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भूख से बेहाल होकर मरने लगे हैं लोग

बेचकर खुद को बसर करने लगे हैं लोग

इस शहर में गोलियां अब इस कदर चलने लगी हैं

घर  से  कैसे  निकलेंगे  डरने  लगे  हैं  लोग

माहौल डर का इस कदर है खौफ भी हावी हुआ

खुद की छाया  देख  कर भी  ठहरने लगे  हैं  लोग

आँख  खोली थी  अभी  ही जिन परिंदों  ने यहाँ

परों को उनके भी यहाँ कतरने  लगें  हैं  लोग

अब  मुझे लगने लगा है  शान कुछ मेरी बढ़ी है

बात  मेरी  पीठ  पीछे  करने  लगे हैं  लोग

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घर की बातों को लोगों ने अखबार बना कर रखा है

बूढ़े  माता-पिता  को भी  लाचार बना कर रखा है

स्कूलों में शोर शराबा है  ज्ञान सजा है दीवारों पर

सच  कहता  हूँ स्कूलों  का बाजार बना कर रखा है

किसको कितना मिला है पैंसा कौन बिका है कितने में

राजनीति  को  नेताओं  ने  व्यापार बना कर रखा है

भाई -भाई अलग अलग हैं  माँ-बाप भी रहते जुदा जुदा

कुछ  बच्चों  ने  रिश्तों  में दीवार  बना कर रखा है

उनसे  हाथ  मिलते देखे जो  दुष्कर्मों में  लिप्त रहे

यहाँ स्वार्थ ने बदमाशों को इज्जतदार बना कर  रखा है

कागज कलामों से दूर रखा है बंदूकें चाक़ू पकड़ा दी

फूल सरीखे  बच्चों  को अंगार बना कर  रखा है

बातों बातों से लोगों ने खूब यहाँ पर जख्म दिए हैं

जबान को अपनी लोगों ने हथियार बना कर रखा है

 

राहुल प्रसाद
शोधार्थी
गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय

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