सामाजिक सरोकार और मृदुला गर्ग की कहानियाँ – सुमिता त्रिपाठी

साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्य किसी भी काल का हो, उनमें समाज का यथार्थ चित्राण होता है । लेखक समाज के साथ अपना तादात्म्य स्थापित करता है और […]

वैश्वीकरण और आदिवासी समाज – प्रदीप तिवारी

वर्तनाम समाज परिवर्तनशील दौर से गुजर रहा है। समाज एवं राष्ट्र के विकास के केंद्र में मूलत: व्यक्ति है, जब तक व्यक्ति का व्यक्तित्व निखरकर सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप नहीं […]

ठाकुर के काव्य में विद्रोह का स्वर – रेखा

ठाकुर कवि-ठाकुर रीतिकालीन रीतिमुक्त स्वछंद प्रेम परिपाटी के कवि थे । ये जैतपुर (बुंदेलखंड)के राजा केसरी सिंह के दरबारी कवि थे । इनका जन्म सन1770 के आसपास माना जाता है […]

मानस का हंस – डॉ.नयना डेलीवाला

उपन्यास कथा साहित्य की आधुनिक विधा है। इसके अंतर्गत जीवन समग्र के रेशे-रेशे के यथार्थ को  रचनाकार अपनी अद्भुत कल्पना के साथ बुनता है और एक अनोखा विश्व पाठकों के […]

अनुवाद की प्रेरणा : आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी – डॉ. आनन्द कुमार शुक्ल

“जो समर्थ हैं और जो अँगरेज़ीदाँ बनकर, अनेक बातों में, अँगरेज़ी की नक़ल करना ही अपना परम धम्र्म समझते हैं, उनको कृपा करके किसी तरह जगा दीजिए। उन्हें अपने साहित्य […]

स्वातंत्र्योत्तर वैचारिक व ललित निबंधों में भारत बोध – व्योमकांत मिश्र

(कुबेरनाथ राय और विद्यानिवास मिश्र के विशेष सन्दर्भ में आदिमानव की अभिव्यक्ति का प्रथम उन्मेष किस रूप में हुआ यह कहना कठिन है | पुराकाल से मानव के मन में […]

वृंद की नैतिकता – सुमन कुमारी

वृंद अपने समय में दरबारी कवि थे। वृंद दरबारी जीवन और उसके तौर तरीके से भलीभांति परिचित थे। नीति सतसई की बहुत सी सुक्तियों में वर्णित राजनीतिक विचार दरबारी जीवन […]

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजी और भाषाई पत्रकारिता की भूमिका – नृसिंह बेहेरा / प्रदोश रथ

जेम्स अगस्टन हिक्की ने 29 जनवरी 1780 में पहला भारतीय समाचार पत्र बंगाल गजट कलकत्ता से अंग्रेजी में निकाला। इसका आदर्श वाक्य था – ‘सभी के लिये खुला फिर भी […]

 भारतीय संस्कृति एवं साहित्य में पर्यावरण चिंतन – प्रवीन मलिक

हिन्दी शब्द पर्यावरण ‘परि’ तथा ‘आवरण’ शब्दों का युगम है। ‘परि’ का अर्थ है- ‘चारों तरफ’ तथा ‘आवरण’ का अर्थ है- ‘घेरा’। अर्थात प्रकृति में जो भी चारों और परिलक्षित […]

रस विलास में पतिता नायिकाएँ (रीतिकाल के संदर्भ में) – बबली गुर्जर

समाज में एक ओर पतिव्रत की महिमा कठोर विधानों द्वारा समर्थित होकर बढ़ती है और दूसरी ओर सामंती जोम (शेखी) उस महिमा का अपने रस स्वार्थ के लिए रोज मखौल […]