1. समर्थन

     

    *विधवा शब्द कहना कठिन
    उससे भी कठिन
    अँधेरी रात में श्रृंगार का त्याग
    श्रृंगारित रूप का *विधवा में विलीन होना
    जीवन की गाड़ी के पहिये में
    एक का न होना

     चेहरे पर कोरी झूठी
    मुस्कान होना
    घर आँगन में पेड़ झड़ता सूखे पत्ते
    ये भी साथ छोड़ते
    जीवन चक्र की भांति
    सुना था पहाड़ भी गिरते
    स्त्री पर पहाड़ गिरना समझ आया
    कुछ समय बाद पेड़ पर पुष्प हुए पल्ल्वित
    जिन्हे बालो में लगाती थी कभी
    वो बेचारे गिर कर
    कह रहे उन लोगो से जो
    शुभ कामों में तुम्हे धकेलते पीछे
    स्त्री का अधिकार न छीनो
    बिन स्त्री के संसार अधूरा
    हवा फूलों की सुगंध के साथ
    मानों कर रही हो गिरे
    पूष्प का समर्थन

    *(विधवा -कल्याणी)

     

  2. माँ मैं  दौडूंगा 

    माँ मैं तुम्हारे लिए दौडूंगा
    जीवन भर आप मेरे लिए दौड़ती रही
    कभी माँ ने यह नहीं दिखाया कि
    मैं थकी हूँ

    माँ ने दौड़ कर जीवन की सच्चाइयों
    का आईना दिखाया
    सच्चाई की राह पर
    चलना सिखाया

    अपने आँचल से मुझे
    पंखा झलाया
    खुद भूखी रह कर
    मेरी तृप्ति की डकार
    खुद को संतुष्ट पाया

    माँ आप ने मुझे अँगुली
    पकड़कर चलना /लिखना सिखाया
    और बना दिया बड़ा आदमी
    मैं खुद हैरान हूँ

    मैं सोचता हूँ
    मेरे बड़ा बनने पर मेरी माँ का हाथ और
    संग सदा उनका आशीर्वाद है
    यही तो सच्चाई का राज है

    लोग देख रहे है खुली आँखों से
    माँ के सपनों का सच
    जो उन्होंने मेहनत/भाग दौड़ से पूरा किया
    माँ हो चली बूढ़ी
    अब उससे दौड़ा नहीं जाता किंतु
    मेरे लिए अब भी दौड़ने की इच्छा है मन में

    माँ अब मैं आप के लिए दौडूंगा
    ता उम्र तक दौडूंगा
    दुनिया को ये दिखा संकू
    माँ से बढ़ कर दुनिया में
    कोई नहीं है

     

    संजय वर्मा “दृष्टि”

     

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