डाॅ कुलविन्दर कौर की यह पुस्तक ‘निराला का रचना संसार’ निराला साहित्य में सांस्कृतिक बोध को उजागर करती है। इसमें लेखिका ने सांस्कृतिक बोध में अध्यात्म दर्शन, लोक-संस्कृति के उपकरण […]
परंपरा का पुनर्मूल्यांकन (नामवर सिंह)- डॉ. प्रकाशचंद भट्ट
नामवर सिंह हिंदी की लिखित-वाचिक परंपरा के बड़े आलोचक रचनाकार हैं। आलोचक और रचनाकार का काम निर्भयता के साथ प्रचलित, स्थापित मान्यताओं को चुनौती देना कहा जा सकता है। तमाम […]
अप्रवासी सिनेमाः रचनात्मक प्रयोगधर्मिता – राकेश दूबे
आधुनिक समय में सिनेमा जीवन का एक ऐसा अंग बन चुका है जिसे उससे अलग कर पाना संभव नहीं है। सिनेमा ही ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा समाज के विभिन्न […]
साहित्य और सिनेमा में किसान – तेजस पुनिया
प्रेमचंद कहते हैं कि साहित्य समाज का दर्पण है किंतु फिल्म निर्माता और निर्देशक अनुराग कश्यप का कहना है कि सिनेमा भी समाज का दर्पण है। भारतीय सिनेमा अपने सौ वर्ष पूर्ण […]