मैंने अचानक अपने

व्हाट्सऐप पर देखा

तो वह अनेकों हिदायतें

और आशीर्वादों से भरा था

जैसे तुम्हारा डायबिटीज बढ़ा हुआ है

मीठी चीज बिल्कुल न खाओ

ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करो

नियमित योगाभ्यास करो

बच्चों को बहुत सा प्यार

बहू को ढेर सा दुलार

वगैरह, वगैरह

मैने आँखों को फाड़ कर देखा

व्हाट्सऐप के एप् से बाहर

निकल कर जीवन के

पचहत्तर बसन्त पूरे कर चुकी

मेरी माँ अपने कांपते हाथों से प्रार्थनाओं की

बरसात कर रही थी

और दे रही थी हिदायत

उसी तरह जैसे जब मैं स्कूल जाने वाला विद्यार्थी था

आज फिर दिवाली का त्योहार आ गया

और वो दे रही दुआयें सपरिवार

मेरे सकुशल रहने की ईश्वर से

और कर रही निवेदन कि पिछली चार दिवाली से

तुम घर नहीं आ पाये हो

इस बार घर आ जाओ

और फिर दिवाली आकर

चली जाती है और माँ दिया जलाती हुई

तस्वीर डाल देती है व्हाट्सएप् पर और

लिख देती है तमाम प्यार दुलार और

आशीर्वाद

मुझे लगता है कि माँ भी तो दिये की बाती की तरह है जो मेरे जीवन के तमाम अंधकार को मिटाती है खुद जलकर अंधकार में रहकर।

राकेश धर द्विवेदी
लखनऊ (उ0प्र0)

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