भक्ति आन्दोलन का प्रादुर्भाव वर्ग, वर्ण, जाति, धर्म और सम्प्रदाय से परे जाकर मनुष्य-सत्य की उद्घोषणा के साथ हुआ था। उनकी भक्ति में सामाजिक विषमता और भेदभाव के लिए जगह […]
हर्षचरित: एक ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में – योगेन्द्र दायमा
सातवीं शताब्दी ईस्वी के आरंभ में बाणभट्ट द्वारा रचित ‘हर्षचरित’ को चरित साहित्य (ऐतिहासिक जीवनी) परंपरा का अग्रदूत कहा जाता है। साहित्य लेखन की यह परंपरा आरंभिक मध्यकालीन भारत में […]
घनानंद के काव्य में व्यंजित ‘प्रेम’ का आदर्श स्वरूप – रवि कृष्ण कटियार
यह मनुष्य की सीमा भी है और प्रकृति की महानता भी कि उसने सदैव ही मानव निर्मिति को आइना दिखाया है, जब हम किसी भाव को शब्दों में बयाँ नहीं […]