सूरज की मां निशा को आशा की किरण दिखाई देने लगी थी। सूरज को जल्दी ही कोई अच्छी-सी नौकरी मिल जाएगी क्योंकि उसने मेहनत कर कंप्यूटर भी सीख लिया था। सूरज कमाने लगेगा तो उसकी जवान होती बेटी सोनिया के लिए अच्छा घर-बार मिल जाएगा । उसने कुछ पैसे उधार लेकर अपना खोलीनुमा कमरा पक्का करा लिया था, पर अब की बरसात में उसकी छत चू रही थी । यह मुरम्मत भी जरूरी हो गई थी। वह सोच रही थी कि अबकी बार सूरज को जो ट्यूशन के पैसे मिलेंगे उससे कमरे की छत की मुरम्मत ज़रूर करवा लेगी । सिर पर छत तो सुरक्षित रहनी चाहिए न।
सूरज उस दिन दोस्तों से मिलने के लिए कॉलेज की कैंटीन चला गया था। वहां से निकला तो उसकी मुलाक़ात प्रतिभा से हो गई थी। प्रतिभा ने चहक कर सूरज को बधाई देते हुए उससे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा दिया था । सूरज ने संकोचवश अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाया, बल्कि उसकी चौंक्कनी आंखें चारों तरफ देखने लगी कि कहीं प्रतिभा की हरकत को किसी ने देखा तो नहीं ।
‘सूरज, क्या हुआ? मेरी बधाई तो खुलकर स्वीकार करो ।’
‘थैंक्स! थैंक्स प्रतिभा।’ उसके चेहरे पर संकोच की रंगत दौड़ गई ।
‘तुम शर्माते बहुत हो। क्या तुम्हारे मन में मेरे लिए वैसा ही प्रेम नहीं, जैसा मैं तुम्हें करती हूं।’
‘ऐसी बात नहीं है पर…..।’ सूरज आगे कुछ ना कह कर मन ही मन सोचने लगा कि क्या वह प्रतिभा को बता दे कि वह तो एक अच्छे खाते- पीते घर की लड़की है पर वह एक ग़रीब मेहनत- मज़ूरी करने वाली विधवा मां का बेटा है।’
‘ रिश्ते बराबर हैसियत वालों से ही शोभा देते हैं प्रतिभा जी।’
‘ क्या कहना चाहते हो? जानते नहीं प्रेम ऊंच -नीच, जाति -पाति कुछ नहीं देखता। मैं बस तुमसे ….तुम्हारे संघर्षशील तेजस्वी व्यक्तित्व से प्रेम करती हूं। क्या मैंने तुमसे कभी तुम्हारी हैसियत पूछी है सूरज? वह रुआंसी -सी होकर बोली ।
‘मुआफ करें, प्रतिभा जी। शायद मैंने आपकी भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। पर मेरा अभिप्राय यह नहीं था।’
‘आपका अभिप्राय जो भी हो, पर मैं स्वयं को खूब पहचानती हूं। मैं तुम्हें अपना जीवन साथी बनाना चाहती हूं।’ प्रतिभा ने भावुक होकर प्रेमिल स्वर में कहा।
सूरज के शरीर को भी प्रेम की भावना की एक लहर सराबोर कर गई । वह भी क्षण भर के लिए जीवन की कठोर वास्तविकताओं को भूल गया । वह प्रेम विह्वल होकर बोला:-
‘प्रतिभा, सच बताऊं मुझे तुमसे पहले ही नज़र में प्यार हो गया था। पर हमेशा मेरे मन में भय था कि मैं तुम्हारे योग्य नहीं हूं । तुम एक अमीर बाप की बेटी ….
सूरज अपनी बात पूरी नहीं कर पाया। पीछे से आई मोटर बाइक अचानक फिसल उसकी बायीं टांग को जख्मी करती सड़क के बीचो-बीच पसर गई। सूरज सड़क की एक तरफ को गिर गया और उसी के धक्के से प्रतिभा भी जमीन पर लुढ़क गई । बाइक चालक युवक भी धड़ाम से सड़क पर जा गिरा था। राह चलते लोगों ने बाइक चालक को सड़क से उठाकर एक और खड़ा करने का प्रयास किया। वह लंगड़ाते लंगड़ाते खड़ा होने में सफल हो गया। प्रतिभा भी गिरी अवश्य थी परंतु उसे किसी प्रकार की चोट नहीं लगी थी। सूरज की टांग में काफी चोट आई थी, उसे तुरंत अस्पताल ले जाना पड़ा ।
परीक्षण और एक्स-रे के बाद उसकी टांग पर प्लास्टर चढ़ा दिया गया था क्योंकि उसकी टांग की हड्डी टूट गई थी । बाइक को सुरेश नाम का युवक चल रहा था। उसी के प्रयत्नों से ही सूरज अस्पताल पहुंच पाया था।
सुरेश बार-बार सूरज से माफ़ी मांग रहा था। उसकी बाइक सड़क में गहरे खड्डे के कारण ही बेकाबू हो फिसली थी। सूरज इस बात को जानता था । उसके घर के सामने से गुजरने वाली यह सड़क वर्षों से इसी तरह से खस्ता हाल में थी। उसके ऊबड़-खाबड़ होने के कारण अब तक कई दुर्घटनाएं हो चुकी थीं। उसे याद है पिछले वर्ष इस स्थान पर स्कूटर पर सवार पति-पत्नी का एक्सीडेंट हुआ था। पत्नी को काफी चोटें आई थी। लोग तो यहां तक कहने लगे हैं कि यह सड़क ‘भूतही’ है पर वह लोगों को समझाता रहता कि ‘भूत -वूत’ कुछ नहीं होता। इस सड़क पर दुर्घटनाएं सड़क की बदहाली के कारण होती हैं । एक बार सूरज की बात मान बस्ती वालों ने कमेटी में एक अर्जी भी लगाई थी पर बात वही रही ढाक के तीन पात। कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। अबकी बार सूरज ही उस खस्ता हालत सड़क का शिकार हो गया था ।
सुरेश अस्पताल सूरज से मिलने रोज़ आता और उसकी हर संभव सहायता करता । प्रतिभा भी लगभग रोज़ आती और सूरज के लिए अपने रसोईये से अच्छा- सा खाना बनवा कर लाती।
सूरज उसे मना करता पर वह कब करने वाली थी? सूरज की मां निशा के शब्दों में ‘प्रतिभा एक बड़े बाप की बिगड़ी हुई संतान है जिसके सिर पर सूरज के प्यार का भूत सवार है ।’ निशा ने दुनिया देखी थी और वह जानती थी कि ग़रीब और अमीर का कभी मेल नहीं हो सकता। वह बस डरती थी कि कहीं सूरज प्रतिभा के प्यार के खा़तिर किसी मुसीबत में तो नहीं फंस जाएगा । ले दे कर उसका वह इकलौता बेटा ही उसका सहारा है। पर प्रतिभा अपनी तरफ़ से निशा को हमेशा विश्वास दिलाने की कोशिश करती:-
‘ आंटी जी, आप चिंता ना करें । मैं अमीर -ग़रीब में विश्वास नहीं करती। एक इंसान का दूसरे इंसान के साथ बस इंसानियत का नाता होता है मैं बस वही मानती हूं ।’
‘तुम्हारे मानने से क्या होता है? परिवार और समाज तो नहीं मानता। घर वाले विरोध करेंगे तो तुम क्या कर लोगी?’ बीच में ही सूरज ने टोका ।
‘वही होगा जो मैं चाहूंगी। परिवार वालों को मैं मना लूंगी । ‘
‘तुम दुनिया को नहीं जानती प्रतिभा।’ निशा ने कहा
‘आंटी जी, आप मुझे नहीं जानती। मुझे मेरे संकल्प से कोई नहीं डिगा पाएगा, ना समाज और ना ही मेरा परिवार। पर अभी इन बातों से क्या लाभ? अभी तो सूरज जल्दी से स्वस्थ हो घर आ जाये।
सूरज को अस्पताल में काफी दिन रुकना पड़ा । प्रतिभा प्रायः उसके पास ही बनी रहती। इलाज़ के दौरान एक समय ऐसा भी आया जब डॉक्टर को लगा कि शायद सूरज का पैर काटना पड़ सकता है । यह जानकार प्रतिभा के दुख का पारावार न रहा। अभी तक तो उसे अपने आप पर विश्वास था कि वह सूरज के लिए अपने घर वालों को मना लेगी किंतु यदि सूरज अपनी बीमारी के कारण अपंग हो गया तो उसका परिवार कभी नहीं मानेगा ? वह क्या करें, वह समझ नहीं पा रही थी। ईश्वर के प्रति उसने मन ही मन प्रार्थना तो की ही, उसने अपने पिता रामेश्वर से सूरज के बारे में भी बात की।
‘सूरज ? यह कौन है बेटा?’
‘मेरे साथ पढ़ता था। पर बेचारे का एक्सीडेंट हो गया। डॉक्टर कह रहा है कि शायद अभी उसकी टांग काटनी पड़ेगी । क्या कुछ किया नहीं जा सकता पापा?’
‘ मैं जानता हूं तुझे हमेशा सब की चिंता रहती है । मैं डॉक्टर वर्मा को कह देता हूं, वह जाकर देख लेंगे ।’
‘थैंक यू पापा! थैंक यू वेरी मच पापा।’ प्रतिभा ने अपनी भावनाओं पर भरसक काबू पाते हुए पापा का धन्यवाद किया।
डॉक्टर वर्मा की देखरेख में सूरज का इलाज़ चलने लगा। ईश्वर की कृपा कहिए या प्रतिभा की प्रार्थनाओं का असर , सूरज जल्दी-जल्दी स्वस्थ होने लगा ।
इधर हफ्ते -दो- हफ्ते में सड़क दुर्घटनाओं में घायल कोई ना कोई मरीज़ अस्पताल में दाखिल होता तो सूर्य यही सोचता कि टूटी फूटी सड़कों के कारण दुर्घटनाओं के शिकार होने का सिलसिला आखिर कब तक चलेगा? मैं ऐसा क्या करूं कि सड़कों के हालात सुधरे और लोग उन पर सुरक्षा से चल सकें या उन पर वाहन चला सके । सड़कों का निर्माण और रखरखाव तो सरकार की ज़िम्मेदारी है और उनकी कॉलोनी वाले तो अधिकारियों से मिल भी चुके हैं परंतु अभी तक तो कोई नतीजा नहीं निकला। आखिर किया क्या जाए ?
उस दिन जब सुरेश उससे मिलने आया तो सूरज ने यही प्रश्न उसके सामने भी उठाते हुए कहा, ‘देख रहे हो सुरेश भाई , साथ के बिस्तर पर बबलू को ? उसके पिता उसे अपने स्कूटर पर सुबह स्कूल छोड़ने जा रहे थे कि गड्ढे के कारण उनका स्कूटर पलट गया। बबलू की टांग का फैक्चर हुआ ही , दो पसलियां भी टूट गई हैं। हम ऐसा क्या करें कि सड़कों की कुछ हालात तो सुधरे?’
‘हां ! हम एक काम कर सकते हैं ।’ सुरेश ने कुछ-कुछ सोचते हुए कहा।
‘क्या कर सकते हैं तुम बताओ तो? मैं.. हम उसे अवश्य करेंगे।’
हम सूचना के अधिकार क़ानून में सूचना मांग सकते हैं।’
‘उस सूचना से क्या होगा? हमें तो एक्शन चाहिए। कहीं कुछ हो। ‘
‘कहते हैं आज के युग में सूचना सशक्तिकरण है। हम पूछेंगे… हम पूछेंगे.. मिसाल के तौर पर तुम्हारी कॉलोनी की सड़क को कब बनाया गया था? पिछले 5 साल में कितनी बार उसकी मुरम्मत की गई या कितनी बार उसके गड्ढों को भरा गया ? यह जो नया क़ानून आया है उसके चलते उन्हें 30 दिन में ज़वाब देना ही पड़ेगा ?’
‘अच्छा ! कुछ ना कर पाने से तो अच्छा है कि हम यही कर डालें। कृपया आप बताते जाओ, हम करते जाएंगे। ‘ सूरज ने उत्सुकता से कहा। उसे अपने आप पर हैरानी यह हुई कि उसे भी यह पता था कि अधिकारियों को इस तरह से सूचना देने ही पड़ेगी, फिर भी उसके दिमाग में यह ख़्याल आया ही नहीं ।
सुरेश संबद्ध अधिकारी को संबोधित एक आवेदन लिख कर लाया था और सूरज ने उस पर हस्ताक्षर कर दिए। पहले महीने कहीं कोई ज़वाब नहीं आया। सुरेश के कहने पर सूरज ने संबद्ध अधिकारी के समक्ष अपील कर दी। बस 15 दिन में ज़वाब हाज़िर हो गया । पर उसे पढ़ कर उनके पैरों तले की ज़मीन ही निकल गई । उसमें सूचना दी गई थी कि पिछले 5 वर्ष में सड़क को तीन बार बनाया गया और हर वर्षा ऋतु के बाद उसके गड्ढों को भरा गया। कॉलोनी वाले सभी जानते थे कि पिछले 5 वर्ष क्या पिछले 10 वर्षों में भी उस सड़क पर कभी कोई काम ही नहीं हुआ । सभी कॉलोनी वाले जुलूस की शक्ल में नगर निगम अधिकारियों के दफ़्तर जा पहुंचे और अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग करने लगे । मामला अख़बार वालों ने भी उठा लिया था ।अब बात केवल इस सड़क की नहीं बल्कि कई अन्य सड़कों की जाने लगी थी । धीरे-धीरे मामला एक जन आंदोलन में बदलने लगा जिसका एक अच्छा परिणाम यह हुआ कि कुछ क्षेत्रों की सड़कों को दोबारा बनाया जाने लगा और कुछ सड़कों के गड्ढे भी भरे जाने लगे। चूंकि मामला मीडिया में काफ़ी उछाला गया था तो पिछले वर्षों के निर्माण कार्य के संबंध में एक जांच आयोग बैठा दिया गया ।
सूरज ट्यूशनें तो पढ़ा रहा था, पर अभी कोई नौकरी का वसीला नहीं बन पाया था। उसने अब पत्राचार से एम.ए. करने के लिए प्रवेश ले लिया था । प्रतिभा का उसके घर आना जाना जारी था। वह भी बी.ए. कर अब एम. ए. कर रही थी । वह सूरज से विवाह के लिए उत्सुक तो थी परंतु वह यह भी जानती थी कि जब तक सूरज अच्छी तरह से अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता और उसकी बहन का विवाह नहीं हो जाता तब तक वह विवाह की सोच भी नहीं सकता । प्रतिभा को यह बात बिल्कुल स्पष्ट थी कि सूरज से इस मामले में ज़िद करना बेकार था इसलिए उसने फ़ैसला किया कि वह भी तब तक अपनी पढ़ाई में मन लगाकर उसे पूरा करेगी । इसके अलावा, जब तक सूरज को अच्छी नौकरी नहीं मिल जाती, तब तक इस विवाह के लिए अपने परिवार को राज़ी करना भी बहुत कठिन काम था।
इस बीच घर वालों को प्रतिभा के सूरज से संबंध की कहीं से भनक लग गई। अब वह उस पर विवाह करने का दवाब बनाने लगे । उसके लिए रिश्ते देखे जाने लगे और जब प्रतिभा ने परिवार को कह दिया कि अभी उसे पढ़ना है और अभी उसे विवाह नहीं करना है, उसके पिताजी उसकी कोई बात सुनने को तैयार नहीं थे । विवाह के बारे में बात चली तो उसकी मां ने कह दिया :- ‘चाहे तू अभी विवाह कर या देर से, पर तू सूरज का वरका अपनी ज़िंदगी से निकाल दे। तेरे पापा उस विवाह के लिए कभी राज़ी नहीं होंगें, और ठीक भी है तुम्हारा विवाह वह किसी कंगाल से तो कभी नहीं करें गें। समझी?
‘सूरज को अब एक अच्छी नौकरी मिल गई है।’
‘तुम्हारे पापा अपनी हैसियत के हिसाब से किसी बराबर वाले परिवार में तुम्हारा विवाह करने की सोच रहे हैं। वह अपनी ज़िद के पक्के हैं । तुम उन्हें नहीं जानती ।’
‘वह मुझे नहीं जानते, मेरी ज़िद भी पक्की है । आखिर बेटी तो उन्हीं की हूं ना।’
तुम दोनों मेरा जीवन मुहाल करके छोड़ोगे । काम की बात ना उनके पल्ले पड़ती है और ना ही तेरे पल्ले,!’ मां ने निराशा भरे स्वर में कहा
‘मां ! चिंता मत करो । सब ठीक हो जाएगा। मैं हूं न। ‘
समय बीत रहा था । सूरज की एम.ए. की पढ़ाई पूरी हो गई। बहन के लिए एक अच्छी जगह रिश्ता भी तय हो गया था । प्रतिभा का भी एम.ए. का बस एक सेमेस्टर बचा था। वह सोच रही थी ‘एम.ए. होते ही वह किसी स्कूल में पढ़ाने का काम पकड़ लेगी। वह भी अपने पैरों पर खड़ा होने का प्रयास करेगी ।’
सूरज की लगाई गई आरटीआई के कारण कथित भ्रष्टाचार का पता लगाने का जो जांच आयोग बैठाया गया था, उसकी रिपोर्ट आ गई। छः अधिकारियों और दो तीन ठेकेदारों के विरुद्ध कथित भ्रष्टाचार के मामले सामने आ गए। ठेकेदारों में रामेश्वर का नाम भी था । रामेश्वर कोई और नहीं प्रतिभा के पिता ही थे।
इस खुलासे से परिवार में कोई और शर्मिंदा हुआ हो या नहीं, प्रतिभा को अवश्य शर्मिंदगी महसूस हो रही थी । साथ ही उसे यह भी चिंता थी कि वह अब अपने पिता को सूरज के साथ विवाह के लिए राज़ी नहीं कर पायेगी क्योंकि अब यह नई मुसीबत जो सामने सामने आ खड़ी हुई कि जिस मामले में रामेश्वर पर कथित भ्रष्टाचार का आरोप लगा, वह वही मामला था जिसे सूरज और उसकी कॉलोनी वालों ने आरटीआई के माध्यम से उठाया था। प्रतिभा जानती थी उसके पिता ने सूरज को अब अपने दुश्मनों में शुमार कर लिया होगा और अब वह उन्हें फूटी आंख नहीं सुहायेगा। फिर सूरज अब आरटीआई को हथियार बनाकर और भी मामलों में सूचनाएं मांगता रहता था। प्रतिभा को तो सूरज का यह गुण बहुत पसंद था कि कि वह अपने परिवार के साथ साथ समाज के प्रति भी संवेदनशील था और इसके लिए वह उसकी और अधिक इज़्ज़त करने लगी थी।
जांच आयोग के प्रतिवेदन में जिन अधिकारियों और ठेकेदारों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे उनके विरुद्ध एक आरोप पत्र तैयार हुआ और उन अधिकारियों के साथ-साथ रामेश्वर और एक अन्य ठेकेदार को गिरफ़्तार कर लिया और कई दिन तक न्यायिक हिरासत में रहने के बाद अंततः वह जमानत पर रिहा हो गए । उनके विरुद्ध न्यायालय में मामला चलने लगा ।
एक दिन रामेश्वर ने प्रतिभा को बुलाकर कहा,
‘ बेटी , तू तो जानती है मेरे विरुद्ध कोर्ट में केस चल रहा है और लगता है उसमें सज़ा भी हो जाएगी। सोचता हूं मैं तुम्हारे विवाह की ज़िम्मेदारी जल्दी-जल्दी निभा दूं।’
‘ पापा सूरज की बहन का विवाह अगले माह होने वाला है, वह हो जाने दीजिए । तब आप सूरज की मां से मिलियेगा और उसे विवाह का प्रस्ताव दीजिएगा।’ प्रतिभा ने यह बात संयत शब्दों में कह डाली।
‘तू होश में तो है?’ वह गर्ज उठे।
पिता का ग़ुस्सा देख प्रतिभा का एक बारगी तो सर्वांग कांप गया। उससे कुछ कहते नहीं बना, मानों किसीने उसके मुंह पर ताला जड़ दिया हो।
‘ कल एक लड़का तुम्हें देखने आने वाला है। याद रहे कोई बद्तमीजी नहीं होनी चाहिए।’ प्रतिभा को तो जैसे सांप सूंघ गया ।
‘कोई शिकायत मिली तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।’ उन्होंने उसे फिर धमकाया।
‘पापा ! प्लीज पापा। ‘ प्रतिभा की घीघी बंध गई।
‘मेरे लाड़ प्यार ने तुम्हें बिगाड़ कर रख दिया है घर की इज़्ज़त नीलाम करने पर तुली हो क्या? क्या इसलिए तुम्हें पढ़ाया लिखाया है?’
‘ पापा, मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जैसा आप कह रहे हैं ?’
‘बस! तेरी ज़ुबान पर उस सूरज मवाली का नाम नहीं आना चाहिए। इस घर में उसका नाम अब कभी सुनाई ना दे।’ उन्होंने पुनः गर्ज कर कहा।
‘आखिर उसका कसूर क्या है?’ उसके मुंह से एकाएक निकल गया हालांकि उस समय गुस्साए पिता को और ग़ुस्सा दिलाने का उसका कोई इरादा नहीं था।
‘ पूछ रही हो उसने क्या किया है? उसने तुम्हारे पापा को जेल भेजने का पूरा इंतज़ाम कर दिया है ।’
‘उसने कैसे किया? आपने ही कुछ ऐसा किया कि आपकी बनी बनाई इज़्ज़त मिट्टी में मिल गई।’ उसके मुंह से बेसाख्ता निकल गया। प्रतिभा बिल्कुल कुछ ऐसा नहीं कहना चाहती थी वह ताना तो कतई नहीं मारना चाहती थी।
बेटी की इस बात से रामेश्वर अंदर तक आहत् होकर रह गया। उसके भीतर गुस्से का एक जबर्दस्त ज्वालामुखी फूटने को हुआ, किंतु उन्होंने स्वयं को काबू करते हुए कहा:-
‘तुम लोग पूरा जीवन ऐशो आराम से जी रहे हो, उसे पूरा करने के लिए पता नहीं मुझे क्या क्या करना पड़ा है? आजकल बिज़नेस चलाना…. ।’
‘पापा! क्या कहना चाहते हैं आप? बिज़नेस मतलब बेईमानी करना? क्या सभी को यह सब करना पड़ता है?’ प्रतिभा के स्वर में आश्चर्य के भाव थे।
‘सभी का मैं नहीं जानता, अपना जानता हूं। क्या क्या नहीं पापड़ बेलने पड़े मुझे? तुम लोगों को कभी किसी बात की कठिनाई नहीं होने दी।’
मानों वह अपने किये पर अपनी बेबसी बता रहे हों।
‘ हम सीधा-साधा जीवन नहीं जी सकते थे क्या? परिवार ने आपको सब करने के लिए कभी बाध्य किया था? क्या मम्मी ने…..? ’
‘प्रतिभा, बड़ी-बड़ी बातें करने लगी हो। तुम्हारी मम्मी की तो मांगे कभी ख़त्म ही नहीं होती थीं। मैं उसे दोष नहीं दे रहा। उसके भी कुछ सपने थे। फिर मेरी भी कुछ महत्वाकांक्षा थी। मैं भी चाहता था कि अपने बच्चों को महंगी- से -महंगी शिक्षा दूं,। मेरा भी समाज में कोई रुतबा बने । दो-चार बड़े-बड़े आदमियों के साथ उठने बैठने का रंग ढंग हो ।’
‘बड़े-बड़े सपने देखना बुरा नहीं है, परंतु उन्हें पूरा करने के लिए परिश्रम चाहिए भ्रष्ट साधन नहीं! पापा, आप जानते ही हैं कि बुरे कर्म सदा लौट कर वापस आते हैं।’
‘ नाऊ, आई से शट अप।’ मेज़ पर मुक्का मारते हुए रामेश्वर गरजे । ‘
‘ मैं तो शट अप हो जाऊंगी, क्या आप अपनी आत्मा को चुप कर पाएंगे।’ निडर स्वर में प्रतिभा ने कहा डाला।
‘शट अप ..शट अप।’ कुर्सी छोड़ वह खड़े हो गए शायद गुस्से में वह दो-चार झापड़ उसे पर रसीद कर देते, परंतु प्रतिभा तत्काल दरवाज़ा बंद कर कमरे से बाहर निकल गई । उसका दिल अभी धक-धक कर रहा था। उसे महसूस हुआ कि जैसी पिता की मानसिकता हो रही है, उनके साथ उसे घर में शायद वह सहज होकर नहीं रह सकेगी ।
सौभाग्य से उसे जल्दी ही एक स्कूल में अध्यापन कार्य मिल गया। वैसे भी स्कूल घर से दूर था । स्कूल वालों ने स्कूल परिसर में प्रधानाचार्य के आवास के साथ ही उसके लिए एक कक्ष की व्यवस्था कर दी। अब वह स्कूल में शिफ्ट हो गई। अब घर में कभी-कभी फोन पर केवल मां के साथ बात होती, जो बताती कि उसके पिताजी का ग़ुस्सा दिनों दिन बढ़ता जा रहा है और जिस दिन कचहरी में वह तारीख भुगत कर आते हैं, वह पगलाये-से हो जाते हैं। वह बहुत ख़तरनाक नज़र आते हैं हर समय हम घर में सहमे-सहमे-से रहते हैंं पता नहीं कब क्या कर दें।’
‘ मां ! तुम मेरे पास यहीं स्कूल में आ जाओ। सुनीता और सुनील दोनों कार्यरत हैं वह भी चाहे तो अपना अलग रहने का प्रबंध कर सकते हैं।’
‘ अरे बेटी, मैं कैसे आ जाऊं? तेरे पिता को इस हालत में अकेले नहीं छोड़ सकती।’
‘ ठीक है ऐसे करो, भवानी काका से कहो वह घर में हर समय रुका करें। उसके रात को सोने का प्रबंध स्टोर में कर दो । उसे कुछ अधिक पैसे दे देना। हां! अकेले मत रहना। आपके पास किसी को हर समय होना चाहिए।’
सूरज अपने काम में बहुत व्यस्त हो गया था और ऊपर से उसने सूचना के अधिकार के एक्टिविस्ट का काम भी संभाल रखा था। एक दिन प्रतिभा ने सूरज को अपने पिता की मानसिक स्थिति के बारे में बताया तो उसने यही कहा, अगर वह इतना ही गुस्सैल हो गए हैं तो उसके लिए इस प्रकार के उनके व्यवहार के लिए पुलिस में रिपोर्ट की जा सकती है।’ सूरज की इस सलाह से प्रतिभा उससे कुछ नाराज़-सी हो गई। वह गुस्से में एकाएक उठकर अपने स्कूल चली गई । सूरज उसे बुलाता रहा, पर वह रुकी नहीं।
समय अपनी स्वाभाविक गति से बीत रहा था।
उधर रामेश्वर के विरुद्ध केस चल ही रहा था, तारीख़ पर तारीख़ का सिलसिला जारी था।
वैसे भी कोर्ट कचेहरी में मुकदमा लग जाये तो उसका फ़ैसला कब आयेगा, कोई नहीं जानता, मुवक्किल के जीवन में आयेगा भी या नहीं। रामेश्वर अब यंत्रवत् तारीखें भुगत रहे थे।। उनके व्यवहार में कोई विशेष अंतर नहीं आया था। ऐसे में प्रतिभा का उनसे बात करना, वह भी विवाह के संबंध में संभव नहीं था। सूरज की मां चाहती थी कि अब बेटे का विवाह हो जाये पर वह भी जानती थी कि सूरज और प्रतिभा चाहते थे कि विवाह दोनों परिवारों की रजामंदी डिमांड ब से हो।
ऐसे में प्रतीक्षा के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं सूझ रहा था। समय अपनी स्वाभाविक गति से चल रहा था। सूरज अपनी नौकरी और सूचना के अधिकार के एक्टिविस्ट के कार्यों में व्यस्त था और प्रतिभा अपने अध्यापन में। दोनों की मुलाक़ात हुए भी कई दिन हो जाते।
इस वर्ष भी प्रतिभा के स्कूल में वार्षिक दिवस मनाने की तैयारी चल रही थी जिसमें बच्चों को कई इवेंट में भागीदारी करने के लिए तैयार करना था। प्रधानाचार्य का आवास पास होने के कारण वह भी अनेक कार्य प्रतिभा को ही सौंपने लगी थी । इस तरह वह भी व्यस्तता के कारण सूरज से भी बात नहीं कर पाती थी। आज सूरज का ही फोन आया था कि वह उस के स्कूल उससे मिलने आ रहा है।
प्रतिभा ने बच्चों को प्रैक्टिस कर उन्हें थोड़ा जल्दी ही छोड़ दिया। अब वह उत्सुकता से सूरज की प्रतीक्षा करते हुए सोचने लगी,
‘ बहुत दिन से सूरज से न बात हुई और न ही मुलाक़ात हुई । शायद वह अब शादी की बात चलाएगा। पिताजी की जैसी मानसिकता है, अभी इस बारे में उनसे तो बात नहीं की जा सकती । ऐसी जटिल स्थिति में तो चीज़ों को नॉर्मल होने की प्रतीक्षा चाहिए । हां! हां! प्रतीक्षा ही बेहतर विकल्प है। ‘
सूरज को सात बजे पहुंचना था और अब तो साढ़े सात बज गए। पता नहीं, कहां रह गया वह? कहते हैं ना प्रतीक्षा का समय सहज ही नहीं बीतता। वह तीन बार मेन गेट तक देख आई। प्रतीक्षा में ही आठ बजने वाले हो गये।
‘पता नहीं, सूरज आया क्यों नहीं? शायद पहले घर चला गया हो।’ उसने सूरज की मम्मी को फोन लगाया। ‘ आंटी जी, सूरज क्या घर पहुंच गया है? ‘
‘कौन ? प्रतिभा? नहीं बेटी, वह यहां तो नहीं आया। बता रहा था कि आज वह तुमसे मिलने जाएगा। ‘
सूरज की मम्मी से फोन पर अभी बात हो ही रही थी कि किसी ने सूरज के घर का द्वार खटखटाया। सूरज की मम्मी ने उसे फोन होल्ड करने के लिए बोल बाहर जाकर द्वार खोला। द्वार पर दो पुलिस वाले थे।
‘आप सूरज की मां है न!’
‘ सूरज! कहां है सूरज? मां का दिल किसी अनहोनी से जोर-जोर से धक-धक करने लगा।।
‘ सूरज का एक्सीडेंट हो गया मां जी। हमारे साथी उसे रामकिशोर अस्पताल में दाखिल करवा रहे हैं। सूरज आपको याद कर रहा है।’ एक चीख़ के साथ सूरज की मम्मी गिरने गिरने को हुई । पुलिस वालों ने उसे संभाला । उधर फोन होल्ड पर पकड़े प्रतिभा ने सूरज की मम्मी की चीख़ सुन ली थी। वह होल्ड फोन पर ही जोर-जोर से चिल्लाने लगी,
‘आंटी जी, क्या हुआ? क्या हुआ?’ फोन पुलिस वालों ने अटेंड किया और उसे बताया कि सूरज का एक्सीडेंट हो गया है। किसी ने उसकी बाइक को पीछे से हिट किया और फरार हो गया। सूरज को राम किशोर अस्पताल में दाखिल करवाया गया होगा। हम सूरज की मम्मी को बुलाने आए हैं।’
प्रतिभा के हाथ से फोन छूट कर नीचे गिर गया और उसकी चीख़ निकल गई। वह थर थर कांपने लगी और उसकी आंखों से बेतहाशा आंसूओं का सेलाब बह निकला।
इधर पुलिस वाले सूरज की मम्मी को लेकर अस्पताल पहुंचे, उधर स्कूल की प्रधानाचार्य प्रतिभा को लेकर अस्पताल पहुंची। तब तक डॉक्टर सूरज की जांच पड़ताल कर उसे मृत घोषित करने की प्रक्रिया में ही थे । सूरज की मां का रो रो कर बुरा हाल था। प्रतिभा भी ज़ार ज़ार रोए जा रही थी, पर साथ ही वह सूरज की मम्मी को भी संभाल रही थी । डॉक्टर ने कुछ समय बाद अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए बताया कि सूरज अस्पताल पहुंचने से पहले ही रास्ते में दम तोड़ चुका था ।
सूरज की मम्मी और साथ ही प्रतिभा का सभी सब कुछ लुट चुका था। दोनों को अब प्रधानाचार्य संभालने का असफल प्रयास कर रही थीं । उन दोनों का अथाह दुख देख उसकी आंखों से भी अश्रु धारा वह निकली।
पुलिस वाले कह रहे थे कि यह दुर्घटना का मामला नहीं लगता किसी ने जानबूझकर उसकी बाइक को हिट किया है। यह हत्या का मामला लगता है । जांच से ही सत्य का पता चलेगा । कुछ कुछ शब्द प्रतिभा के कान में भी पड़े और उस का समूचा अस्तित्व थरथराने लगा। ‘ हत्या? हत्या कौन कर सकता है सूरज की? अनायास ही उस की आंखों के समक्ष हत्यारा साकार हो गया। कौन था वह? वह और कोई नहीं, रामेश्वर था प्रतिभा के पिता? प्रतिभा ने चिल्लाते हुए कहा, ‘ नहीं…. नहीं…नहीं ..।’ और उसकी आंखें मुंद गई। वह बेहोश हो चुकी थी।
दो महीने से पुलिस की जांच चल रही थी। हत्यारे का अभी कोई सुराग कहींनहीं मिला था हालांकि अख़बारों की सुर्खियां चिल्ला चिल्ला कर कह रही थी कि ‘ सूचना के अधिकार का एक्टिविस्ट होने के कारण सूरज को सदा के लिए रास्ते से हटा दिया गया है। पुलिस अब तक हत्यारे को पकड़ नहीं पायी, क्या हत्यारा इतना शातिर है?
प्रतिभा को लग रहा था कि सूरज के साथ सब ख़त्म हो गया । उसे लगा वह विवाह से पहले ही विधवा हो गई। शास्त्रानुसार फेरे ही तो नहीं हुए थे जबकि वह तो मन से सूरज को अपना जीवनसाथी मान चुकी थी। सूरज की मम्मी भी बिल्कुल टूट चुकी थी जिसने अपने बेटे सूरज को पाल-पोस कर और उसे पढ़ाने लिखाने के लिए अपना पूरा जीवन संघर्ष किया था। उसमें अब जीवन जीने की कोई इच्छा नहीं बची थी। अगर सूरज की बहन ने मां को ना संभाल होता तो वह अब तक ज़िंदा ना होती।
उस दिन जब प्रतिभा उनसे मिलने गई तो वह भी उनके निस्तेज चेहरे और निहाल शरीर को देख कांप उठी। ‘आंटी को ढांढस तो बंधाना होगा।’ प्रतिभा ने मन ही मन सोचा और सूरज का दर्द जो उसे हर समय कोचटता रहता था उसे अपने हृदय के गहन अंतर में धकेल वह कह उठी,’ आंटी जी, आप तो हमेशा ब्रेव रही हैं । अब भी आपको वैसे ही ब्रेव बनना होगा। सूरज लड़ते हुए सत्य के लिए वीरगति को प्राप्त हुआ है। हमें उसे न्याय दिलाने के लिए जिंदा रहना है। हमें उसके मिशन को पूरा करने के लिए कमर कसनी होगी। जो लड़ाई सूर्य ने शुरू की थी उसे उसके मुक़ाम तक पहुंचाना होगा।’
सूरज की मां पहले तो बुक्का फाड़ रो उठी,उसके आर्त्तनाद से प्रतिभा और पिंकी भी रोती जा रहीं थीं। कुछ पड़ोसने उनको ढांढस बंधाने का असफल प्रयास कर रहीं थीं, कोई उन्हें अपने कलेजे से चिपका चुप करा रहीं थीं कोई पानी के गिलास उनके मुंह से लगा उन्हें जबरन दो घूंट पानी पीने का प्रयास कर हीं थीं। ‘पिछले साल ही तो मेरे बेटे को कोरोना लील गया था, उसके लिए बहुत रो धो लिया, क्या वह वापस आया? मरने वालों के साथ बस मरा नहीं जाता, पर जीवन भी मरण जैसा हो जाता है। सब्र… सब्र .. करना ही पड़ता है। वाहेगुरु की यही रज़ा थी। जिनकी यहां ज़रुरत होती है ,उसकी वहां भी ज़रूरत होती है। वाहेगुरु वहां भी उनसे कुछ अच्छा कराना चाहता होगा, बुला लिया। तेरा भाना मीठा तो नहीं,पर सहना तो पड़ता है। …उस पड़ोसन ने भी आंखें पोंछीं और सूरज की मां के सिर पर ममता -भरा हाथ रखा। सूरज की मां ने अब ख़ुद को संभालते हुए प्रतिभा से कहना शुरू किया, ‘तुम सूरज को भूल नया जीवन शुरू करो, तुमने अभी देखा ही क्या है? अपने माता-पिता के पास लौट जाओ, वह तुम्हारा भला ही सोचें गें।’
‘आंटी जी, लौट जाऊंगी उनके पास, मैं कहीं भी रहूं, मिशन मेरी वही रहेगी।’
‘क्या कह रही है बेटी , जानती हूं तुम सूरज को बहुत चाहती थीं। परंतु केवल भावुकता से जीवन नहीं चलता।’
‘आंटी जी, अगर मेरी शादी सूरज से हो गई होती और यह हादसा तब हुआ होता तो क्या मुझे तब भी आप यही कहती ?’
सूरज की मां फिर रोने लगी, मेरी इतनी किस्मत कहां जो बेटे के सिर पर सेहरे देख पाती, विधाता ही मेरा वैरी निकला, पता नहीं मेरे किन पापों का मुझे दंड दे रहा है।’
‘’नहीं आंटीजी, ऐसा मत कहिए।’
‘ बहिन, धीरज धर, तेरा बेटा शहीद हुआ है वह सत्य का सिपाही…. ‘ पड़ोसन ने दिलासा दिया।
‘हां… मुझे भी सूरत की राह पर चलना है।
मान लो मेरी शादी हो गई होती और कोई संतान भी पैदा हो गई होती तो तब भी मैं उसके पालन पोषण के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देती। आप समझो, सूरज की मिशन ही मेरी संतान है और मैं सूरज को न्याय दिलाने के लिए लडूंगी और सूचना के अधिकार के माध्यम से भ्रष्टाचार मिटाने की जो मुहिम उसने चलाई चलाई थी ….
‘ नहीं बेटी, तूने देख लिया, वह राह आसान नहीं है, जान का जोख़िम तो रहता ही है…।’
‘ऐसे तो सीमा पर तैनात भारत मां के बेटे डर कर कभी अपना कर्तव्य न निभायें कि जान का ख़तरा हमेशा सिर पर मंडराता रहता है।’
‘प्रतिभा, जब तक मैं ज़िंदा हूं, बेटे के लिए लड़ती रहूंगी।’
‘मेरा भी उसकी मिशन को पूरा करने का फ़ैसला अटल है। आंटी जी, आप वायदा करो, आप मेरा भी साथ दोगी।’
सूरज की मां ने रोते हुए प्रतिभा को अपने सीने से चिपका लिया और उसके सिर पर अपना हाथ रख दिया।