लेखक जेवियर मोरो की 2008 में आई मूल स्पैनिश भाषा में ‘अल सारी रोजो’ नाम से आई किताब सोनिया गांधी की आत्मकथा के तौर पर प्रचारित की गई है। हालांकि हकीकत यह है कि सोनिया गांधी ने किसी किताब या आत्मकथा के नाम से कभी कोई इंटरव्यू दिया ही नहीं है।
बीते दशक में आई इस किताब को लेकर काफी विवाद हुआ था और कांग्रेस पार्टी ने इस पर आपत्ति भी की थी। लेकिन नए निजाम में यह किताब बाजार में आई। ‘द रेड सारी: व्हेन लाइफ इज द प्राइस फॉर पावर’ का हिंदी अनुवाद रचना भोला और बीके चतुर्वेदी ने किया है। जो ‘द रेड सारी-सोनिया गांधी की नाटकीय जीवनी’ के नाम से 2015 में प्रकाशित हुई है। वैसे इस किताब का नाम ‘लाल साड़ी’ क्यों रखा गया है? यह जानने के लिए आपको किताब पढ़नी पड़ेगी।
किताब को लेकर उठे विवाद और कांग्रेस की आपत्ति अपनी जगह है लेकिन एक पाठक की नजर से देखें तो इसमें सोनिया गांधी तो कम लेकिन इंदिरा, राजीव, संजय और मेनका से जुड़े घटनाक्रम को काफी विस्तार से दिया गया है और किताब पढ़ते वक्त इन लोगों का दौर किसी चलती हुई फिल्म की तरह आंखों में आ जाता है। किताब को जेवियर मोरो ने इस अंदाज में लिखा है, मानो सब कुछ उनकी आंखों के सामने घट रहा हो। किसी भी जिज्ञासु पाठक के लिए तो इसमें कई चौंकाने वाली जानकारियां है।
मसलन, आज भारतीय जनता पार्टी जिस अंदाज में काशी कॉरिडोर को भुनाने की कोशिश में लगी है या फिर भाजपा समर्थक इसे प्रचारित कर रहे हैं, वह आज के हालात में भले ही प्रासंगिक लगे। लेकिन हकीकत यह है कि करीब 45 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने दिल्ली के तुर्कमान गेट से लगी बस्तियां ढहाने के साथ-साथ बनारस में काशी कॉरिडोर का निर्माण भी शुरू करवा दिया था।
वैसे हैरानी की बात यह है कि इस बारे में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भनक तक नहीं थी और जब उन्हें पता चला तो अपने बेटे की इस ‘मनमानी हरकत’ से बेहद नाराज भी हुई थी। किताब में परिवार के अंदरखाने के कई किस्से भी इसमें बयां किए गए हैं, मसलन संजय गांधी की महिला मित्रों का जिक्र और मेनका से शादी की परिरिस्थितियां भी विस्तार से है। वहीं राजीव-संजय में तकरार से लेकर राजीव-सोनिया ने रूमानियत से भरे रिश्तों को भी उकेरा गया है। किताब के कुछ बिंदु जिनका उल्लेख करना जरूरी है।
परेशान इंदिरा बोलीं-हे भगवान, मुझे कोई कुछ बताता क्यों नहीं
किताब में जेवियर मोरो लिखते हैं-‘पुपुल जयकर बनारस से लौटी थीं और सदमें में थी। पुपुल देख आईं थी कि बनारस की गलियों को चौड़ा करने बुलडोजर प्राचीन भवनों को नष्ट कर रहे थे। पुपुल ने वहां के अधिकारी से पूछा कि आप यहां से निकलने वाले मंदिरों, देवों और छोटी पूजा वेदियों का क्या करने जा रहे हैं? उसने कहा कि हम उन्हें कहीं और रखवा देंगे। उस अफसर ने सफाई दी कि संजय गांधी इस नगर को भव्यतम व सुंदर बनाना चाहते हैं। पुपुल यहां की तबाही के फोटो लेकर दिल्ली गईं तो इन्हें देखकर इंदिरा आगबबूला हो गईं। उन्होंने तुरंत मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी से बात की। उन्हें तुरंत दिल्ली तलब किया और फिर अपना मुंह दोनों हाथों से ढांपते हुए कहा-हे भगवान, मुझे कोई कुछ बताता क्यों नहीं। सबको पता था यह आदेश संजय ने दिए थे।’
मारूति को लेकर भाईयों में हुई थी तीखी तकरार, सोनिया पर भी नाराज हुए थे राजीव
लेखक जेवियर मोरो के मुताबिक संजय गांधी की मारूति परियोजना से राजीव हमेशा बेचैन रहते थे। उन्हें डर था कि इससे मां की साख को धक्का लग सकता है। एक बार जब राजीव दौरे से लौटे तो उन्हें पता चला कि संजय ने सोनिया को राजी कर लिया है कि वह उनकी मारूति परियोजना में साझेदार के तौर पर शामिल हो जाए और इसमें राहुल और प्रियंका को भी साझेदार के तौर पर दिखाया गया। सोनिया ने इस पर हस्ताक्षर भी कर दिए थे। राजीव लौटे तो बेहद नाराज हुए। उनकी संजय से भारी बहस हुई। राजीव बोले-तुम ऐसा कैसे कर सकते हो? मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे कामों की वजह से कल को हमें भी बदनामी भुगतनी पड़े या तुम्हारी वजह से सोनिया या बच्चों को भुगतना पड़े। संजय-इसमें कोई मुश्किल नहीं आएगी। राजीव-तुम कहना क्या चाहते हो, तुम्हे नहीं लगता विपक्ष इसका जल्द पता कर लेगा। संजय-यह गैरकानूनी काम नहीं है। राजीव-हां, गैर कानूनी है और सोनिया अभी भी विदेशी नागरिक है। कानून के अनुसार किसी भी भारतीय कंपनी में भागीदार नहीं हो सकती। जब सोनिया ने गुस्से से भरे राजीव को सफाई देनी चाही तो राजीव बोले-तुम्हे एहसास भी है, तुमने किन कागजों पर दस्तखत किए हैं? उन दस्तावेजों में लिखा था कि तुम उसकी कंपनी से वेतन लेती हो, देखना हम सबको यह मारूति ले डूबेगी।
क्या इंदिरा ने संजय की लाश से घड़ी और चाबी निकलवाई थी?
संजय गांधी की मौत एक हवाई दुर्घटना में 23 जून 1980 को हुई थी। संजय की मौत के बाद दो अफवाहें आज तक जनमानस में चल रही हैं। पहली तो यह कि ‘इंदिरा गांधी ने अपने बेटे को मरवाया था’ और दूसरी यह कि खबर मिलते ही ‘सबसे पहले पहुंच कर इंदिरा ने संजय की लाश से घड़ी और चाबी का गुच्छा निकलवा लिया था।’ इन अफवाहों पर ‘लाल साड़ी’ में रोशनी डाली गई है। जेवियर मोरो लिखते हैं- ‘कुछ लोगों का कहना था कि इंदिरा वहां अपने बेटे संजय की घड़ी और चाबी का गुच्छा देखने गई थी। घड़ी में स्विस बैंक अकाउंट का नंबर कोड के तौर पर दर्ज है और चाबी का गुच्छा उनके अकूत धन के भंडार की चाबी है। हालांकि इंदिरा को संजय की व्यक्तिगत सामान से कोई सरोकार नहीं था और वह सब पुलिस ने पहले ही जमा कर ली थी।’ किताब में इस तथ्य का भी जिक्र है कि संजय गांधी की समाधि भव्य रूप में दिल्ली में बनाए जाने का राजीव ने विरोध किया था। किताब के मुताबिक राजीव जहां विरोध कर रहे थे वहीं फारुख अब्दुल्ला सहित बहुत से मुख्यमंत्रियों का दबाव था कि शांतिवन के पास भव्य रूप से समाधि बनाई जाए। इससे कई लोगों को इसमें इंदिरा गांधी के सत्ता के दुरूपयोग की बू आई। किताब में यह भी उल्लेख है कि अकबर रोड वाले आवास के बगीचे में पेड़ के नीचे जब राजीव ने संजय गांधी की राख दबाई थी, उस वक्त पहली बार इंदिरा गांधी सार्वजनिक तौर पर फूट-फूट कर रोई थी।
राजीव-सोनिया की वसीयत, विद्युत शवदाह गृह नहीं लकड़ियों से राहुल करे अंतिम संस्कार
किताब में इंदिरा गांधी के कार्यकाल और उनकी हत्या पर काफी विस्तार से लिखा गया है। आतंकियों से जान के खतरे के बीच जी रहे एक परिवार की व्यथा को भी लेखक ने बखूबी बयां किया है। इंदिरा की हत्या के बाद की परिस्थितियों का जिक्र करते हुए किताब में उल्लेखित है कि राजीव-सोनिया ने 1984 में 19 नवंबर को इंदिरा गांधी की 68 वीं सालगिरह पर लिख कर दे दिया था कि-यदि हमारी मृत्यु भारत में कहीं भी या कहीं बाहर हो जाए तो हमारे शव दिल्ली लाए जाएं और हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार अंत्येष्टि की जाए। किसी भी परिस्थिति में बिजली के शवदाह गृह में अंतिम संस्कार न किया जाए। हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार राहुल हमारा दाह संस्कार करे और हमारी अस्थियां इलाहाबाद में गंगा में विसर्जित की जाए। जहां हमारे पूर्वजों की राख बिखेरी गई थी।
इंदिरा को ‘खून पीने वाली काली मां’ कहा था मेनका ने, परेशान राजीव ने बेटे को लिखी थी चिट्ठी
किताब में इंदिरा, राजीव व सोनिया से मेनका के रिश्तों पर भी रोशनी डाली गई है। ‘लाल साड़ी’ से पता लगता है कि सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उनकी देवरानी मेनका गांधी ने सबसे पहले उठाया था। संजय के रहते और संजय के गुजरने के बाद मेनका के व्यवहार और उनके अपनी सास, जेठ-जेठानी से संबंध पर बहुत कुछ सनसनीखेज जैसा है।
मसलन, संजय के गुजरने के बाद किस तरह मेनका और उससे जुड़े लोगों ने प्रधानमंत्री आवास में मीडिया का जमावड़ा लगाया था और कैमरों की चकाचौंध के बीच मेनका ने यह घर छोड़ा था। संजय की दूसरी पुण्यतिथि पर मेनका को नहीं बुलाए जाने और इसके जवाब में मेनका का विधवाओं की रैली निकालने का भी ब्यौरा किताब में है। साथ ही यह भी बताया गया है कि मेनका तब ऐसे निजी पत्र सार्वजनिक कर रही थी, जिनमें राजीव की आलोचना हो। वह अपनी रैली में इंदिरा गांधी को ‘खून पीने वाली काली मां’ कह रही थी। राजीव उस वक्त इंदिरा और अपने विरुद्ध मेनका गांधी व अन्य के दुष्प्रचार से बेहद परेशान थे। इस दौरान राजीव ने अपने बेटे राहुल को दून स्कूल में लिखा था-”कभी-कभी ये लोग तुम्हारी दादी, मां और मेरे लिए भी खूब बकवास करेंगे लेकिन तुम कतई चिंता मत करना। हो सकता है स्कूल में कुछ बच्चे यही सब बातें लेकर तुम्हारे पीछे पड़ जाए। पर तुम्हे पता चल जाएगा कि यह सब बकवास है। तुम्हे ऐसे भड़कावे के विरुद्ध लड़ने का हुनर सीखना पड़ेगा..जो बातें परेशान करें, उनकी अनदेखी करना सीखो और इन बातों को खुद पर हावी मत होने दो।”
हत्या का था अंदेशा, दादी ने नन्हे राहुल से लिया था वादा
इंदिरा गांधी जानती थीं कि उनकी जान को खतरा है। उनकी जान कभी भी ली जा सकती है। इसका जिक्र भी वह अपने लोगों से करती थीं। किताब के मुताबिक-”इंदिरा गांधी ने अपनी सहेली पुपुल जयकर कहा था कि उनके विरुद्ध कोई तांत्रिक क्रियाएं करवा रहा है। हालांकि सोनिया गांधी समझती थी कि ऐसे विचार तांत्रिक धीरेंद्र ब्रह्मचारी के प्रभाव के चलते है, जिनका प्रधानमंत्री आवास बेरोकटोक आना जाना था।” आपरेशन ब्लू स्टार के बाद की परिस्थितियों पर किताब में दर्ज है-”कुछ दिनों बाद खुफिया ब्यूरो (आईबी) के डायरेक्टर ने सुझाव दिया था कि इंदिरा के आवास पर जो सिक्यूरिटी गार्ड्स हैं, उनमें सिखों को हटाकर अन्य धर्म वाले गार्ड्स की नियुक्ति की जाए। लेकिन इंदिरा ने यह कहते हुए विरोध किया कि क्योंकि यह एहतियात उनके मानने वाली राजनीतिक मान्यता के विरुद्ध होगा, जिसके अनुसार धर्मनिरपेक्ष सरकार में किसी धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो सकता।” हालांकि इंदिरा अपनी जान पर खतरे को लेकर आशंकित थी। किताब में एक बेहद मार्मिक प्रसंग दर्ज है। जिसके मुताबिक-”तब इंदिरा ने अपने पौत्र राहुल को करीब बुलाया और कहा-यदि मुझे कुछ हो जाए तो मैं नहीं चाहती कि तुम मेरे लिए रोओ, समझे। अब ऐसा मौका आए तो बहादुर बने रहना। क्या तुम मुझसे वादा करोगा। लड़के ने अपनी दादी की तरफ देख कर हामी भरी।” इंदिरा गांधी की हत्या के बाद परिवार की सुरक्षा व्यवस्था में आए बदलावों का असर और राहुल-प्रियंका को स्कूल छुड़वा कर घर पर ही उनकी शिक्षा की व्यवस्था किए जाने का भी ब्यौरा किताब में है।
राजीव की बात टाल नहीं सके रीगन, कंप्यूटर के ख्वाब की उड़ाई जाती थी हंसी
राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए देश में कंप्यूटर क्रांति का सपना देखा था। लेकिन लोग इस सपने पर हंसते थे। इस बारे में किताब में दर्ज है- ” 21वीं सदी में प्रत्येक गांव के स्कूल में एक कंप्यूटर होगा, राजीव के इस दावे पर लोग हंसते थे। यह लगता था मानों किसी रईसजादे का सपना है क्योंकि तब तो गांवों में बिजली तक नहीं थी।” वैसे सुपर कंप्यूटर को लेकर राजीव गांधी और अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के बीच हुई चर्चा का भी इस किताब में ब्यौरा है। जिससे पता चलता है कि राजीव ने अपने देश की जरूरत के लिए कैसे अमेरिकी राष्ट्रपित को मना लिया। किताब के मुताबिक- ”राजीव ने राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन को अपनी नीति में एक बदलाव के लिए राजी कर लिया था। उनकी नीति थी कि भारत को ऐसी प्रौद्योगिकी नहीं बेची जाएगी जो वह पूर्व के देशों को बेच सके। लेकिन राजीव चाहते थे कि अमेरिकी सुपर कंप्यूटर भारत को मिल जाए, जिससे हम कृषि के लिए मौसम की सटीक भविष्यवाणी कर सकें। रीगन ने राजीव की बात मानी और हामी भरी।
प्रियंका को मनाने बेनजीर से बात की थी राजीव ने
किताब में एक और रोचक प्रसंग का जिक्र है। जिसके मुताबिक-”नेहरू परिवार के बच्चे तीन पीढ़ियों से इंग्लैंड पढ़ने जा रहे थे लेकिन प्रियंका ने इससे मना कर दिया। राजीव ने इस पर बेनजीर से उस साल पेरिस में हुई मुलाकात के दौरान जिक्र किया था। राजीव को मालूम था कि अगर प्रियंका किसी की सुनेंगी तो वह सिर्फ बेनजीर की। इसलिए राजीव ने बेनजीर से अनुरोध किया था कि वह प्रियंका को समझाए।”
मायके के दबाव के बावजूद सोनिया ने इसलिए नहीं छोड़ा भारत
इस किताब में राजीव की मौत के बाद जिन ब्यौरों को लेकर पूर्व में विवाद हो चुका है उसमें ‘काफी दूर से आई एक कॉल’ का जिक्र है। जिसमें सोनिया का मायका इस जिद पर अड़ा था कि उसे वापस आ जाना चाहिए। सोनिया ने इस दौरान अपनी मां से साफ कह दिया था- भारत ही उसका घर है और यहीं उसके सबने दबे पड़े हैं। अपनी बहन से सोनिया ने कहा-यह मेरा जीवन है और मैं इस देश को छोड़कर कहीं और नहीं बस सकती। क्योंकि वहां पर मैं सदा विदेशी ही रहूंगी। बहन ने कहा-कम से कम घर तो बदल लो। सोनिया-क्यों? तुम समझती हो यह शापग्रस्त है, यहां की प्रेस भी यही कहती है। बहन-नहीं इस बकवास पर मैं विश्वास नहीं करती। मैं तो इसलिए कह रही हूं कि इस घर में तुम्हे राजीव की याद सताती रहेगी। सोनिया-इस कारण तो मैं यह घर छोड़ना नहीं चाहती। फिर सुरक्षा के हिसाब से भी यह घर हमारे लिए मुनासिब है।
विरोध इसलिए हुआ था ‘लाल साड़ी’ का
यह किताब हालांकि 2008 में आ चुकी थी लेकिन कांग्रेस पार्टी ने औपचारिक तौर पर अपना विरोध दर्ज कराया था। इस वजह से भारत में यह किताब प्रकाशित नहीं हो पाई थी। 2010 में कांग्रेस पार्टी की ओर से लेखक जेवियर मोरो और प्रकाशक को कानूनी नोटिस भी भेजा गया था। इस किताब में नेहरू-गांधी परिवार के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसमें मोतीलाल नेहरू से लेकर सोनिया गांधी के 2004 में प्रधानमंत्री पद ठुकराने तक के दौर का तफसील से ब्यौरा है। मोरो ने सोनिया की जिंदगी के उस दौर के वर्णन भी किया है, जब उनके पति राजीव गांधी की मौत हुई थी। किताब के उस हिस्से में मोरो ने सोनिया पर उनकी मां, उनकी बड़ी बहन अनुष्का की ओर से पड़े कथित दबाव का जिक्र किया है। मोरो के मुताबिक, सोनिया की मां और उनकी बड़ी बहन चाहती थीं कि सोनिया भारत छोड़कर फिर से इटली के तुरीन के नजदीक मौजूद ओरबासानो कस्बे में बस जाएं। कांग्रेस के नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने 2010 में इस किताब पर आपत्ति जाहिर की थी। तब सिंघवी ने कहा था, ‘बुक में छपी बातें झूठी, अपमानजनक हैं।’ कांग्रेस को उस हिस्से पर अधिक ऐतराज था, जिसमें यह बताने की कोशिश की गई है कि 1977 में इंदिरा गांधी की हार के बाद सोनिया गांधी अपने पति राजीव गांधी और बच्चों को लेकर इटली वापस जाना चाहती थीं।
डिस्क्लेमर को लेकर भी विवाद
मोरो दावा कर चुके हैं कि किताब की सभी प्रतियों के शुरुआती पन्ने पर डिस्क्लेमर लिखा हुआ है कि किताब में लिखी बातचीत और बताई गई परिस्थितियां लेखक की अपनी समझ के अनुसार है और जरूरी नहीं है कि वह सच हो। अभिषेक मनु सिंघवी ने दावा किया था कि किताब की हर प्रति में डिस्क्लेमर नहीं छपा है। ‘द रेड सारी: व्हेन लाइफ इज द प्राइस फॉर पावर’ के राइटर जेवियर मोरो ने अपनी किताब के बचाव में कहा था, ‘मैंने अपनी किताब में पहले से ही सार्वजनिक तौर पर मौजूद आलेख और किताबों का सहारा लिया है।
सोनिया ने इंटरव्यू दिया ही नहीं और इन किताबों के सहारे लिख दी ‘सोनिया की आत्मकथा’
लेखक ने सोनिया गांधी से चर्चा किए बगैर किताब लिखी है और वैकल्पिक रास्ता निकालते हुए ‘द डाइनेस्टी’ लेखक जैड एडम्स-फिलिप वाइटहेड,’इंदिरा गांधी: एन इंटीमेट बायोग्राफी’ लेखिका द्वय पुपुल जयकर-कैथरीन फ्रैंक , ‘इंडियन समर-द सीक्रेट हिस्ट्री ऑफ द एंड ऑफ एन एंपायर’ लेखक-एलेक्स वान तंजलमैन,’लेटर्स बिटविन इंदिरा गांधी-जवाहरलाल नेहरू 1940-1964′ संपादक सोनिया गांधी, ‘ट्रूथ लव एंड ए लिटिल मैलिस’ लेखक खुशवंत सिंह, ‘इंदिरा गांधी स्टेट्समैन स्कॉलर्स एंड फ्रैंड’ लेखिका अरूणा आसफ अली, ‘इंदिरा जी थ्रू माई आईस’ लेखिका ऊषा भगत, गांधी-द इमरजेंसी एंड इंडियन डेमोक्रेसी-पीएन धर, व्हाट आई एम डुइंग हियर-ब्रुस चैटविन, ‘संजय गांधी’ लेखक द्वय मेनका गांधी-टीएस नागराज, ‘पीपल, पैशन एंड पॉलिटिक्स’ लेखक मुहम्मद युनुस , इंदिरा-द लाइफ ऑफ इंदिरा नेहरू गांधी लेखिका कैथरीन फ्रैंक, ‘इंदिरा गांधी लेटर्स टू एन अमेरिकन फ्रैंड’ लेखिका डोरोथी नार्मन, ‘सोनिया मिस्टेक’ लेखिका रूपा चटर्जी, ‘राजीव’ लेखिका सोनिया गांधी, ‘राजीव गांधी-सन ऑफ ए डायनेस्टी’ लेखक निकोलस न्यूजेंट, ‘इंडिया आफ्टर गांधी-द हिस्ट्री ऑफ वर्ल्ड लारजेस्ट डेमोक्रेसी’ लेखक रामचंद्र गुहा और ‘इंदिरा गांधी रेवोल्यूशन इन रेस्ट्रेंट’ लेखिका उमा वासुदेव सहित नेहरू-गांधी परिवार लिखी अन्य किताबों-कुछ पत्रों का सहारा लिया है। वहीं इंटरव्यू के नाम पर इंदिरा गांधी की सेक्रेट्री रही ऊषा भगत से मुलाकात की है। इसके बाद सोनिया गांधी के इर्द-गिर्द के घटनाक्रम को समेटते हुए किताब के तौर पर पेश कर दिया है।
समीक्षक का परिचय:- समीक्षक मुहम्मद जाकिर हुसैन एक लेखक और पत्रकार के तौर पर छत्तीसगढ़ विशेष रूप से भिलाई में सक्रिय हैं। इस्पात नगरी भिलाई पर केंद्रित उनकी दो किताबें प्रकाशित हो चुकी है। उनसे 9425558442 पर संपर्क किया जा सकता है।
किताब का ब्यौरा :- ‘द रेड सारी-सोनिया गांधी की नाटकीय जीवनी’, लेखक : जेवियर मोरो
हिंदी अनुवाद : रचना भोला और बीके चतुर्वेदी, मूल्य :
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प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स, नई दिल्ली