मेरी पहचान
रोते हुए दुनिया की दहलीज पे जब रखा पहला कदम,
माँ की ख़ुशी का एक अलग सा था एहसास ,
एक अजीब सी खामोशी का आलम छाया था हर चेहरे पे
सोचो मुझे देखते ही क्यों हो गए हैं सब बेरहम
मां कभी पिताजी के मायूस चेहरे को देखती,
तो कभी देखती मेरी नन्ही सी मुस्कान,
कभी खुद की किस्मत को कोसती
तो कभी जानके सब बन जाती अनजान
मैं समझ ही न पाया कि ये कैसा है इंसान
जो एक नए मेहमान के आने से हो गए हैं सब परेशान
तभी मेरी माँ जैसे दिखने वाले आ गए और इंसान
और मुझे छीन के ले जाने को करने लगे घमासान
माँ का रो रोके हो गया था तब बुरा हाल
पिता जी को भी सूझ नही रहा था कोई समाधान
अब समझने लगा मैं की यही है विधि का विधान
माँ के पेट से पैदा नही हुआ था कोई इंसान
मैं अब बड़ा हो चुका हूँ, पसंद है बस करना श्रंगार
साडी, सूट, तालियों के बिना नही चल पाता मेरा संसार
अब खोने को अपना मेरा कोई नही रहा इंसान
बस याद आता है आज भी माँ का बलिदान
अब सब ने दी मुझे एक नई पहचान
सीता, रेखा, विमला नाम बहुत पर बुलाते हैं सब मुझे किन्नर
हाँ चौकने की है ये बात जो अब समझ मे आयी
जिंदगी भर दुनिया मे आने के लिए लड़ता रहा जो
अब ये दुनिया ही है उसके लिए परायी
मैं किन्नर हूँ पर मैं भी हुँ एक इंसान,
दुनिया का ठुकराया हुआ पर,मेरे भी हैं कुछ अरमान,
मुझे कुछ मत दो बस जीने दो भाई जान
मैं किन्नर नही मैं भी हुँ एक इंसान