स्पेन में सोलहवीं शताब्दी के दो सन्त, सान्ता तेरेसा दे खेसूस व सान खुआन दे ला क्रूस, कदाचित स्पेन के आज तक के सबसे प्रमुख रहस्यवादी सन्त रहे हैं। प्रस्तुत लेख में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अद्वैतवाद व रहस्यवाद की व्याख्या को लेकरसान खुआन दे ला क्रूस के रहस्यवाद को समझने का प्रयास किया गया है।इस अध्ययन के लिए हम सान खुआन की प्रसिद्ध कविता ला नोचे ओस्कूरा देल आल्मा,जिसका की हिन्दी में शाब्दिक अनुवाद आत्मा की अन्धेरी रात हो सकता है,का सन्दर्भ लेंगे और इस कविता का हिन्दी अनुवाद आपके समक्ष प्रस्तुत करने के साथ-साथ इसकी समीक्षा भी प्रस्तुत करेंगे।

सन १४९२ में स्पेन में पुनर्जागरण के आगमन से आधुनिकता ने भी दस्तक दी। हालाँकि आजहम उस युग को प्रारम्भिक आधुनिकता का युग ही मान सकते हैं। इस समय स्पेन को एक कैथलिक राज्य घोषित किया जा चुका था तथा “इन्क्विज़िशन” की प्रक्रिया भी गम्भीर रूप से प्रारम्भ हो चुकी थी। इसी समय यूरोप में प्रॉटेस्टंट पुनर्गठन या प्रॉटेस्टंट रेफ़र्मेशन का भी दौर था। कैथलिक चर्च ने भी इसके विरोध में काउंटर-रेफ़र्मेशन की शुरुआत की। स्पेन में नीदरलैंड्स के रॉटर्डैमवासी बुद्धिजीवी इरास्मसके मानवतावादी विचारों से प्रभावित होकर कैथलिक चर्च ने काउंटर-रेफ़र्मेशन की प्रक्रिया प्रारम्भ की। रहस्यवाद का आगमन भी इसी दौरान स्पेन में हुआ। एलिसन पी॰ वेबर अपने लेख रिलिजस लिटरेचर इन अर्ली मॉडर्न स्पेन में लिखते हैं कि आधुनिकता के इस प्रारम्भिक दौर में स्पेनमें जो कुछ लिखा या छापा जा रहा था वह धार्मिक साहित्य की ही श्रेणी में माना जा सकता है। मध्ययुगीन काल का साहित्य भी पश्चिमी यूरोप के इस प्रान्त में धार्मिक ही रहा, हालाँकि वेबर यह भी कहते हैं कि मध्य युग में कातालान क्षेत्र के रामोन ल्यूल को छोड़कर ईसाई रहस्यवाद अधिक फल-फूल नहीं सका। सोलहवीं शताब्दी के आगमन से बदलाव आया और सन्तों के जीवनियों को पढ़ने की रुचि आम जनता में तेज़ी से बढ़ने लगी। ऐसाकई कारणों से सम्भव हो सका जैसे कि प्रिंटिग प्रेस, “रिकौन्क्वेस्ट” का अन्त, साक्षरता का स्तर बढ़ जाना इत्यादि।वेबर के अनुसार इस समय धर्म का अनुसरण करने वालों का रुख़ मानसिक पूजा की ओर तेज़ी से हुआ। इसी समय सान्ता तेरेसा दे खेसूस (१५१५-१५८२) व सान खुआन दे ला क्रूस (१५४२-१५९१) स्पेन में दो महान सन्तों ने अपने रहस्यवादी साहित्य की रचना की। यूरोप और स्पेन के रहस्यवाद के प्रसंग के साथ-साथ आचार्य शुक्ल ने सान्ता तेरेसा का भी उल्लेख अपने लेख जायसी का रहस्यवाद में किया है। वह कहते हैं, “सूफियों के अद्वैतवाद का जो विचार पूर्वप्रकरण में हुआ था उससे यह स्पष्ट हो गया कि किस प्रकार आर्य जाति (भारतीय और यूनानी) के तत्त्वचिंतकों द्वारा प्रतिपादित इस सिद्धांत को सामी पैगंबरी मतों में रहस्यभावना के भीतर स्थान मिला। उक्त मतों (यहूदी, ईसाई, इसलाम) के बीच तत्त्वचिंतन की पद्धति या ज्ञानकांड का स्थान न होने के कारण – मनुष्य की स्वाभाविक बुद्धि या अक्ल का दखल न होने के कारण – अद्वैतवाद का ग्रहण रहस्यवाद के रूप में ही हो सकता था। इस रूप में पड़कर वह धार्मिक विश्वास में बाधक नहीं समझा गया।” वह आगे यह भी कहते हैं, “योरप में भी प्राचीन यूनानी दार्शनिकों द्वारा प्रतिष्ठित अद्वैतवाद ईसाई मजहब के भीतर रहस्यभावना के ही रूप में लिया गया। रहस्योन्मुख सूफियों और पुराने कैथलिक ईसाई भक्तों की साधना समान रूप से माधुर्य भाव की और प्रवृत्त रही। जिस प्रकार सूफी ईश्वर की भावना प्रियतम के रूप में करते थे उसी प्रकार स्पेन, इटली आदि योरोपीय प्रदेशों के भक्त भी। जिस प्रकार सूफी ‘हाल’ की दशा में उस माशूक से भीतर-ही-भीतर मिला करते थे उसी प्रकार पुराने ईसाई भक्त साधक भी दुलहनें बन कर उस दूल्हे से मिलने के लिए अपने अंतर्देश में कई खंडों के रंगमहल तैयार किया करते थे। ईश्वर की पति रूप में उपासना करनेवाली सैफो, सेंट टेरेसा आदि कई भक्तिनें भी योरप में हुई हैं।”

आचार्य शुक्ल के मत कि यूरोप में अद्वैतवाद रहस्यवाद के रूप में आया और इस पर सूफ़ियों का प्रभाव रहा जैसा मानना प्रसिद्ध हिस्पानी-अरबी बुद्धिजीवी लूसे लोपेस बाराल्ट का भी है। प्रस्तुत लेख में हम सान खुआन के रहस्यवाद पर दृष्टि डालेंगे और उसके कुछ मुख्य लक्षणों को पाठकों के समक्ष रखेंगे।  सर्वप्रथम प्रस्तुत है इस कविता का हिन्दी में अनुवाद:

आत्मा की अन्धेरी रात

एक अन्धेरी रात में

तड़पती, प्रेम में

जलती,

आह, सुन्दर सौभाग्य!

मैं घर से निकली थी, नहीं किसी को दिखतीथी।

घर पर मेरे शान्ति पसरी थी।

अन्धकार में, सुरक्षित

छुपी हुयी

गुप्त सीढ़ी से

आह, सुन्दर सौभाग्य!

अन्धकार में, छुपती-छुपाती,

घर पर मेरे शान्ति पसरी थी।

सुन्दर रात में

छुपते, कि कोई मुझे देख ना सके

और ना मैं किसी को देखूँ

ना कोई रोशनी ना कोई सहारा,

केवल वह जो मेरे सीने में जलती थी।

वही मुझे दिशा दिखाती थी

दोपहर की रोशनी से तेज़,

वहाँ मुझे ले जाती थी

जहाँ वह मेरी प्रतीक्षा करता था

वह जिसे मैं भी जानती थी

ऐसी जगह जहाँ कोई आता-जाता नहीं था।

आह, रात जिसने दिशा दिखायी!

आह, रात भोर से सुन्दर।

आह रात कि तुमने प्रेमी-प्रेमिका का

मिलन कराया!

प्रेमिका प्रेमी में परिवर्तित हो गयी।

मेरे पुष्प-आच्छादित वक्ष पर,

जो कि उसके लिए सम्भाला था,

वहाँ वह सोता रहा, और मैंने उसको सहलाया

और देवदार के झूमने से हवा बहती थी।

क़िले से हवा बह निकली

जब मैंने उसके बाल सुलझाये

उसके नाज़ुक हाथों से मेरी गर्दन पर चोट लग गयी

और मैं होश-ओ-हवास खो बैठी थी।

मैं ठहर सी गयी, ख़ुद को भूल गयी

मैंने अपना चेहरा अपने प्रेमी पर झुका दिया

सब कुछ ठहर गया, मैंने ख़ुद को त्याग दिया

मैंने फ़िक्र को छोड़ दियाकमलों में भुला दिया।

जैसा कि हम देख सकते हैं कि सान खुआन की यह कविता एक प्रेमिका के अपने प्रेमी से मिलन और समागम की कविता जान पड़ती है। आचार्य शुक्ल के कथानुसार जैसे सूफ़ी ‘हाल’ की दशा में अपने माशूक़ से भीतर ही भीतर मिला करते थे वही छाप हम इस कविता में भी देख सकते हैं। स्पैनिश रहस्यवादी सन्तों को तीन दौरों से गुज़रना होता था जिस के पश्चात वह रहस्यवादी माने जाते थे। वे थे:वीआ पुर्गातीवा (सर्वत्र त्याग की दशा),वीआ इलूम्नातीवा(ज्ञान की दशा) और वीआ उनितीवा (मिलन की दशा)। अंतिम चरण या दशा को हम सूफ़ी की ‘हाल’ की दशा जैसा समझ सकते हैं। सान खुआन की प्रस्तुत कविता में भी हम इन तीनों दशाओं को भली भाँति से देख और समझ सकते हैं। “आत्मा की अन्धेरी रात” रहस्यवाद को समझने के लिए एक उपमा बन चुकी है जिसमें प्रेमिका रूपी सन्त अपने प्रेमी रूपी ईशू से मिलन के लिए घर-बार त्याग कर मिलन के लिए निकल पड़ी है, “एक अन्धेरी रात में / तड़पती, प्रेम में / जलती, … आह, सुन्दर सौभाग्य! / अन्धकार में, छुपती-छुपाती, / घर पर मेरे शान्ति पसरी थी।”। इन पंक्तियों में पहले चरण की गति देखी जा सकती है जब प्रेमिका सबसे छुपते-छुपाते सबका त्याग करते हुए अपने प्रेमी से मिलने जाती है।

“केवल वह जो मेरे सीने में जलती थी।” इस पंक्ति में ऐसा जान पड़ता है कि प्रेमिका रूपी सन्त के हृदय में ज्ञान की प्राप्ति हो गयी है और वही उसे मार्गदर्शन कर रही है। अपितु आचार्य शुक्ल का मानना है कि ईसाई धर्म में ज्ञानकांड का स्थान ना होने के कारण भारतीय अद्वैतवाद यूरोप में रहस्यवाद के रूप में पनपा क्योंकि ऐसे यह धर्म में बाधक नहीं माना गया। ऐसा ही हम स्पैनिश रहस्यवाद में भी देखते हैं परन्तु ज्ञान की स्तिथि स्पैनिश रहस्यवाद में अवश्य पैदा होती है, जैसा कि हमने अभी देखा, क्योंकि तभी एक सन्त रहस्यवादी माना जाता है। इस कविता की अन्तिम चन्द पंक्तियाँ अन्तिम चरण में मिलन एवं प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाती हैं जब प्रेमी और प्रेमिका में कोई अन्तर नहीं रह जाता जैसा कि हम अद्वैतवाद के सिद्धान्त में भी परिलक्षित है। इस चरण में एक कवि रहस्यवादी बन जाता है जिसके भावभिव्यक्ति में हम सन्त की ईश्वर की भक्ति के माधुर्य के साथ-साथ प्रेमिका व प्रेमी के बीच दर्शाए गए कामुकता को भी देख सकते हैं। ऐसा लगता है कि दुल्हन अपने पिया से मिलने के लिए शर्मायी-सकुचाई पर गम्भीर मुद्रा में जा रही है। और यह मिलन हृदय के आन्तरिक खण्डों में होता है जैसा कि आचार्य शुक्ल ने भी सूफ़ी और यूरोप के रहस्यवाद के सन्दर्भ में कहा है।

अन्ततः यह देखा जा सकता है कि किस तरह से पूर्व में प्रतिपादित अद्वैतवाद को स्पेन में सूफ़ियों के प्रभाव से रहस्यवाद में स्थान मिला। ऐसा सोलहवीं शताब्दी स्पेन में ‘काउंटर-रेफ़र्मेशन’ की वजह से भी सम्भव हो सका। उस समय के स्पेन में जो कि आधुनिकता के प्रारम्भिक दौर से गुज़र रहा था रहस्यवाद ने सामाजिक एवं धार्मिक चेतना को नए आयाम दिए। सान खुआन की प्रस्तुत कविता स्पेन के रहस्यवाद की सबसे प्रमुख कृति मानी जाती है जो कि हृदय के भीतर के रहस्य और प्रेम और अन्ततः मिलन के लिए आज एक उपमा बन गयी है।

सन्दर्भ:

  • पी॰ वेबर, ऐलिसन, “रिलिजस लिटरेचर इन अर्ली मॉडर्न स्पेन”, द केम्ब्रिज हिस्ट्री अव स्पैनिश लिटरेचर, सम्पादन डेविड टी॰ गीस, २००९
  • शुक्ल, रामचन्द्र, जायसी का रहस्यवाद

 

माला शिखा
सहायक प्रोफ़ेसर
स्पैनिश अध्ययन विभाग, भाषा केन्द्र
दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखण्ड

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