हिंदी साहित्य की सुंदरता इस बात में मानी जा सकती है कि प्रत्येक युग में योग निरपेक्ष प्रवृत्तियों से युक्त रचनाएँ भी हुई हैं। इसी तथ्य को प्रमाणित करने के […]
प्रेम और सौन्दर्य के कवि : गिरिजाकुमार माथुर – सुदेश कुमार
शोध सार :- नयी कविता के अत्यंत समर्थ आधार-स्तम्भ के रूप में कवि गिरिजाकुमार माथुर हैं जिन्होंने किसी वाद से प्रभावित होकर कविता की रचना नहीं की वरन युगीन मांगों […]
एक प्रश्नाकुल मनःस्थिति- चेक रचनाकार कारेल चॉपेक का कथा संसार – डॉ. मीनू गेरा
प्रस्तावना- बीसवीं शताब्दी के यूरोपीय साहित्यकारों ने अनुभवों और विचारों के धरातल पर वैविध्य के ऐसे संसार को खड़ा किया जिसने भौगोलिक सीमाओं को तो परिभाषित किया, चेतना के धरातल […]
मैथिलीशरण गुप्त कृत ‘साकेत‘ में भारतीय संस्कृति के विविध आयाम – कल्याण कुमार
संस्कृति किसी भी राष्ट्र की आधारशिला होती है। राष्ट्र रूपी वृक्ष का निर्माण संस्कृति रूपी बीज के प्रस्फुटन से ही होता है। राष्ट्र के भीतर समाहित समाज,परिवार और व्यक्ति के […]
महात्मा गांधी – बीसवीं सदी का नित्सियन महामानव – प्रशांत कुमार पांडेय
जब भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बात होती है, मोहन दास करमचंद गांधी का नाम बड़े इज्जत से लिया जाता है। पूरी दुनिया में जहाँ भी लोगों ने आजादी […]
शरद सिंह के उपन्यासों के संदर्भ में नारी-विमर्श – सपना
हिंदी-साहित्य में एक सुपरिचित और प्रतिष्ठित नाम है, ‘शरद सिंह’ जिन्होंने नारी की दसदिक् पीड़ाओ को अपने साहित्य के माध्यम से अभिव्यक्ति प्रदान की है। गद्य एवं पद्य की अनेक […]
निराला के काव्य में सामाजिक यथार्थ – डॉ. काळे मदन भाऊराव
हिन्दी साहित्य के इतिहास में करीब करीब दो शताब्दियों तक छायावाद का प्रभाव रहा है। हिन्दी साहित्य कालविभाजन के अन्तर्गत छायावाद का काव्य प्रमुख रहा है। कालविभाजन करनेवाले सभी इतिहासकारों […]
भारतीय ज्ञान परंपरा और भक्ति काव्य – डॉ. जयन्त कुमार कश्यप
भारतीय ज्ञान परंपरा एक विशाल नदी की तरह है जो सदियों से प्रवहमान है। इस ज्ञान परंपरा के भीतर अनेकानेक विशेषताएं हैं। इन विशेषताओं के सम्मिलित रूप हमारे जीवन के […]
हिंदी सिनेमा में विकलांगता की अभिव्यक्ति का बदलता स्वरूप – विशाल कुमार
सारांश सिनेमा केवल एक मनोरंजक साधन ही नहीं, अपितु एक जनजागृति और शिक्षा प्रदान करने का साधन भी है। विकलांग वर्ग एक ऐसा वर्ग है जो समाज का एक अभिन्न […]
उत्तराखंड क्षेत्र के लोकपर्व : सामाजिक समरसता के प्रतीक – डॉ. अर्चना डिमरी
कुंजी वाक्य:सॉत, फूलदेई, ठेस्या देवता, गोगा-पीर, फ्यूली, मरोज, गीमा, भिटौली, लगड़, बिखोत, इगास, भैलू । सारांश तथा भूमिका : लोक पर्व हमारे समाज के सांस्कृतिक-सामाजिक समरसता के प्रतीक माने जाते […]