नारी

जग की आधी भाग है नारी,
उससे जिन्दगी  होती पूरी सारी,
फिर भी वह आज है बिचारी !

हर रूप में वह सहारा सबकी,
कभी माँ, कभी बहन, कभी है पत्नि
और कभी बेटी,
फिर भी वह रौंदी जाती पैरों के नीचे सबकी !

क्या सभी देते हैं उसको मान ?
जो अपनों के लिए देती जान !
हर काम उसका शक भरा नजरों में सबकी,
खुल के हँसे और गाए यह क्या चाह नहीं उसकी ?

नारी क्या इंसान नहीं और क्या उसमें वेदना नहीं !
हर कोई चाहता है नारी से सम्मान,
क्या उसी सम्मान की हक़दार नहीं नारी !

अर्पना सिंह

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