1. सुनो नकाबपोश
चारों तरफ दिख रहे हैं
दुनिया में नकाब लगाए लोग
आपसे मिलने, बतियाने से
हाथ मिलाने से घबराते हुए
जल्दी से किनारे से निकलकर
मुँह छिपा कर भाग जाते हुए
मैं सोचता हूँ कि क्या वे वही
नकाबपोश हैं जो बरसो पहले दादी की कहानी में
आये थे और तमाम
बहुमूल्य सामान चुराकर भाग गये थे
मैं सोच रहा हूँ और धीरे से बुदबुदाता हूँ
नकाबपोश
इन्होंने चुरा लिया
नदियों से उनका पानी, गायों, भैंसो, बकरियों से उनके बच्चों के हिस्से का दूध,
जंगलों से उनके हिस्से का पेड़, सोन चिरैया, गौरैया, तितलियां
पहाड़ों से उनकी उनके वादियों के मुस्कराते झरने, फूल, जंगल और पेड़,
चिरैया से घोसला, हाथियों, शेरों से पतझड़, बसंत, शरद, मानसून
पता नहीं क्या-क्या और तो और अपनों से बड़ा पन
राजनेता बन चुरा लिया निरीह अपनो के आँखों में सजे सपने
और करते रहे फेयर एण्ड लवली
और फेयर एण्ड हैण्डसम का प्रचार
अपने असली चेहरों को छुपाए
लेकिन तुम्हारी चोरी के विभिन्न अपराधों की धाराओं को
प्रकृति ने तुम्हारे मुँह पर लिख दिया है
और तुम भाग रहे हो नकाब लगाये
अपने मुँह को छिपाये।
2. दरवाजे पर आ जा चिरैया
दरवाजे पे आ जा चिरैया तोहे मुनिया पुकारे
मुनिया पुकारे तोहे, मुनिया पुकारे
आके बैठ जा रे ऊँची अटरिया
तोहे मुनिया पुकारे।
अंगना में आके गौरैया नाचे
फर्ररर से उड़कर घर भर नापे
पीछे, पीछे भागत है कृष्ण कन्हैया
तोहे मुनिया पुकारे
दरवाजे पे आ जा चिरैया
तो हे मुनिया पुकारे
जब से बिछुड़ी गौरया रानी
सूने भए गांव, चैपाल राजधानी
चहक चहक अब कौन रिझाये
सुबह, पछिलहरा मैं गांव को कौन जगाए
पूछ रही अंगने की तुलसी मैया
तोहे मुनिया पुकारे
दरवाजे पर आ जा चिरैया तोहे
मुनिया पुकारे।
राकेश धर द्विवेदी
गोमतीनगर
लखनऊ