन 20वीं सदी के उत्तरार्ध में उभर कर सामने आया और अपने चरम पर 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के रूप में दिखाई दिया। इस घटना ने भारत की राजनीति, समाज और मीडिया के क्षेत्र में गहरा प्रभाव डाला, जिससे पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा का दौर शुरू हुआ।
अयोध्या में स्थित राम जन्मभूमि स्थल को हिंदू धर्म में भगवान राम का जन्मस्थान माना जाता है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं और रामायण जैसे महाकाव्यों में वर्णित है। इस स्थल का ऐतिहासिक महत्व सैकड़ों वर्षों से हिंदू समुदाय के लिए अत्यधिक धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्य रखता है। इस स्थल पर बाबरी मस्जिद का निर्माण 1527 ईस्वी में मुगल सम्राट बाबर के आदेश पर किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप सदियों से इस स्थल को लेकर विवाद बना रहा। (जाफ़रलॉट, 2007)
1950 के दशक में यह विवाद फिर से सामने आया, जब हिंदू संगठनों ने इस स्थल पर राम मंदिर के पुनर्निर्माण की मांग उठाई। 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में, यह मुद्दा राजनीतिक रूप से अधिक ज्वलंत हो गया, जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुखता दी। इस दौरान, राम जन्मभूमि आंदोलन एक व्यापक जन आंदोलन में बदल गया, जिसमें मंदिर निर्माण के समर्थन में लाखों लोगों ने भाग लिया। (कुमार, 1993)
राम जन्मभूमि आंदोलन की सबसे विवादास्पद घटना 6 दिसंबर, 1992 को घटी, जब कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। इस घटना ने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी व्यापक आलोचना और चिंता का विषय बन गई। इस विध्वंस के बाद देशभर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिसमें हजारों लोग मारे गए और असंख्य लोग बेघर हो गए। इस घटना ने भारत की राजनीति में एक नई धारा को जन्म दिया, जिसमें धार्मिक और सांप्रदायिक मुद्दे प्रमुखता से उभर कर सामने आए। (शर्मा, 2007)
इस पूरे प्रकरण में मीडिया की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण रही। मीडिया ने इस आंदोलन को किस तरह से प्रस्तुत किया, इसने जनमत को गहराई से प्रभावित किया और समाज में विभिन्न धारणाओं को जन्म दिया। मीडिया फ्रेमिंग का सिद्धांत इस संदर्भ में विशेष रूप से प्रासंगिक है, क्योंकि यह बताता है कि मीडिया किस प्रकार से किसी घटना को प्रस्तुत करने के लिए विशिष्ट फ्रेमों का उपयोग करता है, जिससे वह दर्शकों की सोच और राय को प्रभावित करता है। इरविंग गोफमैन (1974) द्वारा प्रस्तुत और रॉबर्ट एंटमैन (1993) द्वारा विस्तारित यह सिद्धांत राम जन्मभूमि आंदोलन जैसी संवेदनशील और विवादास्पद घटनाओं के अध्ययन में विशेष रूप से उपयोगी है। (एंटमैन, 1993)
इस शोध का मुख्य उद्देश्य यह समझना है कि कैसे दो प्रमुख हिंदी समाचार पत्र, दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स, ने 6 दिसंबर, 1992 की घटना को अपने पाठकों के सामने प्रस्तुत किया। यह अध्ययन संपादकीय पृष्ठों पर केंद्रित है, जो किसी भी समाचार पत्र के विचारधारात्मक और दृष्टिकोणिक रुख को स्पष्ट रूप से प्रकट करते हैं। संपादकीय पृष्ठ वह स्थान होता है जहां अखबार के संपादक और संपादकीय बोर्ड किसी घटना पर अपने विचार व्यक्त करते हैं, जिससे पाठकों की सोच को प्रभावित किया जाता है।
दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स दोनों ही हिंदी के प्रमुख समाचार पत्र हैं, जिनकी व्यापक पाठक संख्या है और जो उत्तर भारत के जनमानस पर गहरा प्रभाव डालते हैं। इस अध्ययन में इन दोनों समाचार पत्रों के संपादकीय पृष्ठों का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया है, जिसमें यह देखा गया है कि कैसे इन अखबारों ने बाबरी मस्जिद विध्वंस जैसी संवेदनशील घटना को फ्रेम किया। यह अध्ययन गुणात्मक तुलनात्मक विश्लेषण (QCA) की पद्धति पर आधारित है, जो किसी घटना के विभिन्न पहलुओं का व्यवस्थित और गहन विश्लेषण करने में सहायक होती है। (रेगिन, 2000)
दैनिक जागरण के संपादकीय ने इस घटना को एक नैतिक और सांस्कृतिक विफलता के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें भारतीय लोकतंत्र और राष्ट्रीय मूल्यों के ह्रास पर जोर दिया गया है। इस अखबार ने भाजपा और विहिप की भूमिका की कड़ी आलोचना की है, जिसमें उनके द्वारा किए गए वादों और संवैधानिक सिद्धांतों के उल्लंघन पर प्रकाश डाला गया है। दूसरी ओर, नवभारत टाइम्स ने इस घटना को शासन और प्रशासन की विफलता के रूप में चित्रित किया है, जिसमें सरकारी अधिकारियों की असमर्थता और उदासीनता को उजागर किया गया है। (झा, 2020)
इस शोध का निष्कर्ष यह है कि मीडिया फ्रेमिंग का जनमत और सामाजिक दृष्टिकोण पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह अध्ययन इस बात की ओर इशारा करता है कि मीडिया की रिपोर्टिंग किसी घटना को कैसे प्रस्तुत करती है, यह उस घटना के प्रति जनता की सोच और प्रतिक्रिया को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विशेष रूप से राम जन्मभूमि आंदोलन जैसी घटनाओं के संदर्भ में, मीडिया का दृष्टिकोण समाज में व्यापक विचारधारात्मक बदलाव ला सकता है।
साहित्य पुनरावलोकन
राम जन्मभूमि आंदोलन भारतीय इतिहास की सबसे विवादास्पद और महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है, जिसने न केवल धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्रों में बल्कि मीडिया और समाज के विभिन्न पहलुओं पर भी गहरा प्रभाव छोड़ा है। इस आंदोलन के दौरान और बाद में, मीडिया की भूमिका और उसकी फ्रेमिंग तकनीकों ने जनमत और सामाजिक दृष्टिकोण को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। साहित्य पुनरावलोकन के इस खंड में, हम मीडिया फ्रेमिंग सिद्धांत, भारतीय समाचार पत्रों में मीडिया फ्रेमिंग के अध्ययन, और राम जन्मभूमि आंदोलन के संदर्भ में मीडिया की भूमिका पर केंद्रित प्रमुख साहित्यिक कृतियों का विश्लेषण करेंगे।
मीडिया फ्रेमिंग सिद्धांत का विकास और महत्व
मीडिया फ्रेमिंग सिद्धांत समाजशास्त्र और संचार अध्ययन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। इरविंग गोफमैन (1974) ने सबसे पहले फ्रेमिंग की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे लोग घटनाओं और परिस्थितियों को समझने के लिए मानसिक फ्रेम का उपयोग करते हैं। गोफमैन के अनुसार, फ्रेम्स सामाजिक वास्तविकताओं को व्यवस्थित और समझने में मदद करते हैं, जिससे लोगों की धारणा और प्रतिक्रिया प्रभावित होती है। इस सिद्धांत को बाद में रॉबर्ट एंटमैन (1993) जैसे शोधकर्ताओं ने और विस्तारित किया, जिन्होंने इसे मीडिया अध्ययन के संदर्भ में लागू किया। एंटमैन का तर्क है कि मीडिया फ्रेम कुछ विशेष पहलुओं पर जोर देकर और दूसरों को कम महत्व देकर जनता की राय को आकार देता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से, मीडिया न केवल सूचनाओं को प्रस्तुत करता है बल्कि उन्हें एक विशिष्ट दृष्टिकोण से भी प्रस्तुत करता है, जिससे दर्शकों की सोच और राय प्रभावित होती है। (एंटमैन, 1993)
भारतीय समाचार पत्रों में मीडिया फ्रेमिंग का अध्ययन
भारतीय समाचार पत्रों में मीडिया फ्रेमिंग का अध्ययन एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जो इस बात की जांच करता है कि भारतीय मीडिया ने विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक घटनाओं को कैसे फ्रेम किया है। सिन्हा (2018) ने अपने अध्ययन में भारतीय समाचार पत्रों में मीडिया फ्रेमिंग की जांच की और बताया कि संपादकीय पृष्ठों ने सार्वजनिक वार्ता को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सिन्हा का तर्क है कि संपादकीय पृष्ठ मीडिया के दृष्टिकोण के लिए एक बैरोमीटर के रूप में कार्य करते हैं, जो जटिल मुद्दों पर विस्तृत परिप्रेक्ष्य प्रदान करते हैं। (सिन्हा, 2018)
शर्मा (2016) ने हिंदी समाचार पत्रों और उनके राजनीतिक धारणाओं पर प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने यह पाया कि हिंदी समाचार पत्रों ने अपने फ्रेमिंग तकनीकों के माध्यम से राजनीतिक विचारधाराओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके अध्ययन से पता चलता है कि समाचार पत्रों ने न केवल समाचारों की प्रस्तुति को फ्रेम किया, बल्कि उन्होंने राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर व्यापक प्रभाव डाला है। (शर्मा, 2016)
वर्मा (2017) ने हिंदी दैनिक समाचार पत्रों के सामाजिक-राजनीतिक समझ को आकार देने वाले कारकों का विश्लेषण किया। उन्होंने यह बताया कि कैसे हिंदी दैनिक समाचार पत्रों ने राम जन्मभूमि आंदोलन जैसे मुद्दों को फ्रेम किया, जिससे जनता की राय और सामाजिक दृष्टिकोण प्रभावित हुए। उनके अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि समाचार पत्रों ने विशेष रूप से संपादकीय पृष्ठों के माध्यम से विचारधारात्मक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। (वर्मा, 2017)
राम जन्मभूमि आंदोलन के संदर्भ में मीडिया की भूमिका
राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान और बाद में, मीडिया ने इस आंदोलन को कैसे प्रस्तुत किया, इस पर व्यापक शोध किया गया है। इस संदर्भ में, कई विद्वानों ने मीडिया की भूमिका का विश्लेषण किया है और बताया है कि कैसे मीडिया फ्रेमिंग ने इस आंदोलन को जनमत और सामाजिक दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कुमार (1997) ने “द टाइम्स ऑफ इंडिया” और “द हिंदू” जैसे राष्ट्रीय समाचार पत्रों का अध्ययन किया और पाया कि इन समाचार पत्रों ने राम जन्मभूमि आंदोलन को अलग-अलग दृष्टिकोणों से फ्रेम किया। “द टाइम्स ऑफ इंडिया” ने इस आंदोलन को धार्मिक भावनाओं और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के बीच संघर्ष के रूप में प्रस्तुत किया, जबकि “द हिंदू” ने इसे धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खतरे के रूप में चित्रित किया। कुमार का अध्ययन यह दर्शाता है कि मीडिया फ्रेमिंग ने जनमत को ध्रुवीकृत करने और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। (कुमार, 1997)
गांगुली (2005) ने राम जन्मभूमि आंदोलन के मीडिया कवरेज का विश्लेषण किया और पाया कि मीडिया फ्रेमिंग ने जनता की राय और राजनीतिक प्रतिक्रियाओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गांगुली का तर्क है कि मीडिया ने इस आंदोलन को धार्मिक जीत या सांप्रदायिक हिंसा के कृत्य के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे जनता की भावनाओं और राजनीतिक प्रतिक्रियाओं को प्रभावित किया गया। उनका अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि मीडिया फ्रेमिंग ने जनमत को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया। (गांगुली, 2005)
अली (2015) ने पाकिस्तान में सांप्रदायिक घटनाओं का मीडिया कवरेज किया और पाया कि भारतीय मीडिया में देखे गए फ्रेमिंग के समान पैटर्न पाकिस्तान में भी देखने को मिलते हैं। उनके अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि मीडिया ने धार्मिक और राजनीतिक पहलुओं पर जोर देकर विचारों के ध्रुवीकरण में योगदान दिया है। यह अध्ययन राम जन्मभूमि आंदोलन के मीडिया फ्रेमिंग के तुलनात्मक अध्ययन के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। (अली, 2015)
ओ’कॉनर (2016) ने उत्तरी आयरलैंड संघर्ष का मीडिया चित्रण किया और पाया कि इस संघर्ष के दौरान मीडिया फ्रेमिंग ने धार्मिक और राजनीतिक विभाजन को उजागर किया। उनके अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि राम जन्मभूमि आंदोलन के फ्रेमिंग के समान पैटर्न उत्तरी आयरलैंड संघर्ष में भी देखने को मिले हैं। यह अध्ययन यह दर्शाता है कि धार्मिक और राजनीतिक संघर्षों में मीडिया फ्रेमिंग का महत्वपूर्ण प्रभाव हो सकता है। (ओ’कॉनर, 2016)
राम जन्मभूमि आंदोलन के मीडिया फ्रेमिंग में अंतराल और चुनौतियाँ
राम जन्मभूमि आंदोलन पर व्यापक शोध के बावजूद, कुछ महत्वपूर्ण अंतराल बने हुए हैं, विशेषकर संपादकीय कवरेज के विश्लेषण में। अधिकांश अध्ययन समाचार लेखों पर केंद्रित होते हैं, जबकि संपादकीय, जो समाचार पत्र के विचारधारात्मक रुख को स्पष्ट करते हैं, अक्सर उपेक्षित रह जाते हैं। यह शोध इन अंतरालों को भरने का प्रयास करता है और संपादकीय पृष्ठों के गहन विश्लेषण के माध्यम से मीडिया फ्रेमिंग की एक विस्तृत तस्वीर प्रस्तुत करता है।
यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि मीडिया आउटलेट्स के वैचारिक पूर्वाग्रहों और उनके द्वारा चुने गए फ्रेम्स का भी जनमत पर गहरा प्रभाव पड़ता है। विभिन्न समाचार पत्रों के बीच वैचारिक भिन्नताओं के कारण, एक ही घटना को विभिन्न तरीकों से प्रस्तुत किया जाता है, जिससे जनता की सोच और राय में भिन्नता आ सकती है। (सिन्हा, 2018)
मीडिया फ्रेमिंग सिद्धांत, भारतीय समाचार पत्रों में फ्रेमिंग के अध्ययन, और राम जन्मभूमि आंदोलन के संदर्भ में मीडिया की भूमिका पर आधारित साहित्य पुनरावलोकन से यह स्पष्ट होता है कि मीडिया की फ्रेमिंग तकनीकें जनता की राय और सामाजिक दृष्टिकोण को आकार देने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
शोध प्रणाली
इस शोध का उद्देश्य 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स जैसे प्रमुख हिंदी समाचार पत्रों के संपादकीय दृष्टिकोणों का तुलनात्मक विश्लेषण करना है। यह अध्ययन गुणात्मक तुलनात्मक विश्लेषण (QCA) की पद्धति पर आधारित है, जो जटिल सामाजिक घटनाओं के व्यवस्थित और गहन अध्ययन के लिए एक प्रभावी उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है।
गुणात्मक तुलनात्मक विश्लेषण (QCA) का परिचय
गुणात्मक तुलनात्मक विश्लेषण (QCA) एक सैद्धांतिक और पद्धतिगत ढांचा है, जिसे 1980 के दशक में चार्ल्स रैगिन ने विकसित किया था। यह विधि विशेष रूप से उन मामलों में प्रभावी होती है, जहाँ शोधकर्ता विभिन्न मामलों और उनकी विशेषताओं के बीच संबंधों को समझने के लिए तुलनात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहते हैं। QCA में केस कॉन्फ़िगरेशन, सेट थ्योरी, और ट्रुथ टेबल का उपयोग किया जाता है, जिससे यह समझा जा सकता है कि विभिन्न परिस्थितियों के संयोजन कैसे विशिष्ट परिणामों की ओर ले जाते हैं। यह पद्धति विशेष रूप से जटिल सामाजिक घटनाओं, जैसे कि मीडिया फ्रेमिंग और संपादकीय सामग्री का विश्लेषण करने के लिए उपयुक्त है। (रेगिन, 2000)
केस चयन और डेटा संग्रह
इस शोध के लिए, दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स को केस के रूप में चुना गया है। इन दोनों समाचार पत्रों का चयन इसलिए किया गया क्योंकि ये हिंदी पत्रकारिता के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं और इनकी व्यापक पाठक संख्या है। इन समाचार पत्रों के संपादकीय पृष्ठों का अध्ययन किया गया है, जो किसी भी समाचार पत्र के विचारधारात्मक रुख को समझने का प्रमुख स्रोत होते हैं।
डेटा संग्रह: इस अध्ययन के लिए, 6 दिसंबर, 1992 को प्रकाशित दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स के संपादकीय पृष्ठों को डिजिटल रूप में एक्सेस किया गया। इन संपादकीयों की सामग्री का गहराई से विश्लेषण करने के लिए इन्हें माइक्रोफिल्म और डिजिटल आर्काइव्स से प्राप्त किया गया। शोध ने यह सुनिश्चित किया कि इन संपादकीयों की प्रामाणिकता और सटीकता बनी रहे।
संपादकीय पृष्ठों का सामग्री विश्लेषण
संपादकीय विश्लेषण: QCA पद्धति के तहत, दोनों समाचार पत्रों के संपादकीय पृष्ठों का सामग्री विश्लेषण किया गया है। इस विश्लेषण में संपादकीय में प्रयुक्त भाषा, फ्रेमिंग तकनीकें, और तर्कों का विस्तृत अध्ययन किया गया। इसके साथ ही यह भी देखा गया कि दोनों संपादकीयों ने घटना के विभिन्न पहलुओं पर कैसे जोर दिया।
फ्रेमिंग तकनीकें: विश्लेषण के दौरान यह पाया गया कि दैनिक जागरण ने बाबरी मस्जिद विध्वंस को नैतिक और सांस्कृतिक विफलता के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें भाजपा और विहिप की भूमिका की कड़ी आलोचना की गई है। दूसरी ओर, नवभारत टाइम्स ने इस घटना को शासन और प्रशासनिक विफलता के रूप में चित्रित किया, जिसमें सरकारी अधिकारियों की असमर्थता और उदासीनता को उजागर किया गया है।
तुलनात्मक विश्लेषण
QCA की पद्धति का उपयोग करके दोनों संपादकीयों का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया। इस प्रक्रिया में, संपादकीय में प्रयुक्त फ्रेमिंग तकनीकों, भाषा, और दृष्टिकोणों के बीच के अंतर और समानताओं को पहचानने पर जोर दिया गया। फ्रेमिंग तकनीकों के आधार पर यह विश्लेषण किया गया कि कैसे इन समाचार पत्रों ने एक ही घटना को अलग-अलग दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया और इससे जनमत और सामाजिक दृष्टिकोण पर क्या प्रभाव पड़ा।
डेटा का कैलिब्रेशन और पैटर्न पहचान
QCA में डेटा का कैलिब्रेशन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसमें विभिन्न स्थितियों और उनके संयोजनों की पहचान की जाती है। इस अध्ययन में, संपादकीय सामग्री को वर्गीकृत और कैलिब्रेट किया गया, ताकि फ्रेमिंग तकनीकों और उनके प्रभावों के बीच पैटर्न की पहचान की जा सके। यह प्रक्रिया हमें यह समझने में मदद करती है कि कैसे मीडिया फ्रेमिंग ने राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान जनता की धारणा को आकार दिया।
निष्कर्ष और रिपोर्टिंग
QCA के तहत प्राप्त निष्कर्षों को व्यवस्थित रूप से प्रलेखित किया गया है। दोनों समाचार पत्रों के संपादकीय पृष्ठों के तुलनात्मक विश्लेषण से प्राप्त अंतर्दृष्टियों को सारांशित करने वाली एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई है। इसका उपयोग करके फ्रेमिंग में प्रमुख तुलनाओं और अंतर को दर्शाया गया है।
यह शोध प्रणाली गुणात्मक तुलनात्मक विश्लेषण (QCA) पर आधारित है, जो संपादकीय सामग्री का गहन और व्यवस्थित अध्ययन करने में सहायक होती है। इस पद्धति के तहत, दोनों समाचार पत्रों के संपादकीय पृष्ठों का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया है, जिससे यह समझा जा सके कि मीडिया फ्रेमिंग ने राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान जनता की धारणा और सामाजिक दृष्टिकोण को कैसे प्रभावित किया।
विश्लेषण
राम जन्मभूमि आंदोलन और विशेष रूप से 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस की घटना ने भारतीय समाज, राजनीति और मीडिया पर गहरा प्रभाव डाला। इस घटना के कवरेज में मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही, जिसने जनमत और सामाजिक दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित किया। इस खंड में, दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स के संपादकीय दृष्टिकोणों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है, जो इस घटना को कैसे फ्रेम किया गया, इस पर केंद्रित है।
दैनिक जागरण का संपादकीय विश्लेषण
दैनिक जागरण, एक प्रमुख हिंदी समाचार पत्र, ने बाबरी मस्जिद विध्वंस को एक नैतिक और सांस्कृतिक विफलता के रूप में प्रस्तुत किया। इसके संपादकीय ने इस घटना को भारतीय लोकतंत्र और राष्ट्रीय मूल्यों के लिए एक गंभीर झटका बताया, जिसमें भाजपा और विहिप की भूमिका की कड़ी आलोचना की गई। संपादकीय का शीर्षक “दुर्भाग्यपूर्ण उन्माद” इस बात को स्पष्ट करता है कि समाचार पत्र इस घटना को कैसे देखता है।
नैतिक और सांस्कृतिक विफलता पर जोर:
दैनिक जागरण के संपादकीय में बाबरी मस्जिद विध्वंस को “दुर्भाग्यपूर्ण” और “अनावश्यक” बताया गया है। संपादकीय का तर्क है कि यह घटना भारतीय समाज के नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास है। इसमें कहा गया है, “इस विध्वंसक कार्य में पाँच घंटे लगे हैं। इसके भीतर हस्तक्षेप किया जा सकता था और बुद्धिमानी से हस्तक्षेप करके इसको रोका जा सकता था।” यह कथन स्पष्ट रूप से इस बात की ओर संकेत करता है कि संपादकीय का मानना है कि इस विध्वंस को रोका जा सकता था, लेकिन राजनीतिक और धार्मिक नेतृत्व की विफलता के कारण ऐसा नहीं हो सका।
राजनीतिक नेतृत्व की आलोचना:
संपादकीय ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के नेताओं की कड़ी आलोचना की है। इसमें कहा गया है, “कारसेवकों ने अपना विवेक खो दिया तथा उस पर न विश्व हिंदू परिषद का नियंत्रण रह सका, न भाजपा नेताओं का, जिससे राष्ट्र को गरिमा गिरी है।” यह बयान स्पष्ट रूप से इस बात की ओर इशारा करता है कि संपादकीय का मानना है कि भाजपा और विहिप के नेतृत्व की निगरानी की कमी ने इस विध्वंस को संभव बनाया।
संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन:
दैनिक जागरण का संपादकीय संवैधानिक सिद्धांतों और न्यायिक अधिकारों के उल्लंघन पर भी जोर देता है। इसमें निराशा व्यक्त की गई है कि “यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय को भी इस विध्वंस पर प्रतिक्रिया देने का अवसर नहीं मिला।” इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि संपादकीय का मानना है कि इस घटना ने न केवल भारतीय समाज के नैतिक मूल्यों को कमजोर किया, बल्कि संवैधानिक सिद्धांतों को भी हानि पहुँचाई।
सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रतिबिंब:
दैनिक जागरण का संपादकीय बाबरी मस्जिद के विध्वंस के सांस्कृतिक और राजनीतिक निहितार्थों को भी दर्शाता है। इसमें कहा गया है, “बाबरी ढांचे को क्षति पहुँचाने का अर्थ प्रकारान्तर से ही नहीं, बल्कि प्रत्यक्षतः रामलला के मंदिर को क्षति पहुँचाना है।” इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि संपादकीय ने इस विध्वंस को न केवल एक धार्मिक स्थल की हानि के रूप में देखा, बल्कि इसे भारतीय संस्कृति और धार्मिक धरोहर के लिए एक गंभीर आघात के रूप में प्रस्तुत किया।
फ्रेमिंग तकनीकें:
दैनिक जागरण के संपादकीय में प्रयुक्त फ्रेमिंग तकनीकें भी विशेष ध्यान देने योग्य हैं। संपादकीय की भाषा आलोचनात्मक और अस्वीकृतिपूर्ण है। “दुर्भाग्यपूर्ण”, “उन्माद”, और “अनुचित” जैसे शब्दों का प्रयोग करके, संपादकीय ने इस घटना को एक गंभीर गलत निर्णय और नेतृत्व की विफलता के रूप में प्रस्तुत किया है।
भाषा और लहजा:
संपादकीय में भाषा का प्रयोग बेहद प्रभावी ढंग से किया गया है। इसमें नैतिक आक्रोश और संवैधानिक उल्लंघन पर जोर दिया गया है। “इस घटना का औचित्य कुछ उन्मादी लोग जिस रूप में चाहे दिखायें पर इसका कोई औचित्य भारतीय मन को स्वीकार नहीं होगा।” इस प्रकार के कथन यह दर्शाते हैं कि संपादकीय ने इस घटना को भारतीय समाज के लिए एक गंभीर आघात के रूप में प्रस्तुत किया है।
नवभारत टाइम्स का संपादकीय विश्लेषण
नवभारत टाइम्स, एक और प्रमुख हिंदी समाचार पत्र, ने बाबरी मस्जिद विध्वंस को शासन और प्रशासनिक विफलता के रूप में प्रस्तुत किया। इसके संपादकीय का शीर्षक “सब वादे टूट गए” इस बात को स्पष्ट करता है कि समाचार पत्र ने इस घटना को कैसे देखा।
प्रशासनिक और शासन की विफलता पर जोर:
नवभारत टाइम्स का संपादकीय इस घटना को शासन और प्रशासनिक विफलता के रूप में प्रस्तुत करता है। इसमें कहा गया है, “जिस डाँचे की रक्षा के लिए केन्द्र सरकार का और राज्य सरकार का वादा था, वह ढाँचा ढह गया।” यह कथन स्पष्ट रूप से इस बात की ओर संकेत करता है कि संपादकीय का मानना है कि इस विध्वंस के लिए सरकारी अधिकारियों की विफलता जिम्मेदार है।
राजनीतिक और प्रशासनिक जिम्मेदारी:
संपादकीय में तत्कालीन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी को इंगित किया गया है। इसमें कहा गया है, “पुलिस ने हल्का बल प्रयोग किया। इससे ज्यादा करने की शायद उन्हें इजाजत नहीं थी।” इस प्रकार के कथन यह दर्शाते हैं कि संपादकीय ने इस घटना को राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व की विफलता के रूप में देखा है।
राष्ट्रीय चिंतन और सतर्कता:
नवभारत टाइम्स का संपादकीय इस घटना पर राष्ट्रीय चिंतन का आह्वान करता है। इसमें कहा गया है, “इस घटना पर हम बहुत ही गहरा दुख व्यक्त करते हैं।” यह कथन स्पष्ट रूप से इस बात की ओर इशारा करता है कि संपादकीय ने इस घटना को भारतीय समाज के लिए एक गंभीर क्षति के रूप में देखा है, और इस पर गहरा चिंतन आवश्यक है।
सतर्कता का आह्वान:
संपादकीय ने विनाश के बाद शांति और सतर्कता का आग्रह किया है। इसमें कहा गया है, “देश में सभी जगह सुरक्षा कड़ी की गई है पर इस समय सेना की सतर्कता भी बहुत आवश्यक हो गई है।” इस प्रकार के कथन यह दर्शाते हैं कि संपादकीय ने इस घटना के बाद देश में शांति और सुरक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया है।
फ्रेमिंग तकनीकें:
नवभारत टाइम्स के संपादकीय में भी फ्रेमिंग तकनीकों का उपयोग किया गया है। इसमें “विध्वंसक”, “लज्जाजनक” और “घबराहट” जैसे शब्दों का प्रयोग करके इस घटना को प्रशासनिक विफलता और राष्ट्रीय संकट के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
भाषा और लहजा:
संपादकीय में भाषा का प्रयोग स्पष्ट और तात्कालिक है। इसमें सरकार और प्रशासन की विफलताओं पर जोर दिया गया है। “कारसेवकों की भीड़ को कोई नियंत्रित करने वाला नहीं था और वे एक पूर्व नियोजित ढंग से कार सेवा शुरू करने के घोषित समय से पहले विवादित ढांचे के भीतर घुस गये।” इस प्रकार के कथन यह दर्शाते हैं कि संपादकीय ने इस घटना को अराजकता और प्रशासनिक असमर्थता के रूप में प्रस्तुत किया है।
दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स के संपादकीय का तुलनात्मक विश्लेषण
दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स के संपादकीय दृष्टिकोणों का तुलनात्मक विश्लेषण हमें यह समझने में मदद करता है कि कैसे दोनों समाचार पत्रों ने बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना को फ्रेम किया।
दृष्टिकोण में अंतर:
दैनिक जागरण ने इस घटना को नैतिक और सांस्कृतिक विफलता के रूप में प्रस्तुत किया, जबकि नवभारत टाइम्स ने इसे प्रशासनिक और शासन की विफलता के रूप में चित्रित किया। दैनिक जागरण ने “उन्माद” और “अराजकता” जैसे शब्दों का प्रयोग किया, जबकि नवभारत टाइम्स ने “विध्वंसक” और “लज्जाजनक” शब्दों का उपयोग किया। यह स्पष्ट करता है कि दोनों समाचार पत्रों ने इस घटना को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखा और प्रस्तुत किया।
फोकस का अंतर:
दैनिक जागरण ने विशेष रूप से भाजपा और विहिप की भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि नवभारत टाइम्स ने सरकारी अधिकारियों की विफलताओं पर जोर दिया। दैनिक जागरण का फोकस नैतिक और सांस्कृतिक क्षति पर था, जबकि नवभारत टाइम्स ने प्रशासनिक असमर्थता और राष्ट्रीय सुरक्षा पर जोर दिया।
जनमत पर प्रभाव:
दोनों संपादकीयों ने जनमत को गहराई से प्रभावित किया। दैनिक जागरण का संपादकीय जनता के नैतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जबकि नवभारत टाइम्स का संपादकीय प्रशासनिक विफलताओं और राष्ट्रीय चिंताओं पर जनता का ध्यान केंद्रित कर सकता है।
भाषाई और फ्रेमिंग तकनीकों का उपयोग:
दैनिक जागरण ने भावनात्मक और नैतिक भाषा का उपयोग किया, जबकि नवभारत टाइम्स ने तात्कालिक और व्यावहारिक भाषा का प्रयोग किया। दोनों समाचार पत्रों ने अपनी-अपनी फ्रेमिंग तकनीकों के माध्यम से पाठकों की सोच और दृष्टिकोण को आकार देने का प्रयास किया।
समाज पर संपादकीयों का प्रभाव
दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स के संपादकीयों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा। दैनिक जागरण के संपादकीय ने सांस्कृतिक और नैतिक दृष्टिकोण से जनता की सोच को प्रभावित किया, जिससे सांप्रदायिक तनाव और विभाजन की भावना को बल मिला। इसके विपरीत, नवभारत टाइम्स के संपादकीय ने प्रशासनिक विफलताओं और राष्ट्रीय सुरक्षा पर जनता का ध्यान केंद्रित किया, जिससे शासन और राजनीतिक जवाबदेही पर बहस को बढ़ावा मिला।
सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभाव:
दैनिक जागरण का संपादकीय सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था। इसमें भाजपा और विहिप की कड़ी आलोचना की गई, जिससे इन संगठनों की वैधता और नैतिकता पर सवाल उठे। दूसरी ओर, नवभारत टाइम्स का संपादकीय प्रशासनिक विफलताओं को उजागर करने में महत्वपूर्ण था, जिससे सरकार की जवाबदेही पर प्रश्न उठे।
सामाजिक ध्रुवीकरण:
दोनों संपादकीयों ने अपने-अपने तरीकों से समाज को ध्रुवीकृत किया। दैनिक जागरण का नैतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकता है, जबकि नवभारत टाइम्स का प्रशासनिक दृष्टिकोण शासन और प्रशासन के मुद्दों पर समाज को विभाजित कर सकता है।
दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स के संपादकीय दृष्टिकोणों का तुलनात्मक विश्लेषण यह दर्शाता है कि कैसे विभिन्न समाचार पत्रों ने बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना को फ्रेम किया और इससे जनमत और सामाजिक दृष्टिकोण पर क्या प्रभाव पड़ा। दोनों समाचार पत्रों ने अपनी-अपनी फ्रेमिंग तकनीकों और भाषाई उपकरणों का उपयोग करके इस घटना को अलग-अलग दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया, जिससे समाज में विभिन्न विचारधारात्मक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न हुईं।
दैनिक जागरण ने इस घटना को नैतिक और सांस्कृतिक विफलता के रूप में प्रस्तुत किया, जबकि नवभारत टाइम्स ने इसे प्रशासनिक और शासन की विफलता के रूप में चित्रित किया। दोनों समाचार पत्रों ने अपने-अपने तरीकों से जनता की सोच और दृष्टिकोण को प्रभावित किया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि मीडिया फ्रेमिंग का जनमत पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
निष्कर्ष
यह शोध राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना पर दो प्रमुख हिंदी समाचार पत्रों, दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स, के संपादकीय दृष्टिकोणों का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ कि दोनों समाचार पत्रों ने इस घटना को अपने-अपने दृष्टिकोण से फ्रेम किया, जिससे जनमत और सामाजिक दृष्टिकोण पर गहरा प्रभाव पड़ा।
दैनिक जागरण ने इस घटना को एक नैतिक और सांस्कृतिक विफलता के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें भाजपा और विहिप की कड़ी आलोचना की गई। इसके संपादकीय ने भारतीय लोकतंत्र और राष्ट्रीय मूल्यों के ह्रास पर जोर दिया और संवैधानिक सिद्धांतों के उल्लंघन को रेखांकित किया। इस दृष्टिकोण ने पाठकों के नैतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण को प्रभावित किया, जिससे सांप्रदायिक तनाव और विभाजन की भावना को बल मिला।
दूसरी ओर, नवभारत टाइम्स ने इस घटना को शासन और प्रशासनिक विफलता के रूप में चित्रित किया। इसके संपादकीय ने सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारियों की ओर ध्यान आकर्षित किया और राष्ट्रीय चिंतन तथा सतर्कता का आह्वान किया। इस दृष्टिकोण ने प्रशासनिक विफलताओं और राष्ट्रीय सुरक्षा पर जनता का ध्यान केंद्रित किया, जिससे शासन और राजनीतिक जवाबदेही पर बहस को बढ़ावा मिला।
दोनों समाचार पत्रों के संपादकीय दृष्टिकोणों का तुलनात्मक विश्लेषण यह दर्शाता है कि मीडिया फ्रेमिंग न केवल सूचनाओं को प्रस्तुत करती है, बल्कि वह समाज में विचारधारात्मक बदलाव और जनमत को आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह शोध इस बात की पुष्टि करता है कि मीडिया की रिपोर्टिंग और फ्रेमिंग किसी घटना के प्रति जनता की सोच और प्रतिक्रिया को गहराई से प्रभावित कर सकती है, विशेषकर जब वह घटना सामाजिक और राजनीतिक रूप से संवेदनशील हो।
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अभिजीत सिंह, शोधार्थी, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार
डॉ. परमात्मा कुमार मिश्रा, सहायक प्राध्यापक, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार
सत्येश भट्ट, शोधार्थी, गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़