सारांशिका भक्तिकाल के प्रसिद्ध कवि रहीमदास अकबर के समय में उनके दरबार के नव रत्नों में से एक थे | उनकी कृतियां आज भी गंगा जमुनी तहजीब और कौमी एकता […]
रघुवीर सहाय की कविताओं में अभिव्यक्त स्त्री – अभिनव सिंह
शोध सार नारी विमर्श एक ऐसी विचारधारा या चिन्तन है जो स्त्री और पुरुष के मध्य भेदभाव को समाप्त कर नारियों को पुरुषों के बराबरी में खड़ा कर उन्हें शक्ति […]
प्रवासी स्त्रियाँ (उषा प्रियंवदा के उपन्यासों के विशेष संदर्भ में) – शशि शर्मा
शोध-सार : अपने मूल स्थान से अलग किसी अन्य स्थान पर जाकर बसने वाला व्यक्ति ‘प्रवासी’ कहलाता है। नए स्थान पर बसने के दौरान प्रवासी व्यक्तियों को कई तरह की […]
रहीमदास के दोहों का वर्तमान परिवेश में मनोसामाजिक चित्रण – डॉ. आशा कुमारी
सारांशिका भक्तिकाल के प्रसिद्ध कवि रहीमदास अकबर के समय में उनके दरबार के नवरत्नों में से एक थे । उनकी कृतियां आज भी गंगा जमुनी तहजीब और कौमी एकता के […]
कवि रहीम के दोहे से जीवन की वास्तविकता के दर्शन – डॉ. शिंदे मालती धौंडोपन्त
अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ाना या रहीम, एक मध्यकालीन कवि, सेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, एवं विद्वान थे। वे भारतीय सामासिक संस्कृति के अनन्य आराधक तथा सभी संप्रदायों के प्रति समादर भाव के सत्यनिष्ठ साधक […]
कामायनी में दर्शन – डॉ. दिनेश कुमार
जयशंकर प्रसाद जी कवि होने के साथ ही वैदिक परंपरा के ऋषि भी हैं कामायनी हिंदी का वेद है तो उसके पद्य मंत्र हैं जिनका भाव मनन द्वारा ही जाना […]
प्रेम के रंग में सराबोर हिंदी ग़ज़लें – नवीन कुमार जोशी
ग़ज़ल का इतिहास लगभग पंद्रह सौ वर्ष पुराना है। इन पंद्रह सौ वर्षों में ग़ज़ल विधा के अर्थ और स्वरूप में परिवर्तन हुआ है। अरबी भाषा में ग़ज़ल का अर्थ […]
मुद्राराक्षस के निबंध-साहित्य में द्वंद्व की अभिव्यक्ति – चंचल
साहित्य अर्थात् जन हित की कामना से परिचय कराने वाला तत्व ही साहित्य है। साहित्य अपने समय तथा समकालीन समाज को अपने भीतर आत्मसात कर भावी पीढ़ी के लिए एक […]
साहित्यिक सिनेमा में अंतर-सांस्कृतिक संचार के विविध स्वरूप – ज्ञान चन्द्र पाल
शोध सार- हिंदी सिनेमा भारतीय संस्कृति की अंतर्राष्ट्रीय संवाहक है। इसमें भारतीय जीवन-पद्धति के प्रत्येक क्षेत्र की झांकी दिखाई देती है। इसमें हम भारत के छोटे कस्बे से लेकर […]
भक्तिकाल के उदय के आयाम – राहुल पाण्डेय
ईस्वी सन की सातवीं शताब्दी से अद्यतन -काल तक अनवरत रुप से प्रवाहित हिंदी काव्यधारा में भक्ति का प्रवाह मन्दाकिनी की तरह अपनी निष्कलुष तरँगावली और अनन्त जनता के मन […]