कबीरदास हिंदी साहित्य के मध्यकाल में उत्पन्न ऐसे व्यक्ति हैं , जो एक ही साथ संत हैं , फ़क़ीर हैं ,गृहस्थ हैं,समाज सुधारक हैं और एक उच्च कोटि के कवि भी हैं | कबीर का जन्म भारतीय इतिहास में एक महान घटना है , जब वह जन्म लेता है तो माँ द्वारा परित्यक्त होता है और धरती की गोद में पड़े इस नादान का नीरू और नीमा के द्वारा पालन पोषण होता है | कबीर बड़ा होकर मानवता की खोज में लग जाता है | इस खोज में वह बहुत हद तक सफल भी हुए इसमें उन्हें हिन्दू और मुसलमान दोनों का विरोध झेलना पड़ा लेकिन वह दोनों की बुराइयों को उजागर करने और संवेदनशील लोगों को जाग्रत करने में सफल हुए |
कबीरदास का जन्म उस ऐतिहासिक क्षण में हुआ जब हमारा समाज रूढ़ी में जकड़ा था ,कर्मकांड में उलझा था और धार्मिक प्रतिद्वंद्विता विद्यमान थी | यहीं से भारत का जातीय जागरण शुरू होता है | तर्क और प्रश्न की जो परम्परा लुप्त हो चुकी थी ,कबीर उसे पुनः स्थापित किए | कबीर एक तरफ ब्राह्मणवाद को फटकारते तो दूसरी ओर मुल्लावाद को धतियाते हैं | वह एक ऐसे समाज की कल्पना को साकार रूप देना चाहते थे जिसमें इंसानियत हो ,ऊँच-नीच न हो ,कथनी-करनी में भेद न हो ,कर्मकांडी न हों और तर्क करने की शक्ति रखता हो | कबीरदास समाज के सामने केवल उपदेश भर नहीं देते ,वह उस पर स्वयं अमल भी करते हैं | वह गृहस्थ होने के साथ-साथ संत थे ,किसी जंगल में जाने की जरूरत नहीं समझते थे और कहते थे ‘माला फेरत जग मुआ गया न मन का फेर,करका करका छोड़ के मन का मन फेर’ |
कबीर न हिन्दू हैं,न मुसलमान हैं|वह एक ऐसा व्यक्ति है जो मानवता में आस्था रखता है | कबीरदास मध्यकाल में तर्कशास्त्र को जन्म देने वाले महान संत हैं, तभी तो वह कहते हैं कि ‘कंकड़ पत्थर जोड़ के मस्जिद दियो बनाय ,ता चढ़ मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय’|लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कबीर ईश्वर को नहीं मानते|कबीर ईश्वर को अगाध प्रेम करते हैं लेकिन दूसरी तरफ वह गुरू को ईश्वर से बड़ा साबित करते हैं|वह ईश्वर से ज्यादा गुरू को महत्ता देते हैं | इतिहास में कई बार गुरू का नाम योग्य शिष्य के कारण जाना गया|रामानन्द ऐसे ही गुरू थे जिनका शिष्य इतना महान हुआ कि कबीर का जब भी नाम आता है , गुरू रामानन्द का नाम अनायास ही मुख पर आ जाता है , जैसे रामकृष्ण परमहंस का नाम स्वामी विवेकानंद का नाम आते ही आ जाता है , जैसे प्रेमचंद के द्वारा आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का नाम आ जाता है |
गुरू के महत्त्व की जो अविरल गंगा कबीर ने बहाई वह गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस में उत्तरकांड में काकभुशुंडी और गरुण संवाद में और उत्कृष्ट रूप में दिखाई पड़ता है ,गुरू इतना दयावान है कि शिष्य के पतन की बात जानने पर वह शिव की आराधना इसलिए करते हैं कि वह शिष्य के अपराध को वह क्षमा कर दें | ऐसा गुरू धन्य है | ऐसे गुरू रामानन्द धन्य हैं , जिन्होंने तत्कालीन समाज में व्याप्त जाति-पांति की व्यवस्था को तोडकर कबीर जैसे योग्य शिष्य को अपनाया और भक्ति के क्षेत्र में जाति-पांति ,ऊँच-नीच के बंधन को तोडा | रूढी को तोड़ने का जो बीज रामानंद ने अंखुवाया था उसे कबीर ने अपनी तर्क और प्रश्न की शैली से पल्लवित-पुष्पवित् किया |
कबीर के आराध्य राम हैं तो तुलसीदास के भी आराध्य राम हैं लेकिन , कबीर के राम निर्गुण हैं जो निराकार है , उसका कोई रूप नही है और न रंग है लेकिन वह सर्वगुण सम्पन्न है | जबकि तुलसीदास के राम अवतार लेते हैं ,दशरथ के पुत्र हैं | तुलसीदास ने भक्ति के माध्यम से राम को पाने का मार्ग दिखाया जबकि कबीर ने ज्ञान का मार्ग बताया | कबीर औरत तुलसी एक-दूसरे के पूरक हैं ,कबीर के राम और तुलसीदास के राम एक-दूसरे के पूरक होकर परमब्रह्म परमात्मा का रूप धारण करते हैं | तुलसीदास भक्ति में समर्पण यानी अहं का परित्याग आवश्यक मानते हैं तो कबीर ने भी पहले ही संत धारा में अहं को त्याज्य बताया था –“जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाहि |”
कबीर के यहाँ जो आलोचक नारी का अपमान देखते हैं उन्हें यह दिखाई ही नहीं देता कि कबीर नारी का सन्दर्भ देकर सांसारिक आसक्ति की ओर संकेत कर रहे थे | जो व्यक्ति स्वयं गृहस्थ जीवन बिताया हो और हर क्षेत्र में तर्क की स्थापना किया हो और मानवता प्रेमी हो वह स्त्री की निंदा कैसे कर सकता है?ऐसे ही भ्रम तुलसीदास जी बारे में है | तुलसीदास जब यह कहते हैं कि “सिया राममय सब जग जानी करों प्रणाम जोर जग पानी” तो वह स्त्री निंदक कैसे हो सकता है?मानवता का पक्षधर होने का यह मतलब कहाँ से निकलता है कि वह सिर्फ पुरुष पक्षधर है?साहित्य के इतिहास लेखन में इस दृष्टि से शोध करने की आवश्यकता है कि कबीर और तुलसीदास स्त्री-निंदक नहीं थे |यदि आप किसी अवगुण की बुराई करते है तो इसका मतलब यह तो नही की आप व्यक्ति की निंदा करते हों | महात्मा गाँधी इसीलिए कहा करते थें कि पाप से घृणा करें व्यक्ति से नहीं |
कबीरदास आज से पांच सौ वर्ष पूर्व इस धरती से विदा ले लिए थे | वह एक महान तर्कशास्त्री ,संत ,गृहस्थ ,विचारक और अव्वल दर्जे के कवि थे जिनकी उलटबांसियों से कुछ आलोचक आक्रांत भी हुए लेकिन कबीर की भाषा क्षमता से आलोचक परिचित थे | कबीर एक तरफ मस्तमौला फ़क़ीर हैं तो दूसरी तरफ वह कहते हैं “चलती चाकी देखकर दिया कबीरा रोय”|एक तरफ वह जब माला छापा तिलक को व्यर्थ करार देते हैं तो दूसरी तरफ कहते हैं “दिन भर रोजा रहत हैं रात हनत हैं गाय,यह तो खून वह बंदगी कैसे ख़ुशी खुदाय”|
“कबिरा खड़ा बजार में सबकी मांगे खैर|
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर ||”
कृष्णानन्द
शिवाजी कॉलेज
दिल्ली विश्वविद्यालय