कहानी पढ़ना हमेशा ही सुखद रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण उसका छोटा होना है। कभी भी कहीं भी हम कुछ समय निकालकर कहानी पढ़ लेते हैं । कहानी पढ़ने के लिए हमें उसका शीर्षक आकर्षित करता है, अगर कहानीकार को पहले कभी पढ़ चुके हैं, उसके लेखन से हम परिचित हैं, तो लेखक का नाम भी कहानी पढ़ने को लालायित करता है।
साहित्य पर एक नजर डाले तो कहानियां हमेशा ही लिखी जाती रही हैं, और अभी भी लिखी जा रही हैं। कितना भी जमाना बदला हो, आगे बढ़ा हो, पर कहानियों के लिए स्पेस की कमी नहीं हुई है। संचार क्रांति ने भी कहानियों को रुकने नहीं दिया। पहले कहानी लिखकर पत्रिकाओं में छपने के लिए भेजी जाती थी अब ई-मेल से भेज रहे हैं। कोई नहीं भी छापे तो अपने ब्लॉग, अपने फेसबुक वॉल पर डाल रहे हैं। लोगों की प्रतिक्रिया भी हाथों-हाथ देख रहे हैं। कुल मिलाकर कहानी अपने रास्ते बनाती चली, कभी पगडंडियों से, कभी उखड़ी-टूटी सड़कों से, तो कभी सीधा हाइवे से। कहानी चलती रही है दौर के साथ उसके विषय जरूर बदले हैं। हिंदी कहानी अब राजमहलों की कैदी नहीं है, अब वह प्रत्येक स्वछन्द प्राणी की परछाई है जो उसी के साथ उसी उन्मुक्ता के साथ चल रही है। कहानी ही वह लोकप्रिय विधा है जिसने साहित्य के इतिहास के प्रत्येक दौर में सामाजिक विकास की प्रक्रिया और उसमें हो रहे परिर्वतनों को पकड़ने में सक्रिय भूमिका निभाई। प्रेमचंद्र के दौर में कहानियों में कफन, ठाकुर का कुआं, तीन बेटों वाली मां, जैनेंद्र के दौर में पत्नी, पाजेब, खेल, दो चिड़िया आदि कहानियाँ लिखी गई। आज के दौर में बुरी नजर वाले तेरा डैम फूल, मोनोक्रोम, बायोडाटा, मिस लिली, इंद्रधनुष के पार, दो पन्ने वाली औरत आदि कहानियाँ आ रही हैं। इस आलेख में उन नई कहानियों पर चर्चा की जा रही है जो बदलते हुए साहित्यिक परिदृष्य को उद्घाटित करती हैं।
प्रभात रंजन उभरते लेखक, कहानीकार हैं। उनका लेखन नये जमाने का है। उनकी कहानियों के विषय भी थोड़े हट कर होते हैं। मोनोक्रोम उनकी एक नई कहानी है। इस कहानी में है तो लड़का-लड़की ही पात्र है। दोनों कभी साथ पढते थे, एक-दूसरे से प्रेम भी करते थे। रेस्टोरेंट की कोने की कुर्सी मिले इसके लिए घंटो इंतजार भी करते थे। आंखों में आंखे डाल बातें करना, एक-दूसरे की बातों को ध्यान से सुनना। सीधे से कहे तो प्यार में जो कुछ अच्छा लगता है, वो सब करना।
लेकिन समय ने रूकना कहा सीखाया सब चलते-चलते दौड़ने लगे समय की ताल से ताल मिलाते हुए। राहुल और लिच्छवि भी ऐसी ही दौड़ में शामिल हो गए। कैरियर बनाने में इतने मशगुल हो गये कि दिलो में जो एक-दूसरे के लिए कोमल सूत्र थे वो करियर बनाने की पथरीले राहों में उलझ कर छूट गए। किसी काम से वर्षों बाद जब राहुल ने लिच्छवि को उसकी पसंदीदा जगह पर बुलाया तो राहुल ने लिच्छवि से कहा-‘‘अल कौसर तुम्हारी फेवरिट जगह थी…..याद है।’’
लिच्छवि कहती है-‘‘हाँ! पर अब तो टाइम ही नही मिलता यहाँ आने का। ….. वैसे भी यहाँ आना अब ‘इनथिंग’ नहीं रह गया।’’ राहुल को लगता है कि लिच्छवि की पहचान कुछ ऊंची पहुँच के लोगों से है। अगर राहुल की मदद वो कर देगी तो उस का करियर नया मोड़ ले लेगा। यही सोच कर ही उसने लिच्छवि को बुलाया है, खाना खाने। अगर कहूं कि कहानी में नयापन यही है कि आज का युवा अपने करियर के लिए किसी भी पहचान को भुनाना चाहता है तो गलत नहीं होगा।
21वीं सदी के इस दौर में नायक अब पहले जैसा नहीं रहा। अब नायक अपने नुकसान-फायदे को देखते हुए आगे बढ़ता है। वह अपनी प्रेमिका के लिए पलके बिछाये या उसके लिए मर-मिटने वाला नहीं बल्कि उसके सहारे सफलता की सीढ़िया चढ़ने में भी हिचकिचाता नहीं। लेकिन चूंकि संस्कार में पुरूष को झुकना नहीं है सो वह झुकता भी है तो उसे शर्मिंदगी महसूस होती है। जैसा राहुल कहता है ‘‘पहली बार इस मुलाकात पर शर्मिदा महसूस कर रहा था। जैसे लग रहा था सफलता की इच्छा ने उसे आज भीखमंगा बना दिया हो। ….. या तो वह अपना स्वाभिमान बचा सकता है या अपना करियर।
प्रभात रंजन की एक और कहानी है जो आज के संचार माध्यमों की पहुंच को बखूबी बयां करती है। ‘मिस लिली’ कहानी में कहानी का आरंभ सीधा सरल है। नायिका रिक्शे में बैठ टेलर के पास जा रही है और एक बराबर में साइकिल पर चलता हुआ लड़का इशारे कर रहा है और दुकान पर पहुंचने से पहले वह लड़का उसका दुपट्टा खींचते हुए नायिका पर फब्ती कसता है। ये देख कर एक अन्य लड़का फब्ती कसने वाले लड़के पर टूट पड़ता है। यहाँ हीरो की एंट्री लड़कों की धुनाई और लड़की से नजरें झुका कर आगे भी कोई काम हो तो याद करने की गुजारिश। लड़की, लड़के की इसी अदा पर फिदा हो गई 19-20 की उम्र को अस मोड़ पर लड़की का प्रेम में पड़ना लाजमी है, सो प्रेम हो गया और मौके-बेमौके देखने का, बातें करने का, मन भी होने लगा। लड़का भी कही न कही यह चाहता है कि लड़की उसके प्रेम में पड़े। कहानी कि यहां तक की बुनाई तो पुरानी रीति नीति के अनुरूप ही है। नायिका मिस लिली है जो गाती है, अच्छा भी गाती है। सीतामढ़ी शहर के सभी सांस्कृतिक कार्यक्रम में लिली गाती है। उसके गायन की प्रतिभा को देख कर ही लोग सोचते हैं कि एक दिन वह इंडियन आइडल बनेगी। लिली भी सोचती है कि एक दिन उसे किसी भी तरह टी.वी. पर गाने का मौका मिल जाए। धीरे-धीरे वह महत्वाकांक्षी होने लगी है।
जब से टी.वी. पर विभिन्न प्रतियोगिताओं के कार्यक्रम आने लगे हैं तभी से ही कस्बों -गांवों तक के बच्चों के ख्वाब के दायरे में बढ़ने लगे हैं। छोटा-मोटा गायक भी इंडियन आइडल सारेगामापा आदि कार्यक्रमों के माध्यम में से छोटे पर्दे पर छा जाने का सपना देखने लगा है। कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम ने थोड़ी सामान्य ज्ञान की जानकारी रखने वालों को, करोड़पति के सपने दिखाने शुरू किये हैं।
लिली भी अरुण चौधरी की मदद से बड़ी गायिक बनना चाह रही है। कुछ बनने की चाह रखना अनुचित नहीं है, किंतु उस चाहा को पाने की राह कौन-सी रखनी है इस बात का ध्यान जरूर रखा जाना चाहिए। कभी-कभी अति महत्वाकांक्षा अनजाने ही हमें उस राह पर ले जाती है, जिस पर हम चलना नहीं चाहते। पिछले कुछ वर्षों में मधुर भंडारकर की फिल्में ऐसे विषयों पर आई जिनमें जन्म नायिकाएं अपनी इच्छाओं को पूरा करने में ऐसी ही अनजानों ही ऐसी राहों पर चली जाती हैं जहाँ से लौटना मुश्किल है। फैशन फिल्म में नायिका का किरदार निभाने वाली प्रियंका चोपड़ा सफलता के पायदानों पर चढ़ते-चढ़ते नशे की दुनिया में कैसे उतर गई, वह सोच नहीं पाती। इसी तरह के ‘कैलेंडर गर्ल्स’ में चार में से एक लड़की कैसे ‘सेक्स रैकेट’ में फंसकर सेक्स वर्कर बन जाती है, आश्चर्य होता है। यह उनकी महत्वाकांक्षा थी यह बहुत जल्दी सफलता पाने की लालसा जो उन्हें रहा से भटकाती है।
मिस लिली भी पाइरेसी का धंधा करने वाले अरुण चौधरी से इतने प्रभावित है कि उस से प्रेम करते-करते कामयाबी की राह पकड़ती है। कामयाबी के खुमार में सही गलत का ध्यान नहीं रहता। मिस लिली अरुण चैधरी के चरित्र का सही-सही आकलन नहीं कर पाई। नेपाल के टी.वी. चैनल द्वारा टैलेंट ‘टैलेंट हंट’ में भाग लेने गई लिली का अपहरण हो गया वह सेक्स रैकेट में वह फंस गई, यह किसी को पता नहीं चला। इस कहानी में आज के समाज पर टी.वी. के बढ़ते प्रसार के साथ-साथ उसके दुष्प्रभाव का कथन भी है। नौजवान पीढ़ी बहुत कम समय में बहुत कुछ प्राप्त कर लेना चाहती है। लेकिन वह यहभूल जाती हैं कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता।
प्रभात रंजन की ही एक और कहानी है जो बदलते परिदृष्य को बहुत प्रभावी रूप से प्रस्तुत करती है। आज कल हम सभी काम इंटरनेट के माध्यम से करते हैं। बिजली का बिल, टेलिफोन का बिल, मोबाइल का रिचार्ज, कोई सामान का बिल सब नेट से ऑनलाइन पेमेंट करते हैं। इसमें काई संदेह नहीं कि इन तकनीकों के प्रयोग से हम कितनी लाइनों में खड़े होने से बच जाते हैं। इन सब में हमारा समय भी बहुत बचता है। किन्तु यह भी सच है कि इनके फायदों के साथ-साथ नुकसान भी हैं। सारे रिश्ते-नातों को हम ई-मेल भेज कर ही मुक्त होने लगे। बातचीत सिर्फ चैट तक ही सीमित हो गई। रिश्ते औपचारिक होने लगे।
पहले चोर ताले तोड़-उखाड़, छत के दरवाजे से घुसते। पर समय के साथ चोर भी नई तकनीकों से सुसज्जित हुए हैं। अब वे ई-मेल से बैक खातों के नम्बर, पासवर्ड पता कर चोरी करने लगे हैं। प्रभात रंजन की ‘इंटरनेट, सोनाली और सुबिमल मास्टर’ कहानी में ई-मेल पर बात की गई है। लोगों को लुभाने के लिए, ठगने के लिए कम्पनियाँ तरह-तरह के ईमेल भेजती हैं। जिसमें फलां-फलां पुरस्कार प्राप्त करने की बात करती है।
आज कल नेट पर धोखाधड़ी का भी कारोबार बहुत फैल गया है। ये चोर इतने शातिर है कि बहला-फुसला कर हमसे हमारे बैंक की खाता संख्या, हमारा पासवर्ड पूछ कर सीधे हमारे खातों से पैसा निकाल लेते हैं।या फिर ऐसा ई-मेल करते हैं कि आप असमंजस में पड़ जाए कि क्या करे, क्या नहीं। जैसे- लंदन के पते वाली ऐ संस्था ने मुझे सूचित किया कि उनकी पुरस्कर समिति ने मुझे पांच मिलियन पौंड की पुरस्कार राषि के लिए चुना है। लिखा था कि पुरस्कार प्राप्त करने के लिए मुझे कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी होगी।
अगला मेल आया कि इतनी बड़ी पुरस्कार राषि विदेष से आपके पास भेजने के लिए कुछ कागजात बनवाने पड़ेगे। पुरस्कार की राशि चूंकि आपको चेक स्वरूप दी जा रही है। इसलिए कागजात आदि बनवाने का खर्च आपको वहन करना पड़ेगा। यह खर्च नकद में करना होगा इसलिए भारत में आप हमारे निम्न बैंक के खाते में पचास हजार रूपये जमा करवा दे। इस तरह खूब रूपयों का लालच देकर हजारो रूपये लूटने का काम करने के लिए कई गिरोह सक्रिय हैं। वे ऐसा जाल बुनते हैं कि उसमें व्यक्ति आसानी से फंस जाता है।
आज कल की कहानियों में ऐसे नये विषयों को आधार बनाया जा रहा है जो हम रोजमर्रा में देखते हैं। कहानियों के साहित्यिक परिदृष्य में बदलाव के साथ-साथ फैलाव को भी देखा जा सकता है। 21 वीं सदी के पहले दशक की कहानियों में वैष्वीकरण, सूचना तंत्र और बाजारवाद की अनुगूंज साफ सुनी जा सकती है।
संदर्भ ग्रंथ-
प्रभात रंजन: पाँच बेहतरीन कहानियाँ, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, 2013