1• खुल रहे ग्रहों के दरवाजे
मैंने जिस मेज पर रखा अपना स्पर्श
उसी से आने लगी दो खरगोशों के सिसकने की आवाज़
हाथ से होकर शिराओं में दौड़ने लगी गिलहरियाँ
मैंने जिस भी कमरे में किया प्रवेश
उसी से आयी
कामगार पिताओं वाले बच्चों की जर्जर खिलखिलाहट
जिस हवा को पिया मैंने अभी कभी
उसी में आती रही मुझे पूर्वजों की पसिनाई गंध
होंठ के रंग को करते हुए कत्थई से लाल
जिस भी चुम्बन को जिया मैंने
उसी में बिलखती रही भगत सिंह की प्रेमिका
जिस भी फूल को चुना मैंने
तुम्हारे गर्वीले जूड़े में टाँकने के लिए
वही पकड़कर हाथ मेरा पहुँच गए मुर्दाघर
मैंने जिस भी शब्द को चुना
किसी से लड़ने के लिए
वही जुड़े हाथ कहने लगे मुझसे
क्षमा ! क्षमा ! क्षमा !
2• लड़ने के लिए चाहिए
लड़ने के लिए चाहिए
थोड़ी सी सनक , थोड़ा सा पागलपन
और एक आवाज को बुलंद करते हुए
मुफ्त में मर जाने का हुनर
बहुत समझदार और सुलझे हुए लोग
नहीं लड़ सकते कोई लड़ाई
नहीं कर सकते कोई क्रांति
जब घर मे लगी हो भीषण आग
आग की जद में हों बहनें और बेटियाँ
तो आग के सीने पर पाँव रखकर
बढ़कर आगे उन्हें बचा लेने के लिए
नहीं चाहिए कोई दर्शन या कोई महान विचार
चाहिए तो बस
थोड़ी सी सनक , थोड़ा सा पागलपन
और एक खिलखिलाहट को बचाते हुए
बेवजह झुलस जाने का हुनर
जब मनुष्यता डूब रही हो
बहुत काली आत्माओं के पाटों के बीच बहने वाली नदी , तो
नहीं चाहिए कोई तैराकी का कौशल-ज्ञान
साँसों को छाती के बीच रोक
नदी में लगाकर छलाँग
डूबते हुए को बचा लेने के लिए
चाहिए तो बस
थोड़ी सी सनक , थोड़ा सा पागलपन
और एक आवाज की पुकार पर
बेवजह डूब जाने का हुनर ।
बहुत समझदार और सुलझे हुए लोग
नहीं सोख सकते कोई नदी
नहीं हर सकते कोई आग
नहीं लड़ सकते कोई लड़ाई ।
3• मृत्यु और सृजन के बीच एक प्रेम-कथा
रे रंगरेजिन रे
छू ले कर दे चंदन ये तन
सुन ले कर दे रूई सा मन
रे रंगरेजिन रे
कहते हैं जब वह सफेद हिरन
उस गुलाबी हिरनी को सौंपकर अपना घुटना
आवाज में आँखों की पूरी आर्द्रता घोलकर
गाता था यह गीत तो
राजा का सिंहासन थरथराने लगता था
कानों में रेंगने लगते थे मगरगोह
अँगुलियाँ गलकर गिरने लगती थीं मोम सी
बदन को चाटने लगते थे काले साँप
आखिरश एक दिन राजा के सैनिक
भालों और बर्छियों पर टाँगकर उठा लाए हिरनी को
हिरनी की आत्मा भूनकर खा गए मंत्रीगण
और हिरन को डुबोकर मारा जंगल की नदी में
सुनने वाले कहते हैं
साँस की आखिरी छोर तक गाया था हिरन वह गीत
रे रंगरेजिन रे
छू…….चंदन..तन
सुन ले …रूई…मन
हिरन की देह को तो खा गयीं स्मृति की मछलियाँ
पर उसका हृदय पानी मे घुल गया
नदी का पूरा पानी हो गया हल्का गुलाबी
नदी का पानी जंगल के और जन पीते रहे कुछ दिन
पर अचानक यूँ ही एक रोज
एक खरगोश ने गाया एक बाघ के लिए वह गीत
फिर तो , भेड़िये मेमनों के लिए
मोर साँपों के लिए
शेर जिराफों के लिए
सबकुछ भूलकर गाने लगे वह गीत
रे रंगरेजिन रे …..
जैसे-जैसे गीत के स्वर जंगल के बाहर आये
राजा की साँसे फूलीं और वह मर गया
सिंहासन तड़ताड़कर टूट गया खण्ड कई
किले की मेहराबें बालू की तरह ढह गयीं
दफ़्न हो गए सभी सिपहसालार
मरघट हो गया पूरा का पूरा राज्य
सुनने में आता है कि उस तारीख़
देर रात तक जंगल से आती रही एक गीली आवाज
जैसे अपने पूरे वजूद को रोककर कण्ठ अपने
जीभ पर रखकर प्रेमिका की लाश
भरभराये स्वरों में फफकते हुए
गाता रहा कोई विरही अगले भोर तक
रे रंगरेजिन रे
छू ले कर दे चंदन ये तन
सुन ले कर दे रूई सा मन
रे रंगरेजिन रे …
4• इस देश की नागरिकता की नयी अहर्ताएँ
अपनी आत्मा को खूब सुखा दो पहले
फिर अपनी रीढ़ की हड्डी निकालकर सौंप आओ
हत्यारों ,आतताइयों और धार्मिक उन्मादियों के हाथ
अपने मस्तिष्क में धर्म का धुआँ भर लो इस कदर कि
तुम अपनी बेटियों , पत्नियों और माँओं के लिए
कुतिया , रंडी , और छिनाल जैसे सम्बोधनों का समर्थन कर सको
और सोच सको कि
मेरा प्रधानमंत्री इसके समर्थन में है
तो अवश्य ही अपूर्व गौरव की बात है
अपने हृदय को
फूल से बच्चों की जली लाश की राख से लीप लो
कर लो बिल्कुल मृत्यु सा काले रंग में
और इन बच्चों की हड्डियों में
वह रंग विशेष का झण्डा लहराकर
पूरे हृदय से भारत माता को करो याद
अपने कानों में ठूँस लो हत्या समर्थन के सभी तर्क-पुराण
और उन गला सुजाकर रोती माँओं की चीख को
भजन या राष्ट्रगान की तरह सुनो
जिनके ईश्वर जैसे बच्चे
स्कूल और अस्पताल से नहीं लौटे आज की शाम
जुबान को काटकर रख आओ सत्ता के पैरों पर
आँखों का पानी बेच आओ सम्प्रदाय की दुकान में
आने के पहले थोड़ा लाश हो जाओ
थोड़ा-थोड़ा हो जाओ पत्थर
फिर तो स्वागत है तुम्हारा इस देश में
एक देशभक्त और सम्मानित नागरिक की तरह ।
5• पार्श्व में नगाड़े बजते हैं
यह लोहार की भट्ठियों में काम कहाँ से आया
यह शमशीरों के खनकने की आवाज कैसी है
जो बूढ़े किसान सरकार की गोली खाकर मरे
आखिर कहाँ गए एकसाथ उनके जवान लड़के
वह अधेड़ आदमी
अपनी बूढ़ी बन्दूक को तेल क्यों पिला रहा
प्रदर्शन के लिए रखी तोपों का बदन
आखिर टूटता है क्योंकर
तीरों पर लगा जंग क्यों छूटता है आज की शाम
ये कुछ औरतें क्यों खरीद रही हैं एकसाथ
कफ़न और शौर्य की सामानें
जाने तो क्या हुआ है आज कि
सभी हलों के फार
पिघल कर खंजरों में ढल रहे हैं
इस दौर में मैं एकसाथ
उत्साह और भय से भरा हुआ हूँ
कोई बतायेगा
सभी हिनहिनाते हुए घोड़ो का मुँह
देश की राजधानी की तरफ क्यों है ?
6• पिता होना बचा रहेगा
आसमान से एक फूल गिरा
उसकी प्रार्थना में उठी दोनों बाहों में
गिरते हुए झरने सा उजला सा फूल
खुश्बुओं से भर दियाआत्मा का कोना-कोना
वह जीवन मे पहली बार पिता बना
पिता तो एक ही बार बनता है पुरुष
फिर वह जीवन भर पिता रहता है
पिता ने उस फूल जैसी बेटी को
बहुत आहिस्ता-आहिस्ता छुआ
डरते हुए कि कहीं इन कठोर हाँथो का स्पर्श
दुनियाँ की महान खूबसूरत सम्पदा को नष्ट न कर दे
कहीं उसकी आध्यात्मिक नींद का जादू टूट न जाये
गोद मे जब भी उठाया तो ध्यान रखा
कहीं दुनियाँ उसके हाथों से छूटकर गिर न पड़े
वह इस ग्रह पर निचाट अकेला हो जाएगा तब तो
यूँ समझिए कि जैसे कोई अपना हृदय निकाल दे अपनी देह से
और उसे गोद में लेकर झुलाता रहे
झूमता रहे खुद भी किसी अजानी खुशी के हाथों सौंपकर खुद को
पिता ने उसे जब भी कंधे पर चढ़ाया तो महसूस किया कि
ईश्वर कितनी जिम्मेदारी भरी नौकरी करता होगा
पिता ने उसे सृष्टि की आखिरी उम्मीद की तरह पाला
यूँ कि जैसे इसके बाद
इसके न होने से
आसमान किसी विशाल काँच की तरह टूटकर गिर जाएगा समुद्र की गोद में
सारे जंगल सूखकर समा जायेंगें धरती की गर्भ में
सारी पक्षियाँ चली जायेंगीं अपने-अपने घोसलों में हमेशा-हमेशा के लिए
हवा ठहर जाएगी यकायक चलते-चलते
वह दुनियाँ का महान पिता होने की कोशिश करता और
उस लड़की से अथाह प्रेम करता
जो उसकी बेटी थी
महीने गुजरे , साल गुजरे , दिन बीतते रहे
वह आसमानी फूल बड़ी होती रही
पिता का प्रेम भी बढ़ता गया दिन गए , साल गए
अब भी पिता को अथाह प्रेम है अपनी बेटी से
पर प्रेम भी वैसा कि जैसा कोई अपनी पत्नी से करता है प्रेम
या करना चाहता है
जैसे सभी प्रसिद्ध प्रेम कथाओं के नायक नायिका के बीच होता है प्रेम
पिता पुरुष है
बेटी प्रेमिका है एक पुरुष पिता की
पिता की आत्मा नाखुश है खुद से
और पिता बिलख रहा है अपने स्नेह में
कि यह सच किस नदी में बहा दें
किस आग में जला दें
किस कब्र में दफ़ना दें
पिता ने अपनी घुटन के सामने टेक दिए हैं घुटने
मगर प्रेम है कि छूटता नहीं
पिता जंगल गया है अपनी बेचैनी त्यागने
पिता गुफाओं में बैठा खुद को साध रहा है अपने ही खिलाफ
पिता पहाड़ों पर बैठकर रो रहा है खो चुकी आवाज में
यह पिता जानता है ईश्वर होना कितना कठिन है
यह उन पिताओं की कथा है
जो ईश्वर नहीं हो सके ।
7• चाय पर शत्रु – सैनिक
उस शाम हमारे बीच किसी युद्ध का रिश्ता नही था
मैनें उसे पुकार दिया –
आओ भीतर चले आओ बेधड़क
अपनी बंदूक और असलहे वहीं बाहर रख दो
आस-पड़ोस के बच्चे खेलेंगें उससे
यह बंदूकों के भविष्य के लिए अच्छा होगा
वह एक बहादुर सैनिक की तरह
मेरे सामने की कुर्सी पर आ बैठा
और मेरे आग्रह पर होंठों को चाय का स्वाद भेंट किया
मैंनें कहा –
कहो कहाँ से शुरुआत करें ?
उसने एक गहरी साँस ली , जैसे वह बेहद थका हुआ हो
और बोला – उसके बारे में कुछ बताओ
मैंनें उसके चेहरे पर एक भय लटका हुआ पाया
पर नजरअंदाज किया और बोला –
उसका नाम समसारा है
उसकी बातें मजबूत इरादों से भरी होती हैं
उसकी आँखों में महान करुणा का अथाह जल छलकता रहता है
जब भी मैं उसे देखता हूँ
मुझे अपने पेशे से घृणा होने लगती है
वह जिंदगी के हर लम्हें में इतनी मुलायम होती है कि
जब भी धूप भरे छत पर वह निकल जाती है नंगे पाँव
तो सूरज को गुदगुदी होने लगती है
धूप खिलखिलाने लगता है
वह दुनियाँ की सबसे खूबसूरत पत्नियों में से एक है
मैंनें उससे पलट पूछा
और तुम्हारी अपनी के बारे में कुछ बताओ ..
वह अचकचा सा गया और उदास भी हुआ
उसने कुछ शब्दों को जोड़ने की कोशिश की –
मैं उसका नाम नहीं लेना चाहता
वह बेहद बेहूदा औरत है , और बदचलन भी
जीवन का दूसरा युद्ध जीतकर जब मैं घर लौटा था
तब मैंनें पाया कि मैं उसे हार गया हूँ
वह किसी अनजाने मर्द की बाहों में थी
यह दृश्य देखकर मेरे जंग के घाव में अचानक दर्द उठने लगा
मैं हारा हुआ और हताश महसूस करने लगा
मेरी आत्मा किसी अदृश्य आग में झुलसने लगी
युद्ध अचानक मुझे अच्छा लगने लगा था
मैंनें उसके कंधे पर हाथ रखा और और बोला –
नहीं मेरे दुश्मन ऐसे तो ठीक नहीं है
ऐसे तो वह बदचलन नहीं हो जाती
जैसे तुम्हारे सैनिक होने के लिए युद्ध जरूरी है
वैसे ही उसके स्त्री होने के लिए वह अनजाना लड़का
वह मेरे तर्क के आगे समर्पण कर दिया
और किसी भारी दुख में सिर झुका दिया
मैंनें विषय बदल दिया ताकि उसके सीने में
जो एक जहरीली गोली अभी घुसी है
उसका कोई काट मिले –
मैं तो विकल्पहीनता की राह चलते यहाँ पहुँचा
पर तुम सैनिक कैसे बने ?
क्या तुम बचपन से देशभक्त थे ?
वह इस मुलाकात में पहली बार हँसा
मेरे इस देशभक्त वाले प्रश्न पर
और स्मृतियों को टटोलते हुए बोला –
मैं एक रोज भूख से बेहाल अपने शहर में भटक रहा था
तभी उधर से कुछ सिपाही गुजरे
उन्होंने मुझे कुछ अच्छे खाने और पहनने का लालच दिया
और अपने साथ उठा ले गए
उन्होंने मुझे हत्या करने का प्रशिक्षण दिया
हत्यारा बनाया
हमला करने का प्रशिक्षण दिया
आततायी बनाया
उन्होनें बताया कि कैसे मैं तुम्हारे जैसे दुश्मनों का सिर
उनके धड़ से उतार लूँ
पर मेरा मन दया और करुणा से न भरने पाए
उन्होंने मेरे चेहरे पर खून पोत दिया
कहा कि यही तुम्हारी आत्मा का रंग है
मेरे कानों में हृदयविदारक चीख भर दी
कहा कि यही तुम्हारे कर्तव्यों की आवाज है
मेरी पुतलियों पर टाँग दिया लाशों से पटा युद्ध-भूमि
और कहा कि यही तुम्हारी आँखों का आदर्श दृश्य है
उन्होंने मुझे क्रूर होने में ही मेरे अस्तित्व की जानकारी दी
यह सब कहते हुए वह लगभग रो रहा था
आवाज में संयम लाते हुए उसने मुझसे पूछा –
और तुम किसके लिए लड़ते हो ?
मैं इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं था
पर खुद को स्थिर और मजबूत करते हुए कहा –
हम दोनों अपने राजा की हवश के लिए लड़ते हैं
हम लड़ते हैं क्यों कि हमें लड़ना ही सिखाया गया है
हम लड़ते हैं कि लड़ना हमारा रोजगार है
वह हल्की हँसी मुस्कुराते मेरी बात को पूरा किया –
दुनियाँ का हर सैनिक इसी लिए लड़ता है मेरे भाई
वह चाय के लिए शुक्रिया कहते हुए उठा
और दरवाजे का रुख किया
उसे अपने बंदूक का खयाल न रहा
या शायद वह जानबूझकर वहाँ छोड़ गया
बच्चों के खिलौने के लिए
बंदूक के भविष्य के लिए
वह आखिरी बार मुड़कर देखा तब मैंनें कहा –
मैं तुम्हें कल युद्ध में मार दूँगा
वह मुस्कुराया और जवाब दिया –
यही तो हमें सिखाया गया है ।
8• जिन लड़कियों के प्रेमी मर जाते हैं
पहले तो उन्हें इस खबर पर विश्वास नहीं होता
कि धरती को किसी अजगर ने निगल लिया है
सूरज आज काम पर नहीं लौटेगा
आज की रात एक साल की होगी
फिर जैसे तैसे घर के किसी कोने में दफ़्न हो जाती हैं
और अपनी ही कब्र में
बिलखकर रोती हैं
मुँह बिसोरकर रोती हैं
तड़पकर रोती हैं
तब तक रोती हैं कि होश जाता नहीं रहता
और गले के भीतरी हिस्से
कोई गहरा घाव नहीं बन जाता
उन्हें बहुत कुछ याद आता है बिलखते बखत
इतना कुछ कि किसी कविता में दर्ज कर पाने की कोशिश
अनेक स्मृतियों की हत्या का अपराध होगा
जैसा कि हर बार रो लेने के बाद
या कोई भारी दुख झेलने के बाद
हम तनिक अधिक कठोर मनुष्य हो जाते हैं
ऐसे ही वे लड़कियाँ महीनों बाद
देह से मृत्यु का भय झाड़कर निकलतीं हैं घर से बाहर
एक बार फिर , पहली बार जैसी
हर दृश्य को देखतीं हैं नवजात आंखों से
वे लड़कियाँ फिर से हँसना सीखती हैं
और उनके कमरे का अंधेरा आत्महत्या कर लेता है ।
तरोताजा हो जाती है दीवारों की महक
जैसा कि मुनासिब भी है
वे लड़कियाँ एक बार फिर
शुरू से करती हैं शुरुआत
( यह एक आंदोलनकारी घटना होती है )
ऐसी लड़कियाँ
अपनी आत्मा के पवित्र कोने में रख देती हैं
पहले प्रेमी के साथ का मौसम
और संभावनाओं से भरे इस विशाल दुनियाँ में से
फिर से चुनती हैं एक प्रेमी
इस बार भी वही पवित्र भावनाएँ जन्मती हैं
उनके दिल के गर्भ से
वही बारिश से धुले आकाश सा होता है मन
जिन लड़कियों के प्रेमी मर जाते हैं
वे लड़कियाँ
दुबारा प्रेम करके भी बदचलन नहीं होतीं ।
9• मोर्चे पर विदागीत
उसके होंठ चूमना छोड़ते हुए
उसके चेहरे को भर लिया अँजुरियों में
और उसकी आँखों को पीते हुए मैंने कहा
मैं मिलूँगा तुमसे
तुम मुझे भूल मत जाना
दिन , महीने , साल लाँघकर
आऊँगा एक रोज अचानक
तुम्हें गोदी में उठा लूँगा
तब तुम्हारा चेहरा यकीनन
किसी पहाड़ी फूल सा ताजा और चमकदार हो जायेगा
वह मुझे पनियाई आँख से देखती रही बस
जैसे किसी को आखिरी बार देखा जाता है
मैंनें उसे अपनी देह से छुड़ाते हुए सच कहा –
मैं जा रहा हूँ उस युद्ध में
जिसकी घोषणा किसी मौसम ने नहीं की
जिसके बारे में कोई पीढ़ी नही सुनाएगी कहानियाँ
जिसकी वीरता के किस्से सिर्फ शहीद हुए सिपाही कहेंगें और सुनेंगें
यह युद्ध मेरे और मेरे राजा के बीच है
मेरा उन्मादी राजा
दुनियाँ की हर खूबसूरत चीज को
नेस्तनाबूद कर देने की योजनाओं में व्यस्त है
हर प्रकार की स्वतंत्रता को वह चबा लेना चाहता है
मनुष्यों को धर्म मे बदल देना चाहता है
लोगों के सिर से उनका मस्तिष्क ऐसे निकाल ले रहा है कि
खुद उन्हीं को कोई खबर नहीं हो रही
राजा जिस भी रास्ते से गुजर रहा है
उधर की हवाओं में वही दुर्गंध फैल जा रही है
जो लाखों-लाख इंसानों की लाशों के एकसाथ जलने से आती है
राजा ने एक ऐसे जानवर को गोद ले रखा है
जो अपने अपूजकों की हत्या
अपने स्पर्श भर से कर देने की काबिलियत के लिए मशहूर हो रही है
इतना ही नहीं
मेरा क्रूर राजा
तुम जैसी बेकसूर प्रेमिकाओं को
कैद करके
किसी अनन्त अंधेरे में फेंक भी देना चाहता है सदियों सदियों के लिए
कि प्रेम कोई जघन्य अपराध हो
मेरी बातों से वह और भी उदास हो गयी
उसका गला रुँधने लगा
और उसकी खूबसूरत आँखे भरभरा गयीं
वह समझ गयी कि मैं न लौटने के लिए माफी माँग रहा हूँ
जब मैं कह रहा हूँ –
मैं मिलूँगा तुमसे
मैंनें उसे हिम्मत बँधाया
नहीं, वे मेरी हड्डियों में बारूद भर देंगें
निकाल लेंगें मेरी आँखें
कानों में उबलता तेल डालेंगें
मेरे नाखूनों में कील ठोंककर तुम्हारा नाम पूछेंगें
उस आखिरी घड़ी में मैं तुम्हें याद करूँगा
हृदय की असीम पवित्रता की दीवाल पर तुम्हारी मुस्कुराती तस्वीर देखकर
वे बार – बार पूछेंगें नाम तुम्हारा
और मैं मर जाऊँगा पर नहीं बताऊँगा
तब वे जान जायेंगें
यह अन्त नहीं है
मेरा जैसा दूसरा आयेगा
तीसरा , चौथा , पाँचवा और न जाने कितने आयेंगें
जो अपनी प्रेमिका के लिए
अपनी कल्पनाओं जितनी खूबसूरत दुनियाँ चाहते हैं
वह अब फफक उठी और धम्म से मुझसे चिपक गयी
मैंने मुस्कुराते हुए
अपनी कलम उठायी
किताबों को पहना
और कविताओं को पीठ पर लाद
कस्बा छोड़ने के पहले कहा –
मैं नहीं भी लौटा तो मेरे जैसा दूसरा लौटेगा
तुम उसे मेरे जितना ही प्यार करना
वह उसका हकदार होगा
यूँ तो
मैं मिलूँगा तुमसे
साथियों ! मेरा विदागीत यहीं खत्म होता है
इस पेड़ को शुक्रिया कहो और चलो उठो
हमें राजा को उसकी हवशी योजनाओं समेत दफ़्न कर देना है
और समय रहते लौटना भी तो है
अपनी – अपनी प्रेमिका की बाहों में
यह इतना कठिन भी नहीं है ।
10• ईश्वर को किसान होना चाहिए
ईश्वर सेनानायक की तरह आया
न्यायाधीश की तरह आया
राजा की तरह आया
ज्ञानी की तरह आया
और भी कई – कई तरह से आया ईश्वर
पर जब इस समय की फसल में
किसान होने की चुनौतियाँ
मामा घास और करेम की तरह
ऐसे फैल गयी है कि
उनकी जिजीविषा को जकड़ रही है चहुंओर
और उनका जीवित रह जाना
एक बहादुर सफलता की तरह है
तो ऐसे में
ईश्वर को किसान होकर आना चाहिए
( मुझे लगता है ईश्वर किसान होने से डरता है )
वह जेल में
महल में
युध्द में
जैसे बार बार
लेता है अवतार
वैसे ही उसे
अबकी खेत में लेना चाहिए अवतार
ऐसे कि
चार हाथों वाले उस अवतारी की देह
मिट्टी से सनी हो इस तरह कि
पसीने से चिपककर उसके देह का हिस्सा हो गयी हो
बमुश्किल से उसकी काली चमड़िया
ढँक रही हों उसकी पसलियाँ
और उस चार हाथों वाले ईश्वर के
एक हाथ में फरसा
दूसरे में हँसिया
तीसरे में मुट्ठी भर अनाज
और चौथे में महाजन का दिया परचा हो
( कितना रोमांचक होगा ईश्वर को ऐसे देखना )
मुझे यकीन है ईश्वर महाजन का दिया परचा
किसी दिव्य ज्ञान के स्रोत की तरह नहीं पढ़ेगा
वह उसे पढ़कर उदास हो जायेगा
फिर वह महसूस करेगा कि
इस देश में ईश्वर होना
किसान होने से कई गुना आसान है
सृष्टि के किसी कोने
सचमुच ईश्वर कहीं है
और वह अपने अस्तित्व को लेकर सचेत भी है
तो फिर अब समय आ गया है कि
उसे अनाज बोना चाहिए
काटना चाहिए , रोना चाहिए
ईश्वर को किसान की तरह होना चाहिए ।
विहाग वैभव
शोधार्थी
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय