“संचार मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है. आधुनिक मनुष्य के बारे में तो यह बात सौ प्रतिशत लगू होती है. मनुष्य जिस समूह, जिस वातावरण में रहता है वह उसके बारे में जानने को उत्सुक रहता है.” वर्त्तमान युग संचार क्रांति के दौर से गुजर रहा है. प्रौद्योगिकीय विकास और उन्नत तकनीक ने संचार माध्यमों में भी बड़ा बदलाव लाया है. पहले जन संचार के साधन सीमित थे और सूचनाएँ कम लोगों तक सीमित थी, लेकिन जैसे-जैसे संचार माध्यम में बदलाव आया नयी प्रौद्योगिकी ने इसमें प्रवेश किया वैसे-वैसे इसने बड़े पैमाने पर प्रभावित किया. इस क्षेत्र में सोशल मीडिया का योगदान महत्वपूर्ण है. प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से बढ़ते हुए आज यह हमारे सामने अपने एक नए रूप में आ चुका है जिसे हम सोशल मीडिया कहते हैं. सोशल मीडिया वैसे तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का ही एक अंग है, परन्तु इसके क्षेत्र विस्तार, पहुँच और प्रयोग के कारण इसे एक नए वर्गीकरण में रखने की आवश्यकता महसूस होती ही. सोशल मीडिया इंटरनेट पर उपलब्ध ऐसे साइट्स का समूह है जिन पर व्यक्ति अपने संपर्कों का दायरा बढ़ाते हुए अधिकाधिक लोगों तक अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं. विकिपीडिया के अनुसार, “सोशल मीडिया लोगों के बीच सामाजिक विमर्श हाइ जिसके तहत वे परोक्ष समुदाय व नेटवर्क पर सूचना तैयार कर्ते हैं उन्हें शेयर करते हैं, या आदान – प्रदान करते हैं।“ पर सोशल मीडिया के माध्यम से लोग देश-विदेश के तमाम लोगों से मिलते हैं, बिना शुल्क लम्बे समय तक चैटिंग या संवाद करते हैं तथा विचार-विमर्श करते हैं. सोशल मीडिया का विस्तार इंटरनेट के माध्यम से होता है जिसके लिए किसी विशेष या महंगे उपकरण इत्यादि की आवश्यकता नहीं है, यह बेहद सस्ता और सर्वजनसुलभ माध्यम है जो किसी कैफे में रखे कंप्यूटर में भी चलता है और किसी पॉकेट में रखे मोबाइल फ़ोन में भी और इसके आसानी से उपलब्ध होने के इसी गुण ने इसे इतना लोकप्रिय बना दिया है. इसी के साथ इसकी लोकप्रियता का एक और सशक्त कारण यह है कि इसने लोगो को अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए एक ऐसा मंच उपलब्ध कराता है जहाँ व्यक्ति अपने विचार बेजिझक बिना किसी रोक-टोक के रख सकता है और उसपर लोगों की प्रतिक्रिया भी प्राप्त करता है. आज किसी भी व्यक्ति को अपने विचार लोगो तक पहुँचाने के लिए समाचार पत्र या समाचार चैनल की आवश्यकता नहीं है. अब अपनी बात लोगों तक पहुंचने के लिए बस एक क्लिक की दूरी रह गयी है. सोशल मीडिया की लोकप्रियता और आवश्यकता क अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि आजकल सामाजिकता का अर्थ सोशल मीडिया पर एक्टिव रहना भी बन गया है. इसने समाज के हर वर्ग में अपनी पैठ बना ली है.हम सब सोशल मीडिया से जुड़ना चाहते हैं और उसका इस्तेमाल करना चाहते हैं. सोशल मीडिया के कई रूप हैं जैसे- फेसबुक, ट्विटर,यू ट्यूब,लिंक्डइन, विकीपीडिया,आदि. इसके माध्यम से विश्व के करोणों लोग आज एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं.
इंटरनेट और सोशल मीडिया के पूरे विश्व में फैलने की घटना बहुत पुरानी नहीं है. सोशल मीडिया ने समाज में अपनी जो पकड़ बनायीं है यह पिछले डेढ़-दो दशकों के भीतर बनाई है. १९९४ में सबसे पहला सोशल मीडिया जीओ साइट के रूप में सामने आया इसका उद्देश्य एक ऐसी वेबसाइट का निर्माण करना था जिसपर लोग अपने बात और विचार साझा कर सकें. वर्तमान में विश्व की एक बड़ी आबादी सोशल मीडिया पर अपना वक़्त बिताती है. सोशल मीडिया की सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली साइट फेसबुक को हारवर्ड विश्वविद्यालय के एक छात्र मार्क जुकेरबर्ग ने प्रारम्भ किया था तब इसे केवल विश्वविद्यालय के छात्र ही इस्तेमाल करते थे लेकिन देखते-देखते इसकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गयी की आज यह विश्व की सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली सोशल नेटवर्किंग साइट बन चुकी है. इसी तरह ट्विटर एक माइक्रो ब्लॉगिंग नेटवर्किंग साइट है जिसका प्रारम्भ २००६ में किया गया था लेकिन आज अपनी बातों को ज्यादा लोगो तक पहुंचने का यह एक सशक्त जरिया बन गया है. इसके साथ ही अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए लोग ऑनलाइन डायरी लिखने लगे हैं जिसे ‘ब्लॉगिंग’ कहा जाता है. जिसके माध्यम से लोग अपने विचार लोगों के सामने रखते हैं. सोशल मीडिया के प्रसार के अनेक प्रभावों की बात की जाती है जिनमें कुछ सकारात्मक हैं और कुछ नकारात्मक. यह हमे कई तरह की खबरों से रूबरू कराता है जो मनोरंजक भी होती है और सामाजिक भी. इसके माध्यम से लोग अपने मित्रों से व्यक्तिगत सम्वाद भी स्थापित करते है और सार्वजनिक हित की बात भी करते है. कुल मिलकर कहने का तात्पर्य यह है की सोशल मीडिया ने बहुत कम समय में बहुत सी चीजों को प्रभावित किया है. कई आंदोलनों के प्रारम्भ होने, उन्हें तेज़ करने और अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुंचानेका काम किया है. किसी दोषी को सजा दिलाने में तथा बेकसूरों को बचने में इसका योगदान रहा है और यहां तक की इसमें अब सरकारें बदलवाने की ताकत भी आ गयी है. परन्तु इसका अब तक का सबसे विवादित जो पक्ष रहा है वो यह है- ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’. सोशल मीडिया ने ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ जैसे संवैधानिक अधिकार को कितनी मजबूती प्रदान की है या इस अधिकार के नाम पर कितनी सीमाएं तोड़ी हैं यह चर्चा का विषय है.
‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ अपने भावों और विचारों को बिना किसी भय के व्यक्त करने का अधिकार है. इसके तहत कोई भी व्यक्ति अपने विचारों की अभिव्यक्ति के साथ-साथ सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकता है. कुछ निर्बंधनों के साथ लागू होने वाला यह मौलिक अधिकार लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करता है और किसी देश को उन्नति के मार्ग पर अग्रसित करता है. इसे कुछ देशों में संवैधानिक अधिकार का दर्जा दिया गया है तो कई देशों में इस तरह के किसी अधिकार की बात तक नहीं की जाती. जिन देशों में ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के अधिकार नागरिकों को मिले हुए हैं वहां इस अधिकार का प्रयोग करते हुए जनता ने कई बार शासन की निरंकुशता पर अंकुश लगाया है. इस अधिकार को मजबूती प्रदान करने का कार्य मीडिया ने किया है। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रतता जैसे अधिकार विश्व के अधिकांस देशों में दिया गया है और जहां यह अभी तक नहीं मिल पाया है वहां की जनता इसके लिये संघर्षरत है. इस संघर्ष को आगे बढाने में मीडिया भी बराबर की भागीदार है न केवल संबंधित देश की मीडिया वरन विश्व का सम्पूर्ण मीडिया साथ ही विश्व की समस्त जनता भी उनकें इस संघर्ष में उनका साथ दे रही है और यह संभव हुआ है सोशल मीडिया के कारण. राहुल देव ने सोशल मीडिया के महत्व का रेखांकन कर्ते हुये कहते हैं कि “सोशल मीडिया ने सर्वजनिक अभिव्यक्ति और एक बडे समुदाय तक बिना रोक-टोक अपनी बात पहुंचाना संभव बनाकर करोडों लोगों को एक ताकत दी है।“ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रतता का अधिकार और मीडिया दोनों साथ मिलकर किसी भी देश को एक निरंकुश शासन से बचाते हैं।
विश्व में उदारीकरण के पश्चात अब पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन और समाचार प्रसारण मिशन की जगह उद्योग में तब्दील हो चुका है. परम्परागत मीडिया का स्वरूप बदल चुका है अब मीडिया भी लाभ अर्जित करने का साधन बन गया है।आज वह मुट्ठी भर लोगों के हाथों की कठपुतली बन कर रह गया है. ऐसे माहौल में सोशल मीडिया लोगों की आवाज़ बन गया है. मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है जो कमजोर होता जा रहा है इस कमजोर होते स्तम्भ को सोशल मीडिया बचा सकता है क्योंकि उसपर किसी एक व्यक्ति का प्रभुत्व नहीं है. यहाँ किसी को भी अपनी बात कहने के लिये किसी की अनुमति की अवश्यकता नहीं रह गयी है. सोशल मीडिया ने लोगों को अपने अधिकारों के प्रति सजग बनाया है इसका सबसे बडा उदाहरण यह है कि आज लोग सोशल मीडिया द्वारा अभिव्यक्ति के अधिकार का प्रयोग खुलकर और निडर होकर करते हैं. वे सामाजिक कुरीतियों, लिंगभेद, जातीय असमानता, राजनीतिक नकारेपन, शासन की निरंकुशता पर अपनी राय बेबाकी से रख सकते हैं तो समाज के बेहतर उदाहरणों द्वारा नकारात्मकता और निराशा को भी दूर करते हैं. मुकेश मानस के अनुसार, “संचार माध्यम संबंध जोडने के माध्यम ही नहीं हैं बल्कि ये किसी व्यक्ति समाज और राष्ट्र की उन्नति में भी सहायक होते हैं.”4 सोशल मीडिया की सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली साइट्स में जिंका इस्तेमाल समाज के हित में किया जा रहा है उसमें फेसबुक, ट्वीटर, व्हट्स ऐप, मैसेंजर यू-ट्यूब आदि आते हैं. आज कल ब्लॉग भी अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम के रूप में कार्य कर रहा है. पहले नम्बर पर आता है. हावर्ड यूनिवर्सिटी के डोरमेट्री से प्रारम्भ हुआ फेसबुक आज दुनिया भर में फैल चुक है और अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है. हाल के कुछ वर्षों में समाज में इसकी पकड बेहद मज्बूत हुई है. यहां कोई मुद्द बहुत जल्दी मिशन बन जाता है. अन्ना क आंदोलन हो, निर्भया केस हो, धर्म के नाम पर फैली हिंसा हो इन सभी के विरूद्ध पहला विरोध यहीं सुनायी पडता है. ”फेसबूक संचार की दुनिया में लम्बी छलांग है. यह एक ऐसा समाजिक मंच है जिस पर आप व्यापार,सम्वाद, संचार, विचार-विमर्श, राजनीतिक प्रचार, सामाजिक गोलबंदी आदि कर सकते हैं. यह एक ऐसा मंच है जो व्यक्तिगत और समाजिक एक ही साथ है.” इसी तरह ब्लॉग लिखकर भी लोग अपना विरोध दर्ज़ कराते हैं. प्रारम्भ में ब्लॉग एक व्यक्तिगत दयरी के रूप मे थी लेकिन आज यह अभिव्यक्ति का सबसे सरल और व्यापक माध्यम बन गया है. इसके जरिये कोई भी व्यक्ति अपने विचारों, अनुभवों या रचनातमकता को दुसरों तक तुरंत पहुंचा सकता है. “इक्कीसवीं सदी में ब्लॉगिंग आम आदमी की अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का सबसे सशक्त ,माध्यम बन गया है. ब्लॉग के जरिये आज कोई भी व्यक्ति अपने विचारों और अनुभवों को बिना किसि सेंसरशिप के सर्वजनिक कर सकता है.” सोशल मीडिया से शुरु की गयी एक छोटी सी मुहिम कब एक बदा आंदोलन बन जाये कहना मुश्किल है. हाल ही में ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट अमेजन पर प्रदर्शित ऐश ट्रे जिसमें स्त्री को पैर फैलाकर बैठे दिखाया गया था, का सोशल मीडिया पर इतना व्यपक विरोध किया गया की अमेजन को उस ऐश ट्रे को हटाना पडा.
सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रतता को किस हद तक बढाया है इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि विभिन्न देशों की सरकारों और संगठनों ने इंटरनेट पर समय-समय पर अनेक प्रतिबंध लगाते रहे हैं. जहां कहीं भी सरकार को आंदोलन क धुआं उठता दिखायी देता है, तुरंत सरकार की नज़र सोशल मीडिया पर जाती है और वह इनपर अंकुश लगाने में नहीं हिचकती. 2011 में अरब आंदोलन में सोशल मीडिया ने अहम भूमिका निभायी थी. इसके बाद से ही इंटरनेट पर सेंसरशिप की प्रव्रित्ति मे इज़ाफा हुआ. इंटरनेट पर नियंत्रण के लिये कॉपीराइट, मानहानी, उत्पीणन और अवमानना को हथियार बनाया गया. शार्ली हेब्दो की घटना ने तो सम्पूर्ण विश्व को हिलाकर रख दिया. इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा के लिये संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने 5 जुलाई 2012 को एक प्रस्ताव पारित किया और परिषद ने सभी सदेशों से नागरिकों की इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की आज़ादी को समर्थन देने की अपील की. भारत में ऐसा ही एक कानून आईटी एक्ट 2000 बनाया गया जिसमें सन् 2008 में बदलाव किया गया जिसके बाद से इस एक्ट की धारा 66A विवादों में आ गयी. इसके अंतर्गत सूचना तकनीक पर आधारित किसी भी संचार माध्यम से भेजा जाने वाला संदेश अगर आपत्तिजनक है तो गिरफ्तारी हो सकती है पर यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि आपत्तिजनक क्या होगा. इधर कुछ सालों से इसका सरकार व प्रशासन द्वारा खुलकर दुरुपयोग किया जाने लगा. उत्तर प्रदेश में 11वीं कक्षा के छात्र को फेसबुक पर आज़म खान के खिलाफ कमेंट किये जाने पर गिरफ्तार कर लिया जाता है तो वहीं पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खीलाफ कर्तून बनाने के अपराध में प्रोफेसर अम्बीकेश महापात्रा को गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन अभिव्यक्ति के अधिकार को सिमित करने वाले इस कानून का विरोध बाल ठाकरे की म्रित्यु पर फेसबुक पर कमेंट करने के अपराध में शाहीन और रीनू की गिरफ्तारी के बाद शुरु हुआ. तदुपरांत इस एक्ट के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की गयी और आईटी एक्ट की धारा 66ए को रद्द कर दिया गया. इस तरह उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की.

किसी चीज के फायदे होते हैं तो उसके नुकसान भी होते हैं. सोशल मीडिया ने जहां अभिव्यक्ति के अधिकार को बचाने और उसे विस्तार देने का काम किया है वहीं इसने लोगों के निजता के अधिकार का उल्लंघन किया है. सोशल मीडिया का उपयोग कर्ते समय तथा उसपर किसी पोस्ट को शेयर करते समय लोग इस बात क ख्याल नहीं रखते कि उनके अभिव्यक्ति के अधिकार अत्यांतिक नहीं हैं, उनपर भी कुछ प्रतिबंध लगाये गये हैं. यही कारण है कि 66 ए को तो निरस्त कर दिया गया लेकिन आईटी एक्ट की धारा 69ए और 79 को खारिज नहीं किया गया उसे कुछ पबंदियों के साथ लागू किया जा सकता है. क्योंकि, सोशल मीडिया पर एक समूह ऐसा भी है जो इसका दुरुपयोग कर रहा है. इसका इस्तेमाल दंगे और सम्प्रदायिकता भडकाने, अश्लीलता फैलाने और चरित्र हनन जैसे कार्य इसके द्वारा बडी असानी से किये जा रहे हैं. इसलिये कुछ प्रतिबं
अतः सोशल मीडिया का उपयोग सावधानी से करना चाहिये और ध्यान रखना चाहिये कि इसके कारण किसी को किसी प्रकार की हानी न पहुंचे. यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि यदि सोशल मीडिया का सही उपयोग किया जाये तो यह देश को मजबूत बना सकता है. ओम थानवी सोशल मीडिया के विषय में कहा है- “सोशल मीडिया की जो तकनीक आई है ये अपने साथ बहुत अच्छाई लेकर आई है. संचार तुरंत होने लगा है- ग्यान की जानकारी का. लोग संचार माध्यमों अखबार और टी.वी. के भरोसे नहीं है. पर यह तकनीक जो अभिशाप लेकर आई है वह है कि आप उसका इस्तेमाल देश में आग लगाने के लिये भी कर सकते हैं, दंगे भडकाने के लिये भी कर साते हैं, चरित्र हनन के लिये भी कर सकते हैं.

संदर्भ सूची
मीडिया लेखन – सिद्धांत और प्रयोग, मुकेश मानस, स्वराज प्रकाशन, दिल्ली-2006
डिजिटल कैपीट्लिज्म फेसबुक संक्रिति और मानवाधिकार- जगदीश्वर चतुर्वेदी अनामिका पब्लिशर्स ऐंड डिस्ट्रीब्यूटर्स प्रा. ( लिमिटेड )2014
जनसंचार: बदलते परिप्रेक्ष्य में- डॉ. बलबीर कुंदरा, तक्षसिला प्रकाशन,2009
इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता – डॉ. अजय कुमार सिंह, लोक्भारती प्रकाशन
सोशल मीडिया और हिंदी – राहुल देव, दैनिक जागरण, 14.09.2016
सोशल मीडिया पर विचारो की आज़ादी पर बडा फैसला, 24.03.2015, CNBC Awaaz
हर कोइ तय नहीं करेगा अभिव्यक्ति की सीमा- 07.07.2016 bbchindi.com

 

कु. किरण त्रिपाठी
शोधार्थी ( हिंदी )
दिल्ली विश्वविद्यालय

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