1.तब समझो प्यार हुआ हमको

जब आस मिलन की जागी हो

जब हृदय बने अनुरागी हो

जब मदहोशी सी छा जाए

और ख़ामोशी आ जाए

जब एक नाम ही रमते हों

बस उसी की माला जपते हों

जब तन से अर्पण कर बैठे

मन से भी समर्पण कर बैठे

जब याद का दरिया नदी बने

जब एक-एक पल सदी बने

पतझर भी बहार लगे हमको

तब समझो प्यार हुआ हमको

 

जब खुद को बहुत सजाए हम

खुद से भी बहुत लजाए हम

जब भूख भी कम-कम लगती हो

आँख रात भर जगती हो

जब चमन रोज मधुमास लगे

रोज मिलन की आस जगे

सावन  सब हमको माह लगे

जब आलिंगन की चाह जगे

जब बातों में तकरार लगे हमको

तब समझो प्यार हुआ हमको

जब खोने से रोज डरे उसको

बाहों में रोज भरे उसको

जब कोलाहल एकांत लगे

सागर भी हमको शांत लगे

हो दर्द उसे और चीखे हम

सौ बार आइना देखें हम

जब गीतों में उसको गुनते हों

बस ख्वाब उसी के बुनते हों

जब चाहत की खुमार लगे हमको

तब समझो प्यार हुआ हमको

ख्वाबों का अम्बर सजाएं हम

रूठे और मनाएं हम

दुनिया की फ़िक्र नहीं करते

औरों का जिक्र नहीं करते

उसमे ही दुनिया देखे हम

झूम उठे बिन पीके हम

जब नाम उसी का आता हो

और ध्यान उसी का आता हो

वो बातों में शुमार लगे हमको

तब समझो प्यार हुआ हमको

तब समझो प्यार हुआ हमको

 

  1. मैं शायद फिर आ जाऊँगा

जब लगे उदासी फिर खलने

दुःख लगे हृदय में फिर पलने

जब जीवन में तन्हाई हो

जब तुम कुछ घबराई हो

जब नींद ना आए रातों को

सुने न कोई बातों को

जब चुप-चुप हरदम रहती हो

जब आँखे भी नम रहती हो

तब आवाज मुझे तुम दे देना

मुझसे बातें कह देना

मै शायद फिर आ जाऊंगा

और तुम्हें  अपनाऊंगा….

जब रोने का मन बहुत करे

दिल बात-बात पर बहुत डरे

जब तुमको ताने मिलते हों

रोज सयाने मिलते हैं

जब आँख के आँसू नदी लगे

एक-एक पल सदी लगे

जब सपना कोई टूटा हो

या साथ किसी का छूटा हो

या कोई तुमसे रूठा हो

या अपमान का विष फिर घूंटा हो

तब आवाज मुझे तुम दे देना

मुझसे बातें कह देना

मै शायद फिर आ जाऊँगा

और तुम्हें  अपनाऊंगा..

गर साथ तुम्हारा छोड़ा हो

या तुमसे रिश्ता तोडा हो

जब तुमको कोई पीड़ा हो

कोई तुमको समझे क्रीडा हो

जब रोज सताए तुम्हें  कोई

जब नहीं मनाए तुम्हें  कोई

जब तुम्हें  सहारा मिले नहीं

जब कोई तुम्हारा मिले नहीं

तब आवाज मुझे तुम दे देना

मुझसे बातें कह देना

मै शायद फिर आ जाऊंगा

और तुम्हें  अपनाऊंगा…

जब रोज मिले अपमान तुम्हें

जब नहीं मिले सम्मान तुम्हें

जब शहर लगे वीरान तुम्हें

जब सभी लगे अनजान तुम्हें

मधुमास भी पतझर लगे तुम्हें

कोई न रहबर लगे तुम्हें

जब दुनिया रोज ठगे तुमको

जब अपने दूर लगे तुमको

हर सपना तुमको चूर लगे

जब दुनिया तुमको दूर लगे

तब आवाज मुझे तुम दे देना

मुझसे बातें कह देना

मै शायद फिर आ जाऊंगा

और तुम्हें  अपनाऊंगा….

मै शायद फिर आ जाऊंगा

                                                                                                   

  1.      हुनर फुटपाथों पर दम तोड़ देता है |

देख! गरीबी फुटपाथों पर

अपना कौशल दिखा रही है

कैसे अपना पेट है भरना

वो भी हमको सिखा रही है

न ही सिकन है माथे पर

ना ही आलस हाथों में

जीवन के प्रति निष्ठा उनकी

झलक रही है बातों में

कर देते सब कुछ समर्पित

अपनी भूख मिटाने को

कभी कभी दिन गुजर है जाता

न मिलता कुछ भी खाने को

ऐसे कितने दृश्य हमारे

आँखों के सम्मुख नाच रहे हैं

और बहुत से हुनरमंद भी

खुद अपने को बांच रहें हैं

ऐसे कौशल को दुनिया में

मकाम नहीं मिल पाता है

जैसे पढ़े लिखे लोगों को

काम नहीं मिल पाता है

ऐसे कौशल फुटपाथों पर

ऐसे ही मर जाते हैं

जैसे पुष्प खिले-खिले

शाखों से झर जाते हैं

 

  1. कैसे उसे भिखारी कह दूं

एक रोज वो मुझसे बोला

तेरे दर पर आया हूँ

दो रोटी ही दे दो बाबा

बड़ी दूर से आया हूँ

उसकी काया देख देख

मेरा मन भी डोल गया

कृतज्ञ भाव से इन शब्दों को

जब वो मुझसे बोल गया

उसकी काया ऐसी थी

माना सदियों का भूखा है

यकीं नहीं मै कर पाया था

लगा नजर का धोखा है

उसे देख मै कुछ सकुचाया

आह मेरी निकल पड़ी

हालत उसकी देख-देख कर

आँखे मेरी छलक पड़ी

मैंने उसको दी रोटी

दिल को तब आराम मिला

खुद के अंदर ही दर्शन का

मुझे पुण्य तब धाम मिला

दुआ ख़ुशी की देकर मेरे

दुःख को हरकर चला गया

कैसे उसे भिखारी कह दूं

जो झोली भरकर चला गया

दो रोटी का मूल्य बड़ा या

उसकी लाख दुआओं का

नहीं आज तक उत्तर पाया

अपने मन के भावों का

अपने मन के कई सवालों

से मै अब तक जूझ रहा हूँ

कोई भी मुझको बतला दे

सबसे ही मै पूछ रहा हूँ

हममें दो बस स्वार्थ भरा है

असली तो वो पेशावर हैं

उनकी दिल की एक दुआ पर

सारा धन भी न्योछावर है

एक कौर के बदले में जो

लाख दुआ दे जाते हैं

सच्चे देने वाले वो हैं

हम हाथ बंधे रह जाते हैं

  

  1. -तो फिर मेरा सहारा कौन ( उस बच्ची की पुकार जिसको कभी-कभी पैदा होते ही फुटपाथ पर छोड़ दिया जाता है, कविता का अंत अनुत्तरित प्रश्न पर किया गया है )

मेरा तो अपराध नहीं था

फिर क्यों मुझको छोड़ दिया?

तुमने मुझको पैदा करके

क्यों अपना मुहं मोड़ लिया?

मेरी भी तो चाह यही थी

झूमू नाचूँ गाऊं मै

और सुनहरी सी दुनिया के

अपने ख्वाब सजाऊँ मै

माँ मुझको गोदी में लेकर

अपना दूध पिलाएगी

नींद नहीं गर आये तो

लोरी मुझे सुनाएगी

प्यारे-प्यारे से नामों से

रोज मुझे बुलाएगी

लेकिन मेरा सपना हे माँ

पल भर में ही टूट गया

दुनिया में आते-आते ही

साथ तुम्हारा छूट गया

अगर बच गयी मै दुनिया में

तो फिर मेरा सहारा कौन?

अगर नहीं मै बच पायी तो

फिर मेरा हत्यारा कौन?

राहुल प्रसाद
शोधार्थी
गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय

 

 

 

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