एक सूनी धूप में जब सब अपने अपने दफ़्तर के या दूसरे काज़ में व्यस्त रहते हैं इक्का दुक्का लोग ही सड़कों पर दिखते हैं पर शाम होते होते सड़क पर दफ़्तरी लोगों की अनजानी भीड़ जैसे कोई महासागर छोटे बड़े नद-नदियों से मिल रहा हो।शाम होते होते धूप का एक कोना ऑफिस के एक कोने पर और उसके पश्चात् कम होता होता प्रकाश उसे अंधकार में डूबो देता है।शहरी लोगों की दिनचर्या और शाम एक जैसी ही होती है किसी पब में सिगरेट फूंकना या मैट्रो के किसी डिब्बे मे,किसी निर्जन कोने में अपने अंदर पनप रही अतृप्त वासनाओं को पूरा करना।ये रोज़ का ही काम है एक लंबा दिन बढ़ती उम्र जो दिनोदिन बुढ़ापे में बदल जाती है पर पाश्चात्य धुनों पर थिरकना किसे नहीं भाता तभी तो हर बीट्स पर उनकी आंखे थिरकती हैं होठ बोलते हैं और पैर डगमगाते हैं और वो ढूंढ ही लेते हैं अपना सा एक धराशायी व्यक्तित्व को जो उनकी नज़रों में सबसे निपुण चरित्र होता है।आदमी अब आदमी बनने की भरपूर कोशिश करता है पर स्वयं को खो देने के पश्चात् चूंकि दिखने में चेहरा किसी मुखौटे को ढांपे हो पर यथार्थ में तो कुरूपता की ओर ही बढ़ता रहता है।
रात के लगभग नौ बज चुके हैं चारों ओर भागता शहर और हर तरफ शौरगुल पर प्रशांत अभी भी कमरे में बंद पर लैपटाॅप पर चिपका है किसी गहन सोच में करीब एक घंटे से इसी तरह उसका फोन भी व्यस्त है जाने वो किससे बात कर रहा है अब केवल डेढ़ घंटा ही शेष है अभी ऐयरपोर्ट भी पहुंचना है।नीना साड़ी की सलवटों को ठीक करती हुई प्रशांत के सामने आकर खड़ी हो गयी बायें हाथ में पहनी कलाई घड़ी को प्रशांत के सामने ले आयी जैसे ही प्रशांत ने घड़ी और नीना के चेहरे को देखा नीना की भवें तनी थी होठ फैल रहे थे चेहरे पर अस्पष्ट आक्रोश था पर प्रशांत ने एक सामान्य बात समझकर दायीं हथेली को पूरा खोल दिया और ज़ोर देते हुए नीना को इशारे केवल पांच मिनट और रूकने का निर्देश दिया।
ऐसा आज नहीं पहले भी कई मर्तवा हो चुका है नीना पर्दे की सलवटों को ठीक करते हुए यात्रा की अंतिम तैयारियों से व्यस्त हो गयी पर प्रशांत की तरफ से अभी कुछ भी कन्फर्म नहीं।यार ये अपडेट क्यों नहीं हो रहा कितना समय लग गया हूं!झल्लाते हुए लाॅज़िक ठीक भी है या नहीं वो किसी फार्मूले में खोया हुआ फोन पर बात कर रहा था।घड़ी की सुइयां आगे बढ़ रही है। प्रशांत एक बार घड़ी को देखता पर लगता मानो अब सब ठीक हो गया हो ये समझकर उसे टैस्ट करता ओहहहऽऽ ! सिट्ट फिर फेल ये ओके क्यों नहीं हो रहा!सिर पकड़कर!
नीना लिपस्टिक भरे होठो पर होठो को फिराते पुनः सामने आ चुकी थी अरे तुम अब तक काम मे हीं लगे हो?क्या हुआ चलना नहीं क्या देखो सामने क्या बजा है और तुम्हें चेंज भी तो करना है या ऐसे ही चलोगे?मुंह पर चिंता जताते हुए नीना पूछने लगी जैसे अब ऐयरपोर्ट पर पहुंचना मुश्किल होगा।अगर कहो तो कैब मैं बुक करा दूं?जोर देकर! या पैदल ही फिर?एक बार घड़ी को तो दूसरी बार प्रशांत को देखती है पर प्रशांत असमंजस की स्थिति में जैसे कहीं जाना है तो पर वो ज्यादा ज़रूरी नहीं या उसके लाॅजिक से ज़रूरी तो नहीं।प्रशांत नीना की पूरी तैयारी और स्वयं को असहाय सा मान फोन पर बोलता है। डियर रोहन एक काम करता हूं मैं लैपटाॅप वहां के लिए रख लेता हूं इस लाॅजिक को वहीं!वाक्य को लंबा खीचते हुए अहह ऑन द वे देखता हूं!हूं हूं राइट?यस यार बहुत लेट हो गया हूं डियर केवल पौना घंटा बचा है और आधा घंटा तो ऐयरपोर्ट पहुंचने में ही लग जाएगा और बीच में कहीं फस गये लटक ही गये तो फिर तो फ्लाइट भी गयी!प्लीज ट्राई टू अंडरस्टैंड!
ओह तुम्हे आज रात ही निकलना है क्या? रोहन की दूसरी ओर से आवाज़ आई ओहह!ओके तुम निकलो यार!पर वहां पहुंचते ही काॅन्टैक्ट करना!शियाॅर !फोन रखते हुए
हां हां बाॅस प्लेन में चढ़ते ही लाॅजिक चैक करता हूं!ओके!अब मैं निकलता हूं !प्रशांत जैसे हवा में दौड़ने को तैयार हो।
नीना? सुनना प्लीज तुम लैपटाॅप को अच्छे से रख लो और हां चार्जर ज़रूर से रख लेना पिछली बार भी तुम भूल गयी थी!
मतलब इस बार भी तुम वहां यही काम? नीना आश्चर्य से पूछते हुए!उसे लगा था कितने रोज़ बाद तो कहीं जाने का प्लान बना है वहां तो चैन से इंजाय होगा।अपलक देखते हुए!
अरे जान ऽऽ!थोड़ा सा काम पैंडिंग है बस दस मिनट का ही तो!साला लाॅजिक पता नहीं कहां ग़लत हो रहा है कोई नी हो जाएगा।और हां ये लो!मोबाइल चार्जिंग पर लगा दो!
मोबाइल चार्जर को नीना को थमाते हुए एक गहरी वितृष्णा से देखा।नीना प्रशांत के हाथों में से फोन खींचते हुए फोन सामने दीवार पर लगे स्वीच बोर्ड की तरफ ले जाने लगी पर बीच में ही फोन में देखते हुए अरे! फोन तो केवल बारह पर्सेन्ट ही चार्ज है तुम भी ना बिल्कुलध्यान नहीं रखते!अब चार्जर भी रखना होगा और सुमित की तीन मिसकाल आयी हुई है क्या बोलना है? पुनः प्रशांत की ओर देखते हुए पर प्रशांत उठकर दूसरे कमरे में लपकता हुआ।नीना स्वयं छटपटाती हुई मेरी तो ज़िन्दगी यौंही खराब कर दी इस आदमी ने!गहरी कडबाहट शब्दों में भरकर!हर दिन का यही ड्रामा लाॅज़िक लगा लगाकर सारी ज़िन्दगी का ही साॅफ्टवेयर बनाकर रख दिया।
जल्दबाजी में कभी सोफे पर पड़े कपड़ों को समेटती तो कभी किसी दूसरे कामों में लग जाती कुछ सोचती!फिर अकेले में बुदबुदाती जाने गोवा पहुंच भी पायेंगे या नहीं कितनी मुश्किलों से प्रोग्राम बनते हैं पर इसे (प्रशांत)दूसरों की ज़िन्दगी से क्या मतलब!
आश्चर्य से घड़ी की ओर देखते हुए!
शार्लिन दीपा ऐयरपोर्ट भी पर पहुंच गये होंगे और ये महाश्य अभी बाथरूम में ही घुसे हैं!
फोन की घंटी बजी दौड़कर नीना ने देखा अरे!ये तो शार्लिन का फोन है!फोन उठाते ही नीना
यस शार्लिन गुड़ इवनिंग हाऊ आर यू ?
हूं!मैं भी ठीक हूं! चहकते हुए
अच्छा आप लोग पहुंचने वाले हो?नीना ने जवाब दिया।
ओके!बस पन्द्रह मिनट में हूं!हम भी बस!
अच्छा ओके मीट यू देयर!नीना ने शब्दों को अंदर गिटकते हुए कहा!
क्या?कहां गेट नं0 4 पर!ओहहह!!ओक!
या या ग्रेट!सी यू!!
ओफ्फोह वो लोग पहुंच भी गये और यहां हम लोग निकले भी नहीं!इतने में प्रशांत तौलिये से मुंह पौंछता बाथरूम से बाहर निकला!हू! नीना किसका फोन था?रोहन का तो नहीं!जैसे वो भूल चुका हो कि कहीं जाना भी है घड़ी की ओर देखता हुआ दोनो सुइयां दस पर आ चुकी थी।
नीना बुरी तरह खीझकर लगभग दांत पीसते हुए शार्लिन का फोन था!पता है?वो लोग दस मिनट में ऐयरपोर्ट होंगे!
प्रशांत को जैसे सब याद आ गया हो
ओह!इतना लेट यार तुमने बताया भी नहीं? अच्छा बताओ कैब बुक की है न?क्या बोल रही हो?
नीना जैसे फिर से खीझते हुए हां!बाबा हां!कैब बुक है!ये बताओ चलना है या कैंसिल ?
फिर फोन बजा!प्रशांत फोन उठाते हुए जल्दी में यस!हां बताओ कौन?
कौन?गौरव?अच्छा अच्छा!ओके!
कैब ड्राइवर?यस बोलो!
नीना बुरी तरह गुस्से में!मैंने कैब बुक की थी ऐयरपोर्ट के लिए?
लो?वो भी आ गया!
प्रश्नचिह्न?हताशा!साथ साथ चेहरे पर
मेरी बात कराओ?
फोन छीनते हुए
यस भइया!बस पांच मिनट में!
बस मोड़ पर से सीधा आइये!
नो!नो!इतना आगे तक नहीं!
एम एम जिन्दल स्कूल से चौथा घर ही!
यस!यस!वी आर कमिंग!
ओके बाय!हूं!हूं!ओके ओके!
चलो!अब ऐसे ही चलो कमाल करते हो ?जो करना है रास्ते में करना!अब चल भी लो प्रशांत! फोर गाॅड शे!प्लीज!प्लीज!
ओके!डार्लिंग!दोनो के हाथ छोटे बड़े बैगों से भरे
प्रशांत चार्जर को समेटता हुआ!अंदर की बिंडो बंद है न ?नीना को पीछे से टोकते हुए !
नीना जैसे जैसे ऊबकर!हां!हां!सब बंद है अब तुम बाहर निकलो!
मैं कमरे का गेट भी बंद करूं?
कमरों की बत्तियां बुझी दोनो कमरे से बाहर ताला लगाते हुए नीना जल्दी से चाबी ताले से बाहर खींचती पर वो जब बाहर नहीं निकली गुस्से में!अब ये ताला क्यों नहीं लग रहा?आज फिर से कोशिश करते हुए पर दो एक बार की कोशिश में ताला लग ही जाता है।चाबी बैग में रखते हुएदोनों सीढ़ियों के रास्ते नीचे सड़क पर
खड़ी कैब के करीब आ जाते हैं!
गाड़ी के पीछे का गेट खुलता है!पर प्रशांत पहले डिक्की खोलने का निर्देश देता है।बड़े बैग व कुछ समान डिक्की में रखकर वापिस दायें गेट के पास आ जाता है।नीना बायीं ओर पिछली सीट पर हाथ में बैग झटकते जा बैठती है।प्रशांत दाये
दरवाजे की तरफ बढ़ता है।
तभी फोन बजता है दायीं जेब से फोन निकालते ही!हां शार्लिन? म्म फाइन!
बस पांच मिनट में!
क्या?तुम पहुंच गये?
ओके!ओके!गेट नं0 4 पर ना?
हां !नीना भी है!या!या!यस!ऑफकोर्स!
हंसते हुए नहीं!नहीं बरो!
वी विल वी देयर ऑन टाइम डोंट वैरी।
यस यस ओके ओके!डियर बाय!
गाड़ी रोड़ पर दौड़ने लगी आधा शहर अभी भी सड़कों पर था कुछ दुकानों पर शटर लग गये थे। फिर भी बहुत दुकाने माॅल्स खुली थी।नीना बायीं खिड़की से बाहर शहर को चलते दौड़ते देख रही थी।कलाई पर नज़र डालते हुए कैब ड्राइवर को बोलती है!भइया?प्लीज गाड़ी तेज चलाओ!साढें दस बजे से पहले पहुंचना है!
गौरव (कैब ड्राइवर)जैसे नींद से जागते हुए! गियर चेंज किया!गाड़ी स्पीड़ब्रेकर पर उछली! चूउउउउउउंऽ!!और तेजी से सामने की ओर दौड़ पड़ी।
नीना की तरफ पलटकर देखा और मासूमियत से कंधे उचकाता व भवें तानकर!मजबूरी ज़ाहिर करते हुए मैडम?ट्राई करता हूं !बहुत कम टाइम बचा है!अभी दो एक सिगनेल आने बाकी है!पर हां!आश्वस्त करते हुए!यदि सारे ही ग्रीन सिगनल मिल जाएं!तो पहुंच भी सकते है पर अभी कन्फर्म नहीं कर सकता!
नज़रे साइड मिरर पर!
दूसरी गाड़ी को हतप्रभ होकर देखने लगा गाड़ी के अंदर अंधेरा था धीमी रोशनी में एक युगल किसिंग में व्यस्त था! गाड़ी जैसे ही उस गाड़ी से आगे बढ़ी!नीना ठिठक कर!प्रशांत को अनमने भाव से देखने लगी।प्रशांत नीना की नज़रे मिलते ही प्रशांत अपराधी की तरह स्वयं को महसूस कर रहा था तभी नीना गुस्से से !देख लिया ना ?अब!
मैं सुबह से ही कह रही थी।आठ सवा आठ तक ऐयरपोर्ट के लिए निकल लेंगे पर तुम?मुझे नहीं लगता हम पहुंच पाएंगे ?गुस्से से बाहर खिड़की की ओर देखते हुए !प्रशांत बहुत कुछ बोलने को हुआ पर शब्द मुहं में घुड़ककर रह गये थे नीना सुनो?प्लीज सुनो तो ?नीना के ज़ानो(घुटनो) को ठेलते हुए प्लीज समझो भी तो ?स्माइल ओफ्फोह ऐसे नहीं करते डियर!
मुझे कुछ नहीं समझना!नीना अभी भी खिड़की के बाहर देखते हुए जैसे मूवी का कोई ख़ास हिस्सा सामने हो पर यकायक बीच में सबकुछ जैसे खत्म करने की मुद्रा में तुम?हमेशा ही ऐसा करते हो!सारा गुस्सा एकदम जैसे मार्मिकता में बदलता गया।उसकी आंखे रोने लगी प्रशांत का जैसे सब लुटता जा रहा हो।असहाय सा होकर पहले नीना को देखता है फिर गौरव (कैब ड्राइवर)के कंधे को मसलता हुआ।
यार कुछ भी करो?जैसे भी करो?पहुंचा दो भाई! पैसे डबल ले लेना!प्लीज!सिचवेशन समझ सकते हो तो?प्लीज डियर!
गौरव ने सुनते ही सिगनेल से गाड़ी आगे दौड़ा थी।सड़क होलिजन लाइट से दुधिया हो चुकी थी हार्न पर हार्न ?बस सड़क पर हर तरफ?सरजी? शार्टकट से ले लूं ?पर कुछ!फाइन हुआ तो? प्रशांत को सामने के शीशे में से देखता हुआ? प्रशांत को लगा जैसे उसे कोई संजीवनी मिल गयी हो उत्सुक्तावश बोला! यस!यस!ऑफकोर्स वी विल वियरऑल!प्लीज!जैसे भी करो!जो भी करो?और गाड़ी ढलान की ओर मुड़ गयी।दो तीन गाड़ियों को बायें से ओवरटेक करते हुए गाड़ी शीघ्र ही उनसे आगे निकल गयी।
प्रशांत लंबी बिल्डिंगों पर आंखे गड़ाए चुपचाप बैठा था। सहसा फिर फोन बजा !फोन उठाते ही यार शार्लिन?बस!पांच मिनट और!साॅरी!बहुत लेट हो गये हैं!जैसे जान ही निकल रही हो।
कहां हो?गेट नं0 4 पर ना?गहराई से बात को सुनते हुए !एक दम आंखे फाडकर जैसे हाथ में कोई प्रिय वस्तु के दर्शन हुए हो!एक एक बात को ज़ोर देते हुए!क्या कह रहे हो ?शार्लिन?सच्चीऽऽ चेहरे पर तृप्ति भाव के साथ ओह!यू आर ग्रेट माई डियर!
चेहरा!जैसे खिल गया हो!हं!कितनी लेट है फ्लाइट?बीस मिनट?पक्का ना?हूं!डॅान्ट वैरी अब पहुंचे हम!ओके!
थैंक्स यार रियली यू आर सो ग्रेट!
फोन रखते ही!नीना के गाल पर हल्की चपत लगाते हुए जानेमन फ्लाइट लेट उउऊऊऊऊ
वाऊऊ मजा आ गया!
नीना?
नीना कुछ हल्के होते हुए जैसे हारी बाजी जीत गयी हो।
सच्ची?तुम मजाक कर रहे हो?
प्रशांत की आंखों में झांकते हुए!अरे नहीं भाई अभी अभी ऐनांउस हुआ है!गोवा जाने वाली टू एक्स एक्स फ्लाइट बीस मिनट लेट है।
शार्लिन ने ठीक से सुना है ना ?जैसे अभी भी यकीं ना हो रहा हो !
स्पीड़ब्रेकर पर गाड़ी उछली!रोशनी जैसे हवा में तैर रही हो।गौरव ने स्पीड़ अभी भी बढ़ाई हुई है। बीच बीच में जैसे ही गाड़ी पत्थरों पर चढ़ती है लगता है जैसे घिसट रही हो! चोककर!अब एक किलोमीटर ही बचा है।
डिजिटल गाड़ी में टाइम दस तीस हो रहा हैं पर ऐयरपोर्ट पर पहुंचने की जैसे कोई जल्दी न हो। वास्तव में जब सफलता सामने आंखें बिछाये खड़ी हो तो हार के ख्याल की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।नीना का चेहरा खिल गया था वो जैसे पिछला सबकुछ भूल गयी हो।अक्सर ऐसा ही होता है जब भी उम्मीद टूटने के बाद सफलता का मंज़र दिखाई दे जाए तो पिछला सारा अच्छा बुरा हृदय से पलायन कर जाता है।तेज ब्रेक के बाद गाड़ी ठिठकी!
धीमे धीमे बढ़ती गाड़ी ऐयरपोर्ट के सामने रूकी!
ऑनलाइन पेयमंटस करने के पश्चात प्रशांत ने (कैब ड्राइवर) गौरव को धन्यवाद के साथ साथ दो एक सौ के चिपके नोट उपहार स्वरूप दिये। उसका कंधा प्यार से सहला दिया नीना की आंखे हंस रही थी।दो तीन मिनट में उनका सामान भी बाहर था पर गाड़ी वहां से जा चुकी थी।
एक हाथ में ट्राली बैग लटकाए व दूसरा बैग कंधे पर लादे प्रशांत नीना के साथ सामने की ओर तेजी से चल रहा था।गेट नं0 4 पहुंचने से पहले उसने शार्लिन को फोन लगाया!
दूसरी तरफ से फोन उठते ही!हैलो ?
एक लंबी सांस और उत्सुक्ता के साथ हां!शार्लिन ?किधर हो?
हम पहुंच गये हैं!यस यस!
बस!एक मिनट में!
नीना और प्रशांत तेज कदमों से आगे बढ़ रहे थे। गेट नं0 4 पर शार्लिन आंखों से गाॅग्लस उतारता हुआ।प्रशांत नीना को देखकर खुश हुआ और उनकी ओर लपक पड़ा।
नीना की नज़र दीपा पर पड़ी गहरे कत्थई रंग के सूट व प्लाॅजो पहने।नीना नाटे कद की थी पर ऊंची हील वाली सैंडिल पहने थी।उसका चेहरा गोल था!बाल कंधे की ओर मुड़े थे।
तेज कदमों से चलते उसने नीना को थाम लिया। प्रशांत ने लटकते बैग को ज़मी पर रखते हुए दोनो हाथ शार्लिन के हथेलियों में छोड़ दिये।चेहरे पर तेज व पाश्चात्य रंग में रंगा लंबा व गौरा चिटा अधेड़ था।कर्ली बालों में भूरे रंग की दो एक लकीरे बिछी पड़ी थी।सिगरेट के अंतिम कश को खेंचते हुए उसने सलेटी धुएं को हवा में उडेल दिया।चेहरे पर वितृष्णता व उद्गिनता का मिला जुला रूप था।वो दिखने में आकर्षक था।
प्रशांत की ओर देखते हुए धीरे-धीरे ऐयर पोर्ट की ओर बढ़ने का निर्देश करने लगा।तीनों लोग अब उसके पीछे-पीछे थे।
फ्लाइट्स की ऐनाउंसमैंट का शोर घना था।जहां हर एक शब्द टूट रहा था लोग फोन पर व्यस्त थे। तेज-तेज चीखकर व इशारों के संप्रेषण से वहां सब एक दूसरे के अंतर्भावों को समझा रहे थे।दुधिया प्रकाश से नहाया ऐयरपोर्ट के प्लेटफार्म पर कुर्सियों पर पसरे लोग
नोटिस बोर्ड व ऐनाउंसमैंट के एक-एक क्रम को ताक रहे थे।अगली ऐनाऊंसमैंट के साथ ही शार्लिन-दीपा व प्रशांत-नीना फ्लाइट की तरफ बढ़ने लगे।शार्लिन के लंबे उलझे बाल पेशानी पर थे।उसने अंगुलियां फेरते हुए बालों को पीछे की ओर धकेला पर दो चार कदम चलते ही बालों की एक लट पुनः चेहरे पर आ गिरती।पीछे मुड़ते हुए दीपा को देखा जो खुशी के मारे कदम पटकते आगे बढ़ रही थी।प्रसन्न आंखों में किसी सुनहरे सपने को साफ-साफ देखा जा सकता था।ऐरोप्लेन के तेज साऊंड से कर्णचक्षु स्थिल होते जा रहे थे।सफेद पट्टी पर टू एक्स एक्स प्लेन तैयार था ऐनाऊंसमैंट एक के बाद एक हो रही थी।थोड़ी ही देर में वो चारों फ्लाइट के अंदर थे।
नीना प्रशांत के बगल में बैठी थी। प्रशांत ने सीट पर बैठते ही लैपटाॅप खोल लिया ।वो साॅफ्टवेयर की किसी लैंगवेज में या ऐसे लाॅज़िक को सही करने में उलझ गया जो घर में छूट गया था।नीना प्रशांत को देखकर लगभग झेंपते हुए!तो क्या तुम यहां भी वो सब ही?
बोलते हुए आंखे फटी थी चेहरे पर भरा रोष था।
नहीं नहीं !बस दस मिनट का काम है!नीना को आश्वस्त करते हुए ।
अरे यार प्रशांत तुम किस काम में लग गये ?बालों को पुनः माथे पर से पीछे ठेलते हुए
शार्लिन ने पूछा।प्रशांत ने जैसे कूछ भी न सुना हो। पहले की तरह व्यस्त लैपटाॅप में !अरे सरकार कहां बिजी हो ?
प्रशांत?लिसन!प्रशांत ने हंसकर आंख मारते हुए!बस दो मिनट ब्रो!फिर करते हैं मस्ती !कहते हुए वो फिर काम मे लग गया।
दीपा और नीना सीटों के दूसरे छोर पर थी।जैसे ही वो एक दूसरे को देखती चहक उठती।देखो! चांद आकाश में कितना सुन्दर लग रहा है?खिड़की से आसमां को निहारने लगी।
शार्लिन सामने टंगी मैगज़ीन को हाथ में लेकर पलटने लगा पर अपनी पसंद के अनुसार उसमें कुछ न पाकर उसे वहीं अटका देता है।एक मझले कद की सुंदर ऐयरहोस्टेस रूल्स आदि दोहराने लगी।कुछ लोग सीट बैल्ट को स्वयं से बांधने लगे पर प्रशांत मानो घर पर ही बैठा हो और किसी लाज़िक में उलझ गया हो।
खिड़की के बाहर आकाश में घना अंधेरा है पर बादल जैसे चारों ओर आसपास ही तैर रहे हो। डिलीसिस डिश के ज़ायके का मज़ा लेते हुए शार्लिन ने दीपा के गालों पर अंगुलियों फेरते हुए
पूछा?जानू!होटल का कमरा तो वही बुक है ना? जहां से समुद्र स्पष्ट दिखता है!बीच में खिड़की के शीशों पर नज़र डालते हुए बस कुछ ही देर में हम गोवा! हू हू !खुशी से!
हल्की चिल्लाहट चेहरे पर!होठों पर चिपकी मुस्कान फैलती हुई बिखरती हुई चारों के मध्य! चूअब प्रशांत भी लैपटाॅप छोड़ मसाले भरी लंबी चाप चाटते हुए !नीना भी कुछ अनमने भाव से! कन्फ्यूज सी पर कहीं चेहरे पर हंसी के भाव भी।यस सुबह का नज़ारा!बस मज़ा ही आ जाएगा। यकीनन् तुम तो साथ रहोगे ना?या फिर तुम लाजिक? प्रशांत को चिढ़ाते हुए।
चारो हंसी ठट्ठा में व्यस्त थे।कभी कोई चेहरा खिल जाता तो दूसरे के माथे पर बल पड़ जाते! पर ये लैग पुलिंग काफी देर तक यौं ही चलती रही।
गहरी घनी रात प्लेन के अंदर दिन के उजास की भांति प्रतीत हो रही थी।प्लेन के बाहर गहरी निस्तब्धता पर अंदर खूब चहल पहल थी।हर चेहरे पर कौतुहलता बंधी थी।यहां सबकी मंजिल एक है ऐयर होस्टेस हर बार नये अंदाज़ में माहोल को खुशनुमा कर रही थी।उसकी पतली भूरी कमर पर काली कट ब्लाऊज काफी आकर्षक लग रही थी।
गोवा का रेनेसां होटल अपनी खूबी के कारण बेहद प्रसिद्ध था।होटल के बाहर दक्षिणी सिरे पर समुद्र का छोर था जिसके एक मुहाने पर पर बड़े वृक्षों के नीचे लकड़ी से निर्मित आराम कुर्सियां बिछी थी।समुद्र की लहरें दूर कहीं से उठकर सैलानियों के करीब आकर उन्हें नज़दीक बुलाने को आतुर करती पर जैसे ही लोग समुद्र की लहरों की तरफ आगे बढ़ते वो लहरे पानी के छोटे बड़े बुलबुलों में बदल जाती।सुबह के आठ बज चुके हैं।एक उमस भरी सुबह
में छोटे बड़े काश्तकार,दुकानदार अपनी रेहड़ियों आदि को ठेलते शहर की तरफ बढ़ रहे थे।सुबह का शोर और समुद्र की लहरों को करीब से निहारते लोगों के टूटते शब्द गूंज रहे थे।
जैसे ही समुद्र की लहरे करीब आती सैलानियों की आंखे फटी रह जाती।जब भी कोई बड़ी
लहर ऊपर आसमां की ओर उछलती लगता किसी चंचल बालक की किलकारी समुद्र में गूंज रही हो।एक युवती उम्र कोई 35 के करीब किनारे पर नारियल पानी की दुकान पर स्ट्रो मुंह में डाले समुद्र में अपने अक्ष को देख रही थी।दूसरी स्ट्रो की मांग करते हुए उसने नारियल विक्रेता को अनमने ढंग से देखा जैसे समुद्र की किसी भी हलचल से वो वंचित न रह जाये।दुकानदार की नज़रे स्ट्रोदेते समय युवती के उभारों पर थी।
साढ़े आठ बजे चुके थे।होटल के आधे कमरे बंद थे तो कुछ पर बाहर से ताला लगा हुआ था।नीना एक भीनी चादर में सोई थी रात को वो देर तक जागी थी।करीब चार साढ़े चार तक चूंकि जब गिरिजाघर की प्रार्थना आरंभ हो रही थी तब भी वो जागी थी।कितने अरमान थे कि गोवा के कमरे में फुल मस्ती होगी।प्रशांत की आगोश में! रात-दिन!दिन कब शुरू होगा?कब खत्म?कुछ भी पता न चलेगा!पर यहां!ऐसा कुछ भी नहीं! उसने कमरे के भीतर आकर जैसे सब कुछ भुला दिया था।रात को रंगीन बनाने के उद्देश्य से उसने ऐसी ड्रेस स्लैक्ट की थी।जो खास इसी जगह के बंद कमरे के लिए हो बनी थी।जैसे ही वो दोनो कमरे में घुसे थे।कुछ देर बाद ही!प्रशांत लैपटाॅप लेकर बैठ गया था।जैसे यहां वो इसी लाॅजिक को दुरूस्त करने आया हो!पहले कुछ देर बीत! फिर एक घंटा!फिर तो घंटे योंही बीतने लगे थे।नीना की लाख कोशिशे भी प्रशांत को अपने करीब न ला सकी।उसके शरीर पर पारदर्शी ड्रेस थी उसके स्तन उभरे थे आंखों में मस्ती का खुमार था देह पर महकते इत्र की गंध थी।प्रशांत साॅफ्टवेयर के लाज़िक में इतना व्यस्त था कि उसने नीना की ओर देखा भी नहीं।बेचारी नीना अकेले बिस्तर पर ओंधे लेटी सिसकती रही।
फोन चार्जिंग पर लगा था उस पर नोटिफिकेसन आती जा रही थी।प्रशांत के लिए मानो यहां
साॅफ्टवेयर ज़िन्दगी और उससे जुड़ी लैंगवेज ही सब कुछ हो।नीना ने एक बार फिर सारी बाते भुलाकर बिस्तर से उठी और दबे पांव प्रशांत के पीछे पहुंचकर उसकी पीठ पर तेज लिपट गयी।नीना का चेहरा मद से भरा था आंखों में गहरी तृष्णा थी उसने प्रशांत को बिस्तर पर गिराना चाहा।आओ न प्लीज?प्रशांत के गाल को चूम लिया और उससे लिपट गयी।
प्रशांत ने सिगरेट की राख झाड़ते हुए!चुटकी ली! असहाय सा होकर कहा! तुम आराम कर लो!नीना!मुझे ये फंक्शन कल सुबह देना है इट्स वैरी अरजेंट !ट्राई टू अंडरस्टैंन्ड!
नीना हतप्रभ!चेहरे पर गुस्से पहले गुस्सा फिर रूंआसी सी होकर वापिस बिस्तर पर लेट गयी और रोती रही।अंधेरे कमरे में गहरा अवसाद फैला था! चारों तरफ दुःख बस दुःख।गिरिजाघर का घंटा बजा!प्रशांत की आंखे नींद से भरी थी! पर वो फिर भी लैपटाॅप में खोया था साथ रखे स्टूल पर जली बुझी सिगरेटों से ऐस्ट्रे
भरने लगी थी!कमरे में धुएं की रेखाएं घूम रही थी।नीना रोकर सो गयी पर प्रशांत अभी भी व्यस्त स्वयं में कहीं।
सबा आठ के करीब शार्लिन का फोन बजा नीना उठी!दौड़कर फोन देखा।ओह शार्लिन?नींद में ही वैरी गुड मार्निंग!
नहीं?अभी नहीं!
हां!शायद अभी सोया है? हीं हीं हीं!बनावटी हंसी के साथ ओके! नौ बजे मिलते हैं!यस यस! ऑफ्कोर्स !
दूसरे कमरे में देखा लाइट्स ऑन है।अंदर जाकर देखा तो प्रशांत आरामकुर्सी पर लुढ़का हुआ था। मुंह से खर्राटे निकल रहे है!चश्मा आंखों से खिसकता नाक तक पहुंच चुका था।बंद आंखों में भी कामकाजी चेतना स्पष्टतः दिखाई दे रही थी।उसने एक मर्तवा सोचा प्रशांत को उठा दे! सबकुछ भुलाकर नयी सुबह का आनंद ले।उसने प्रशांत को देखकर आवाज दी !प्रशांत ने तेज जम्हाई ली बोलते बोलते जैसे शब्द वहीं रह गये। उसने प्रशांत के कंधों को झटकते हुए कहां प्रशांत?उठो !देखो कितनी रोशनी हो गयी है? खिड़की पर से पर्दे समेटते वो बाहर नीले आकाश को देख रही थी।प्रशांत ने बायीं आंख को थोड़ा खोला सामने कुछ न पाकर हल्का सा चीखा!सामने कुछ न पाकर
उसने फिर आंखे मूंद ली!उधर नीना खिड़की से सुबह को निहारने में मग्न हो गयी थी।
बाथरूम से निकलकर नीना ने सोचा था कि प्रशांत उठ चुका होगा पर वो तो अभी भी गहरी नींद में सोया था।वो पुनः खिड़की से बाहर झांकते हुए बालों की तह खोलने लगी।घड़ी की सुइयों को देखते हुए वो स्वयं से बात करने लगी।ओफ्फोह! शार्लिन का फोन आ जाएगा फिर क्या बोलूं अब?चलो कोई नहीं बोल दूंगी मेरी तबीयत खराब है !नहीं रात को नींद नहीं आई इसलिए हम अभी नहीं बाहर जा सकेंगे।कोई नहीं वो लोग चलें जाएं!हम लोग बाद में चले जाएंगे।सहसा खिड़की से प्लेन के गुजरने की तेज आवाज अंदर गूंज गयी।पक्षियों का झुंड दूर आकाश में इधर से उधर गुज़र रहा था।प्लेन की तेज आवाज़ से प्रशांत जो अब तक बिस्तर पर लेटा था।वो उठा और आंखे खोलकर नीना को देखकर मुस्कुराया।तभी फोन बजा!प्रशांत का ही था! नीना ने पास जाकर देखा!रोहन का फोन था हां रोहन?क्या ?
नहीं!प्रशांत अभी तक सोया है ! क्या?साफ्टवेयर तैयार है ?ना!ना!मुझे कुछ नहीं पता! रोहित!हूं !स्योर!मैं मैसेज दे दूंगी !हां आधे घंटे तक उठ जाएंगे!ओके बाय !हा हां शियोर !
प्रशांत ने नींद से जागकर लंबी उबासी ली।कौन था नीना ?
रोहन था क्या ?
ओह?ऊंघता हुआ!यार मैं कैसे उसे अनकम्पलिट साॅफ्टवेयर दे दूं!कितना टाइम लग गया पर अभी भी पूरा नही हो पाया!हताशा में शब्द भुरभुरा रहे थे।शब्दों में निराशा भरी थी।
नीना!अच्छा ये बताओ अब चल रहे हो ना?
मैं नहीं जा सकूंगा नीना!मेरा मुश्किल ही होगा! असमंजसता से उसने स्टूल पर रखी सिगरेट की डिब्बी से एक सिगरेट निकाली उसे दियासलाई से जलाया होठों पर जाते ही सुलगने लगी। कुछ ही क्षण में धुंआ कमरे में जगह-जगह बहने लगा बंद होठों के दायिनी सिरे से धुआं बाहर उड़लेता प्रशांत ने नीना को समझाना चाहा !तुम नहीं जानती? ये वर्क प्रोजेक्ट कितना इम्पोरटैंट है? अगर ये हाथ में आ गया तो जाने कितने गोवा, थाईलैंड,सिंगापुर,अअअहह जर्मनी,फ्रांस बगैरह सामने होंगे।साॅरी नीना !तुम दीपा शार्लिन के साथ ट्रिप इंजोय कर लो। मुझे तो इस बार माफ ही कर दो !सिगरेट को ऐश्ट्रे में घिसटते वो बाथरूम की ओर बढ़ गया।
नीना निस्तब्ध सी चुपचाप एकटक उसे जाते देखती रह गयी जैसे कोई कांच हाथ से टूटकर गिर गया हो और कांच के हजारों टूकड़ों को जोड़ना हो।दरवाजे पर दस्तक हुई!कमरे का गहरा सन्नाटा
जैसे बोल उठा हो!सारी इन्द्रियां बंद दरवाजे के सींखचों में होती हलचल तलाश रही हो।घंटी का जवाब न मिलने पर हथेलियों से दरवाजे को धकेलने की कोशिशे हो रही थी।कुछ टूटते संवाद सींखचों से अंदर सुनाई दे रहे थे!प्रशांत? वी आ रैड़ी ?बाॅस कम फास्ट!
नीना ने दरवाजा खोला!
शार्लिन बालों को पीछे झटक रहा था भूरी टीशर्ट और नीले नेकर में वो तरो ताजा दिख रहा था। दीपा भी जींस टाॅप में उसके साथ चहक रही थी। फोन पर मैसेज को देखते हुए! अरे तुम अभी तक रैड़ी नहीं हुए ?
क्या हुआ चलना नहीं क्या?
शार्लिन की आंखे चुप कमरे में प्रशांत को खोज रही थी।प्रशांत को वहां न पाकर उसने नीना से पूछा किधर है मियां ?
चेहरा अंदर झांककर इधर उधर देखता!
नीना जैसे कुछ छिपाती हुई !बोली एक काम करें!आप लोग नीचे पहुंचे!हम भी आते हैं बस! कुछ ही देर में !मुस्कुराते हुए !मैं लेकर आती हूं! उसे।दीपा गोवा के किसी भी पल भी मिस नहीं करना चाहती थी उसने शार्लिन के हाथ को भींचते हुए बाहर की ओर खींचा और उत्सुक्ता से बोली !ओके!बट देर न करना अब!लंबे बालों में अंगुलियां फेरते वो नीचे की तरफ चल पड़े।दीपा सकपकाती सी खड़ी रही और उनको देर तक देखती रही।पन्द्रह मिनट बीत गये पर प्रशांत अभी भी बाथरूम के अंदर था नीना को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे।वो खिड़की पर जाकर बाहर झांककर स्वयं में खो गयी।उसे लगा
अब मेरा प्रशांत से क्या संबंध हो सकता है उतना ही जितना कि संबंध मुझ से और किसी संबंध के होने या न होने से मुझे भी उतना ही दुःख होगा जितना प्रशांत को?लगता है यह केवल एक धारणा है !व्यक्तिगत सोचमात्र ही है।मेरी पसंद नापसंद का तो सवाल ही नहीं चूंकि मुझे पता है कि जहां मेरी ज़रूरत नहीं वहां संबंध भी नहीं और जरूरत है भी तो क्या मात्र संबंधों की तह समेटने भर की।अब रोज़ रोज़ हर बात पर छींटाकशीं क्या सब मेरे लिए!क्या मायने रखते हैं।
शायद स्लेटी आसमां और जमीं के मध्य भी गहरा तादात्म्य दिखता है उतनी ही गहराई होती है पर अनुभूति तो भिन्न है!लेकिन इससे किसी को क्या!जो दिखता है वही यथार्थ है और शायद सत्य भी?
तो क्या मैं मिथ्या जगत में जी रही हूं या जैसा है उसे ही यथार्थ समझ लूं !शायद हां क्योंकि झूठ की झीनी चादर इतनी पारदर्शी है कि सच झूठ साफ नज़र आते हैं !बाहर से सब सही दिखता है।मैं उसकी दुनिया में क्या मायने रखती हूं! मैं अकेले ही लौट जाऊंगी आज ही शाम को !पर शार्लिन दीपा क्या कहेंगे ?
और प्रशांत क्या सोचेगा?
नीना जैसे स्वयं से लड़ती हुई!अब जो कहना है कहे जिसे जो सोचना है सोचता रहे!
प्रशांत नहाकर बालों को झटकारता बाथरूम से बाहर निकला!जैसे वो घर पर करता था।
डार्लिंग?हाऊ आर यू ?नीना के ओठों पर अंगुली फेरते हुए पर
नीना जड़ बनकर खड़ी रही!उसने प्रशांत की बात पर ध्यान तक नहीं दिया!प्रशांत ने नीना की कमर पर अंगुली से नीना लिखकर उसे सहलाया! पर नीना उखड़कर मैं दिल्ली वापिस जा रही हूं !आज ही शाम तक !वो अब बिना रूके बोलती गयी।
जीवन में कौन अपना है?और अपना है तो कितना अपना है?
एक लंबा वाक्य प्रशांत सुनता रहा! जिसपर उसका बिल्कुल ध्यान नहीं था बात को काटते हुए रोहन का फोन आया था!जैसे नीना से अभी अभी मिला हो फोन हाथ में लेकर देखते हुए ओफ्फोह!रोहन का फोन आ भी चुका है?
नीना को कनखियों से देखते हुए !अच्छा तुमने क्या कहा रोहन को ?मेरे बारे में?
रोहन को फोन मिलाकर !यस रोहन!
वैरी गुड मार्निंग!बस पांच मिनट में !हां हां! लैपटाॅप ऑन कर लूं बस !फोन गर्दन और कंधे के बीच में फंसाकर !लैपटाॅप ऑन करता हुआ। अब बताओ ये वैरियेवल तो ओके है न?
क्या कहा ?एक बार टैस्ट करूं पहले ?
प्लग इन बाद में कर लेंगे ना।
नीना मूर्तिबद्ध सब देखती रही और पुनः रूंआसी होकर दूसरे कमरे में दौड़ पड़ी।
प्रशांत रोहन के साथ बिजी रहा।
शार्लिन के फोन बजते रहे पर नीना ने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि सब अनदेखा किया वो अंदर कमरे में घंटो बेसुध पड़ी रही।पहले घंटो बीते फिर पूरा दिन प्रशांत भूख प्यास को भूलकर और यहां तक कि उसे यह भी याद नहीं था कि वो कहां है काम में इतना व्यस्त जैसे कोई महात्मा
किसी महायज्ञ की आराधना में संलग्न हो।शाम बीतने लगी पर नीना कमरे के अंदर ही जिंदा लाश की भांति निस्तब्ध थी।शाम से कब रात हुई प्रशांत को पता न चला।
घनी रात में चारों दीवारे चुप हैं पर आसपास का सन्नाटा दरवाजों के सीखचों से सुनाई दे रहा है।गुप अंधेरे में विचार अधिक प्रखर हो जाते हैं व्यक्ति स्थितिनुरूप बदल जाते हैं या समयानुरूप व्यक्ति की स्थिति बदल जाती हैं।उम्र के पार होते ही सबकुछ देखने का नज़रिया ही बदल जाता है पर इसमें उम्र का तो कोई खोट नहीं शायद एक समय के बाद व्यक्ति स्वयं को स्थिति
समान ढाल लेते हैं पर इसके लिए किसी दूसरे को ग़लत या जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।क्यों लगता है कि हम ही बिल्कुल ठीक हैं बाकी सब ग़लत पर हम स्वयं की निगाहं में ही उचित हो सकते हैं दूसरे की सोच के अनुरूप हम ग़लत हैं।अब प्रसाधनों और महकते इत्र से कब तक स्वयं का मिथ्या चित्र समाज के सामने रखा सकता है और समाज भी इतना मुर्ख तो नहीं कि वो चेहरा और चेहरे पर लगे मुखौटे को न पढ़ पाये।नीना सैकड़ों सवाल लिए सोचती रही।
अगली सुबह और सुबह के सात बज गये हैं अंधेरा उजाले में कहीं औझल हो गया है कुछ ही देर पहले धूप की पहली किरण ने कमरे में उजास किया।
गहरे विचार व गूढ़ वेदना आंखों में पर दूसरी ओर
साॅफ्टवेयर में उलझी फंसी ज़िन्दगी।रोज़ सुबह लगता है शाम तक सब खत्म हो जायेगा! पर शाम और फिर रात जाने कितनी ही रात! ज़िन्दगी योंही घिसटती रही है कभी किसी कमरे में तो कभी कहीं और!आदमी का अस्तित्व नहीं और जितना भी है वो समाप्त होता जाता है पर साॅफ्टवेयर कभी पूरा नहीं होता ।
मनोज शर्मा
दिल्ली