चलो एक नई शुरुआत करते हैं।
थोड़ी बहुत ख़ुद से ख़ुद की बात करते हैं।।
देखते है क्या बह रहा है ख़ुद के अंदर।
बहती हुई नदियों से मिलता समंदर।
जब फसे हैं यूँ लहरो के बीच मे तो क्यों ना
यूँ ही तैरते-तैरते दरिया पार करते हैं।
चलो एक नई शुरुआत करते हैं।
थोड़ी बहुत ख़ुद से ख़ुद की बात करते हैं।।
हो जाये दौड़,चलो ख़ुद से ख़ुद की
यूँ ही दौड़ दौड़ के ख़ुद को फ़ौलाद करते हैं।
चलो एक नई शुरुआत करते हैं।
थोड़ी बहुत ख़ुद से ख़ुद की बात करते हैं।।
कही सहम जाता हूँ कही बिखर जाता हूँ।
कभी-कभी थोड़ा सा बहक जाता हूँ।
ना जाने कौन सा डर सताता रहता है।
चलो इस डर का दरिया पार करते हैं।
चलो एक नई शुरुआत करते हैं।
थोड़ी-बहुत ख़ुद से ख़ुद की बात करते हैं।।
ना पहले का (भूतकाल),ना बाद का(भविष्य)
ना बेवजह यूँ क़िस्मत की बरसात का।
भला क्यों इंतज़ार करते हैं??
चलो एक नई शुरुआत करते हैं।
थोड़ी-बहुत ख़ुद से ख़ुद की बात करते हैं।।
कभी-कभी लगता है, कि थक के बैठ जाऊँगा
अगर ऐसा हुआ तो बहुत पछताऊँगा
तो फिर यूँ ही चलते रहने का नया आयाम गढ़ते हैं।
चलो एक नई शुरुआत करते हैं।
थोड़ी-बहुत ख़ुद से ख़ुद की बात करते हैं।।
अब ना मागूँगा तुझसे कोई वरदान।
बस इतना सा करम कर मेरे भगवान।
जब मैं चलूं, तो वो हवाएं तेज़ कर देना। ( कटाछ करने वाले लोग, ताना मारने वाले लोग)
तो फिर भी उन हवाओँ के विपरीत चलते रहने का प्रयास करते हैं।
चलो एक नई शुरुआत करते हैं।
थोड़ी-बहुत ख़ुद से ख़ुद की बात करते हैं।।