हिंदी की दशा की पड़ताल  – जयन्त जिज्ञासु

अपनी चेतना को अभिव्यक्त करने व अपने विचारों से दूसरों को अवगत कराने तथा दूसरे की राय व भावनाओं को जानने का माध्यम है भाषा। संप्रेषण व विचार-विनिमय का सशक्त […]

आदिवासी कविता : संघर्ष और विद्रोहधर्मिता – डॉ.धीरेन्द्र सिंह

अपने समय और समाज की यथार्थ स्थिति का उद्घाटन निरूपण व प्रस्तुतीकरण करना ही साहित्य का लक्ष्य है। साहित्य युगीन तब बनता है जब वह अपने समय समाज व जन-सामान्य […]

जन-माध्यमों के बदलते सरोकार – डॉ. माला मिश्र

यह एक विचित्र संयोग है कि जब विभिन्न देशों में जगह-जगह राष्ट्रवादी आंदोलनों ने सिरे उठाना शुरू कर दिया है और राष्ट्रीय अस्मिता तथा संप्रभुता के प्राथमिक सवालों से लोग […]

यहां जनसंचार के क्षेत्र में रेडियों का महत्व – डॉ0 बलजीत कुमार श्रीवास्तव

आज के दौर में जनसंचार के कई आयाम प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक मुख्य माध्यम रेडियो का है।                 जनसंचार माध्यमों में समाचार पत्रों, पत्रिकाओं के अतिरिक्त आज रेडियों […]

कोर्ट मार्शल: दलित चेतना की अभिव्यक्ति – डॉ. स्नेहलता नेगी

बीसवीं सदी जबरदस्त परिवर्तन की सदी रही है। इस सदी ने मानव जीवन के हर एक क्षेत्र में आमूल परिवर्तन कर दिया है। प्रत्येक विषय की नीव को ही उसने […]

संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी – डॉ. सुनील भूटानी

भारत, संयुक्त राष्ट्र संघ में एक महत्वपूर्ण देश है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के नाते भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ में एक विशेष स्थान प्राप्त है। वर्तमान में, […]

उषा प्रियंवदा का रचना संसार – डां रूचिरा ढींगरा

समकालीन प्रवासी महिला कथाकारों में बहुचर्चित एवं समादृत उषा प्रियंवदा का जन्म कानपुर के एक प्रतिष्ठित कायस्थ परिवार में 24 दिसमबर 1930 को हुआ। मेधावी और अध्ययनशीला उषा प्रियंवदा अपने […]

तेलुगु लोक गीतों की परंपरा : एक अध्ययन – डॉ. आनंद एस .

भाषा में साहित्य का आविर्भाव लोक साहित्य से हुआ है। लोक साहित्य में सबसे पहले लोकगीतों का जन्म हुआ है। क्योंकि गीत गाना या गुनगुनाना मनुष्य की एक सहज प्रवृत्ति […]

मध्यकालीन संत एवं भक्त कवि और सार्वभौमिक मानव-मूल्य  –  सुमन

                ” देख तेरे संसार की हालत                   क्या हो गई भगवान                   कितना बदल गया इंसान” आज वैश्वीकरण की आँधी में बुलेट […]

दिव्या माथुर की कहानियों में स्त्री मुक्ति का आह्वान – नितिन मिश्रा

मनुष्य एक गतिशील प्राणी है, विचरण करना इसका स्वाभाविक कर्म है| जब से मनुष्य इस धरती पर आया वह निरंतर गतिशील रहा है|निरंतरता मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति हैं मनुष्य के […]