1. कविता का पानी
जब से मोड़ी है
तुमने अपने शब्दों की दिशा
ठीक मेरी आंखों के सामने से
एक अगम भाषा की आंखें
अपने अनूठे बिम्ब लिए
घूरती है मुझे
स्थापत्य के विरल नमूने
इतिहास के पन्नों से निकलकर
मेरी नज़रों के सामने खोलते हैं कई पृष्ठ
अतीत की धुंधली स्मृतियों से परे
मजबूर करते हैं नये सृजन के लिए
और जब मैं छैनी हथौड़े से तराशती हूँ
अपनी आंख में बहुत गहरे बसे
पत्थर से दुखों को
तब पानी पानी हो
बह निकलती है कविता पन्नों पर
सरस, मधुर, शीतल|
2. उम्मीदों के पंख
पहले योजक, अल्प विराम
फिर पूर्ण विराम के बाद
अब विस्मयादिबोधक चिन्ह सी
खटकती हूँ मैं
नींद में उनकी
पंख जो लग गए हैं
उम्मीदों के मुझमें
प्रश्नचिन्ह सी उनकी आंखें
टकटकी लगाएं देखती है
कोष्ठक में जड़ी मेरी पुरानी
परम्परागत परिधान की तस्वीर
अब आडा़ तिरछा चलना
बहकना, मंज़िल को पा लेना
भ्रमित करता है उन्हें
अब छोड़ देता है वह
उन बिन्दुओं….. को
जिसका रास्ता जाता है मुझ तक|
3. स्त्री का अतीत, वर्तमान और भविष्य
स्त्री लिखती है
अपना अतीत:- देह पर जख्मों की वारदातें
लिखती है
वर्तमान:- सौन्दर्य प्रसाधनों में छली देह की दस्तान
लिखती है
भविष्य:- वस्त्रों से मुक्त समय की नग्नता का स्त्री विमर्श
जानती है समय के बदलने के साथ
बदल जाता है जीवन पटकथा का नायक
पर नही बदलता समाज के नजरिये की धुरी पर घूमता
स्त्री देह का व्याकरण |
4. कविता की आत्मा
शब्द दिए
कलात्मकता दी
अर्थ भरा
रस, छन्द
अलंकार
वाक्य विन्यास
शिल्प संयोजन
सब कुछ तो था
कविता में
पर आत्मा नही
आत्मा गायब थी
किसी अदृश्य
प्रेमी की तरह|