भक्तिकालीन कवि रहीम जी सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक थे। जिस प्रकार रत्न अनमोल और बहुत ही लुभावने और चमकदार होते हैं उसी प्रकार रहीम जी के दोहे आज भी अनमोल हैं असरदार हैं आज की वर्तमान परिस्थितियों में भी रहीम जी के दोहे के माध्यम से सामान्य व्यक्ति का जीवन सफल होने की उपलब्धियां प्राप्त होती है रहीम जी का पूरा नाम अब्दुल रहीम खाने खाना था उन्होंने हिंदी साहित्य जगत को दोहों के माध्यम से आम जनता तक अपने अनमोल विचारों को प्रदान किया है।
समय पाई फल होता है, समय पाई झरी जात ।
सदा रहे नहीं एक सौ, का रहीम पछतात ॥
उपरोक्त दोहों का अर्थ इस प्रकार से स्पष्ट किया जाता है कि समय आने पर ही वृक्ष
में फल लगते हैं और झड़ने का समय आने पर ही झड़ जाते हैं । सदा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती इसलिए दुख के समय पछताना व्यर्थ है । कहने का तात्पर्य यह है कि उपरोक्त दोहों में के माध्यम से कवि रहीम जी जो लोग कठिन परिस्थितियों में या दुख की विपदा में होते हैं, तो उन्हें यह समझना चाहिए कि समय हमेशा परिवर्तित होता रहता है। प्रकृति में जिस प्रकार बदलाव होते रहते हैं, जैसे- फल लगने के मौसम में फल लगने का समय और पत्ते झड़ने का समय जिस प्रकार बदलते रहता है उसी प्रकार मनुष्य जाति में जन्मे हुए हर मनुष्य को मुश्किल घड़ी में पछताना बेकार है। उसमें समय नष्ट करना व्यर्थ है, क्योंकि परिस्थितियों में बदलाव होना है ।
इसलिए पछतावा न करें। एक सकारात्मकता का दृष्टिकोण यहां पर रहीम जी के दोहे से प्रस्तुत होता है और सामान्य व्यक्ति की जीवन जीने का एक प्रशस्त मार्ग दिखलाता है।
“
‘रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय ।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोई ।।
उपरोक्त दोहों के माध्यम से कवि रहीम जी हमें यह संदेश देना चाहते हैं कि, यदि विपत्ति कुछ समय आ भी जाती है तो भी ठीक ही है क्योंकि विपत्ति के समय में ही हम यह जान सकते हैं कि संसार में हमारा हित चाहने वाले कौन हैं ? और कौन नहीं ?
आज समाज में चाटूगिरी करने वालों की संख्या बढ़ती हुई हमें दिखाई दे रही है । लेकिन यही चाटूगिरी करने वाले लोग जब सामने वाले व्यक्ति पर कोई मुश्किल घड़ी आती है, तो तुरंत अपने हाथ ऊपर उठा लेते हैं। इससे हमें यह पता चल जाता है कि कौन अपना है । और कौन पराया । कौन संकट की घड़ी में समय पर काम आते और कौन अपना भला चाहता है और कौन बुरा यह बात समझ में आ जाती है । आज के इस मतलबी दुनिया में विपदा की घड़ी भी आना जरूरी है क्योंकि हमें सही और गलत का अच्छी तरह से ज्ञान मिलता है। तो हम ऐसे लोगों से बचकर रहने की सलाह भी मिलती है जो केवल हमारी केवल ऊपर ही ढंग से प्रशंसा करते हैं । और मुसीबत में अनाप–शनाप बकते हैं। हमें यह बात अच्छी तरह से जान पड़ती है कि कौन हमारा हितैषी है और कौन अहितैषी । विपदा में हिम्मत नहीं हारनी चाहिए बल्कि उसका तो मन पूर्वक ऋण व्यक्त करना चाहिए कि हमें सच का आइना दिखा कर बाद
में पछताने से बेहतर है कि पहले ही संभल जाए। और हमें सही समय पर ही जागृत कर दे। जो वर्तमान परिस्थितियों में अत्यंत आवश्यक है।
“
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि । जहां काम आवे सुई, कहा करे तलवारी ।।
अर्थात रहीम जी कहते हैं कि बड़ी वस्तु को देखकर छोटी वस्तु को फेंक नहीं देना चाहिए जहां छोटी सी सुई काम आती है, वहां तलवार बेचारी क्या कर सकती है। रहीम जी हमें उपरोक्त दोहों के माध्यम से यह बताना चाहते हैं, कि कभी–कभी मनुष्य जीवन में बड़ी–बड़ी चीजों को ज्यादा महत्व देता है और छोटी सी चीज को महत्वहीन समझता है । लेकिन जहां छोटी सी वस्तु से ही काम पूरा हो जाता है वहां बड़ी वस्तु का क्या महत्व है। इसके उदाहरण में उन्होंने कुछ जुड़ाने के लिए छोटी सी सुई का प्रयोग काम आ सकता है वहां तलवार का क्या उपयोग होगा ? वर्तमान परिस्थितियों में मनुष्य हमेशा जिंदगी के चकाचौंध भरी जगमगाती दुनिया में भटकना चाहता है। लेकिन अगर अज्ञान रूपी अंधेरे में एक ज्ञानरूपी दीया जलाया जाए तो चकाचौंध कर देने वाली रोशनी की क्या जरूरत है। मनुष्य के पास चीजें छोटी हो या बड़ी लेकिन सही समय पर उसका प्रयोग कर जीवन में खुशियां लाने का प्रयास कर सकता है। जो बड़ी चीज उसके पास उपलब्ध नहीं है, उसके पीछे भागना बेकार है।
तात्पर्य यह है कि मनुष्य को समाधानी वृत्ति का होना अत्यंत आवश्यक है। जो चीज उसके पास है चाहे वह छोटी सी क्यों ना हो लेकिन समय पर काम तो आ रही है। इस बात पर प्रसन्न रहना सीखना चाहिए। बड़ी चीजों के पीछे भागना व्यर्थ है । बड़ी चीज के सामने छोटी चीज को तुच्छ नहीं समझना चाहिए या उसे कमजोर नहीं समझना चाहिए।
“
रहिमन मनहि लगाई के देखि, लेहु किन कोय।
नर को बस करिबो कहा, नारायण बस होय ।।“
अर्थात रहीम जी हमें कहना चाहते हैं कि जो मनुष्य किसी काम को पूरे मन से करता है तो उसे निश्चित रूप से सफलता मिलती है । उसी प्रकार मन लगाकर आराधना करने से नर तो क्या नारायण (ईश्वर ) को भी बस में किया जा सकता है। कभी किसी के मन को जानकर समझकर उसे अपना कर तो देखो मन की सच्ची आराधना से ईश्वर प्राप्ति होती है इस दुनिया में कई दुखियारी बेचारे नर उदासी भरा जीवन यापन करते हैं। तो ऐसे उदासियां मायूसी छोड़कर अगर हम जिस प्रकार प्यार और स्नेह से किसी मनुष्य का दिल जीत सकते हैं, उसी प्रकार ईश्वर को भी बस में कर लेते हैं। ईश्वर अगर कहीं हैं, तो वह मनुष्य के भीतर छिपे हुए मन में । इसलिए मन को जानकर ईश्वर को प्रसन्न किया जा सकता है। बस किसी के मन को समझ कर तो देखो अपनी ओर से मन लगा कर तो देखो क्या लेकर जाओगे इस संसार से मन लगाकर नर को खुशी से अपने बस में हो जाता है। तो ईश्वर भी बस में होता है ।
हित रहीम इतने करें, जा की जिती बिसात।
नहिं यह रहे न वह रहे, रहे कहना को बात || ”
अर्थात रहीम जी कहते हैं कि हमें लोगों की भलाई भी जितनी योग्यता
है, उतनी ही करनी चाहिए। यह किसी को कहने की बात नहीं कि वह किसी को याद रहें या ना रहे किसी का हित या भला इतना करें जितनी उसकी भी साथ हो या सामर्थ्य हो । छोटी- छोटी बातें भी लोगों को याद रहती है। इसे कहने की बात नहीं वह बातें कोई कहे या ना कहे यह सब रहे या ना रहे। लेकिन लोग उसे कहते हैं ।
यह बात आज के वर्तमान समय में भी हमें प्रभावित करती है कि मनुष्य को भलाई भी उतनी ही करनी चाहिए जितनी उसकी क्षमता हो । यह नहीं कि दिखावे के लिए या बड़प्पन के लिए कोई काम करें बल्कि छोटी सी क्यों ना भलाई हो वह लोगों को कहने की बात रह जाती है।
–