किसी भी राष्ट्र की सामाजिक उन्नति में वहाॅ की शिक्षा व्यवस्था का बहुत अहम योगदान होता है। आजादी के बाद भारत में शिक्षा के क्षेत्र में लगातार क्रान्तिकारी बदलाव देखने को मिले हैं। इसके लिये भारत शुरू से क्रियाशील रहा है। शिक्षा राष्ट्र निर्माण की आधारषिला है, तथा समाज और संस्कृति को गतिशील बनाने, विकास व षोधन की अनिवार्य कड़ी है। यह समाज में लोगों के अंदर नैतिक मूल्यों एवं संस्कृति का विकास करती है। जिससे मनुष्य में मनसा, वाचा, कर्मणा का भाव जागृत होता है फलतः समाज का चतुर्मुखी विकास संभव होता है। ऐसे में राष्ट्र के प्रत्येक प्राणी को शिक्षित करना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य व महत्वपूर्ण भी है।
महात्मा गाॅधी जी कहते हैं कि महिला समाज का एक अभिन्न अंग है। “जब एक मनुष्य शिक्षित होता है तो एक व्यक्ति शिक्षित होता है और जब एक नारी शिक्षित होती है तो पूरा एक परिवार शिक्षित होता है।“ यदि हम अपने राष्ट्र को ऊॅचा उठाना चाहते हैं तो हमें बालिकाओं को शिक्षा के माध्यम से सशक्त बनाने की आवश्यकता पर जोर देना चाहिए। शिक्षा से अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है जो बालिका को न केवल शारीरिक रूप से मजबूत बनाता है, अपितु उसे मानसिक रूप से भी सशक्त बनाता है।
गांधी जी के उपरोक्त कथन में राष्ट्र के विकास के लिए महिला शिक्षा पर विशेष बल दिया गया और शिक्षा के द्वारा ही महिला के विभिन्न स्तरों जैसे- सामाजिक स्तर,सांस्कृतिक स्तर, राजनीतिक स्तर का विकास संभव है। इन स्तरों के विकास के साथ ही महिला का सर्वांगीण विकास सम्भव है। ऐसे में राष्ट्र का विशेष कर्तव्य हो जाता है कि महिलाओं का विभिन्न स्तरों में विकास करे।
सामाजिक विकास- सामाजिक विकास एक समग्र प्रक्रिया हैं जो अपने भीतर एक निश्चित समाज की समस्त संरचनाओं आयु, लिंग, सम्पत्ति तथा संस्थाओं जैसे परिवार, समुदाय, जाति, वर्ग, धर्म, शिक्षा आदि को समेटे है।
आर्थिक विकास– देशों , क्षेत्रों या व्यक्तियों या महिलाओं की आर्थिक समृद्धि को आर्थिक विकास कहते हैं।
सांस्कृतिक विकास– वह प्रक्रिया है जिसके अन्र्तगत मनुष्य समाज को सदस्य के रूप में सीखता है जिसमें ज्ञान, विज्ञान, कला कौशल, रीति रिवाज आते हैं।
अगर हम बालिकाओं की शिक्षा की स्थिति का अध्ययन करते हैं तो वैदिक काल में हम यह पाते हैं कि बालकों के समान बालिकाओं को भी शिक्षा के समान अवसर दिये जाते थे।
वहीं हम इस मध्य काल में शिक्षा पर दृष्टिपात करते हैं तो हम यह पाते हैं कि महिलाओं को पुरुषों के समान शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नहीं था। महिलाओं को पर्दे की वस्तु समझा जाता था इसलिए उन्हें घर से बाहर नहीं जाने दिया जाता था। उच्च वर्ग की लड़कियाॅ ही अपने घरों में मौलवी के द्वारा शिक्षा ग्रहण कर पाती थीं।
अगर वर्तमान शिक्षा पर दृश्टिपात करते हैं तो बालकों के समान बालिकाओं को भी शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार है।
हाॅलाकि वर्तमान में पुरुषों के समान महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार है, फिर भी सन् 2011 की जनगणना के अनुसार महिलाओं की साक्षरता दर पुरुषों की तुलना में 16‐68 फीसदी कम है।
भारत में साक्षरता दर में एक बड़ी असमानता है। जनगणना 2001 भारत सरकार आकड़ों के अनुसार 82.14प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में साक्षरता काप्रतिशत 65.46 है। हाॅलाकि इस तथ्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि भारत में महिला साक्षरता की दर बढ़ी है, लेकिन यह भी सत्य है कि आज भी लड़कों की तुलना में बहुत ही कम लड़कियाॅ स्कूलों में दाखिला लेती हैं और उन में से कई बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ देती हैं। (स्रोत- जनगणना 2011 भारत सरकार )
जनगणना 2011 की अंतिम रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में 2001 की जनगणना के बाद के दसक के दौरान साक्षरता के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। 2011 की जनगणना में साक्षरता की दर 74.04प्रतिशत है, जो 2001 में 64.84प्रतिशत थी। इसी दौरान स्त्री साक्षरता की दर में 11.8प्रतिशत की वृद्धि हुयी। 2001 में यह 53.7प्रतिशत थी। जो बढ़कर 2011 में 65.5प्रतिशत हो गयी। 2001-2011 अवधि के दौरान स्त्री साक्षरता दर में 11.79प्रतिशत की वृद्धि हुयी। जबकि पुरुषों की साक्षरता दर में 6.88 प्रतिशत तक की वृद्धि हुयी।
2011 में स्त्री साक्षरता की दृष्टि से विहार, झारखण्ड, अरूणाचल प्रदेश , उत्तर प्रदेश , राजस्थान, आध्रप्रदेश , उडीसा, मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य काफी पिछड़े हुये है। इन बड़ें राज्यों में पुरुषों के साथ ही साथ स्त्री शिक्षा के विकास से ही भारत में शिक्षा की दृष्टि से क्रान्तिकारी परिवर्तन लायें जा सकते हैं।
(स्रोत- जनगणना 2011 भारत सरकार )
यद्यपि भारतीय संविधान की धारा 14, 15, 15 (3), 16 और 21 (अ) विशेष रूप से शैक्षिक अधिकारों में समानता सुनिश्चित करने हेतु बनायी गयी थी। धारा 15 वर्ण, धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निशेध करती है। अनुच्छेद 15 (3) महिलाओं के हित में विशेष उपबंधों के निर्माण किया गया है।
फिर भी महिलाओं का नामांकन पुरुषों की तुलना में समान नहीं है इसी दृष्टिकोण से षोधकर्ता द्वारा इस विषय का चयन किया गया है।
जनगणना 2011 के अंतिम आकड़ों के अनुसार मध्यप्रदेश राज्य की स्थिति को निम्न प्रकार से देखा जा सकता है।
तालिका क्र. 1 –
जनसंख्या करोड़ में | पुरुष | महिला | लिंगानुपात प्रति 1000 पुरुष पर |
साक्षरता प्रतिशत में | ||
कुल साक्षरता | पुरुष | महिला | ||||
7.26 | 3.76 | 3.50 | 931 | 69.3 | 78.7 | 59.2 |
(स्रोत- जनगणना 2011 भारत सरकार )
म.प्र. में बालिका शिक्षा से संबंधित विभिन्न योजनाएं राज्य सरकार द्वारा चलायी जा रही हैं। जो वर्तमान में बालिका शिक्षा के प्रति सकारात्मक प्रवृत्ति को दार्षती है। इन योजनाओं में “गाॅव की बेटी“, लाडली लक्ष्मी योजना, कस्तूरबा गाॅधी बालिका विद्यालय, एनपीईजीईएल, प्रतिभा किरण, शासकीय स्कूलों में गणवेष प्रदान करना, मध्यान भोजन योजना एवं सर्व शिक्षा अभियान योजनायें है। इन योजनाओं से मध्यप्रदेश में बालिकाओं की शैक्षिक स्थिति में सुधार जरूर हुआ है। (स्रोत- जनगणना 2011 भारत सरकार )
अध्ययन की आवश्यकता-
प्रस्तुत अध्ययन की आवश्यकता इसलिये भी है कि आखिर क्या ऐसी वजह है जो स्वतंत्रता के बाद भी बालिकाओं की शैक्षणिक स्थिति में अभी असमानतायें प्रचुर मात्रा में व्याप्त हैं। शिक्षा के क्षेत्र में बालिका शिक्षा से संबंधित यद्यपि कि विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन होता रहता है, और योजनायें भी चलायी जा रही हैं। इसके बावजूद भी बालिकाओं की शैक्षणिक स्थिति, पुरुषों की शैक्षणिक स्थिति की तुलना में अभी भी बहुत से जिलों में पिछड़ी हुयी है तथा कुछ जिलों में शैक्षणिक स्थिति में सुधार जरूर है लेकिन ऐसे कुछ ही जिलों की संख्या मिलती है। यह भी देखना है कि जिन जिलों में बालिका शिक्षा की स्थिति सुदृढ़ है वहाॅ वह कौन से कारण कार्य कर रहे हैं, जिससे लिंगानुपात में भी ज्यादा अंतर नहीं दिखाई देता है।
साक्षरता की दृष्टि से मध्यप्रदेश राज्य ने उन्नति की है 2001 में राज्य की साक्षरता दर 64.11प्रतिशत थी जो 2011 में 8.09प्रतिशत बढ़कर 69.3 हो गयी है, किन्तु यह अभी राष्ट्रिय साक्षरता दर से 74.04प्रतिशत पीछे है।
(स्रोत- जनगणना 2011 भारत सरकार )
अध्ययन का उद्देश्य –
1. मध्यप्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही बालिका शिक्षा से संबंधित प्रमुख शैक्षिक योजनाओं एवं कार्यक्रमों को समझना।
2. मध्यप्रदेश में बालिका शिक्षा की स्थिति एवं स्तर को समझना।
सम्बंधित साहित्य का सर्वेक्षण –
कुमार‐(2015) प्रस्तुत लेख सर्वे विधि पर आधारित है। अतः यह कहा जा सकता है कि यह लेख सामाजीकरण की प्रक्रिया में लड़के व लड़कियों को एकदम फर्क तरीके से गढ़ती है। एक ही समाज का हिस्सा होने के बावजूद उनके जीवन के अनुभव भिन्न होते हैं। बचपन से शुरू हुई इस प्रक्रिया का असर उनके शैक्षिक अनुभवों पर भी होता है। यह लेख शिक्षा और समाज के द्वन्द्व की छानबीन करता है।
आर्येन्दु(2016) ने सर्वेक्षण में पाया कि सरकार नई-नई योजनाओं के माध्यम से सबको जहां शिक्षा दिलाने के लिये आगे कदम बढ़ा रही है, वहीं पर मॅहगी होती जा रही शिक्षा को ग्रामीण क्षेत्रों के लिये अनुदान और अन्य सुविधायें प्रदान कर लड़कों और लड़कियों को स्वावलम्बी बनाने और नैतिक धारा में लाने का काम भी कर रही है। प्राथमिक शिक्षा ही नहीं उच्च माध्यमिक शिक्षा भी लड़कियों के लिये पूरी तरह सुलभ बने इसके लिये सरकारी प्रयासों के अलावाॅ व्यक्तिगत स्तर पर तथा गैर सरकारी प्रयासों को व्यवहारिकता के धरातल पर लाना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की समस्याओं को देखने पर पता चलता है कि सबसे बड़ी समस्या धन की है। सरकार अन्य मदों की तुलना में शिक्षा पर व्यय बहुत कम करती है।
जैन एवं सिंह (2014) ने के.जी.बी.वी. ब्लाॅक बड़ागाॅव डायट बरूआसागर, झाॅसी में किये गये एकल अध्ययन के आधार पर कहा कि स्थिति सन्तोशजनक है। के.जी.बी.वी. योजना सही दिषा में कार्य कर रही है, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति, अल्पसंख्यक व गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले सीमान्त वर्ग की लड़कियां जो हासिये पर धकेल दी गई थीं, विद्यालय में इनके मानसिक विकास के साथ-साथ उनके आंतरिक एवं वाह्य विकास पर भी बल दिया जा रहा है। जिससे उनके सशक्तिकरणमें वृद्धि हुयी है तथा बालिका साक्षरता का स्तर भी बढ़ा है। बालिकायें बिना किसी भय व संकोच के विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करती हैं। इनकों सैद्धान्तिक ज्ञान के साथ व्यवहारिक ज्ञान भी दिया जाता है। श्रव्य दृष्य सामग्री, पत्र पत्रिकाओं, कम्प्यूटर, खेलकूद, योग, नाटक, रंगोली, फिल्म एवं षिवरों के आयोजन के माध्यम से शिक्षण व प्रशिक्षण दिया जाता है।
सिंह (2008) के अनुसार बालिकाओं की शिक्षा के विकास में अनेक समस्यायें हैं किन्तु सबसे बड़ी और मूलभूत समस्या विद्यालयों का न होना ही है। इस अध्ययन के अन्र्तगत सर्वेक्षण शोध विधि का प्रयोग किया गया है। पूर्वांचल में ब्लाक, तहसील, टाउन ऐरिया, ग्राम सभा एवं जनसंख्या के आधार पर स्कूलों का वितरण नहीं है, न ही वर्तमान विद्यालयों तक यातायात की ऐसी सुविधा विकसित है जिससे भीतरी क्षेत्र की बालिकायें सहजता से इन विद्यालयों तक पहॅुच सके। अतः बालिका शिक्षा के विकास के लिये जनसंख्या घनत्व को देखते हुये यह आवष्यक है कि पिछड़े तथा भीतरी क्षेत्रों में छोटे तथा बड़े आकार के बालिका विद्यालय खोले जाएं जिनमें क्षेत्रीय सशक्तिकरणके बीच तादात्म स्थापित हो सके।
चानना (2008) प्रस्तुत लेख सर्वेक्षण विधि पर आधारित है। महिलाओं की शिक्षा के उद्देष्यों के पीछे समाजिक सोच मे लिंग संबंधी विचारधारा है। अतः महिलाओं की भूमिका और उपचारिक शिक्षा के कार्यो का सीमांकन करने वाले समाजिक प्रतिमान के मानदण्डों की गहन पड़ताल की आवश्यकताहै। क्योंकि ये मानदण्ड लड़कियांे की प्राथमिक शिक्षा से संबंधित कार्यक्रमों को अभी प्रभावित कर रहे हैं। साथ ही केवल नीतियों एव कार्यक्रमों का निर्माण करना ही काफी नहीं है। बल्कि विचारधारात्मक, संनरचनात्मक, और पारिवारिक बाधाओं को निस्क्रिय करने या दूर करने की रणनीतियाॅ विकसित करना भी आवष्यक है। ताकि शैक्षणिक सुविधाओं का पूर्णरूपेण उपयोग किया जा सके।
पाण्डेय (2010) प्रस्तुत पुस्तक का लेख वर्णनात्मक विधि पर आधारित है। अतः निष्कर्षतः कहा जा सकता है सामाजिक क्षेत्र में स्त्री जाति समाजिक सुधार की आधारषिला होती है। वह परिवार का सृजन एवं निर्माण करने वाली होती हैं। सबसे पहले नागरिकता की शिक्षा उसी के संरक्षण में मिलती है। यदि स्त्री शिक्षित नहीं होती तो वह परिवार में रहकर नागरिकता का प्रसार करने का उत्तरदायित्व न्यायपूर्वक नहीं निभा सकती। इसीलिए स्त्री शिक्षा की आवश्यकता और महत्व का अनुभव किया जाता है। स्त्री बालक की सबसे पहली और महत्वपूर्ण शिक्षक होती है। यदि वह अशिक्षित हुयीं तो बालक का शैक्षिक तथा सामाजिक विकास उपयुक्त रूप में नहीं हो सकता।
उपाध्याय एवं दुबे (2000) के अनुसार वर्तमान भारती शिक्षित नारी का समाज एवं राष्ट्र की प्रगति में अनूठा योगदान है। इस अध्ययन के अन्र्तगत वर्णनात्मक शोध विधि का प्रयोग किया गया है। शिक्षा, व्यवसाय, वाणिज्य, तकनीकी, ज्ञान विज्ञान, प्रशासन और अन्य क्षेत्रों में नारी पहले की अपेक्षा निरंतर प्रगति कर रही है। नारी की बहुमूल्य योगदान को व्यपाक रूप में प्राप्त करने के लिये नारी शिक्षा नितान्त आवष्यक है। नारी में सबसे अधिक सृजन और निर्माण षक्ति होती है। शिक्षित नारी संतान को महानतम बनाने में सक्षम होती है।
रामचन्द्रन (2016) के अनुसार सार्थक उपलब्धता का अर्थ ऐसा सुरक्षित लैंगिक वर्ग आधारित स्थान प्रदान करता है जहां किसी को भेदभाव के डर के बगैर अपने सामाजिक समूह के अनुसार निर्मित अपने व्यक्तित्व को तलासने एवं अभिव्यक्त करने की आजादी मिल सके। स्कूल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ शिक्षक की उपलब्धता भी आवष्यक है। इसलिये लेखक ने शिक्षा की सार्थक उपलब्धता, भेदभाव से मुक्ति तथा ज्ञान के विकास में लैगिंक संवेदनशीलता को प्रमुख स्थान दिया। इन तीनों के द्वारा हम व्यपाक लैगिंक समानता एवं समाजिक न्याय की ओर बढ़ना आरंभ कर सकेंगे। इस अध्ययन के अन्र्तगत वर्णनात्मक शोध विधि का प्रयोग किया गया है।
यादव(2016) ने वर्णनात्मक शोध विधि का प्रयोग करके बतलाया कि आज भी हमारे देष में लड़कियों की शिक्षा के प्रति विचार बड़े ही संक्रीर्ण पाये जाते हैं। इसलिये कम उम्र में शादी करना, पर्दा प्रथा तथा अन्धविश्वासांे के कारण स्त्री शिक्षा को बढ़ावा नहीं मिल सका है। हमारी समाज के अंतर्गत यह विचारधारा अब भी पाई जाती है कि लड़कियों को उच्च शिक्षा नहीं दी जानी चाहिए। स्त्री शिक्षा में एक बड़ी समस्या योग्य एवं प्रशिक्षित शिक्षकों का आभाव होना है।
तिवारी एंव तिवारी (2000) प्रस्तुत लेख सर्वे विधि पर आधारित है। इस लेख से निष्कर्ष निकलता है कि ग्रामीण समाज की यह मान्यता है कि स्त्री का कार्य क्षेत्र घर है अतः उसे शिक्षित करने की कोई आवश्यकतानहीं लड़की के प्रति भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण भी उसकी शिक्षा में बाधक है। समाज में आज भी स्त्रियों को नौकरी करना तथा पुरुषों के समकक्ष उनके साथ कार्य करना अच्छा नहीं माना जाता इसलिये स्त्री शिक्षा का महत्व ग्रामीण क्षेत्र में बहुत कम है।
भट्ट(2016) प्रस्तुत अध्ययन सर्वेक्षण विधि पर आधारित है। इसके अनुसार ग्रामीण महिला के सशक्तीकरण में अनेकों कारक बाधक हैं, लेकिन उनमें से सबसे महत्वपूर्ण कारक विद्यालय की कस्बों और गांवों से दूरी है। यदि वास्तव में महिला को सशक्त करना है तो उन्हें शिक्षित कर साक्षारता दर बढ़ानी होगी। उन्हें इस प्रकार से प्रशिक्षित करना होगा कि वे अपने अधिकारों को जान सकें और इस कार्य को शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से ही संभव किया जा सकता है।
चौरसिया(2013) प्रस्तुत अध्ययन सर्वेक्षण विधि पर आधारित है। इस अध्ययन के अन्र्तगत जहां शिक्षा की समुचित सुविधायें हैं तथा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हैं वहाॅ महिलाओं के सशक्तीकरण की स्थिति में काफी सुधार है, सह महिलाएं शिक्षा, समाज सेवा, राजनीति एवं प्रशासन में भी सहभागिता कर रही हैं। शिक्षित महिलाऐं अपने कर्तव्यों के प्रति अधिक जागरूक पाई गई तथा ग्रामीण क्षेत्र जहाॅ शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं है वहाॅ महिला सशक्तीकरण की गति अभी भी धीमी है।
सिंह(2012) के अनुसार समस्त उत्तरदाता शिक्षा के महत्व को समझते थे, किन्तु जब उन्हें क्रियात्मक कार्य के द्वारा प्राथमिक शिक्षा विशय की जानकारी, शिक्षा से सम्बन्धित योजनाओं, साक्षरता अभियान जागरूकता, प्रौढ़ शिक्षा जागरूकता की जानकारी दी गई तो उत्तरदाताओं में जागरूकता के स्तर में वृद्धि पाई गयी। अतः निश्कर्श स्वरूप यह कहा जा सकता है कि शिक्षा के द्वारा महिलाओं को सशक्त बनाया जा सकता है। इस अध्ययन के अन्र्तगत सर्वेक्षण शोध विधि का प्रयोग किया गया है।
देवगन एवं बघेल(2012) के अनुसार अल्पसंख्यक वर्ग की छात्राओं के सशक्तीकरण में सार्थक अन्तर पाया गया और उनके समायोजन में सार्थक अन्तर प्राप्त हुआ। इसके साथ साथ अल्पसंख्यक वर्ग की शैक्षिक उपलब्धि में सार्थक अन्तर पाया गया तथा अल्पसंख्यक वर्ग की छात्राओं के सशक्तीकरण, समायोजन एवं शैक्षिक उपलब्धि का तुलनात्मक अध्ययन करने पर भी सार्थक अन्तर पाया गया। अल्पसंख्यक वर्ग की छात्राओं के सशक्तीकरण एवं समायोजन के मध्य पूर्ण ऋणात्मक सहसंबंध पाया गया, जबकि सशक्तीकरण एवं शैक्षिक उपलब्धि के मध्य उच्च धनात्मक सहसंबंध पाया गया।
मुनियादि एवं सिंह(2012) के अनुसार जनजातीय लोगों में महिला सशक्तीकरण के प्रतिनिधि सूचक जैसे शिक्षा, गैर कृशि सम्बन्धी क्षे़त्रों में आर्थिक सहभागिता संचार माध्यमों से परिचय अपेक्षा अनुरूप् नहीं हैं। अतः वे मुख्य रूप से बहिश्कृत रहते हैं एवं उनकें स्वस्थ्य संबन्धी परिणाम अपेक्षा अनुरूप या उत्तम नहीं है। शिक्षा संचारी एवं असंचारी रोगों आदि से सम्बन्धित स्वास्थ्य संबधी जानकारियां महिलाओं को उनके स्वस्थ्य के समग्र विकास हेतु लाभ अर्जित करने के लिए सामथ्र्य प्रदान करती है। इस अध्ययन के अन्र्तगत सर्वेक्षण शोध विधि का प्रयोग किया गया है।
गुप्ता एवं गुप्ता(2009) यह अध्ययन वर्णनात्मक शोध विधि का प्रयोग किया गया है इसके अनुसार शिक्षा के साथ ही सामाजिक सुधार की जो प्रक्रिया विकसित हो रही है वह अॅधंेरे में रोषनी के समान है। महिला बाल श्रमिक धीरे धीरे अपने आवरण से बाहर आ रही हंै। विभिन्न प्रतियोगिताओं में वे न केवल सम्मिलित हो रही हैं अपितु नये कीर्तिमान भी स्थापित कर रही हैं। यदि इन बालिकाओं को पार्यप्त अवसर मिलेे तो ये और अधिक कुषलता व प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ सकती हैं।
शोधविधि –
प्रस्तुत अध्ययन में जिसका प्रमुख उद्देश्य मध्यप्रदेश राज्य में बालिका शिक्षा कार्यक्रम एवं योजनाओं को समझने के लिए मध्यप्रदेश सरकार द्वारा चलायी जा रही विभिन्न शैक्षिक योजनाओं से संबंधित कार्यक्रम जिसके लिये आॅकडों का चयन द्वितीयक आॅकड़ों के आधार पर किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन विश्लेषणात्मक एवं विवरणात्मक शोध विधि पर आधारित है।
निष्कर्ष –
2011 के आॅकडे़ को यदि म.प्र. के उन पाॅच जिलों की सर्वाधिक महिला साक्षरता दर को भोपाल (74.9), जबलपुर (74.4), इन्दौर (74), बालाघाट (69) और ग्वालियर (67.4) को 2001 की आॅकड़े की तुलना में देखते हैं तो विदित होता है कि षासन द्वारा समय के अनुसार जो शैक्षिक योजनायें चली जैसे गाॅव की बेटी, लक्ष्मी लाडली योजना चली इन योजनाओं ने कहीं ना कहीं बालिकाओं को सशक्त एवं आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अतः इन शैक्षिक योजनाओं का असर 2011 की महिलाओं की साक्षरता दर बढ़ाने में योगदान दिखाई देता है।
2011 के आॅकडों के यदि म.प्र. के उन पाॅच सर्वाधिक लिंगानुपात वाले जिले जैसे बालाघाट (1021), अलिराजपुर (1009), मण्डला (1005), ढ़िडोरी (1004), झाबुआ (989) को देखें तो 2001 के आॅकड़ों के अनुसार वृद्धि दर्ज हुयी है। अतः कहा जा सकता है कि सर्व शिक्षा अभियान एवं के.जी.बी.वी. जैसी शैक्षिक योजनाओं के परिणामस्वरूप बालिकाओं के लिंगानुपात में वृद्धि हुयी है। इसके पीछे शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है।
2001 के आॅकड़ों के यदि म.प्र. के उन पाॅच नवजात शिशु मृत्यु दर वाले जिलें को देखे तो 2011 के आॅकड़ों के अनुसार नवजात शिशु मृत्यु दर में गिरावट आयी है। इसके पीछे एक बड़ा कारण शासन द्वारा चलायी जा रही शैक्षिक योजनायें हैं। जिसके कारण शिशु मृत्यु दर में कमी आयी है।
2001 के आॅकड़ों के अनुसार बच्चे को जन्म देनी वाली माताओं की मृत्यु दर शहडोल, सागर, रीवा, जबलपुर एवं नर्मदापुरम में मातृ मृत्यु दर अधिक है जबकि 2011 के आॅकड़ों के अनुसार मातृ मृत्यु दर में कमी आयी जिसके पीछे शिक्षा की भूमिका का बहुत बड़ा रोल दिखाई देता है।
सुझाव –
1. भारतीय जनगणना 2011 के अनुसार मध्यप्रदेश के उन 50 जिलों में से झाबुआ(33‐8), ष्योर(44‐2), बड़वानी(42‐4), गुना(51‐4), अषोकनगर(53‐4), सीधी(54‐1), पू‐निमाड़(55‐9) है जिनकी साक्षरता दर कम है वहां की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि बालिकाओं को शिक्षा ग्रहण करने के लिये काफी दूर जाना पड़ता है। वहाॅ इस प्रकार से शैक्षिक संसाधनों एवं संस्थानों की व्यवस्था करनी चाहिए जिससे कि बालिकाओं को शिक्षा ग्रहण करने मे कठिनायी न उठानी पड़े।
2. सबसे बड़ी समस्या धन की कमी है सरकार अन्य मदांे की तुलना में शिक्षा पर बहुत कम खर्च करती है। अतः शिक्षा पर व्यय को बढ़ाना चाहिए।
3. बहुत से प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों में षौचालयों की कमी दिखाई देती है। जिसके कारण बहुत सी लड़कियाॅ इन विद्यालयों मे नही जाना चाहती जिनका झुकाव निजी स्कूलों की तरफ बढ़ता चला जा रहा है। अतः सरकार को प्रत्येक शासकीय विद्यालयों को षौचालयों की व्यवस्था पर जरूर ध्यान देना चाहिए।
4. प्राथमिक विद्यालय, उच्च प्राथमिक विद्यालय एवं माध्यमिक विद्यालय में बालिकाओ से संबन्धित जो भी शैक्षिक योजनायें कार्यान्वित की जाती है उन योजनाओं का कितनाप्रतिशत संचालन हो रहा है इसका ध्यान स्थानीय अभिवावको, बेसिक शिक्षा अधिकारी एवं सरकार को समय≤ पर ध्यान देना चाहिए एवं कमी पायी जाने पर उसका उचित निवारण भी सरकार द्वारा किया जाना चाहिए। जिससे बालिकाओं को सार्थक शैक्षिक लाभ मिल सके और वे आत्म निर्भर बन सकें।
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